रायपुर । साल 2022 में होलिका दहन
वाले दिन 17 मार्च को दोपहर से लेकर रात एक बजे तक भद्रा है, जिसका निवास
पृथ्वी लोक में है। ऐसी मान्यता है कि होलिका दहन यानि फाल्गुन पूर्णिमा पर
जिस समय पृथ्वी लोक में भद्रा का वास होता है, तब होलिका दहन नहीं करना
चाहिए। चूंकि इस बार पृथ्वी लोक की भद्रा है, इसलिए आधी रात तक दहन नहीं
किया जाएगा। भद्रा काल समाप्त होने पर रात्रि एक बजे के पश्चात होलिका दहन
की परंपरा निभाई जाएगी।
होलिका दहन के पहले ढाल थापने का मुहूर्त
पुरानी
बस्ती स्थित प्राचीन महामाया मंदिर के पंडित मनोज शुक्ला बताते हैं कि
महामाया मंदिर के पंचांग और काशी विश्वनाथ पंचांग वाराणसी के अनुसार ढाल
थापने का मुहूर्त 14 मार्च को दोपहर 12.05 से शाम 06.31 बजे तक ढाल थापने
का मुहूर्त है।
ढाल पोने का समय - जो होली
के एक दिन पहले ढाल पोते हैं, उनको 16 मार्च को सुबह 06.15 से शाम 06.10
के बीच ढाल पो लेनी चाहिए। जो होली के दिन ढाल पोते है, उनको गुरुवार 17
मार्च के दिन सूर्योदय से लेकर दोपहर 01.29 बजे के पहले ही ढाल पो लेनी
चाहिए।
गोबर से बनाते हैं बड़बोलिया यानि ढाल
बुजुर्ग
महिला 80 वर्षीय मीरादेवी शर्मा बतातीं हैं कि राजस्थानी परंपरा में गोबर
से माला बनाई जाती है। गोबर को छोटे छोटे आकार में थापकर उसमें छेद करके
धूप में सुखाते हैं। सूख जाने के बाद उसे मोटे धागे में पिरोकर गोबर की
माला बनाई जाती है। इसे ही कहीं बड़बोलिया कहा जाता है और कहीं ढाल पिरोना
कहते हैं। पिरोते समय शुभ मुहूर्त को ध्यान में रखा जाता है।
सुख समृद्धि के लिए सिर पर घुमाते हैं
होलिका
दहन से पहले बहन अपने भाई को तिलक लगाकर उसके सिर से गोबर की माला यानि ढाल
को सिर पर सात बार घुमाती हैं। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से भाई पर आने
वाली विपदा टल जाती है और भाई के जीवन में सुख समृद्धि बढ़ती है। इसी
मान्यता के चलते ढाल, बड़बोलिया को शुभ समय में पिरोया जाता है। ढाल का एक
और अर्थ है, अपनी रक्षा में सहयोग करने वाला अस्त्र। जैसे सैनिक युद्ध में
लड़ते समय तलवार के वार से बचने लोहे की ढाल को उपयोग में लाते थे। वैसे ही
नकारात्मक बुरी शक्तियों से बचने के लिए गोबर की माला रूपी ढाल को सिर से
घुमाते हैं और अपने स्वजनों की रक्षा करते हैं, यह आस्था, विश्वास की बात
है, गोबर को पवित्र मानते हैं, इसलिए गोबर से ढाल बनाते हैं।
रायपुर । साल 2022 में होलिका दहन
वाले दिन 17 मार्च को दोपहर से लेकर रात एक बजे तक भद्रा है, जिसका निवास
पृथ्वी लोक में है। ऐसी मान्यता है कि होलिका दहन यानि फाल्गुन पूर्णिमा पर
जिस समय पृथ्वी लोक में भद्रा का वास होता है, तब होलिका दहन नहीं करना
चाहिए। चूंकि इस बार पृथ्वी लोक की भद्रा है, इसलिए आधी रात तक दहन नहीं
किया जाएगा। भद्रा काल समाप्त होने पर रात्रि एक बजे के पश्चात होलिका दहन
की परंपरा निभाई जाएगी।
होलिका दहन के पहले ढाल थापने का मुहूर्त
पुरानी
बस्ती स्थित प्राचीन महामाया मंदिर के पंडित मनोज शुक्ला बताते हैं कि
महामाया मंदिर के पंचांग और काशी विश्वनाथ पंचांग वाराणसी के अनुसार ढाल
थापने का मुहूर्त 14 मार्च को दोपहर 12.05 से शाम 06.31 बजे तक ढाल थापने
का मुहूर्त है।
ढाल पोने का समय - जो होली
के एक दिन पहले ढाल पोते हैं, उनको 16 मार्च को सुबह 06.15 से शाम 06.10
के बीच ढाल पो लेनी चाहिए। जो होली के दिन ढाल पोते है, उनको गुरुवार 17
मार्च के दिन सूर्योदय से लेकर दोपहर 01.29 बजे के पहले ही ढाल पो लेनी
चाहिए।
गोबर से बनाते हैं बड़बोलिया यानि ढाल
बुजुर्ग
महिला 80 वर्षीय मीरादेवी शर्मा बतातीं हैं कि राजस्थानी परंपरा में गोबर
से माला बनाई जाती है। गोबर को छोटे छोटे आकार में थापकर उसमें छेद करके
धूप में सुखाते हैं। सूख जाने के बाद उसे मोटे धागे में पिरोकर गोबर की
माला बनाई जाती है। इसे ही कहीं बड़बोलिया कहा जाता है और कहीं ढाल पिरोना
कहते हैं। पिरोते समय शुभ मुहूर्त को ध्यान में रखा जाता है।
सुख समृद्धि के लिए सिर पर घुमाते हैं
होलिका
दहन से पहले बहन अपने भाई को तिलक लगाकर उसके सिर से गोबर की माला यानि ढाल
को सिर पर सात बार घुमाती हैं। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से भाई पर आने
वाली विपदा टल जाती है और भाई के जीवन में सुख समृद्धि बढ़ती है। इसी
मान्यता के चलते ढाल, बड़बोलिया को शुभ समय में पिरोया जाता है। ढाल का एक
और अर्थ है, अपनी रक्षा में सहयोग करने वाला अस्त्र। जैसे सैनिक युद्ध में
लड़ते समय तलवार के वार से बचने लोहे की ढाल को उपयोग में लाते थे। वैसे ही
नकारात्मक बुरी शक्तियों से बचने के लिए गोबर की माला रूपी ढाल को सिर से
घुमाते हैं और अपने स्वजनों की रक्षा करते हैं, यह आस्था, विश्वास की बात
है, गोबर को पवित्र मानते हैं, इसलिए गोबर से ढाल बनाते हैं।