आदिवासी इलाके में लगने वाले इस अनोखे शराब मेले में शामिल होने के लिए
दूर-दूर से आते हैं। स्थानीय बोली में इस मेले को मंद पसरा बोलते हैं।
कोरोना काल में लगता रहा है ये मेला। महुए की देशी शराब बेच आदिवासी एक
महीने की जीविका अर्जित कर लेते हैं।
जगदलपुर, जागरण ऑनलाइन डेस्क। बस्तर दशहरा उत्सव के
दौरान शहर में लगने वाले देशी महुए की शराब का बाजार सजने लगा है। इसे
स्थानीय बोली में मंद पसरा कहते हैं। दशहरा उत्सव में शामिल होने के लिए
बस्तर के दूर दराज से आने वाले ग्रामीणों के लिए यह बाजार मुलाकात का एक
बेहतर मिलन स्थल माना जाता है। यह पारंपरिक मंद पसरा [ शराब का बाजार] लगभग
250 साल से निर्बाध रूप से सजता आ रहा है। देश में किसी उत्सव में शायद ही
कहीं ऐसी अद्भुत परंपरा होगी। यहां मंद पसरा [ शराब का बाजार] में खाने की
वस्तुएं भी विक्रय के लिए मौजूद रहती हैं।
महुआ की मंद- मंद बनती है शराब
जानकारी के अनुसार बस्तर मे महुआ की शराब को मंद कहा जाता है। मंद- मंद
यानि की धीरे धीरे बनने वाला शराब मन्दहा कहलाता है। मंद बनाने की
प्रक्रिया भी काफ़ी मंद गति से चलती है। मंद बनाने के लिए सबसे पहले महुए को
धुप मे सुखाया जाता है। सुखाकर महुए को एकत्रित कर लिया जाता है। इस शराब
का उपयोग घर मे पीने और बेचने के लिये भी किया जाता है। इस मंद का असर भी
काफ़ी मंद मंद उतरता है।
आदिवासी बहुल बस्तर में महुए की शराब
जानकारी हो कि बस्तर दशहरा देखने आए ग्रामीणों की मुलाकात जब मित्रजनों
से होती है तो उन्हें किसी होटल में नहीं अपितु मंद पसरा ले जाते हैं और
यही बैठकर छक कर मंद पीते हुए सुख-दुख की बातें कर लेते हैं।
जेब खर्च का जरिया
मंद पसरा में छिंदावाड़ा, कोड़ेनार,बास्तानार, किलेपाल, डिलमिली, पखनार,
बीसपुर सहित दर्जन भर गांवों के 100 से ज्यादा ग्रामीण महुआ से बनी शराब
बेचने पहुंचते हैं और दो-तीन दिन के मेले में यहां लगभग पांच हजार लीटर
शराब बेच लेते हैं।
मंद वनांचल वासियों के दिनचर्या की वस्तु
जानकारी के अनुसार मंद वनांचल के रहवासियों के जन जीवन की दिनचर्या की
वस्तु है। मंद पीना पिलाना इनके व्यवहार में शमिल है। वहीं, कोरोना के समय
में बस्तर दशहरा उत्सव के दौरान भी यह बाजार सजा था। यह बाजार शहर के बीच
में सजता है। यहां के ग्रामीणों का कहना है कि इस समय धान, कोदो कुटकी की
फसल पक रही है।
महुए की शराब बेच दशहरा मनाते
ग्रामीणों के पास फसल तैयार नहीं होने से पैसा नहीं होता है। इसलिए वे
महुए की शराब बेच दशहरा मनाते हैं और जरूरत की वस्तु खरीद कर लौट जाते हैं।
शराब के विक्रय से इतनी कमाई हो जाती है कि एक माह का घर का खर्च निकल
जाता है। नवरात्र खत्म होने के बाद दो तीन दिनों के लिए वनमंडलाधिकारी
कार्यालय के बाहर परिसर में बाजार लगने की शुरूआत हो चुकी है। पारम्परिक
मंद पसरा के बारे में लोगों का कहना है कि महुए की शराब आदिवासी बहुल बस्तर
में मंद के नाम से चर्चित है, जो इनके लिए आंनद का भी एक साधन है।
