मजदूर दिवस 1मई चिंतनआलेख - पवित्र मन के मित्र मजदूर:

post

सृष्टि के आरंभ से ही मजदूर वर्ग का जन्म हुआ।मानव समाज का यह एक ऐसा वर्ग है जो आजीवन दूसरों का बोझ अपने सिर पर लेकर चलता है।कम दाम पर अधिक काम बड़े आराम से कर देता है।खुद के सिर पर छत नहीं होता,हाथ पावं में फफोले होते हैं पर दूसरों की आलीशान कोठी बनाने में कोताही नहीं करता।इसी लिए तपती धूप,कड़कती ठंढ और भीषण बारिश भी मजदूर की मेहनत को झूककर सलाम करते हैं। मजदूर की बलशाली भुजाओं को देखकर कठोर चट्टान,ऊंचे पर्वत कांपते हैं।

ऐसे बाहुबली मजदूरों का अपने साथ-साथ अपने परिवारजनों के जीवन यापन,रोजी रोटी हेतु दूसरों का बोझ उठाना अगर मजबूरी है तो मजदूर की ताकत के दम पर ही गंतव्य तक पहुंचाना,नव निर्माण कार्य को पूरा करना समाज के अन्य वर्गों की भी मजबूरी है।अत्याधुनिक मशीनों के आविष्कार ने आज के युग को जेट युग बना दिया है। तेज रफ्तार ही तेज प्रगति की पर्याय बनती जा रही है। ऐसे दौर में भी मजदूरों की अहमियत बरकरार है। उनका स्थान पूरी तरह से मशीन नहीं ले सकी है।तात्पर्य यही है कि धरा पर "भगवान विश्वकर्मा" की भांति मजदूरों की अहमियत मानव समाज में सदैव बनी रहेगी।

गांव शहर की चहल पहल,कल कारखानों की कल- कल कल- कल को चलायमान रखने वाले मजदूरों ने सर्वप्रथम अमेरिका में 1 मई 1886 को अपने हक की लड़ाई लड़ी और एक दिन में आठ घंटे कार्य की समय सीमा को निर्धारित करने में कामयाबी पाई,यद्यपि इस आन्दोलन में मजदूरों की मौत भी हुई। आज भारत सहित अन्य देशों में भी कार्य समयावधि आठ घंटा मान्य है। इसी आंदोलन के बाद से एक मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाने की आधारशिला रखी गई।भारत में 1 मई 1923 से  मजदूर दिवस मनाने की शुरुआत चेन्नई से हुई थी।

अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस कड़ी मेहनत से उपजी उन्नति से प्रेरणा लेकर आगे और बेहतर करने हेतु संकल्प लेने का दिवस होता है। मजदूरों के जीवन में जश्न के साथ नव ऊर्जा को संचारित करने का दिवस होता है। मजदूरों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनाने का दिवस होता है।शोषणकर्ताओं के विरुद्ध साझा संघर्ष के लिए एक जुट होने का दिवस होता है।यद्यपि बड़ी चिंता जनक बात है कि अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाने की पहल के सैकड़ों वर्षों बाद भी ज्यादातर मजदूरों की दुर्दशा ही दिखाई देती है। मजदूर दिवस का आयोजन  कागजी रस्म सा प्रतीत  होता है।केवल इसी दिवस पर मजदूरों का सम्मान करने वालों को चाहिए कि  हरेक दिवस को मजदूर के मान सम्मान दिवस की दृष्टि से ही देखें।

याद रखना होगा कि मजदूरों का शोषण, मजदूरों के साथ अन्याय करना स्वयं को कमजोर बनाने जैसा कृत्य सिद्ध होगा।अर्थ व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने वाले मजदूरों की ताकत को नजर अंदाज करना उल्टे गिरने की स्थिति में ला खड़ा करेगा।दुनिया के ज्यादातर मजदूर निरक्षर और अनपढ़ होते हैं।यही वजह है सुरक्षा के प्रति सजगता और अधिकारों के प्रति जागरूकता की कमी भी मजदूरों में दिखाई देती है, पर ज्ञानी ध्यानी पूंजीपति मालिकों को अनपढ़ मजदूर ही पसीना बहाना, पसीना बहाकर रोजी-रोटी रुपया पैसा कमाना सिखाता है,अतः मजदूरों के अधिकारों की सुरक्षा,उनके प्रति सहानुभूति रखना मालिकों के लिए भी हितकर है।

