बलौदाबाजार, बलौदाबाजार विकासखंड के ग्राम पंचायत सकरी में दीपज्योति स्व सहायता समूह द्वारा जुलाई 2020 में कुक्कुट पालन कार्य की शुरुआत की गई । समूह की अध्यक्ष सावित्री वर्मा एवं सदस्य शैल वर्मा ने बताया कि पशु चिकित्सा विभाग द्वारा स्व सहायता समूह को 100 नग कड़कनाथ के चूजे दिए गए थे। 3 माह के भीतर सभी कड़कनाथ मुर्गे 1 किलो वज़न के हो गए थे। इसके बाद 500 रूपये प्रति किलो की दर से उन मुर्गों को बेचकर स्व सहायता समूह को 50 हज़ार की आमदनी प्राप्त हुई। तीन माह के दौरान मुर्गों के रखरखाव दाना इत्यादि में 10 -11 हजार रूपए का खर्च आया। जिसके बाद भी लगभग 40 हज़ार की शुद्ध आय समूह को बचत के रूप में प्राप्त हुई। इसके बाद काकरेल का उत्पादन समूह द्वारा शुरू किया गया। वर्तमान में समूह द्वारा 350 नग काकरेल मुर्गे का पालन किया जा रहा है।
श्रीमती शैल वर्मा मुर्गा पालन का कार्य अपने घर में ही कर रही हैं। काकरेल मुर्गा बाजार में 170 से 180 रुपये तक के भाव में बिकता है। जो आय कड़कनाथ मुर्गे से होती थी लगभग वैसी ही आय समूह को काकरेल मुर्गे के पालन से भी हो रही है। लॉकडाउन के कारण कई बार उत्पादन नहीं किया जा सका है। अभी दूसरी बार इसके उत्पादन की शुरुआत की गई है। समूह द्वारा अभी दीपावली में 300 नग मुर्गे बिक्री किए गये। जिससे समूह को तकरीबन 51हज़ार की आय हुई। इसमें 13 हज़ार की राशि रखरखाव एवं चारा दाना में खर्च होने के बाद लगभग 37 हज़ार हजार की बचत हुई है। समूह में 15 महिलाएं हैं। समूह को मुर्गा पालन से प्राप्त होने वाली आय को समूह द्वारा बैंक में जमा किया जाता है। जिसे जरूरतमंद महिलाओं एवं परिवारों को समूह द्वारा ब्याज पर दिया जाता है। ब्याज से प्राप्त होने वाली राशि को भी बैंक खाते में जमा की जाती है। समूह के पास शुरुआत में बैंक खाते में सिर्फ 15हज़ार रुपये थे। आज समूह के बैंक खाते में लगभग 1लाख रुपये जमा हो गये हैं।
समूह के सदस्य शैल वर्मा ने रुचि दिखाते हुए मुर्गा पालन का कार्य अपने घर में ही शुरू किया और सफलतापूर्वक इसका संचालन कर रही हैं। शुरुआत में महिला समूह की सदस्य शैल वर्मा ने मुर्गा पालन के लिए चारा हेतु ₹23000 स्वयं के मद से खर्च किए थे। श्रीमती शैल वर्मा ने कहा कि इस व्यवसाय में किसी प्रकार का घाटा नहीं है। क्षेत्र के अधिकांश समूहों को यह व्यवसाय करना चाहिए। इससे महिलाएं अपनी रोजी-रोटी आसानी से चला सकती हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि मुर्गा पालन के दौरान किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं हुआ और ना ही किसी भी मुर्गे की मृत्यु हुई। जिसके कारण किसी प्रकार का घाटा समूह को नहीं उठाना पड़ा। इसके लिए किसी विशेष प्रकार के प्रशिक्षण की भी आवश्यकता नहीं है। मुर्गे के बच्चे छोटे रहने पर उन्हें सिर्फ एक माह गुड पानी पिलाना पड़ता है। उसके बाद चूजे अपने आप विकसित होने शुरू हो जाते हैं ।थोड़ी बहुत जानकारी लेकर यदि विधिवत कोई भी महिला समूह इस व्यवसाय को शुरू करता है तो आसानी से लाभ अर्जित कर सकता है।
मुर्गे का चारा शुरू में 1700 रुपए में 50 किलो की बोरी में खरीदा गया था। वर्तमान में इसका रेट 2500 रूपए प्रति बोरी हो गया है। जिसके कारण श्रीमती शैल वर्मा ने मुर्गी चारा स्वयं बनाना शुरू कर दिया है। वह जो चारा बनाती हैं उसमें 10 किलो गेहूं 10 किलो चावल 30 किलो मक्का बीज 10 किलो सोयाबीन 1 किलो मछली पाउडर मिलाकर चारा बनाती हैं। इनके द्वारा बनाया गया यह चारा पोषक आहार के रूप में पर्याप्त है। इस चारे से मुर्गे की ग्रोथ पर कोई अंतर नहीं आता है। और चारे की कीमत भी आधी हो जाती हैं। आधी कीमत पर चारा हो जाने के कारण लाभांश भी बढ़ गई है। एवं मुर्गा दाना में आने वाला खर्च भी कम हो गया है । यह चारा बनाने का आईडिया उन्हें मोबाइल पर गूगल सर्च के माध्यम से मिला। गूगल पर उन्होंने चारा बनाने की कई विधियों को खोजा। इसके बाद यह फार्मूला सबसे अच्छा लगा। जिसके बाद इसी फार्मूले पर श्रीमती शैल वर्मा द्वारा मुर्गा का चारा बनाया जा रहा है। श्रीमती शैल वर्मा ने बताया कि भविष्य में अब वह मुर्गी का चारा दाना बनाने का व्यवसाय भी शुरू करेंगी । क्योंकि मार्केट में अधिक रेट पर चारा मिल रहा हैं। चारे का उत्पादन कर भविष्य में उनके द्वारा अतिरिक्त लाभ अर्जित करने की योजना पर काम किया जा रहा है।