आदिवासी इलाके में लगने वाले इस अनोखे शराब मेले में शामिल होने के लिए
दूर-दूर से आते हैं। स्थानीय बोली में इस मेले को मंद पसरा बोलते हैं।
कोरोना काल में लगता रहा है ये मेला। महुए की देशी शराब बेच आदिवासी एक
महीने की जीविका अर्जित कर लेते हैं।
जगदलपुर, जागरण ऑनलाइन डेस्क। बस्तर दशहरा उत्सव के
दौरान शहर में लगने वाले देशी महुए की शराब का बाजार सजने लगा है। इसे
स्थानीय बोली में मंद पसरा कहते हैं। दशहरा उत्सव में शामिल होने के लिए
बस्तर के दूर दराज से आने वाले ग्रामीणों के लिए यह बाजार मुलाकात का एक
बेहतर मिलन स्थल माना जाता है। यह पारंपरिक मंद पसरा [ शराब का बाजार] लगभग
250 साल से निर्बाध रूप से सजता आ रहा है। देश में किसी उत्सव में शायद ही
कहीं ऐसी अद्भुत परंपरा होगी। यहां मंद पसरा [ शराब का बाजार] में खाने की
वस्तुएं भी विक्रय के लिए मौजूद रहती हैं।
महुआ की मंद- मंद बनती है शराब
जानकारी के अनुसार बस्तर मे महुआ की शराब को मंद कहा जाता है। मंद- मंद
यानि की धीरे धीरे बनने वाला शराब मन्दहा कहलाता है। मंद बनाने की
प्रक्रिया भी काफ़ी मंद गति से चलती है। मंद बनाने के लिए सबसे पहले महुए को
धुप मे सुखाया जाता है। सुखाकर महुए को एकत्रित कर लिया जाता है। इस शराब
का उपयोग घर मे पीने और बेचने के लिये भी किया जाता है। इस मंद का असर भी
काफ़ी मंद मंद उतरता है।
आदिवासी बहुल बस्तर में महुए की शराब
जानकारी हो कि बस्तर दशहरा देखने आए ग्रामीणों की मुलाकात जब मित्रजनों
से होती है तो उन्हें किसी होटल में नहीं अपितु मंद पसरा ले जाते हैं और
यही बैठकर छक कर मंद पीते हुए सुख-दुख की बातें कर लेते हैं।
जेब खर्च का जरिया
मंद पसरा में छिंदावाड़ा, कोड़ेनार,बास्तानार, किलेपाल, डिलमिली, पखनार,
बीसपुर सहित दर्जन भर गांवों के 100 से ज्यादा ग्रामीण महुआ से बनी शराब
बेचने पहुंचते हैं और दो-तीन दिन के मेले में यहां लगभग पांच हजार लीटर
शराब बेच लेते हैं।
मंद वनांचल वासियों के दिनचर्या की वस्तु
जानकारी के अनुसार मंद वनांचल के रहवासियों के जन जीवन की दिनचर्या की
वस्तु है। मंद पीना पिलाना इनके व्यवहार में शमिल है। वहीं, कोरोना के समय
में बस्तर दशहरा उत्सव के दौरान भी यह बाजार सजा था। यह बाजार शहर के बीच
में सजता है। यहां के ग्रामीणों का कहना है कि इस समय धान, कोदो कुटकी की
फसल पक रही है।
महुए की शराब बेच दशहरा मनाते
ग्रामीणों के पास फसल तैयार नहीं होने से पैसा नहीं होता है। इसलिए वे
महुए की शराब बेच दशहरा मनाते हैं और जरूरत की वस्तु खरीद कर लौट जाते हैं।
शराब के विक्रय से इतनी कमाई हो जाती है कि एक माह का घर का खर्च निकल
जाता है। नवरात्र खत्म होने के बाद दो तीन दिनों के लिए वनमंडलाधिकारी
कार्यालय के बाहर परिसर में बाजार लगने की शुरूआत हो चुकी है। पारम्परिक
मंद पसरा के बारे में लोगों का कहना है कि महुए की शराब आदिवासी बहुल बस्तर
में मंद के नाम से चर्चित है, जो इनके लिए आंनद का भी एक साधन है।