अगर महिलायें सर्वाइकल कैंसर से बचना चाहती हैं तो हर 6 महीने पर करा लें यह टेस्ट :

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भारत में हर साल सर्वाइकल कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। यह कैंसर
खासतौर पर महिलाओं में होता है। भारतीय महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर का
निदान अंतिम चरण में होता है। इसके पीछे का कारण यह भी हो सकता है कि
ज्यादातर महिलाएं इस कैंसर के बारे में उतनी जागरूक नहीं हैं, जितनी उन्हें
होनी चाहिए। जिससे इस बीमारी का पता सबसे आखिरी स्टेज में चल पाता है।


भारत में सर्वाइकल कैंसर का प्रकोप


सर्वाइकल कैंसर भारत के लिए अधिक डरावना है क्योंकि इसके 25 प्रतिशत
मरीज अकेले भारत से हैं। हर साल इसके मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। यह
कैंसर ह्यूमन पेपिलोमावायरस (एचपीवी) संक्रमण के कारण होता है। इस वायरस को
एचआईवी, सिफलिस, क्लैमाइडिया, गोनोरिया भी कहा जाता है। धूम्रपान और खराब
रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण भी इस बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। विश्व
स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2030 तक इस कैंसर को नियंत्रित करने का लक्ष्य रखा
है। माना जाता है कि टीकाकरण, स्क्रीनिंग और उचित उपचार के माध्यम से इस
कैंसर को खत्म किया जा सकता है। लेकिन चिंता की बात यह है कि भारत में जब
किसी महिला में सर्वाइकल कैंसर का पता चलता है तो इसका पता काफी एडवांस
स्टेज में चलता है।




स्क्रीनिंग एवं उपचार


पपनिकोलाउ (पैप) परीक्षण का उपयोग आमतौर पर असामान्यताओं या प्रीकैंसरस
कोशिकाओं (डिसप्लेसिया) का पता लगाने के लिए किया जाता है। इससे शुरुआती
स्टेज के कैंसर का पता लगाया जा सकता है। पैप टेस्ट के जरिए भी एचपीवी
वायरस का पता लगाया जा सकता है। इसके लिए पैप और एचपीवी टेस्ट किया जाता
है। डॉक्टर नियमित अंतराल पर महिलाओं में कैंसर पूर्व कोशिकाओं की जांच
करते हैं जिसमें डिस्प्लेसिया का इलाज किया जा सकता है, जिससे कैंसर को ठीक
करने में मदद मिलती है।




गर्भाशय ग्रीवा बायोप्सी: कोल्पोस्कोप का उपयोग करके, चयनित गर्भाशय ग्रीवा का एक छोटा सा टुकड़ा जांच के लिए निकाला जाता है।


गर्भाशय ग्रीवा के अंदर से ऊतकों की एंडोकर्विकल क्यूरेटेज स्क्रीनिंग की जाती है।


सर्वाइकल कैंसर की जांच से कैंसर से होने वाली मौतों को प्रभावी ढंग से
रोका जा सकता है। यह स्क्रीनिंग तीन से पांच साल के अंतराल पर की जाती है।
स्क्रीनिंग 21 से 25 साल की उम्र से शुरू होती है। 65 वर्ष की आयु के बाद
इसे रोका जा सकता है, यदि अंतिम 3 रिपोर्ट सामान्य हों।




अगर सर्वाइकल कैंसर से बचना है तो महिलाओं को पैप स्मीयर और एचपीवी
टेस्ट जैसे ये टेस्ट जरूर करवाने चाहिए। इस टेस्ट के जरिए अगर गर्भाशय
ग्रीवा में कोई बदलाव होता है तो इसका आसानी से पता लगाया जा सकता है।


भारत में हर साल सर्वाइकल कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। यह कैंसर
खासतौर पर महिलाओं में होता है। भारतीय महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर का
निदान अंतिम चरण में होता है। इसके पीछे का कारण यह भी हो सकता है कि
ज्यादातर महिलाएं इस कैंसर के बारे में उतनी जागरूक नहीं हैं, जितनी उन्हें
होनी चाहिए। जिससे इस बीमारी का पता सबसे आखिरी स्टेज में चल पाता है।


भारत में सर्वाइकल कैंसर का प्रकोप


सर्वाइकल कैंसर भारत के लिए अधिक डरावना है क्योंकि इसके 25 प्रतिशत
मरीज अकेले भारत से हैं। हर साल इसके मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। यह
कैंसर ह्यूमन पेपिलोमावायरस (एचपीवी) संक्रमण के कारण होता है। इस वायरस को
एचआईवी, सिफलिस, क्लैमाइडिया, गोनोरिया भी कहा जाता है। धूम्रपान और खराब
रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण भी इस बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। विश्व
स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2030 तक इस कैंसर को नियंत्रित करने का लक्ष्य रखा
है। माना जाता है कि टीकाकरण, स्क्रीनिंग और उचित उपचार के माध्यम से इस
कैंसर को खत्म किया जा सकता है। लेकिन चिंता की बात यह है कि भारत में जब
किसी महिला में सर्वाइकल कैंसर का पता चलता है तो इसका पता काफी एडवांस
स्टेज में चलता है।




स्क्रीनिंग एवं उपचार


पपनिकोलाउ (पैप) परीक्षण का उपयोग आमतौर पर असामान्यताओं या प्रीकैंसरस
कोशिकाओं (डिसप्लेसिया) का पता लगाने के लिए किया जाता है। इससे शुरुआती
स्टेज के कैंसर का पता लगाया जा सकता है। पैप टेस्ट के जरिए भी एचपीवी
वायरस का पता लगाया जा सकता है। इसके लिए पैप और एचपीवी टेस्ट किया जाता
है। डॉक्टर नियमित अंतराल पर महिलाओं में कैंसर पूर्व कोशिकाओं की जांच
करते हैं जिसमें डिस्प्लेसिया का इलाज किया जा सकता है, जिससे कैंसर को ठीक
करने में मदद मिलती है।




गर्भाशय ग्रीवा बायोप्सी: कोल्पोस्कोप का उपयोग करके, चयनित गर्भाशय ग्रीवा का एक छोटा सा टुकड़ा जांच के लिए निकाला जाता है।


गर्भाशय ग्रीवा के अंदर से ऊतकों की एंडोकर्विकल क्यूरेटेज स्क्रीनिंग की जाती है।


सर्वाइकल कैंसर की जांच से कैंसर से होने वाली मौतों को प्रभावी ढंग से
रोका जा सकता है। यह स्क्रीनिंग तीन से पांच साल के अंतराल पर की जाती है।
स्क्रीनिंग 21 से 25 साल की उम्र से शुरू होती है। 65 वर्ष की आयु के बाद
इसे रोका जा सकता है, यदि अंतिम 3 रिपोर्ट सामान्य हों।




अगर सर्वाइकल कैंसर से बचना है तो महिलाओं को पैप स्मीयर और एचपीवी
टेस्ट जैसे ये टेस्ट जरूर करवाने चाहिए। इस टेस्ट के जरिए अगर गर्भाशय
ग्रीवा में कोई बदलाव होता है तो इसका आसानी से पता लगाया जा सकता है।


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