यहां रंग-गुलाल नहीं, बम और बारूद बरसते हैं, होली पर होता है दीवाली सा नजारा:

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राजस्थान की होली भी प्रसिद्ध है. होली के रंग की तरह यहां हर जिले की
परंपरा भी अलग है. मेवाड़ के एक गांव में आज भी बारूद और बमों से होली खेली
जाती है. इसका इतिहास मुगल काल से जुड़ा है.



मेवाड़ में होली पर कई तरह के खास आयोजन किए जाते हैं. इन्ही में से एक
है मेंनार गांव की होली. यहां रंगों की होली नहीं बल्कि बम और बारूद से
होली खेली जाती है. यहां पुरुष पारंपरिक वेशभूषा में तैयार होकर इस खास
आयोजन में भाग लेते हैं. यहां की होली देखने बड़ी संख्या में पर्यटक आते
हैं. रात भर यहां पर बम और पटाखों का शोर सुनाई देता है और होली के दिन
दीवाली का माहौल नजर आता है.



अजब परंपरा-गजब रंग

समाज की महिलाओं के वीर रस भरे गीतों के साथ तलवारों, बंदूकों और अन्य
रणभेरी युक्त थाप, ढोल-नगाड़ों आदि के संग सांस्कृतिक महोत्सव होता है.
मेनारिया जाति के पुरुष-महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा के साथ सजधज कर इसमें
शामिल होते हैं. नृत्य में पुरुषों के पांच दल कसूमल पाग, सफेद धोती-कुर्ता
पहने गांव के पांचों मार्गों से मशालचियों की अगुवाई में औंकारेश्वर
चौराहे पर बिछी लाल जाजम पर कसूबें की रस्म पूरी करते हैं. उसके बाद नाच
गाना शुरू होता है.



शत्रु के खात्मे का उत्सव

इतिहासकार डॉ. गिरीश माथुर ने बताया होली की ये रस्म मेवाड़-मुगल संघर्ष का
परिणाम है. महाराणा उदय सिंह के समय मेनार गांव के पास मुगलों की एक चौकी
थी. वहां से मुगल सेना ने मेवाड़ पर आक्रमण की साजिश रची. इसकी जानकारी गांव
के मेनारिया ब्राह्मण समाज के लोगों को लग गई. सर्वसम्मति से ये सभी वीर
योद्धा की तरह मुगलों की चौकी पर टूट पड़े, इसमें मेनारिया समाज के कुछ लोग
शहीद हो गए. लेकिन वे मुगलों को खदेड़ने में सफल रहे. उसके बाद से ही मेनार
गांव में होली के दूसरे दिन जमरा बीज के मौके पर लोग बारूद से होली खेल कर
मुगल सेना पर अपनी जीत का जश्न मनाते हैं. मेनारिया समाज की इस वीरता पर
मेवाड़ के महाराणा ने उन्हें विशेष उपाधि दी थी.
 


राजस्थान की होली भी प्रसिद्ध है. होली के रंग की तरह यहां हर जिले की
परंपरा भी अलग है. मेवाड़ के एक गांव में आज भी बारूद और बमों से होली खेली
जाती है. इसका इतिहास मुगल काल से जुड़ा है.



मेवाड़ में होली पर कई तरह के खास आयोजन किए जाते हैं. इन्ही में से एक
है मेंनार गांव की होली. यहां रंगों की होली नहीं बल्कि बम और बारूद से
होली खेली जाती है. यहां पुरुष पारंपरिक वेशभूषा में तैयार होकर इस खास
आयोजन में भाग लेते हैं. यहां की होली देखने बड़ी संख्या में पर्यटक आते
हैं. रात भर यहां पर बम और पटाखों का शोर सुनाई देता है और होली के दिन
दीवाली का माहौल नजर आता है.



अजब परंपरा-गजब रंग

समाज की महिलाओं के वीर रस भरे गीतों के साथ तलवारों, बंदूकों और अन्य
रणभेरी युक्त थाप, ढोल-नगाड़ों आदि के संग सांस्कृतिक महोत्सव होता है.
मेनारिया जाति के पुरुष-महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा के साथ सजधज कर इसमें
शामिल होते हैं. नृत्य में पुरुषों के पांच दल कसूमल पाग, सफेद धोती-कुर्ता
पहने गांव के पांचों मार्गों से मशालचियों की अगुवाई में औंकारेश्वर
चौराहे पर बिछी लाल जाजम पर कसूबें की रस्म पूरी करते हैं. उसके बाद नाच
गाना शुरू होता है.



शत्रु के खात्मे का उत्सव

इतिहासकार डॉ. गिरीश माथुर ने बताया होली की ये रस्म मेवाड़-मुगल संघर्ष का
परिणाम है. महाराणा उदय सिंह के समय मेनार गांव के पास मुगलों की एक चौकी
थी. वहां से मुगल सेना ने मेवाड़ पर आक्रमण की साजिश रची. इसकी जानकारी गांव
के मेनारिया ब्राह्मण समाज के लोगों को लग गई. सर्वसम्मति से ये सभी वीर
योद्धा की तरह मुगलों की चौकी पर टूट पड़े, इसमें मेनारिया समाज के कुछ लोग
शहीद हो गए. लेकिन वे मुगलों को खदेड़ने में सफल रहे. उसके बाद से ही मेनार
गांव में होली के दूसरे दिन जमरा बीज के मौके पर लोग बारूद से होली खेल कर
मुगल सेना पर अपनी जीत का जश्न मनाते हैं. मेनारिया समाज की इस वीरता पर
मेवाड़ के महाराणा ने उन्हें विशेष उपाधि दी थी.
 


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