क्यों अडाणी के लिए हिंडनबर्ग रिपोर्ट मुसीबत नहीं, वरदान साबित हो सकती है...?:

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गौतम अडाणी मामूली पृष्ठभूमि से उठकर दुनिया के तीसरे सबसे रईस शख्स
बने, और यह कारनामा अनन्य व्यापारिक कौशल की गैरमौजूदगी में किसी की
मेहरबानी से नहीं हो सकता. यह बात जाने-माने कॉलमिस्ट स्वामीनाथन एस.
अंकलेसरिया अय्यर ने अपने एक कॉलम में कही है. उन्होंने कहा कि  अडाणी समूह
के सर्वेसर्वा गौतम अडाणी पर आरोप लगते रहे हैं कि उन्हें भारतीय जनता
पार्टी (BJP) ने मूल्यवान संपत्तियां प्रदान कीं, जिनमें बंदरगाह से लेकर
खदानें, और एयरपोर्ट से लेकर ट्रांसमिशन लाइनें तक शामिल थीं, लेकिन असलियत
यह है कि सरकार ने शुरुआती दौर में अडाणी को जो दिया था, वह सिर्फ कच्छ के
रेगिस्तानी इलाके में एक छोटा-सा बंदरगाह था, जहां रेल संपर्क तक मौजूद
नहीं था. इस रेगिस्तानी टुकड़े को हिन्दुस्तान के सबसे बड़े बंदरगाह में
तब्दील कर देना चमत्कार से कम नहीं है.

इकोनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित एक आलेख
में जाने-माने कॉलमिस्ट स्वामीनाथन एस. अंकलेसरिया अय्यर (Swaminathan S
Anklesaria Aiyar) लिखते हैं, "हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में अडाणी की
कंपनियों द्वारा कीमतों में हेराफेरी और धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया है...
ये आरोप बेहद गंभीर हैं... इसी के चलते वैश्विक निवेशकों ने हड़बड़ाकर
अडाणी के शेयरों को बेच दिया... इसकी बारीकी से जांच होनी चाहिए, और
दोषियों को सज़ा मिलनी चाहिए... लेकिन मैं एक अलग, लेकिन इसी से जुड़ा
मुद्दा उठाना चाहता हूं... अडाणी के आलोचकों का कहना है कि अडाणी ने अपने
कौशल से नहीं, हेरफेर और राजनीतिक उपकारों के ज़रिये हासिल एकाधिकार की
बदौलत रईसी पाई... मैं असहमत हूं... अनन्य व्यावसायिक कौशल के बिना सिर्फ
दो दशक में ही मामूली पृष्ठभूमि से दुनिया का तीसरा सबसे रईस शख्स बन जाना
नामुमकिन है..."

वह लिखते हैं, "मैंने वर्ष 2006 में गुजरात की नई
बंदरगाह-आधारित विकास की रणनीति पर रिसर्च की, और केटो इंस्टीट्यूट के लिए
एक पेपर लिखा... यह रणनीति '90 के दशक के शुरुआती वर्षों में कांग्रेसी
मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल ने शुरू की थी, और उसके बाद इसे BJP के
मुख्यमंत्रियों ने आगे बढ़ाया... मैंने गौतम अडाणी के नए मूंदरा बंदरगाह का
दौरा किया और वहां मौजूद उच्चस्तरीय ऑटोमेशन तथा गति से भौंचक्का रह
गया... मुझे यह सुनकर भी हैरानी हुई कि यहां जिन जहाज़ों को वक्त पर प्रवेश
नहीं मिल पाता, और जो वक्त पर अनलोडिंग नहीं कर पाते, उन्हें आर्थिक
मुआवज़ा दिया जाता है... मैं जिस वक्त 1990 में मुंबई में काम करता था,
मैंने जहाज़ों को बंदरगाह में प्रवेश के लिए 20-20 दिन तक इंतज़ार करते
देखा था, सो, मुझे तो लग रहा था कि मूंदरा पोर्ट किसी दूसरे ग्रह का है..."