मजदूर दिवस पर यह भी स्मरणीय है कि मजदूर की गाढ़ी कमाई की पवित्रता ही उसे उबड़ खाबड़ जमीन पर मीठी नींद सुला देती है।ऐसे ही परिश्रम और पसीने की महत्ता को उजागर करते हुए जैन मुनि श्री तरुण सागर जी कहते हैं कि- बिना पसीना बहाये जो धन दौलत हासिल होता है,वह पाप की कमाई के समतुल्य है। पाप की कमाई से सोना हीरा जड़ित कंगन तो पहन सकते हैं, पर यह भी संभव है कि पाप की कमाई के कारण लोहे की हथकड़ियां भी पहननी पड़ जाए।

प्रायःयह भी देखने सुनने में आता है कि मालिक बने धनाढ्य लोग समान काम के लिए समान मजदूरी नहीं देते।मजदूरों को समय पर मजदूरी नहीं देते,या आधी अधूरी मजदूरी ही देते हैं। ऐसे कुटिल चाल, कुत्सित विचारों के पीछे मालिक की सोच मजदूरों को बंधुवा बनाकर रखने की होती है,जो कि हर दृष्टिकोण से मानवीय धर्म के विरुद्ध है।अनुचित है। 

धार्मिक ग्रंथों में,नीति शास्त्रों में इस बात को विशेष रूप से उल्लेखित किया गया है कि भरण पोषण के लिए खून -पसीना बहाने वाले मजदूरों की पाई पाई मजदूरी का भुगतान उसका पसीना सूखने के पहले ही कर देना चाहिए।ऐसा करना मजदूर समुदाय को तन मन धन से मजबूत बनाना है।मजदूर की मजबूती ही मालिक को ठोस धरातल और सुदृढ़ नींव पर खड़ा करती है। 

मजदूरों के प्रति उदारता,सहृदयता अनेक अर्थों में दोहरा लाभ दिलाने वाली कुंजी है। मजदूर और मालिक के मध्य परोपकार की भावना आपसी रिश्ते में  प्रगाढ़ता लाती है। प्रबल विश्वास जगाती है।कवि रहीम जी की पंक्तियां इसे बेहतर उजागर करती हैं- "रहीम वे नर धन्य हैं पर उपकारी अंग,बांटनवारे को लगे ज्यों मेहंदी को रंग" अर्थात दूसरों को खुशी देने वाले बधाई के पात्र हैं। मालिक- प्रबंधन- श्रमिक के मध्य  मधुर संबंध से उसी तरह दोहरा लाभ होता है जैसे मेहंदी लगाने वाले के हाथ में ना चाहते हुए भी मेहंदी का रंग स्वत: चढ़ जाता है। दूसरों के माथे पर चंदन लगाने वाले के हाथ स्वत: चंदन की महक से गमक उठाते हैं। 

मजदूर दिवस पर श्रम शक्ति को नमन करते हुए मजदूरों से काम लेने वालों को हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि मजदूर के पसीने के बिना प्रगति की कल्पना नहीं की जा सकती। ऐसे  श्रमवीरों- कर्मवीरों को सटीक परिभाषित करती हैं  ए पंक्तियां -  मजदूर अशक्त नहीं सशक्त है, श्रम के पुजारी श्रम के भक्त हैं। मजदूर मजबूर नहीं मजबूत है,विकास की नींव विकास के सबूत है।

लेखक :: विजय मिश्रा 'अमित', पूर्व अति महाप्रबंधक (जन) , एम 8 सेक्टर 2 अग्रोहा कॉलोनी ,पोआ- सुंदर नगर रायपुर (छग) 492013 मोबाइल 989 3123310


