मध्यप्रदेश post authorJournalist खबरीलाल LAST UPDATED ON:Wednesday ,August 21,2024

Mp : मप्र में ओबीसी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट लेगा फैसला:

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भोपाल । मप्र में ओबीसी आरक्षण 14 फीसदी होना चाहिए या 27 पर्सेंट होना चाहिए इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट अब फैसला लेगा। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसफर याचिकाएं मंजूर कर ली और सभी पक्षकारों और मप्र शासन को भी नोटिस जारी किए हैं। अगली सुनवाई अक्टूबर में संभावित है। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता मौजूद थे।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई करते हुए जस्टिस बीआर गवाई और जस्टिस केवी विश्वनाथन के सामने याचिकाकर्ता के अधिवक्ता आदित्य संघी का कहना है कि संवैधानिक बेंच ने 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण पर रोक लगाई है, लेकिन इसके बाद भी मप्र सरकार ने आरक्षण बढ़ाते हुए इसे 63 फीसदी कर दिया है। उन्होंने कहा कि मराठा आरक्षण में भी अतिरिक्त आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने अमान्य किया। इसी तरह बिहार के मामले में भी 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण को आमान्य किया जा चुका है। ऐसे में मप्र में भी 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। करीब 85 याचिकाएं लगी है, जिन पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी।

अधिवक्ता सांघी का कहना है कि मार्च 2019 में इस आरक्षण के विरुद्ध हमने हाईकोर्ट में स्टे लिया था। उसमें लगातार सुनवाई हुई। लेकिन फैसले के पूर्व मध्य शासन द्वारा इसमें ट्रांसफर याचिका लगा दी गई। इसके बाद 100 फीसदी भर्ती करने की जगह 87-13 का फॉर्मूला लागू कर दिया गया। हाईकोर्ट में अगर यह मामला जाता है तो फिर हाईकोर्ट सुनवाई करेगा और जो भी फैसला आएगा एक बार फिर से इसमें मामला सुप्रीम कोर्ट में ही आएगा। इससे अभ्यर्थी और परेशान होंगे इसलिए निवेदन है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में पूरी सुनवाई करे और फैसला दे। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने इस मामले को स्वीकार कर लिया और सभी पक्ष को नोटिस जारी किया है। खास तौर से मध्य प्रदेश सरकार से जवाब मांगा गया है कि 27 फीसदी आरक्षण क्यों और कैसे किया गया है? दूसरा यह 87-13 के फॉर्मूला से भर्ती क्यों की गई है?







भोपाल । मप्र में ओबीसी आरक्षण 14 फीसदी होना चाहिए या 27 पर्सेंट होना चाहिए इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट अब फैसला लेगा। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसफर याचिकाएं मंजूर कर ली और सभी पक्षकारों और मप्र शासन को भी नोटिस जारी किए हैं। अगली सुनवाई अक्टूबर में संभावित है। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता मौजूद थे।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई करते हुए जस्टिस बीआर गवाई और जस्टिस केवी विश्वनाथन के सामने याचिकाकर्ता के अधिवक्ता आदित्य संघी का कहना है कि संवैधानिक बेंच ने 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण पर रोक लगाई है, लेकिन इसके बाद भी मप्र सरकार ने आरक्षण बढ़ाते हुए इसे 63 फीसदी कर दिया है। उन्होंने कहा कि मराठा आरक्षण में भी अतिरिक्त आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने अमान्य किया। इसी तरह बिहार के मामले में भी 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण को आमान्य किया जा चुका है। ऐसे में मप्र में भी 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। करीब 85 याचिकाएं लगी है, जिन पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी।

अधिवक्ता सांघी का कहना है कि मार्च 2019 में इस आरक्षण के विरुद्ध हमने हाईकोर्ट में स्टे लिया था। उसमें लगातार सुनवाई हुई। लेकिन फैसले के पूर्व मध्य शासन द्वारा इसमें ट्रांसफर याचिका लगा दी गई। इसके बाद 100 फीसदी भर्ती करने की जगह 87-13 का फॉर्मूला लागू कर दिया गया। हाईकोर्ट में अगर यह मामला जाता है तो फिर हाईकोर्ट सुनवाई करेगा और जो भी फैसला आएगा एक बार फिर से इसमें मामला सुप्रीम कोर्ट में ही आएगा। इससे अभ्यर्थी और परेशान होंगे इसलिए निवेदन है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में पूरी सुनवाई करे और फैसला दे। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने इस मामले को स्वीकार कर लिया और सभी पक्ष को नोटिस जारी किया है। खास तौर से मध्य प्रदेश सरकार से जवाब मांगा गया है कि 27 फीसदी आरक्षण क्यों और कैसे किया गया है? दूसरा यह 87-13 के फॉर्मूला से भर्ती क्यों की गई है?







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