रायपुर। देश के लिए आतंकवाद के समान खतरा बन चुके
नक्सलवाद को जड़ से उखाड़ने की कवायद बस्तर में प्रभावकारी होती जा रही है।
देश की आतंरिक सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिए जाने का अच्छा प्रतिसाद सामने आ
रहा है। बस्तर में पुलिस और अर्धसैन्य बल के जवान लगातार नक्सलियों की मांद
तक पहुंच रहे हैं। इन्हीं जवानों के बुलंद हौसले के चलते अब वनांचल में
भी चैन की दीपावली मन रही है।
बस्तर में इंद्रावती नदी के तट से लगे जंगल और गांवों में नक्सल साम्राज्य
था। इंद्रावती एरिया कमेटी के नाम से नक्सली सैकड़ों गांव पर राज करते थे।
यहां स्वतंत्रता एवं गणतंत्र दिवस के साथ-साथ तीज-त्योहारों पर भी जनता के
मौलिक अधिकारों का हनन होता रहा। नक्सलियों के काले झंडे को ही ग्रामीण
सलामी देने को मजबूर थे। अब फोर्स पूरी ताकत और जनसहयोग के साथ आगे बढ़ रही
है।
नतीजा यह कि अब सुदूर गांव से आने वाली आवाज गोली की नहीं, पटाखे की है।
रोशनी दीपों और घरों की है। इसके पीछे वे जवान हैं, जो अपनी जान जोखिम में
डालकर नक्सलियों से मुकाबला करने के लिए चौबीस घंटे तैनात हैं। नक्सलियों
की शरण-स्थली कहलाने वाले दक्षिण बस्तर में अब बदलाव दिख रहा है। नक्सलियों
के पैर उखड़ रहे हैं और जवान जनता का विश्वास जीतने में कामयाब हो रहे हैं।
ग्रामीण जान चुके हैं कि उनकी सुरक्षा और भविष्य मुख्यधारा के साथ चलने में
ही है। यही कारण है कि ग्रामीणों के कंधे पर बंदूक रखकर जवानों पर हमला
करने वाले नक्सली अब कमजोर हुए हैं। बेस कैंप, पुल-पुलिया और सड़कों के जाल
के माध्यम से नक्सली इस तरह घिर रहे हैं कि हथियार डालने के अलावा उनके
पास कोई रास्ता नहीं है। अगर वे आमने-सामने का मुकाबला करते हैं तो मुंह की
खानी पड़ती है।
जवान नक्सलियों से लोहा ले रहे थे। हम चैन से रहें, इसके लिए उन्होंने अपनी
जान की परवाह न करते हुए चार माओवादियों को मार गिराने में सफलता हासिल
की। पुलिस लगातार नक्सलियों से समर्पण की बात कह रही है और अब इसका असर भी
दिख रहा है।
दंतेवाड़ा इलाके में नक्सल आत्मसमर्पण का रिकार्ड बना है तो वहीं अब सुकमा,
बीजापुर, नारायणपुर जैसे नक्सल प्रभावित जिलों में भी समर्पण व गिरफ्तारी
का सिलसिला तेज हो गया है। यह जवानों का कर्तव्य के प्रति जज्बा ही है, जो
उन्हें त्योहार के मौके पर भी मोर्चे पर तैनात रखता है।
वह लगातार नक्सलियों के पीछे लगे हैं। उनकी जिजीविषा का परिणाम है कि
प्रदेश दीपावली का जश्न मना रहा है, पर देश-विदेश में नक्सलगढ़ वाली धारणा
धूमिल पड़ती जा रही है।।
रायपुर। देश के लिए आतंकवाद के समान खतरा बन चुके
नक्सलवाद को जड़ से उखाड़ने की कवायद बस्तर में प्रभावकारी होती जा रही है।
देश की आतंरिक सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिए जाने का अच्छा प्रतिसाद सामने आ
रहा है। बस्तर में पुलिस और अर्धसैन्य बल के जवान लगातार नक्सलियों की मांद
तक पहुंच रहे हैं। इन्हीं जवानों के बुलंद हौसले के चलते अब वनांचल में
भी चैन की दीपावली मन रही है।
बस्तर में इंद्रावती नदी के तट से लगे जंगल और गांवों में नक्सल साम्राज्य
था। इंद्रावती एरिया कमेटी के नाम से नक्सली सैकड़ों गांव पर राज करते थे।
यहां स्वतंत्रता एवं गणतंत्र दिवस के साथ-साथ तीज-त्योहारों पर भी जनता के
मौलिक अधिकारों का हनन होता रहा। नक्सलियों के काले झंडे को ही ग्रामीण
सलामी देने को मजबूर थे। अब फोर्स पूरी ताकत और जनसहयोग के साथ आगे बढ़ रही
है।
नतीजा यह कि अब सुदूर गांव से आने वाली आवाज गोली की नहीं, पटाखे की है।
रोशनी दीपों और घरों की है। इसके पीछे वे जवान हैं, जो अपनी जान जोखिम में
डालकर नक्सलियों से मुकाबला करने के लिए चौबीस घंटे तैनात हैं। नक्सलियों
की शरण-स्थली कहलाने वाले दक्षिण बस्तर में अब बदलाव दिख रहा है। नक्सलियों
के पैर उखड़ रहे हैं और जवान जनता का विश्वास जीतने में कामयाब हो रहे हैं।
ग्रामीण जान चुके हैं कि उनकी सुरक्षा और भविष्य मुख्यधारा के साथ चलने में
ही है। यही कारण है कि ग्रामीणों के कंधे पर बंदूक रखकर जवानों पर हमला
करने वाले नक्सली अब कमजोर हुए हैं। बेस कैंप, पुल-पुलिया और सड़कों के जाल
के माध्यम से नक्सली इस तरह घिर रहे हैं कि हथियार डालने के अलावा उनके
पास कोई रास्ता नहीं है। अगर वे आमने-सामने का मुकाबला करते हैं तो मुंह की
खानी पड़ती है।
जवान नक्सलियों से लोहा ले रहे थे। हम चैन से रहें, इसके लिए उन्होंने अपनी
जान की परवाह न करते हुए चार माओवादियों को मार गिराने में सफलता हासिल
की। पुलिस लगातार नक्सलियों से समर्पण की बात कह रही है और अब इसका असर भी
दिख रहा है।
दंतेवाड़ा इलाके में नक्सल आत्मसमर्पण का रिकार्ड बना है तो वहीं अब सुकमा,
बीजापुर, नारायणपुर जैसे नक्सल प्रभावित जिलों में भी समर्पण व गिरफ्तारी
का सिलसिला तेज हो गया है। यह जवानों का कर्तव्य के प्रति जज्बा ही है, जो
उन्हें त्योहार के मौके पर भी मोर्चे पर तैनात रखता है।
वह लगातार नक्सलियों के पीछे लगे हैं। उनकी जिजीविषा का परिणाम है कि
प्रदेश दीपावली का जश्न मना रहा है, पर देश-विदेश में नक्सलगढ़ वाली धारणा
धूमिल पड़ती जा रही है।।