सृष्टि के आरंभ से ही मजदूर वर्ग का जन्म हुआ।मानव समाज का यह एक ऐसा वर्ग है जो आजीवन दूसरों का बोझ अपने सिर पर लेकर चलता है।कम दाम पर अधिक काम बड़े आराम से कर देता है।खुद के सिर पर छत नहीं होता,हाथ पावं में फफोले होते हैं पर दूसरों की आलीशान कोठी बनाने में कोताही नहीं करता।इसी लिए तपती धूप,कड़कती ठंढ और भीषण बारिश भी मजदूर की मेहनत को झूककर सलाम करते हैं। मजदूर की बलशाली भुजाओं को देखकर कठोर चट्टान,ऊंचे पर्वत कांपते हैं।

ऐसे बाहुबली मजदूरों का अपने साथ-साथ अपने परिवारजनों के जीवन यापन,रोजी रोटी हेतु दूसरों का बोझ उठाना अगर मजबूरी है तो मजदूर की ताकत के दम पर ही गंतव्य तक पहुंचाना,नव निर्माण कार्य को पूरा करना समाज के अन्य वर्गों की भी मजबूरी है।अत्याधुनिक मशीनों के आविष्कार ने आज के युग को जेट युग बना दिया है। तेज रफ्तार ही तेज प्रगति की पर्याय बनती जा रही है। ऐसे दौर में भी मजदूरों की अहमियत बरकरार है। उनका स्थान पूरी तरह से मशीन नहीं ले सकी है।तात्पर्य यही है कि धरा पर "भगवान विश्वकर्मा" की भांति मजदूरों की अहमियत मानव समाज में सदैव बनी रहेगी।

गांव शहर की चहल पहल,कल कारखानों की कल- कल कल- कल को चलायमान रखने वाले मजदूरों ने सर्वप्रथम अमेरिका में 1 मई 1886 को अपने हक की लड़ाई लड़ी और एक दिन में आठ घंटे कार्य की समय सीमा को निर्धारित करने में कामयाबी पाई,यद्यपि इस आन्दोलन में मजदूरों की मौत भी हुई। आज भारत सहित अन्य देशों में भी कार्य समयावधि आठ घंटा मान्य है। इसी आंदोलन के बाद से एक मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाने की आधारशिला रखी गई।भारत में 1 मई 1923 से  मजदूर दिवस मनाने की शुरुआत चेन्नई से हुई थी।

अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस कड़ी मेहनत से उपजी उन्नति से प्रेरणा लेकर आगे और बेहतर करने हेतु संकल्प लेने का दिवस होता है। मजदूरों के जीवन में जश्न के साथ नव ऊर्जा को संचारित करने का दिवस होता है। मजदूरों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनाने का दिवस होता है।शोषणकर्ताओं के विरुद्ध साझा संघर्ष के लिए एक जुट होने का दिवस होता है।यद्यपि बड़ी चिंता जनक बात है कि अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाने की पहल के सैकड़ों वर्षों बाद भी ज्यादातर मजदूरों की दुर्दशा ही दिखाई देती है। मजदूर दिवस का आयोजन  कागजी रस्म सा प्रतीत  होता है।केवल इसी दिवस पर मजदूरों का सम्मान करने वालों को चाहिए कि  हरेक दिवस को मजदूर के मान सम्मान दिवस की दृष्टि से ही देखें।

याद रखना होगा कि मजदूरों का शोषण, मजदूरों के साथ अन्याय करना स्वयं को कमजोर बनाने जैसा कृत्य सिद्ध होगा।अर्थ व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने वाले मजदूरों की ताकत को नजर अंदाज करना उल्टे गिरने की स्थिति में ला खड़ा करेगा।दुनिया के ज्यादातर मजदूर निरक्षर और अनपढ़ होते हैं।यही वजह है सुरक्षा के प्रति सजगता और अधिकारों के प्रति जागरूकता की कमी भी मजदूरों में दिखाई देती है, पर ज्ञानी ध्यानी पूंजीपति मालिकों को अनपढ़ मजदूर ही पसीना बहाना, पसीना बहाकर रोजी-रोटी रुपया पैसा कमाना सिखाता है,अतः मजदूरों के अधिकारों की सुरक्षा,उनके प्रति सहानुभूति रखना मालिकों के लिए भी हितकर है।