स्वामीनाथन
एस. अंकलेसरिया अय्यर के आलेख में आगे कहा गया, "अडाणी ने नीलामियों में
माएर्स्क और दुबई वर्ल्ड जैसी दुनिया की दिग्गज कंपनियों को पछाड़कर एक
दर्जन अन्य जगहों पर भी जेटी और बंदरगाहों का अधिग्रहण किया... भारत में तो
उनके मुकाबले का कोई बंदरगाह संचालक नहीं है, जो भारत में होने वाली कुल
माल ढुलाई का एक-चौथाई अकेले ही संभालते हैं... यही बात उन्हें भारत में
सबसे आगे दिखाती है... और इसी वजह से भारत सरकार अडाणी समूह को श्रीलंका और
इस्राइल में रणनीतिक जेटी और बंदरगाहों का अधिग्रहण करने के मामले में
समर्थन दे रही है, जिसे आलोचक उपकार कह रहे हैं... क्या यह असल में उपकार
है...? श्रीलंका टर्मिनल पर 75 करोड़ अमेरिकी डॉलर खर्च होंगे, हैफ़ा पोर्ट
पर 118 करोड़ अमेरिकी डॉलर खर्च करने होंगे... कोई भी भारतीय
प्रतिद्वंद्वी इतना बड़ा जोखिम उठाने की हिम्मत नहीं कर सकता, भले ही सब
कुछ सामने परोस दिया जाए... सो, अडाणी के कौशल ने ही उन्हें सिर्फ व्यवसायी
नहीं, एक रणनीतिक खिलाड़ी बना दिया है..."

अय्यर लिखते हैं, "किसी
बंदरगाह पर एकाधिकार जमाना आसान नहीं होता... स्थापित प्रतिद्वंद्वियों के
मुकाबले जहाज़ों को अपने पास लाने के लिए लॉजिस्टिक्स के साथ-साथ कीमतों
में भी प्रतिस्पर्धा करनी होती है... मूंदरा के लॉजिस्टिक्स ने हज़ारों
करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित किया है, जिससे रेगिस्तान में यह औद्योगिक
केंद्र स्थापित हुआ... यहां पर दुनिया की सबसे बड़ी स्वचालित कोल-हैंडलिंग
फैसिलिटी है... वर्ष 2017 में मॉर्गन स्टैनली की रिपोर्ट में अडाणी पोर्ट्स
एंड स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन (APSEZ) को वैश्विक पोर्ट कंपनियों के शीर्ष 25
फीसदी में शुमार किया गया था..."

इकोनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित आलेख
में अय्यर आगे लिखते हैं, "आलोचकों का सारा ध्यान अडाणी पर किए गए सरकारी
उपकारों पर रहता है... लेकिन भारत में व्यावसायिक कामयाबी के लिए सिर्फ
फैक्टरियों के अच्छे प्रबंधन की नहीं, राजनीति के अच्छे प्रबंधन की भी
ज़रूरत पड़ती है... राजनेताओं के करीब तो सभी व्यवसायी रहते हैं... इससे
सिर्फ मौके मिल सकते हैं, या कुछ नियमों से छूट मिल सकती है, लेकिन यह
कामयाबी की गारंटी नहीं दे सकता... (कांग्रेस के वरिष्ठ नेता) राहुल गांधी
द्वारा अनिल अंबानी पर रक्षा सौदों में 30,000 करोड़ रुपये हासिल करने का
आरोप लगाया जाता है, लेकिन अनिल अंबानी व्यावसायिक रूप से फ्लॉप रहे..."

वह
आगे लिखते हैं, "एक बार, धीरूभाई अंबानी पर भी राजनीतिक जोड़तोड़ और
धोखाधड़ी (Boondoggle) के आरोप लगे थे... तब उन्होंने जवाब में कहा था,
'मैंने ऐसा क्या किया है, जो हर दूसरे बिज़नेसमैन ने नहीं किया...?' कहीं
से कोई जवाब नहीं आया... अन्य व्यवसायियों ने, जिनमें से कई के पास माज़ी
का फायदा भी था, राजनेताओं को भी लुभाया, और हिसाब-किताब में हेरफेर भी
किए... बाज़ार में नए-नए उतरे धीरूभाई जैसे किसी शख्स के लिए दिग्गजों को
उन्हीं के खेल में मात दे डालना असीमित प्रतिभा का प्रतीक था... अडाणी के
बारे में भी ऐसा ही कहा जा सकता है..."

