रायपुर। छत्तीसगढ़ का संस्कृति विभाग एक और आयोजन को लेकर विवादों में घिर गया है। विभाग ने मुक्तिबोध स्मारक समिति के साथ मिलकर 13 नवंबर को गजानन माधव मुक्तिबोध जयंती समारोह का आयोजन किया था। इसका आमंत्रण पत्र सामने आने के बाद बुद्धिजीवियों ने विरोध शुरू कर दिया। आरोप लगा कि संस्कृति विभाग पर संघ ने कब्जा कर लिया है। बाद में ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सचिव और छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रभारी चंदन यादव के हस्तक्षेप के बाद इस कार्यक्रम को ही रद्द कर दिया गया है।
आयोजन में प्रस्तावित कवि सम्मेलन में आमंत्रित कवियों से विवाद की शुरुआत हुई। लेखक अशोक कुमार पांडेय ने सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को संबोधित करके लिखा- मुक्तिबोध की स्मृति का इससे बड़ा अपमान नहीं हो सकता। इससे बहुत बेहतर होता कि उन पर आयोजन किया ही नहीं जाता। हिंदी के इस महान कवि के जन्मदिन पर कवि सम्मेलन के नाम पर जिस तरह के लोगों को बुलाया गया है, शर्मनाक है। बेहतर हो इसे रद्द किया जाए।
समारोह की संगोष्ठी में आमंत्रित देहरादून के डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र का भी विरोध हो रहा है। अशोक कुमार पाण्डेय ने डॉ. मिश्र की कुछ सोशल मीडिया पोस्ट को साझा करते हुए लिखा, इन्हें छत्तीसगढ़ में मुक्तिबोध पर आयोजित सरकारी आयोजन में बुलाया गया है। यहां टीवी से लेकर सड़क तक लोग सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ते हैं और वहां भूपेश बघेल की सरकार के संस्कृति मंत्रालय में संघियों का कब्जा है। अशोक पांडेय ने लिखा, क्या छत्तीसगढ़ सरकार को मुक्तिबोध की परंपरा का एक कवि नहीं मिला। क्या उन्हें देश भर में एक ऐसा मुक्तिबोध विशेषज्ञ नहीं मिला जो साम्प्रदायिक न हो। यह सवाल उठने के बाद दिल्ली से लेकर रायपुर तक के कई कवियों-लेखकों ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई।
इस कार्यक्रम की जानकारी लेने के बाद छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रभारी सचिव चंदन यादव ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से बात की। उन्होंने विरोध की जानकारी दी। उसके बाद आनन-फानन में इस आयोजन को रद्द कर दिया गया। चंदन यादव ने खुद सोशल मीडिया के जरिए यह जानकारी दी। बताया जा रहा है कि मुक्तिबोध की स्मृति में अब नया कार्यक्रम बनेगा। अब संस्कृति विभाग के अफसर इस पर बात करने से बच रहे हैं।
राजनांदगांव से मुक्तिबोध का गहरा नाता
ग्वालियर के पास श्योपुर में 13 नवंबर 1917 को जन्मे गजानन माधव मुक्तिबोध को आधुनिक हिंदी साहित्य के सबसे महत्वपूर्ण कवियों-लेखकों में गिना जाता है। मुक्तिबोध तारसप्तक के पहले कवि थे। मनुष्य की अस्मिता, आत्मसंघर्ष और प्रखर राजनीतिक चेतना से समृद्ध उनकी कविता पहली बार तार सप्तक के माध्यम से सामने आई। कई नौकरियां छोड़ते-पकड़ते वे 1958 में राजनांदगांव के दिग्विजय कॉलेज में प्राचार्य बनकर आए थे। उसके बाद वे यहीं के होकर रहे गए।
रायपुर। छत्तीसगढ़ का संस्कृति विभाग एक और आयोजन को लेकर विवादों में घिर गया है। विभाग ने मुक्तिबोध स्मारक समिति के साथ मिलकर 13 नवंबर को गजानन माधव मुक्तिबोध जयंती समारोह का आयोजन किया था। इसका आमंत्रण पत्र सामने आने के बाद बुद्धिजीवियों ने विरोध शुरू कर दिया। आरोप लगा कि संस्कृति विभाग पर संघ ने कब्जा कर लिया है। बाद में ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सचिव और छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रभारी चंदन यादव के हस्तक्षेप के बाद इस कार्यक्रम को ही रद्द कर दिया गया है।
आयोजन में प्रस्तावित कवि सम्मेलन में आमंत्रित कवियों से विवाद की शुरुआत हुई। लेखक अशोक कुमार पांडेय ने सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को संबोधित करके लिखा- मुक्तिबोध की स्मृति का इससे बड़ा अपमान नहीं हो सकता। इससे बहुत बेहतर होता कि उन पर आयोजन किया ही नहीं जाता। हिंदी के इस महान कवि के जन्मदिन पर कवि सम्मेलन के नाम पर जिस तरह के लोगों को बुलाया गया है, शर्मनाक है। बेहतर हो इसे रद्द किया जाए।
समारोह की संगोष्ठी में आमंत्रित देहरादून के डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र का भी विरोध हो रहा है। अशोक कुमार पाण्डेय ने डॉ. मिश्र की कुछ सोशल मीडिया पोस्ट को साझा करते हुए लिखा, इन्हें छत्तीसगढ़ में मुक्तिबोध पर आयोजित सरकारी आयोजन में बुलाया गया है। यहां टीवी से लेकर सड़क तक लोग सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ते हैं और वहां भूपेश बघेल की सरकार के संस्कृति मंत्रालय में संघियों का कब्जा है। अशोक पांडेय ने लिखा, क्या छत्तीसगढ़ सरकार को मुक्तिबोध की परंपरा का एक कवि नहीं मिला। क्या उन्हें देश भर में एक ऐसा मुक्तिबोध विशेषज्ञ नहीं मिला जो साम्प्रदायिक न हो। यह सवाल उठने के बाद दिल्ली से लेकर रायपुर तक के कई कवियों-लेखकों ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई।
इस कार्यक्रम की जानकारी लेने के बाद छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रभारी सचिव चंदन यादव ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से बात की। उन्होंने विरोध की जानकारी दी। उसके बाद आनन-फानन में इस आयोजन को रद्द कर दिया गया। चंदन यादव ने खुद सोशल मीडिया के जरिए यह जानकारी दी। बताया जा रहा है कि मुक्तिबोध की स्मृति में अब नया कार्यक्रम बनेगा। अब संस्कृति विभाग के अफसर इस पर बात करने से बच रहे हैं।
राजनांदगांव से मुक्तिबोध का गहरा नाता
ग्वालियर के पास श्योपुर में 13 नवंबर 1917 को जन्मे गजानन माधव मुक्तिबोध को आधुनिक हिंदी साहित्य के सबसे महत्वपूर्ण कवियों-लेखकों में गिना जाता है। मुक्तिबोध तारसप्तक के पहले कवि थे। मनुष्य की अस्मिता, आत्मसंघर्ष और प्रखर राजनीतिक चेतना से समृद्ध उनकी कविता पहली बार तार सप्तक के माध्यम से सामने आई। कई नौकरियां छोड़ते-पकड़ते वे 1958 में राजनांदगांव के दिग्विजय कॉलेज में प्राचार्य बनकर आए थे। उसके बाद वे यहीं के होकर रहे गए।