धर्मशाला. तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने
सोमवार को यूक्रेन संकट पर दुख व्यक्त किया और कहा कि बातचीत के जरिए ही
समस्याओं एवं असहमति का सबसे सही समाधान निकाला जा सकता है। शांति के लिए
नोबेल पुरस्कार पाने वाले लामा ने यूक्रेन पर रूस के हमले के बारे में कहा
कि युद्ध अब एक पुराना तरीका हो गया है और अंिहसा ही एकमात्र रास्ता है।
लामा ने एक बयान में कहा, ‘‘ मैं, यूक्रेन में संघर्ष को लेकर काफी दुखी
हूं। हमारी दुनिया इतनी एक-दूसरे पर निर्भर हो गई है कि दो देशों के बीच
ंिहसक संघर्ष का यकीनन अन्य पर असर होगा। हालांकि युद्ध अब एक पुराना तरीका
हो गया है और अंिहसा ही एकमात्र रास्ता है। हमें अन्य मनुष्य को भाई-बहन
मानते हुए, पूरी मानवता के एक होने का विचार विकसित करना चाहिए। इस तरह हम
अधिक शांतिपूर्ण विश्व का निर्माण कर पाएंगे।’’
दलाई लामा ने कहा, ‘‘ समस्याओं और असहमति को हल करने का सबसे वाजिब
तरीका बातचीत ही है। असल शांति आपसी समझ और एक-दूसरे के कुशलक्षेम के
सम्मान से ही आती है।’’ यूक्रेन में जल्द शांति बहाली की कामना करते हुए
उन्होंने कहा, ‘‘ हमें उम्मीद नहीं खोनी चाहिए। 20वीं सदी युद्ध और रक्तपात
की सदी थी। 21वीं सदी संवाद की सदी होनी चाहिए।’’
धर्मशाला. तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने
सोमवार को यूक्रेन संकट पर दुख व्यक्त किया और कहा कि बातचीत के जरिए ही
समस्याओं एवं असहमति का सबसे सही समाधान निकाला जा सकता है। शांति के लिए
नोबेल पुरस्कार पाने वाले लामा ने यूक्रेन पर रूस के हमले के बारे में कहा
कि युद्ध अब एक पुराना तरीका हो गया है और अंिहसा ही एकमात्र रास्ता है।
लामा ने एक बयान में कहा, ‘‘ मैं, यूक्रेन में संघर्ष को लेकर काफी दुखी
हूं। हमारी दुनिया इतनी एक-दूसरे पर निर्भर हो गई है कि दो देशों के बीच
ंिहसक संघर्ष का यकीनन अन्य पर असर होगा। हालांकि युद्ध अब एक पुराना तरीका
हो गया है और अंिहसा ही एकमात्र रास्ता है। हमें अन्य मनुष्य को भाई-बहन
मानते हुए, पूरी मानवता के एक होने का विचार विकसित करना चाहिए। इस तरह हम
अधिक शांतिपूर्ण विश्व का निर्माण कर पाएंगे।’’
दलाई लामा ने कहा, ‘‘ समस्याओं और असहमति को हल करने का सबसे वाजिब
तरीका बातचीत ही है। असल शांति आपसी समझ और एक-दूसरे के कुशलक्षेम के
सम्मान से ही आती है।’’ यूक्रेन में जल्द शांति बहाली की कामना करते हुए
उन्होंने कहा, ‘‘ हमें उम्मीद नहीं खोनी चाहिए। 20वीं सदी युद्ध और रक्तपात
की सदी थी। 21वीं सदी संवाद की सदी होनी चाहिए।’’