नयी दिल्ली. बजट में दलितों और आदिवासियों को उनके
आर्थिक हक से वंचित रखने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस ने मंगलवार को
राज्यसभा में दावा किया कि कोविड महामारी की वजह से पहले से ही परेशान समाज
के इन वर्गों को राहत देने के लिए किसी भी नयी योजना का प्रस्ताव नहीं
किया गया है.
कांग्रेस सदस्य नारणभाई जेठवा ने राज्यसभा में जनजातीय मंत्रालय के
कामकाज पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि 2022-23 का बजट पूरी तरह से
कारपोरेट क्षेत्र का बजट है जिसमें दलित और आदिवासी कहीं नजर नहीं आते.
उन्होंने कहा कि नीति आयोग के निर्देशों का भी उल्लंघन किया गया है और दलित
और आदिवासी समुदाय के लिए उनकी आबादी के अनुरूप आवंटन नहीं किया गया.
उन्होंने कहा ‘‘पिछले सात साल ये यह सिलसिला चल रहा है.’’
उन्होंने कहा कि सरकार के पूरे बजट का 2.26 प्रतिशत ही अनुसूचित जनजाति
के लिए है, जबकि उनकी आबादी को देखते हुए यह बहुत ही कम है. उन्होंने कहा
‘‘सरकार के पूरे बजट का मात्र करीब 3.61 प्रतिशत ही अनुसूचित जाति जनजाति
समुदाय के लिए है जबकि उनकी आबादी करीब 16.2 प्रतिशत है.’’
जेठवा ने कहा ‘‘जनजातीय मंत्रालय के लिए आवंटन बढ़ाया गया है लेकिन यह
वृद्धि समुचित नहीं है. यह दुख की बात है कि अनुसूचित जनजाति समुदाय के लिए
श्रम कल्याण योजना का आवंटन घटा दिया गया. उनकी अन्य योजनाओं के आवंटन में
भी कमी की गई है जबकि आवंटन बढ़ाया जाना चाहिए था.’’ उन्होंने कहा कि
मनरेगा पर अनुसूचित जाति, जनजाति समुदाय की निर्भरता अत्यधिक है लेकिन उसके
दिया गया आवंटन इतना नहीं है कि उसे पर्याप्त माना जा सके.
उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार की प्राथमिकता दलित और आदिवासी
नहीं हैं और इस साल के बजट से यह बात साफ हो जाती है. उन्होंने कहा कि कई
गांवों में अवसंरचना का अभाव है. उन्होंने कहा ‘‘39953 गांवों में आज भी
सड़क संपर्क नहीं हैं, 34990 गांव में परिवहन की सुविधा नहीं है, 87500
गांवों में इंटरनेट की सुविधा नहीं है, 61656 गांवों में पेयजल की सुविधा
नहीं है, 17638 गांवों में लैंडलाइन और मोबाइल फोन की सुविधा नहीं है.’’
उन्होंने कहा ‘‘ 13501 गांव ऐसे हैं जहां एक भी स्कूल नहीं है, 58,600
गांवों में नालियां नहीं हैं, 7000 से अधिक गांवों में बिजली नहीं है,
39786 गांवों में 10 किमी के दायरे में बैंक की सुविधा नहीं है 90100
गांवों में बाजार की सुविधा नहीं है. एक करोड़ बीस लाख से अधिक आदिवासी घरों
में एलपीजी और बायोगैस की सुविधा नहीं है. 28131 गांवों में दस किमी के
दायरे में स्वास्थ्य संबंधी कोई सुविधा नहीं है.’’
राठवा ने दावा किया कि जनजाति बहुल इलाकों में बनाए गए एकलव्य
विद्यालयों और नवोदय विद्यालयों में पढ़ाने के लिए उच्च शिक्षित शिक्षक नहीं
हैं. उन्होंने कहा ‘‘इसी तरह गांवों में अस्पताल नहीं हैं, अगर अस्पताल
हैं तो वहां डॉक्टर, नर्स और अन्य सुविधाएं नहीं हैं. फिर सरकार कौन से
विकास का दावा करती है ? ’’
उन्होंने कहा ‘‘कोविड महामारी के दौरान बच्चों को आॅनलाइन शिक्षा दी गई.
आदिवासियों के पास एंड्रॉयड फोन नहीं बल्कि सादे फोन होते हैं. ऐसे में
आदिवासी बच्चों की पढ़ाई कैसे हुई होगी ? गांवों में कितने बीएसएनएल के टॉवर
हैं? आदिवासी बच्चों की पढ़ाई के लिए यह बहुत जरूरी है.’’ राठवा ने ‘‘वन धन
योजना’’ के तहत आदिवासियों को उनकी उपज का दोगुना भाव मिलना चाहिए लेकिन
उन्हें नहीं मिल पा रहा है. बड़ी संख्या में आदिवासी युवक बेरोजगार हैं.
उन्होंने मध्यप्रदेश, झारखंड की सीमा पर बसे आदिवासियों के लिए बिरसा
मुंडा रेजीमेंट बनाने का भी सुझाव दिया. उन्होंने आदिवासी बहुत इलाकों में
दिन में बिजली और किफायत दर में बिजली दिए जाने की मांग की. प्रधानमंत्री
सड़क आवास योजना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि पर्यावरण मंजूरी के नाम
पर कई सड़कों का काम रुका हुआ है जिसे आगे बढ़ाया जाना चाहिए ताकि आदिवासियों
को रोजगार मिल सके.
