विविध :: मृत्यु को सुंदर बनाना सिखाती है भागवत कथा:

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भागवत कथा में ज्ञान, भक्ति, वैराग्य का संगम है। संपूर्ण श्राप से मुक्ति दिलाने वाली कथा ही भागवत कथा है। जिस प्रकार रामायण संसार में जीने का मर्म सिखाती है उसी प्रकार भागवत संसार से पार होने का मार्ग दिखाती है। इसका तरीका सिखाती है कि हम मृत्यु को कितना सुंदर बना सकते हैं।

ये बातें संत रमेश भाई ओझा ने शंकुलधारा में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन मंगलवार को कहीं। महामंडलेश्वर स्वामी प्रखर महाराज के सानिध्य में चल रहे लक्षचंडी महायज्ञ के 36वें दिन कथा सत्र में उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत की तीन संज्ञा है। इसे पुराण, संहिता और ग्रंथ तीनों ही रूपों में पूजा जाता है। ग्रंथ कहने पर यह पुलिंग, संहिता कहने पर स्त्रीलिंग और पुराण कहने पर नपुंसक लिंग का बोध कराती है। यह तीनों ही प्रभु के स्वरूप हैं। प्राचीन होते हुए भी प्रतिदिन नूतन अनुभव देती है। यह बहती गंगा जैसी है। जिस प्रकार हम गंगा में आज स्नान करें तो गंगा दूसरे दिन वही जल हमें स्नान के लिए उपलब्ध नहीं होता। गंगा निरंतर प्रवाहमान है। उसी प्रकार भागवत भी प्राचीन होते हुए भी नित्य नवीन है।

उन्होंने भीष्म स्तुति, परीक्षित जन्म, पांडव स्वर्गारोहण, सुकदेव महाराज से परीक्षित द्वारा पूछे गए प्रश्न सहित अन्य प्रसंगों की विस्तार पूर्वक व्याख्या की। द्रौपदी चीरहरण, महाभारत में अश्वथामा द्वारा पाण्डवों के पुत्रों की हत्या, द्रौपदी द्वारा अश्वथामा को क्षमा करने के आग्रह, श्रीकृष्ण के दिये गए श्राप, पांडवों की विजय के साथ ही श्रीकृष्ण के द्वारिका प्रस्थान से जुड़े विविध प्रसंगों का शब्दचित्र खींचा। कथा व्यास ने द्रौपदी की विधवा पुत्रवधू उत्तरा की व्यथा का भी वर्णन किया।


भागवत कथा में ज्ञान, भक्ति, वैराग्य का संगम है। संपूर्ण श्राप से मुक्ति दिलाने वाली कथा ही भागवत कथा है। जिस प्रकार रामायण संसार में जीने का मर्म सिखाती है उसी प्रकार भागवत संसार से पार होने का मार्ग दिखाती है। इसका तरीका सिखाती है कि हम मृत्यु को कितना सुंदर बना सकते हैं।

ये बातें संत रमेश भाई ओझा ने शंकुलधारा में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन मंगलवार को कहीं। महामंडलेश्वर स्वामी प्रखर महाराज के सानिध्य में चल रहे लक्षचंडी महायज्ञ के 36वें दिन कथा सत्र में उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत की तीन संज्ञा है। इसे पुराण, संहिता और ग्रंथ तीनों ही रूपों में पूजा जाता है। ग्रंथ कहने पर यह पुलिंग, संहिता कहने पर स्त्रीलिंग और पुराण कहने पर नपुंसक लिंग का बोध कराती है। यह तीनों ही प्रभु के स्वरूप हैं। प्राचीन होते हुए भी प्रतिदिन नूतन अनुभव देती है। यह बहती गंगा जैसी है। जिस प्रकार हम गंगा में आज स्नान करें तो गंगा दूसरे दिन वही जल हमें स्नान के लिए उपलब्ध नहीं होता। गंगा निरंतर प्रवाहमान है। उसी प्रकार भागवत भी प्राचीन होते हुए भी नित्य नवीन है।

उन्होंने भीष्म स्तुति, परीक्षित जन्म, पांडव स्वर्गारोहण, सुकदेव महाराज से परीक्षित द्वारा पूछे गए प्रश्न सहित अन्य प्रसंगों की विस्तार पूर्वक व्याख्या की। द्रौपदी चीरहरण, महाभारत में अश्वथामा द्वारा पाण्डवों के पुत्रों की हत्या, द्रौपदी द्वारा अश्वथामा को क्षमा करने के आग्रह, श्रीकृष्ण के दिये गए श्राप, पांडवों की विजय के साथ ही श्रीकृष्ण के द्वारिका प्रस्थान से जुड़े विविध प्रसंगों का शब्दचित्र खींचा। कथा व्यास ने द्रौपदी की विधवा पुत्रवधू उत्तरा की व्यथा का भी वर्णन किया।


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