युधिष्ठिर द्वारा जुए में अपना सब कुछ हारने के बाद द्रौपदी के पूछने पर धर्म के बारे में ये क्या बोल गए भीष्म:

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पांडवों के सामने जब कौरवों की युद्ध नीति काम नहीं आई
तो दुर्योधन बहुत निराश हुआ. इसी मौके पर उसके मामा शकुनि ने उसे ढाढस
बंधाते हुए कहा कि तुम दुखी न हो, तुम किसी भी तरह जुआ खेलने के लिए
युधिष्ठिर सहित पांडवों को हस्तिनापुर में आमंत्रित कर लो. तुम शर्त रख
देना कि तुम्हारी तरफ से मैं पांसे फेंकूंगा फिर देखो मै अपने पांसों की
सेना से पांडवों को हरा दूंगी.

योजना बना कर जुआ खेलने का आयोजन हुआ और निमंत्रण मिलने पर युधिष्ठिर
अपने भाईयों, द्रोपदी और माता कुंती के साथ पहुंचे. चौसर बिछाई गई और खेल
शुरू हुआ, योजना के अनुसार दुर्योधन की तरफ से उसके मामा शकुनि ने पांसे
फेकना शुरु किया. दांव पर दांव लगते गए और युधिष्ठिर हारते गए. 

दुर्योधन के साथ जुए में युधिष्ठिर दांव पर दांव हारते गए

युधिष्ठिर हर हार के साथ कोई बड़ा दांव लगाते कि शायद इस बार की
बाजी उनके पक्ष में होगी किंतु युधिष्ठिर के सारे प्रयास विफल होते गए.
पांसा फेंकने में माहिर शकुनि हर बार अपने भांजे को जिताते गए. राज्य की
सारी सेना संपत्ति और पूरा राज्य ही हारने के बाद युधिष्ठिर अपने भाइयों पर
दांव लगाने लगे, अभी भी पांसे उनसे नाराज थे या फिर कोई साजिश कर रहे थे
कि भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव को हारने के बाद उन्होंने अपने को और फिर
द्रौपदी को भी दांव पर लगा दिया किंतु उनके सारे दांव व्यर्थ ही साबित हुए
और अपनी पत्नी को भी वह जुए में हार गए. इसके बाद दुर्योधन ने अपने सेवकों
से कह कर द्रौपदी को राजसभा में बुलवा भेजा. 

भीष्म ने द्रौपदी के प्रश्न का उत्तर दिया


महाराज धृतराष्ट्र की सभा में आने के बाद द्रोपदी ने कहा कि पहले मुझे
हवा भी छू जाती थी तो पांडवों को सहन नहीं होती थी. आज दुशासन भरी सभा में
घसीट रहा है और वे शांत भाव से बैठे हैं. आज राजाओं का धर्म पता नहीं कहां
चला गया है. द्रौपदी ने भरी सभा में पूछा तुम्हीं लोग मुझे बताओ कि तुम लोग
मुझे जीती  हुई समझते हो या नहीं. पूरी बात सुनने के बाद भीष्म पितामह
बोले, कल्याणी, धर्म की गति बड़ी गहन है. बड़े बड़े विद्वान भी उसका रहस्य
समझने में चूक कर जाते हैं. जो धर्म सबसे बलवान और सर्वोपरि है, वही अधर्म
के उत्थान के समय दब जाता है.


पांडवों के सामने जब कौरवों की युद्ध नीति काम नहीं आई
तो दुर्योधन बहुत निराश हुआ. इसी मौके पर उसके मामा शकुनि ने उसे ढाढस
बंधाते हुए कहा कि तुम दुखी न हो, तुम किसी भी तरह जुआ खेलने के लिए
युधिष्ठिर सहित पांडवों को हस्तिनापुर में आमंत्रित कर लो. तुम शर्त रख
देना कि तुम्हारी तरफ से मैं पांसे फेंकूंगा फिर देखो मै अपने पांसों की
सेना से पांडवों को हरा दूंगी.

योजना बना कर जुआ खेलने का आयोजन हुआ और निमंत्रण मिलने पर युधिष्ठिर
अपने भाईयों, द्रोपदी और माता कुंती के साथ पहुंचे. चौसर बिछाई गई और खेल
शुरू हुआ, योजना के अनुसार दुर्योधन की तरफ से उसके मामा शकुनि ने पांसे
फेकना शुरु किया. दांव पर दांव लगते गए और युधिष्ठिर हारते गए. 

दुर्योधन के साथ जुए में युधिष्ठिर दांव पर दांव हारते गए

युधिष्ठिर हर हार के साथ कोई बड़ा दांव लगाते कि शायद इस बार की
बाजी उनके पक्ष में होगी किंतु युधिष्ठिर के सारे प्रयास विफल होते गए.
पांसा फेंकने में माहिर शकुनि हर बार अपने भांजे को जिताते गए. राज्य की
सारी सेना संपत्ति और पूरा राज्य ही हारने के बाद युधिष्ठिर अपने भाइयों पर
दांव लगाने लगे, अभी भी पांसे उनसे नाराज थे या फिर कोई साजिश कर रहे थे
कि भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव को हारने के बाद उन्होंने अपने को और फिर
द्रौपदी को भी दांव पर लगा दिया किंतु उनके सारे दांव व्यर्थ ही साबित हुए
और अपनी पत्नी को भी वह जुए में हार गए. इसके बाद दुर्योधन ने अपने सेवकों
से कह कर द्रौपदी को राजसभा में बुलवा भेजा. 

भीष्म ने द्रौपदी के प्रश्न का उत्तर दिया


महाराज धृतराष्ट्र की सभा में आने के बाद द्रोपदी ने कहा कि पहले मुझे
हवा भी छू जाती थी तो पांडवों को सहन नहीं होती थी. आज दुशासन भरी सभा में
घसीट रहा है और वे शांत भाव से बैठे हैं. आज राजाओं का धर्म पता नहीं कहां
चला गया है. द्रौपदी ने भरी सभा में पूछा तुम्हीं लोग मुझे बताओ कि तुम लोग
मुझे जीती  हुई समझते हो या नहीं. पूरी बात सुनने के बाद भीष्म पितामह
बोले, कल्याणी, धर्म की गति बड़ी गहन है. बड़े बड़े विद्वान भी उसका रहस्य
समझने में चूक कर जाते हैं. जो धर्म सबसे बलवान और सर्वोपरि है, वही अधर्म
के उत्थान के समय दब जाता है.


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