नयी दिल्ली. बजट में दलितों और आदिवासियों को उनके
आर्थिक हक से वंचित रखने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस ने मंगलवार को
राज्यसभा में दावा किया कि कोविड महामारी की वजह से पहले से ही परेशान समाज
के इन वर्गों को राहत देने के लिए किसी भी नयी योजना का प्रस्ताव नहीं
किया गया है.
कांग्रेस सदस्य नारणभाई जेठवा ने राज्यसभा में जनजातीय मंत्रालय के
कामकाज पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि 2022-23 का बजट पूरी तरह से
कारपोरेट क्षेत्र का बजट है जिसमें दलित और आदिवासी कहीं नजर नहीं आते.
उन्होंने कहा कि नीति आयोग के निर्देशों का भी उल्लंघन किया गया है और दलित
और आदिवासी समुदाय के लिए उनकी आबादी के अनुरूप आवंटन नहीं किया गया.
उन्होंने कहा ‘‘पिछले सात साल ये यह सिलसिला चल रहा है.’’
उन्होंने कहा कि सरकार के पूरे बजट का 2.26 प्रतिशत ही अनुसूचित जनजाति
के लिए है, जबकि उनकी आबादी को देखते हुए यह बहुत ही कम है. उन्होंने कहा
‘‘सरकार के पूरे बजट का मात्र करीब 3.61 प्रतिशत ही अनुसूचित जाति जनजाति
समुदाय के लिए है जबकि उनकी आबादी करीब 16.2 प्रतिशत है.’’
जेठवा ने कहा ‘‘जनजातीय मंत्रालय के लिए आवंटन बढ़ाया गया है लेकिन यह
वृद्धि समुचित नहीं है. यह दुख की बात है कि अनुसूचित जनजाति समुदाय के लिए
श्रम कल्याण योजना का आवंटन घटा दिया गया. उनकी अन्य योजनाओं के आवंटन में
भी कमी की गई है जबकि आवंटन बढ़ाया जाना चाहिए था.’’ उन्होंने कहा कि
मनरेगा पर अनुसूचित जाति, जनजाति समुदाय की निर्भरता अत्यधिक है लेकिन उसके
दिया गया आवंटन इतना नहीं है कि उसे पर्याप्त माना जा सके.
उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार की प्राथमिकता दलित और आदिवासी
नहीं हैं और इस साल के बजट से यह बात साफ हो जाती है. उन्होंने कहा कि कई
गांवों में अवसंरचना का अभाव है. उन्होंने कहा ‘‘39953 गांवों में आज भी
सड़क संपर्क नहीं हैं, 34990 गांव में परिवहन की सुविधा नहीं है, 87500
गांवों में इंटरनेट की सुविधा नहीं है, 61656 गांवों में पेयजल की सुविधा
नहीं है, 17638 गांवों में लैंडलाइन और मोबाइल फोन की सुविधा नहीं है.’’
उन्होंने कहा ‘‘ 13501 गांव ऐसे हैं जहां एक भी स्कूल नहीं है, 58,600
गांवों में नालियां नहीं हैं, 7000 से अधिक गांवों में बिजली नहीं है,
39786 गांवों में 10 किमी के दायरे में बैंक की सुविधा नहीं है 90100
गांवों में बाजार की सुविधा नहीं है. एक करोड़ बीस लाख से अधिक आदिवासी घरों
में एलपीजी और बायोगैस की सुविधा नहीं है. 28131 गांवों में दस किमी के
दायरे में स्वास्थ्य संबंधी कोई सुविधा नहीं है.’’
राठवा ने दावा किया कि जनजाति बहुल इलाकों में बनाए गए एकलव्य
विद्यालयों और नवोदय विद्यालयों में पढ़ाने के लिए उच्च शिक्षित शिक्षक नहीं
हैं. उन्होंने कहा ‘‘इसी तरह गांवों में अस्पताल नहीं हैं, अगर अस्पताल
हैं तो वहां डॉक्टर, नर्स और अन्य सुविधाएं नहीं हैं. फिर सरकार कौन से
विकास का दावा करती है ? ’’
उन्होंने कहा ‘‘कोविड महामारी के दौरान बच्चों को आॅनलाइन शिक्षा दी गई.
आदिवासियों के पास एंड्रॉयड फोन नहीं बल्कि सादे फोन होते हैं. ऐसे में
आदिवासी बच्चों की पढ़ाई कैसे हुई होगी ? गांवों में कितने बीएसएनएल के टॉवर
हैं? आदिवासी बच्चों की पढ़ाई के लिए यह बहुत जरूरी है.’’ राठवा ने ‘‘वन धन
योजना’’ के तहत आदिवासियों को उनकी उपज का दोगुना भाव मिलना चाहिए लेकिन
उन्हें नहीं मिल पा रहा है. बड़ी संख्या में आदिवासी युवक बेरोजगार हैं.
उन्होंने मध्यप्रदेश, झारखंड की सीमा पर बसे आदिवासियों के लिए बिरसा
मुंडा रेजीमेंट बनाने का भी सुझाव दिया. उन्होंने आदिवासी बहुत इलाकों में
दिन में बिजली और किफायत दर में बिजली दिए जाने की मांग की. प्रधानमंत्री
सड़क आवास योजना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि पर्यावरण मंजूरी के नाम
पर कई सड़कों का काम रुका हुआ है जिसे आगे बढ़ाया जाना चाहिए ताकि आदिवासियों
को रोजगार मिल सके.