मजदूर दिवस पर यह भी स्मरणीय है कि मजदूर की गाढ़ी कमाई की पवित्रता ही उसे उबड़ खाबड़ जमीन पर मीठी नींद सुला देती है।ऐसे ही परिश्रम और पसीने की महत्ता को उजागर करते हुए जैन मुनि श्री तरुण सागर जी कहते हैं कि- बिना पसीना बहाये जो धन दौलत हासिल होता है,वह पाप की कमाई के समतुल्य है। पाप की कमाई से सोना हीरा जड़ित कंगन तो पहन सकते हैं, पर यह भी संभव है कि पाप की कमाई के कारण लोहे की हथकड़ियां भी पहननी पड़ जाए।

प्रायःयह भी देखने सुनने में आता है कि मालिक बने धनाढ्य लोग समान काम के लिए समान मजदूरी नहीं देते।मजदूरों को समय पर मजदूरी नहीं देते,या आधी अधूरी मजदूरी ही देते हैं। ऐसे कुटिल चाल, कुत्सित विचारों के पीछे मालिक की सोच मजदूरों को बंधुवा बनाकर रखने की होती है,जो कि हर दृष्टिकोण से मानवीय धर्म के विरुद्ध है।अनुचित है। 

धार्मिक ग्रंथों में,नीति शास्त्रों में इस बात को विशेष रूप से उल्लेखित किया गया है कि भरण पोषण के लिए खून -पसीना बहाने वाले मजदूरों की पाई पाई मजदूरी का भुगतान उसका पसीना सूखने के पहले ही कर देना चाहिए।ऐसा करना मजदूर समुदाय को तन मन धन से मजबूत बनाना है।मजदूर की मजबूती ही मालिक को ठोस धरातल और सुदृढ़ नींव पर खड़ा करती है। 

मजदूरों के प्रति उदारता,सहृदयता अनेक अर्थों में दोहरा लाभ दिलाने वाली कुंजी है। मजदूर और मालिक के मध्य परोपकार की भावना आपसी रिश्ते में  प्रगाढ़ता लाती है। प्रबल विश्वास जगाती है।कवि रहीम जी की पंक्तियां इसे बेहतर उजागर करती हैं- "रहीम वे नर धन्य हैं पर उपकारी अंग,बांटनवारे को लगे ज्यों मेहंदी को रंग" अर्थात दूसरों को खुशी देने वाले बधाई के पात्र हैं। मालिक- प्रबंधन- श्रमिक के मध्य  मधुर संबंध से उसी तरह दोहरा लाभ होता है जैसे मेहंदी लगाने वाले के हाथ में ना चाहते हुए भी मेहंदी का रंग स्वत: चढ़ जाता है। दूसरों के माथे पर चंदन लगाने वाले के हाथ स्वत: चंदन की महक से गमक उठाते हैं। 

मजदूर दिवस पर श्रम शक्ति को नमन करते हुए मजदूरों से काम लेने वालों को हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि मजदूर के पसीने के बिना प्रगति की कल्पना नहीं की जा सकती। ऐसे  श्रमवीरों- कर्मवीरों को सटीक परिभाषित करती हैं  ए पंक्तियां -  मजदूर अशक्त नहीं सशक्त है, श्रम के पुजारी श्रम के भक्त हैं। मजदूर मजबूर नहीं मजबूत है,विकास की नींव विकास के सबूत है।

लेखक :: विजय मिश्रा 'अमित', पूर्व अति महाप्रबंधक (जन) , एम 8 सेक्टर 2 अग्रोहा कॉलोनी ,पोआ- सुंदर नगर रायपुर (छग) 492013 मोबाइल 989 3123310


शयद आपको भी ये अच्छा लगे!