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होलिका दहन के लिए मिलेगा सिर्फ घंटे भर का समय, जान लें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि:

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नई दिल्ली. होलिका दहन 2022 पूजा विधि, मुहूर्त, कथा और महत्व:
पंचांग अनुसार फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन
के रूप में मनाया जाता है। ये तिथि इस बार 17 मार्च को पड़ रही है। इसलिए
इसी दिन देशभर में होलिका दहन का त्योहार मनाया जाएगा। होलिका दहन के अगले
दिन 18 मार्च को रंगवाली होली खेली जाएगी। ज्योतिष विशेषज्ञों की मानें तो
इस बार होलिका दहन के लिए अधिक समय नहीं मिलेगा क्योंकि इस दिन भद्रा का
साया रहेगा। जानिए ऐसे में किस मुहूर्त में करेंगे होलिका दहन और क्या है
इसकी पूजा विधि।

होलिका दहन 2022 मुहूर्त: 17
मार्च को रात 9 बजकर 20 मिनट से 10 बजकर 31 मिनट तक का समय होलिका दहन के
लिए शुभ बताया जा रहा है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस बार होलिका दहन के
लिए सिर्फ 1 घंटा 10 मिनट का समय ही मिलने वाला है। इसके पीछे का कारण
भद्रा काल बताया जाता रहा है। जो इस दिन यानी 17 मार्च को दोपहर 1 बजकर 20
मिनट से लग जाएगा जिसकी समाप्ति रात 12 बजकर 28 मिनट पर होगी। भद्रा योग
अशुभ योग की श्रेणी में देखा जाता है। लेकिन 17 मार्च को रात 09 बजकर 20
मिनट से 10 बजकर 31 मिनट तक भद्रा की पुँछा अवधि रहेगी। जो होलिका पूजन के
लिए शुभ मानी जाती है।


कैसे बनता है भद्रा योग? जब
चंद्रमा अपनी गोचर अवधि में कर्क, सिंह, कुंभ और मीन राशि में गोचर करता
है तब भद्रा विष्टीकरण के योग का निर्माण होता है। मान्यता है इस अवधि में
भद्रा पृथ्वी लोक में रहती है। ऐसे में इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं
किये जाते हैं। ज्योतिष अनुसार भद्रा स्वर्ग-पृथ्वी-पाताल तीनो लोक में सुख
व दुख देने का काम करती है। जब चंद्रमा मेष, वृषभ, मिथुन और वृश्चिक राशि
में गोचर करता है तब भद्रा स्वर्ग में रहती है। जब चंद्रमा कुंभ, मीन, कर्क
और सिंह राशि में होता है तब भद्रा का निवास पृथ्वी पर होता है और इसके
अलावा जब चंद्रमा कन्या, तुला, धनु और मकर राशि में होता है तब भद्रा पाताल
में उपस्थित होती है।

होलिका दहन पूजन विधि:
-इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
-इसके
बाद जहां होलिका दहन करना है उस जगह को साफ करें और यहां पर सूखी लकड़ी,
गोबर के उपले, सूखे काटे ये सभी सामग्री एकत्रित कर लें।
-इसके बाद होलिका और प्रहलाद की प्रतिमा बना लें।
-होलिका दहन वाले दिन भगवान नरसिंह की पूजा भी अवश्य करें।
-शाम होने पर दोबारा से पूजा करें और पूजा के बाद होलिका दहन की तैयारी शुरू कर दें।
-होलिका में अग्नि जलाने के बाद अपने पूरे परिवार के साथ होलिका की तीन परिक्रमा करें।
-परिक्रमा के दौरान मन ही मन भगवान नरसिंह का नाम जपे और 5 अनाज अग्नि को अर्पित करें।
-इस बात का भी ध्यान रखें कि परिक्रमा करते समय आपको अर्ग्य देनी है और कच्चे सूत को होलिका में लपेटना है।
-फिर उपले, चने की बालों, जौ, गेहूं सभी चीजें होलिका में डालें।
-आखिर में होलिका में गुलाल रंग डालें और जल चढ़ाएं।
-जब होलिका की अग्नि शांत हो जाए तो इसकी राख अपने घर में साफ-सुथरी पवित्र जगह पर रख दें।

क्यों मनाते हैं होलिका दहन?
यह वो दिन था जब राक्षस राजा हिरण्यकश्यप की बहन होलिका प्रह्लाद को लेकर
अग्नि में बैठ गई थी। क्योंकि होलिका को ये वरदान प्राप्त था कि वो आग में
जल नहीं सकती। इस कारण वो प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठ गई। लेकिन भगवान
विष्णु की कृपा से प्रहलाद तो अग्नि से बच गए बल्कि उनकी जगह पर खुद होलिका
जलकर राख हो गई।





