होली पर्व की तैयारी में लोग पूरी मस्ती में डूबे हुए थे।नंगाड़ा की थाप के संग फाग गीत गायन जनमन के भीतर उत्साह को द्विगुणित कर रहा था। ऐसे दौर में एक ढाबा में मुर्गी- मुर्गा में बात हो रही थी।काला कड़कनाथ मुर्गा अपनी प्रेयसी सफेद मुर्गी के गाल पर गुलाल लगाते हुए बोला- कैसे जानुं जी,कल होली पर्व है,लोग रंग -भंग अउ चंग में मगन हैं,पर तुम धूप में झुलसे किसी नए पौधे की पत्ती की भांति कुम्हलाई हुई होऔर मुंह उतार कर बैठी हो।ऐसे खुशी के रंगों के पर्व में किस बात की चिंता तुम्हें लकड़ी में लगे घुन की तरह खाए जा रही है?
मुर्गा के सवाल के जवाब में लम्बी सांस छोंड़ते हुए मुर्गी बोली- तुम तो जानते हो जी।होली त्योहार में लोग चिकन मटन बिरयानी खाते हैं।आज भी लोग आएंगे,हमको खरीद कर ले जाएंगेऔर कल होली के दिन हमें टुकड़े टुकड़े में काट काट कर बिरयानी बनाने भून डालेंगे।सदा सदा के लिए हम बिलग जाएंगे।
मुर्गी की ऐसी दर्द भरी बातें सुनकर मुर्गा धर धर आंसू बहाने लगा और बोला -सच कह रही हो जी। इस और तो मेरा ध्यान ही नहीं गया था।रंगो के पर्व में सदा सदा के लिए बिछड़ जाने के समय मेरे मन में भी यह विचार उठ रहा है कि,रंग के पर्व को लोगों ने मांस मछली,दारू मटन का पर्व बना लिया है।रंगोंत्सव को दंगोत्सव में बदल डाला है, तभी तो होली के दिन रंग खेलने वालों से कहीं ज्यादा बंदूक और लाठी से सुसज्जित पुलिस के जवान और हूटर बजाती पुलिस की गाड़ियां शहर भर में दिखाई देती हैं।
मुर्गा की बात आगे बढ़ाते हुए मुर्गी बोली-रोओ मत जी।हमारा जन्म तो इंसानों की सेवा में अपनी ज़िन्दगी होम करने के लिए ही हुआ है।ऐसे समय में एक सवाल मेरे मन में भी उठ रहा है। क्या होली का पर्व जीव जंतुओं की हत्या करने का संदेश देनेआता है ?
मुर्गी का यह सवाल मुर्गे को झकझोर के रख देता है।वह प्रत्युत्तर में एक शब्द नहीं बोल पाता और मुर्गी को लिपटा कर फफक फफक कर रो पड़ता है।उन दोनों की आंखों से टप टप टपकते आंसू होली के सच्चे अर्थ की तलाश में माता सीता की भांति धरती में समाते चले जा रहे थे।
लेखक :: विजय मिश्रा अमित,पूर्व अति.महाप्रबंधक (जन) छग पावर कम्पनी, एम 8 सेक्टर 2,अग्रोहा सोसाइटी,पोआ-सुंदर नगर, रायपुर,(छगढ)492013, मो न 9893123310
होली पर्व की तैयारी में लोग पूरी मस्ती में डूबे हुए थे।नंगाड़ा की थाप के संग फाग गीत गायन जनमन के भीतर उत्साह को द्विगुणित कर रहा था। ऐसे दौर में एक ढाबा में मुर्गी- मुर्गा में बात हो रही थी।काला कड़कनाथ मुर्गा अपनी प्रेयसी सफेद मुर्गी के गाल पर गुलाल लगाते हुए बोला- कैसे जानुं जी,कल होली पर्व है,लोग रंग -भंग अउ चंग में मगन हैं,पर तुम धूप में झुलसे किसी नए पौधे की पत्ती की भांति कुम्हलाई हुई होऔर मुंह उतार कर बैठी हो।ऐसे खुशी के रंगों के पर्व में किस बात की चिंता तुम्हें लकड़ी में लगे घुन की तरह खाए जा रही है?
मुर्गा के सवाल के जवाब में लम्बी सांस छोंड़ते हुए मुर्गी बोली- तुम तो जानते हो जी।होली त्योहार में लोग चिकन मटन बिरयानी खाते हैं।आज भी लोग आएंगे,हमको खरीद कर ले जाएंगेऔर कल होली के दिन हमें टुकड़े टुकड़े में काट काट कर बिरयानी बनाने भून डालेंगे।सदा सदा के लिए हम बिलग जाएंगे।
मुर्गी की ऐसी दर्द भरी बातें सुनकर मुर्गा धर धर आंसू बहाने लगा और बोला -सच कह रही हो जी। इस और तो मेरा ध्यान ही नहीं गया था।रंगो के पर्व में सदा सदा के लिए बिछड़ जाने के समय मेरे मन में भी यह विचार उठ रहा है कि,रंग के पर्व को लोगों ने मांस मछली,दारू मटन का पर्व बना लिया है।रंगोंत्सव को दंगोत्सव में बदल डाला है, तभी तो होली के दिन रंग खेलने वालों से कहीं ज्यादा बंदूक और लाठी से सुसज्जित पुलिस के जवान और हूटर बजाती पुलिस की गाड़ियां शहर भर में दिखाई देती हैं।
मुर्गा की बात आगे बढ़ाते हुए मुर्गी बोली-रोओ मत जी।हमारा जन्म तो इंसानों की सेवा में अपनी ज़िन्दगी होम करने के लिए ही हुआ है।ऐसे समय में एक सवाल मेरे मन में भी उठ रहा है। क्या होली का पर्व जीव जंतुओं की हत्या करने का संदेश देनेआता है ?
मुर्गी का यह सवाल मुर्गे को झकझोर के रख देता है।वह प्रत्युत्तर में एक शब्द नहीं बोल पाता और मुर्गी को लिपटा कर फफक फफक कर रो पड़ता है।उन दोनों की आंखों से टप टप टपकते आंसू होली के सच्चे अर्थ की तलाश में माता सीता की भांति धरती में समाते चले जा रहे थे।
लेखक :: विजय मिश्रा अमित,पूर्व अति.महाप्रबंधक (जन) छग पावर कम्पनी, एम 8 सेक्टर 2,अग्रोहा सोसाइटी,पोआ-सुंदर नगर, रायपुर,(छगढ)492013, मो न 9893123310