अय्यर आगे लिखते हैं,
"आलोचकों का कहना है कि अडाणी प्रमुख रूप से इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र
में काम करते हैं, जहां कौशल और प्रतिभा से ज़्यादा सरकार से करीबी संबंध
काम आते हैं... ऐसा नहीं है... वर्ष 2003-08 के बीच इन्फ्रास्ट्रक्चर
क्षेत्र में आए उछाल के दौरान मज़बूत क्षेत्रीय राजनैतिक दबदबे वाले
दर्जनों लोगों ने इसमें प्रवेश किया, लेकिन राजनैतिक संरक्षक होने के
बावजूद उनमें से कई मुसीबतों में घिरे, दिवालिया हो गए, और नतीजतन बैंकों
के सिर पर कर्ज़ की बहुत बड़ी-बड़ी रकमों का बोझ पड़ा, जिन्हें चुकाया नहीं
गया... सो, इन्फ्रास्ट्रक्चर में कौशल और प्रतिभा की ज़रूरत होती है,
सिर्फ राजनैतिक मित्रों से काम नहीं चल सकता..."

वह लिखते हैं, "इसे
पढ़ने वाले मुझे अडाणी का प्रशंसक समझ सकते हैं, लेकिन बड़ी-बड़ी कीमतों और
भारी जोखिम के चलते मेरे पास अडाणी की किसी कंपनी का कोई शेयर नहीं है...
अडाणी कर्ज़ों से रकम जुटाकर नीलामियों में बहुत अधिक कीमत पर बोली लगाकर
और अधिग्रहणों में बेहद तेज़ रफ़्तार से फैलाव और विस्तार कर रहे हैं...
इससे फैलाव तो तेज़ी से होता है, लेकिन जोखिम भी बहुत रहता है... अतीत में
ऐसे कई दिग्गजों के उदाहरण मिलते हैं, जिन्होंने बड़े-बड़े समूह खड़े करने
के लिए दीवानावार विस्तार किया, कुछ दशक तक कामयाब भी रहे, तारीफें भी
बटोरीं, लेकिन अंततः नाकाम हो गए (जैसा जैक वेल्च के तहत जनरल इलेक्ट्रिक
का हुआ...)

अंत में स्वामीनाथन एस. अंकलेसरिया अय्यर लिखते हैं,
"मुझे लगता है कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट अडाणी के लिए अब तक की सबसे अच्छी
घटना हो सकती है... यह उनके फैलाव की गति को धीमा कर देगी, और अडाणी के
फाइनेंसरों को भविष्य में सतर्क और सावधान रहने के लिए विवश कर देगी... यह
अडाणी पर भी वित्तीय अनुशासन थोप सकती है, जिससे अडाणी का ही फायदा होगा...
हो सकता है, हिंडनबर्ग की रिपोर्ट भेस बदले पहुंचा एक वरदान साबित हो..."


गौतम अडाणी मामूली पृष्ठभूमि से उठकर दुनिया के तीसरे सबसे रईस शख्स
बने, और यह कारनामा अनन्य व्यापारिक कौशल की गैरमौजूदगी में किसी की
मेहरबानी से नहीं हो सकता. यह बात जाने-माने कॉलमिस्ट स्वामीनाथन एस.
अंकलेसरिया अय्यर ने अपने एक कॉलम में कही है. उन्होंने कहा कि  अडाणी समूह
के सर्वेसर्वा गौतम अडाणी पर आरोप लगते रहे हैं कि उन्हें भारतीय जनता
पार्टी (BJP) ने मूल्यवान संपत्तियां प्रदान कीं, जिनमें बंदरगाह से लेकर
खदानें, और एयरपोर्ट से लेकर ट्रांसमिशन लाइनें तक शामिल थीं, लेकिन असलियत
यह है कि सरकार ने शुरुआती दौर में अडाणी को जो दिया था, वह सिर्फ कच्छ के
रेगिस्तानी इलाके में एक छोटा-सा बंदरगाह था, जहां रेल संपर्क तक मौजूद
नहीं था. इस रेगिस्तानी टुकड़े को हिन्दुस्तान के सबसे बड़े बंदरगाह में
तब्दील कर देना चमत्कार से कम नहीं है.

इकोनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित एक आलेख
में जाने-माने कॉलमिस्ट स्वामीनाथन एस. अंकलेसरिया अय्यर (Swaminathan S
Anklesaria Aiyar) लिखते हैं, "हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में अडाणी की
कंपनियों द्वारा कीमतों में हेराफेरी और धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया है...
ये आरोप बेहद गंभीर हैं... इसी के चलते वैश्विक निवेशकों ने हड़बड़ाकर
अडाणी के शेयरों को बेच दिया... इसकी बारीकी से जांच होनी चाहिए, और
दोषियों को सज़ा मिलनी चाहिए... लेकिन मैं एक अलग, लेकिन इसी से जुड़ा
मुद्दा उठाना चाहता हूं... अडाणी के आलोचकों का कहना है कि अडाणी ने अपने
कौशल से नहीं, हेरफेर और राजनीतिक उपकारों के ज़रिये हासिल एकाधिकार की
बदौलत रईसी पाई... मैं असहमत हूं... अनन्य व्यावसायिक कौशल के बिना सिर्फ
दो दशक में ही मामूली पृष्ठभूमि से दुनिया का तीसरा सबसे रईस शख्स बन जाना
नामुमकिन है..."

