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नृसिंह द्वादशी व्रत: भगवान विष्णु के चौथे अवतार थे नृसिंह, होलिका दहन से पहले इनकी पूजा करने का विधान है:

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फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर भगवान नृसिंह की पूजा
करने की परंपरा है। ये भगवान विष्णु के अवतार हैं। इन्होंने भक्त प्रह्लाद
को बचाने के लिए हिरण्यकश्यप को मारा था। भगवान नृसिंह की पूजा से कुंडली
और हर तरह के दोष खत्म हो जाते हैं। दुश्मनों पर जीत मिलती है और बीमारियां
दूर होती हैं। होलिका दहन से तीन दिन पहले नृसिंह भगवान की पूजा की जाती
है। नृसिंह द्वादशी 15 मार्च को मनाई जाएगी।

भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतारों में एक है नृसिंह अवतार
भगवान
विष्णु के दस मुख्य अवतारों में से एक नृसिंह रूप है। ये भगवान विष्णु का
रोद्र रूप है। इस अवतार में श्रीहरि विष्णु जी ने आधा मनुष्य और आधा शेर का
रूप धारण करके राक्षसों के राजा हिरण्यकश्यप का को मारा। फिर इन्होंने
प्रह्लालाद को अपनी गोद में बैठाकर दुलार किया। इस अवतार से भगवान ने बताया
कि धर्म की रक्षा के लिए साहस से युद्ध करने के साथ ही प्रेम और दया का
भाव भी जरूरी है और युद्ध दोनों ही जरूरी है। क्योंकि वो शक्ति किसी काम की
नहीं जिसके साथ प्रेम और दया का भाव न हो।


नृसिंह द्वादशी का महत्व
शास्त्रों
के अनुसार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को नृसिंह द्वादशी मनाई
जाती है। इसका जिक्र विष्णु पुराण में आता है। भगवान विष्णु ने आधा मनुष्य
और आधा शेर के शरीर में नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकशिप का
वध किया था। उसी दिन से इस पर्व की शुरुआत मानी जाती है। भगवान विष्णु के
इस स्वरूप ने प्रहलाद को भी वरदान दिया कि, जो कोई इस दिन भगवान नृसिंह का
स्मरण करते हुए, श्रद्धा से उनका व्रत और पूजन करेगा उसकी मनोकामनाएं पूरी
होंगी। इसके साथ ही उसके रोग, शोक और दोष भी खत्म हो जाएंगे।

नृसिंह पूजन विधि
नृसिंह
पूजा के लिए भी सूर्योदय से पहले उठकर नहाएं और पीले कपड़े पहनें। पीले
चंदन या केसर का तिलक लगाएं। शुद्ध जल के बाद दूध में हल्दी या केसर मिलाकर
अभिषेक करें। इसके बाद भगवान को पीला चंदन लगाएं। फिर केसर, अक्षत, पीले
फूल, अबीर, गुलाल और पीला कपड़ा चढ़ाएं। इसके बाद पंचमेवा और फलों का नैवेद्य
लगाकर नारियल चढ़ाएं और धूप, दीप का दर्शन करवाकर आरती करें।

नृसिंह भगवान की पूजा का मंत्र
ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम्॥




फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर भगवान नृसिंह की पूजा
करने की परंपरा है। ये भगवान विष्णु के अवतार हैं। इन्होंने भक्त प्रह्लाद
को बचाने के लिए हिरण्यकश्यप को मारा था। भगवान नृसिंह की पूजा से कुंडली
और हर तरह के दोष खत्म हो जाते हैं। दुश्मनों पर जीत मिलती है और बीमारियां
दूर होती हैं। होलिका दहन से तीन दिन पहले नृसिंह भगवान की पूजा की जाती
है। नृसिंह द्वादशी 15 मार्च को मनाई जाएगी।

भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतारों में एक है नृसिंह अवतार
भगवान
विष्णु के दस मुख्य अवतारों में से एक नृसिंह रूप है। ये भगवान विष्णु का
रोद्र रूप है। इस अवतार में श्रीहरि विष्णु जी ने आधा मनुष्य और आधा शेर का
रूप धारण करके राक्षसों के राजा हिरण्यकश्यप का को मारा। फिर इन्होंने
प्रह्लालाद को अपनी गोद में बैठाकर दुलार किया। इस अवतार से भगवान ने बताया
कि धर्म की रक्षा के लिए साहस से युद्ध करने के साथ ही प्रेम और दया का
भाव भी जरूरी है और युद्ध दोनों ही जरूरी है। क्योंकि वो शक्ति किसी काम की
नहीं जिसके साथ प्रेम और दया का भाव न हो।


नृसिंह द्वादशी का महत्व
शास्त्रों
के अनुसार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को नृसिंह द्वादशी मनाई
जाती है। इसका जिक्र विष्णु पुराण में आता है। भगवान विष्णु ने आधा मनुष्य
और आधा शेर के शरीर में नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकशिप का
वध किया था। उसी दिन से इस पर्व की शुरुआत मानी जाती है। भगवान विष्णु के
इस स्वरूप ने प्रहलाद को भी वरदान दिया कि, जो कोई इस दिन भगवान नृसिंह का
स्मरण करते हुए, श्रद्धा से उनका व्रत और पूजन करेगा उसकी मनोकामनाएं पूरी
होंगी। इसके साथ ही उसके रोग, शोक और दोष भी खत्म हो जाएंगे।

नृसिंह पूजन विधि
नृसिंह
पूजा के लिए भी सूर्योदय से पहले उठकर नहाएं और पीले कपड़े पहनें। पीले
चंदन या केसर का तिलक लगाएं। शुद्ध जल के बाद दूध में हल्दी या केसर मिलाकर
अभिषेक करें। इसके बाद भगवान को पीला चंदन लगाएं। फिर केसर, अक्षत, पीले
फूल, अबीर, गुलाल और पीला कपड़ा चढ़ाएं। इसके बाद पंचमेवा और फलों का नैवेद्य
लगाकर नारियल चढ़ाएं और धूप, दीप का दर्शन करवाकर आरती करें।

नृसिंह भगवान की पूजा का मंत्र
ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम्॥



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