अनंत भगवान नारायण के स्वरूप हैं - इंदुभवानन्द।:

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अनंत भगवान नारायण का स्वरूप है। रायपुर के बोरियाकला में स्थित जगद्गुरु शंकराचार्य आश्रम के प्रमुख ब्रह्मचारी डॉ इंदुभवानन्द महाराज ने बताया कि अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान नारायण की विशेष पूजा की जाती है। भगवान नारायण शेषनाग के रूप में पृथ्वी को धारण करते हैं इसलिए उन्हें अनन्त के नाम से जाना जाता है। लौ , काष्ठ , क्षण, पल, घटी, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु, अयान, वर्षादी काल के स्वरूप में इन्ही की पूजन भगवान अनन्त के रूप में कई जाती है क्यों कि यही अनन्त का स्वरूप है। भगवान श्रीकृष्ण ने अज्ञात वास काल मे खोई हुई राजलक्ष्मी और प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए पांडवों को इसी अनन्त व्रत का उपदेश किया था। इसमें 14 गांठ का धागा पुरुष दाहिने हाथ में और स्त्रि बांये हाथ मे धारण करे तो लक्ष्मी सदा सर्वदा उसका साथ नहीं छोड़ती। सन्यासियों के चातुर्मास का प्रारम्भ गुरु पूर्णिमा से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी के दूसरे दिन समाप्त हो जाता है।


अनंत भगवान नारायण का स्वरूप है। रायपुर के बोरियाकला में स्थित जगद्गुरु शंकराचार्य आश्रम के प्रमुख ब्रह्मचारी डॉ इंदुभवानन्द महाराज ने बताया कि अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान नारायण की विशेष पूजा की जाती है। भगवान नारायण शेषनाग के रूप में पृथ्वी को धारण करते हैं इसलिए उन्हें अनन्त के नाम से जाना जाता है। लौ , काष्ठ , क्षण, पल, घटी, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु, अयान, वर्षादी काल के स्वरूप में इन्ही की पूजन भगवान अनन्त के रूप में कई जाती है क्यों कि यही अनन्त का स्वरूप है। भगवान श्रीकृष्ण ने अज्ञात वास काल मे खोई हुई राजलक्ष्मी और प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए पांडवों को इसी अनन्त व्रत का उपदेश किया था। इसमें 14 गांठ का धागा पुरुष दाहिने हाथ में और स्त्रि बांये हाथ मे धारण करे तो लक्ष्मी सदा सर्वदा उसका साथ नहीं छोड़ती। सन्यासियों के चातुर्मास का प्रारम्भ गुरु पूर्णिमा से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी के दूसरे दिन समाप्त हो जाता है।


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