वह लिखते हैं, "मैंने वर्ष 2006 में गुजरात की नई
बंदरगाह-आधारित विकास की रणनीति पर रिसर्च की, और केटो इंस्टीट्यूट के लिए
एक पेपर लिखा... यह रणनीति '90 के दशक के शुरुआती वर्षों में कांग्रेसी
मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल ने शुरू की थी, और उसके बाद इसे BJP के
मुख्यमंत्रियों ने आगे बढ़ाया... मैंने गौतम अडाणी के नए मूंदरा बंदरगाह का
दौरा किया और वहां मौजूद उच्चस्तरीय ऑटोमेशन तथा गति से भौंचक्का रह
गया... मुझे यह सुनकर भी हैरानी हुई कि यहां जिन जहाज़ों को वक्त पर प्रवेश
नहीं मिल पाता, और जो वक्त पर अनलोडिंग नहीं कर पाते, उन्हें आर्थिक
मुआवज़ा दिया जाता है... मैं जिस वक्त 1990 में मुंबई में काम करता था,
मैंने जहाज़ों को बंदरगाह में प्रवेश के लिए 20-20 दिन तक इंतज़ार करते
देखा था, सो, मुझे तो लग रहा था कि मूंदरा पोर्ट किसी दूसरे ग्रह का है..."

स्वामीनाथन
एस. अंकलेसरिया अय्यर के आलेख में आगे कहा गया, "अडाणी ने नीलामियों में
माएर्स्क और दुबई वर्ल्ड जैसी दुनिया की दिग्गज कंपनियों को पछाड़कर एक
दर्जन अन्य जगहों पर भी जेटी और बंदरगाहों का अधिग्रहण किया... भारत में तो
उनके मुकाबले का कोई बंदरगाह संचालक नहीं है, जो भारत में होने वाली कुल
माल ढुलाई का एक-चौथाई अकेले ही संभालते हैं... यही बात उन्हें भारत में
सबसे आगे दिखाती है... और इसी वजह से भारत सरकार अडाणी समूह को श्रीलंका और
इस्राइल में रणनीतिक जेटी और बंदरगाहों का अधिग्रहण करने के मामले में
समर्थन दे रही है, जिसे आलोचक उपकार कह रहे हैं... क्या यह असल में उपकार
है...? श्रीलंका टर्मिनल पर 75 करोड़ अमेरिकी डॉलर खर्च होंगे, हैफ़ा पोर्ट
पर 118 करोड़ अमेरिकी डॉलर खर्च करने होंगे... कोई भी भारतीय
प्रतिद्वंद्वी इतना बड़ा जोखिम उठाने की हिम्मत नहीं कर सकता, भले ही सब
कुछ सामने परोस दिया जाए... सो, अडाणी के कौशल ने ही उन्हें सिर्फ व्यवसायी
नहीं, एक रणनीतिक खिलाड़ी बना दिया है..."

अय्यर लिखते हैं, "किसी
बंदरगाह पर एकाधिकार जमाना आसान नहीं होता... स्थापित प्रतिद्वंद्वियों के
मुकाबले जहाज़ों को अपने पास लाने के लिए लॉजिस्टिक्स के साथ-साथ कीमतों
में भी प्रतिस्पर्धा करनी होती है... मूंदरा के लॉजिस्टिक्स ने हज़ारों
करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित किया है, जिससे रेगिस्तान में यह औद्योगिक
केंद्र स्थापित हुआ... यहां पर दुनिया की सबसे बड़ी स्वचालित कोल-हैंडलिंग
फैसिलिटी है... वर्ष 2017 में मॉर्गन स्टैनली की रिपोर्ट में अडाणी पोर्ट्स
एंड स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन (APSEZ) को वैश्विक पोर्ट कंपनियों के शीर्ष 25
फीसदी में शुमार किया गया था..."

इकोनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित आलेख
में अय्यर आगे लिखते हैं, "आलोचकों का सारा ध्यान अडाणी पर किए गए सरकारी
उपकारों पर रहता है... लेकिन भारत में व्यावसायिक कामयाबी के लिए सिर्फ
फैक्टरियों के अच्छे प्रबंधन की नहीं, राजनीति के अच्छे प्रबंधन की भी
ज़रूरत पड़ती है... राजनेताओं के करीब तो सभी व्यवसायी रहते हैं... इससे
सिर्फ मौके मिल सकते हैं, या कुछ नियमों से छूट मिल सकती है, लेकिन यह
कामयाबी की गारंटी नहीं दे सकता... (कांग्रेस के वरिष्ठ नेता) राहुल गांधी
द्वारा अनिल अंबानी पर रक्षा सौदों में 30,000 करोड़ रुपये हासिल करने का
आरोप लगाया जाता है, लेकिन अनिल अंबानी व्यावसायिक रूप से फ्लॉप रहे..."

वह
आगे लिखते हैं, "एक बार, धीरूभाई अंबानी पर भी राजनीतिक जोड़तोड़ और
धोखाधड़ी (Boondoggle) के आरोप लगे थे... तब उन्होंने जवाब में कहा था,
'मैंने ऐसा क्या किया है, जो हर दूसरे बिज़नेसमैन ने नहीं किया...?' कहीं
से कोई जवाब नहीं आया... अन्य व्यवसायियों ने, जिनमें से कई के पास माज़ी
का फायदा भी था, राजनेताओं को भी लुभाया, और हिसाब-किताब में हेरफेर भी
किए... बाज़ार में नए-नए उतरे धीरूभाई जैसे किसी शख्स के लिए दिग्गजों को
उन्हीं के खेल में मात दे डालना असीमित प्रतिभा का प्रतीक था... अडाणी के
बारे में भी ऐसा ही कहा जा सकता है..."

अय्यर आगे लिखते हैं,
"आलोचकों का कहना है कि अडाणी प्रमुख रूप से इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र
में काम करते हैं, जहां कौशल और प्रतिभा से ज़्यादा सरकार से करीबी संबंध
काम आते हैं... ऐसा नहीं है... वर्ष 2003-08 के बीच इन्फ्रास्ट्रक्चर
क्षेत्र में आए उछाल के दौरान मज़बूत क्षेत्रीय राजनैतिक दबदबे वाले
दर्जनों लोगों ने इसमें प्रवेश किया, लेकिन राजनैतिक संरक्षक होने के
बावजूद उनमें से कई मुसीबतों में घिरे, दिवालिया हो गए, और नतीजतन बैंकों
के सिर पर कर्ज़ की बहुत बड़ी-बड़ी रकमों का बोझ पड़ा, जिन्हें चुकाया नहीं
गया... सो, इन्फ्रास्ट्रक्चर में कौशल और प्रतिभा की ज़रूरत होती है,
सिर्फ राजनैतिक मित्रों से काम नहीं चल सकता..."

वह लिखते हैं, "इसे
पढ़ने वाले मुझे अडाणी का प्रशंसक समझ सकते हैं, लेकिन बड़ी-बड़ी कीमतों और
भारी जोखिम के चलते मेरे पास अडाणी की किसी कंपनी का कोई शेयर नहीं है...
अडाणी कर्ज़ों से रकम जुटाकर नीलामियों में बहुत अधिक कीमत पर बोली लगाकर
और अधिग्रहणों में बेहद तेज़ रफ़्तार से फैलाव और विस्तार कर रहे हैं...
इससे फैलाव तो तेज़ी से होता है, लेकिन जोखिम भी बहुत रहता है... अतीत में
ऐसे कई दिग्गजों के उदाहरण मिलते हैं, जिन्होंने बड़े-बड़े समूह खड़े करने
के लिए दीवानावार विस्तार किया, कुछ दशक तक कामयाब भी रहे, तारीफें भी
बटोरीं, लेकिन अंततः नाकाम हो गए (जैसा जैक वेल्च के तहत जनरल इलेक्ट्रिक
का हुआ...)

अंत में स्वामीनाथन एस. अंकलेसरिया अय्यर लिखते हैं,
"मुझे लगता है कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट अडाणी के लिए अब तक की सबसे अच्छी
घटना हो सकती है... यह उनके फैलाव की गति को धीमा कर देगी, और अडाणी के
फाइनेंसरों को भविष्य में सतर्क और सावधान रहने के लिए विवश कर देगी... यह
अडाणी पर भी वित्तीय अनुशासन थोप सकती है, जिससे अडाणी का ही फायदा होगा...
हो सकता है, हिंडनबर्ग की रिपोर्ट भेस बदले पहुंचा एक वरदान साबित हो..."


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