नयी दिल्ली. कोरोना के विषाणु को निष्क्रिय करने के लिए स्वदेश में विकसित कोवैक्सीन के टीके के पेटेन्ट हासिल करने के लिए भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड (बीबीआईएल) ने चुपचाप बिना बताये आवेदन कर दिया था लेकिन सरकार के हस्तक्षेप के बाद भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और राष्ट्रीय जीवाणुविज्ञान संस्थान (एनआईवी), तीनों संयुक्त रूप से आवेदक बने हैं।
केन्द्रीय स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, रसायन एवं उर्वरक मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान एक सवाल के जवाब में यह जानकारी दी। तृणमूल कांग्रेस के प्रो. सौगत राय ने एक सवाल में कहा कि कोवैक्सीन काेरोना संक्रमण के विरुद्ध दुनिया का सबसे प्रभावी टीका माना गया है जिसे आईसीएमआर और एनआईवी ने संयुक्त रूप से 35 करोड़ रुपए की लागत से विकसित किया था। लेकिन इस टीके के पेटेंट के लिए बीबीआईएल ने आवेदन किया है और उसमें आईसीएमआर और एनआईवी का उल्लेख नहीं किया है। इस पर सरकार क्या दंडात्मक कार्रवाई करेगी।
श्री नड्डा ने कहा कि यह सही है कि कोवैक्सीन के विकास के लिए आईसीएमआर और एनआईवी ने बीबीआईएल के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये थे। वैक्सीन के विकास के दो भाग थे -एक, विषाणु को अलग थलग करना और दूसरा, विषाणु को निष्क्रिय करना। ये काम आईसीएमआर ने एनआईवी की प्रयोगशाला में किया जिस पर सात करोड़ रुपए की लागत आयी और बीबीआईएल ने प्रयोगशाला परीक्षण एवं विकास का काम किया जिसमें सात करोड़ से अधिक राशि व्यय हुई। बीबीआईएल ने भी इस काम पर 60 करोड़ से अधिक राशि खर्च की है।
उन्होंने कहा कि जब हमें पता चला कि बीबीआईएल ने पेटेंट आवेदन में सिर्फ खुद के नाम का उल्लेख किया था। लेकिन जैसे ही सरकार को इसका पता लगा, हमने तुरंत आपत्ति दाखिल की और कहा कि यह तो संयुक्त एमओयू के तहत विकसित किया गया है और तीनों का संयुक्त स्वामित्व है। इस पर बीबीआईएल ने स्वीकार किया कि अनजाने में गलती से वैक्सीन के विकास के लिए जिम्मेदार नामों में आईसीएमआर एवं एनआईवी के नाम छूट गये थे। बहरहाल अब तीनों नाम संयुक्त रूप में पेटेंट के आवेदन में दर्ज हो गये हैं।
एक पूरक प्रश्न के उत्तर में श्री नड्डा ने कहा कि कोविड काल में वैक्सीन मैत्री ऑपरेशन के तहत भारत ने 100 देशों को वैक्सीन की आपूर्ति की थी और उनमें से 48 देशों को मुफ्त वैक्सीन भेजी थी। सात देशों को कोवैक्सीन दी गयी थी। कुछ 220 करोड़ डबल डोज़ का उत्पादन हुआ था। भारत में काेविड टीकाकरण का कार्यक्रम विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम था।
नयी दिल्ली. कोरोना के विषाणु को निष्क्रिय करने के लिए स्वदेश में विकसित कोवैक्सीन के टीके के पेटेन्ट हासिल करने के लिए भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड (बीबीआईएल) ने चुपचाप बिना बताये आवेदन कर दिया था लेकिन सरकार के हस्तक्षेप के बाद भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और राष्ट्रीय जीवाणुविज्ञान संस्थान (एनआईवी), तीनों संयुक्त रूप से आवेदक बने हैं।
केन्द्रीय स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, रसायन एवं उर्वरक मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान एक सवाल के जवाब में यह जानकारी दी। तृणमूल कांग्रेस के प्रो. सौगत राय ने एक सवाल में कहा कि कोवैक्सीन काेरोना संक्रमण के विरुद्ध दुनिया का सबसे प्रभावी टीका माना गया है जिसे आईसीएमआर और एनआईवी ने संयुक्त रूप से 35 करोड़ रुपए की लागत से विकसित किया था। लेकिन इस टीके के पेटेंट के लिए बीबीआईएल ने आवेदन किया है और उसमें आईसीएमआर और एनआईवी का उल्लेख नहीं किया है। इस पर सरकार क्या दंडात्मक कार्रवाई करेगी।
श्री नड्डा ने कहा कि यह सही है कि कोवैक्सीन के विकास के लिए आईसीएमआर और एनआईवी ने बीबीआईएल के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये थे। वैक्सीन के विकास के दो भाग थे -एक, विषाणु को अलग थलग करना और दूसरा, विषाणु को निष्क्रिय करना। ये काम आईसीएमआर ने एनआईवी की प्रयोगशाला में किया जिस पर सात करोड़ रुपए की लागत आयी और बीबीआईएल ने प्रयोगशाला परीक्षण एवं विकास का काम किया जिसमें सात करोड़ से अधिक राशि व्यय हुई। बीबीआईएल ने भी इस काम पर 60 करोड़ से अधिक राशि खर्च की है।
उन्होंने कहा कि जब हमें पता चला कि बीबीआईएल ने पेटेंट आवेदन में सिर्फ खुद के नाम का उल्लेख किया था। लेकिन जैसे ही सरकार को इसका पता लगा, हमने तुरंत आपत्ति दाखिल की और कहा कि यह तो संयुक्त एमओयू के तहत विकसित किया गया है और तीनों का संयुक्त स्वामित्व है। इस पर बीबीआईएल ने स्वीकार किया कि अनजाने में गलती से वैक्सीन के विकास के लिए जिम्मेदार नामों में आईसीएमआर एवं एनआईवी के नाम छूट गये थे। बहरहाल अब तीनों नाम संयुक्त रूप में पेटेंट के आवेदन में दर्ज हो गये हैं।
एक पूरक प्रश्न के उत्तर में श्री नड्डा ने कहा कि कोविड काल में वैक्सीन मैत्री ऑपरेशन के तहत भारत ने 100 देशों को वैक्सीन की आपूर्ति की थी और उनमें से 48 देशों को मुफ्त वैक्सीन भेजी थी। सात देशों को कोवैक्सीन दी गयी थी। कुछ 220 करोड़ डबल डोज़ का उत्पादन हुआ था। भारत में काेविड टीकाकरण का कार्यक्रम विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम था।