नई दिल्ली. होलिका दहन 2022 पूजा विधि, मुहूर्त, कथा और महत्व:
पंचांग अनुसार फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन
के रूप में मनाया जाता है। ये तिथि इस बार 17 मार्च को पड़ रही है। इसलिए
इसी दिन देशभर में होलिका दहन का त्योहार मनाया जाएगा। होलिका दहन के अगले
दिन 18 मार्च को रंगवाली होली खेली जाएगी। ज्योतिष विशेषज्ञों की मानें तो
इस बार होलिका दहन के लिए अधिक समय नहीं मिलेगा क्योंकि इस दिन भद्रा का
साया रहेगा। जानिए ऐसे में किस मुहूर्त में करेंगे होलिका दहन और क्या है
इसकी पूजा विधि।

होलिका दहन 2022 मुहूर्त: 17
मार्च को रात 9 बजकर 20 मिनट से 10 बजकर 31 मिनट तक का समय होलिका दहन के
लिए शुभ बताया जा रहा है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस बार होलिका दहन के
लिए सिर्फ 1 घंटा 10 मिनट का समय ही मिलने वाला है। इसके पीछे का कारण
भद्रा काल बताया जाता रहा है। जो इस दिन यानी 17 मार्च को दोपहर 1 बजकर 20
मिनट से लग जाएगा जिसकी समाप्ति रात 12 बजकर 28 मिनट पर होगी। भद्रा योग
अशुभ योग की श्रेणी में देखा जाता है। लेकिन 17 मार्च को रात 09 बजकर 20
मिनट से 10 बजकर 31 मिनट तक भद्रा की पुँछा अवधि रहेगी। जो होलिका पूजन के
लिए शुभ मानी जाती है।


कैसे बनता है भद्रा योग? जब
चंद्रमा अपनी गोचर अवधि में कर्क, सिंह, कुंभ और मीन राशि में गोचर करता
है तब भद्रा विष्टीकरण के योग का निर्माण होता है। मान्यता है इस अवधि में
भद्रा पृथ्वी लोक में रहती है। ऐसे में इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं
किये जाते हैं। ज्योतिष अनुसार भद्रा स्वर्ग-पृथ्वी-पाताल तीनो लोक में सुख
व दुख देने का काम करती है। जब चंद्रमा मेष, वृषभ, मिथुन और वृश्चिक राशि
में गोचर करता है तब भद्रा स्वर्ग में रहती है। जब चंद्रमा कुंभ, मीन, कर्क
और सिंह राशि में होता है तब भद्रा का निवास पृथ्वी पर होता है और इसके
अलावा जब चंद्रमा कन्या, तुला, धनु और मकर राशि में होता है तब भद्रा पाताल
में उपस्थित होती है।

होलिका दहन पूजन विधि:
-इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
-इसके
बाद जहां होलिका दहन करना है उस जगह को साफ करें और यहां पर सूखी लकड़ी,
गोबर के उपले, सूखे काटे ये सभी सामग्री एकत्रित कर लें।
-इसके बाद होलिका और प्रहलाद की प्रतिमा बना लें।
-होलिका दहन वाले दिन भगवान नरसिंह की पूजा भी अवश्य करें।
-शाम होने पर दोबारा से पूजा करें और पूजा के बाद होलिका दहन की तैयारी शुरू कर दें।
-होलिका में अग्नि जलाने के बाद अपने पूरे परिवार के साथ होलिका की तीन परिक्रमा करें।
-परिक्रमा के दौरान मन ही मन भगवान नरसिंह का नाम जपे और 5 अनाज अग्नि को अर्पित करें।
-इस बात का भी ध्यान रखें कि परिक्रमा करते समय आपको अर्ग्य देनी है और कच्चे सूत को होलिका में लपेटना है।
-फिर उपले, चने की बालों, जौ, गेहूं सभी चीजें होलिका में डालें।
-आखिर में होलिका में गुलाल रंग डालें और जल चढ़ाएं।
-जब होलिका की अग्नि शांत हो जाए तो इसकी राख अपने घर में साफ-सुथरी पवित्र जगह पर रख दें।

क्यों मनाते हैं होलिका दहन?
यह वो दिन था जब राक्षस राजा हिरण्यकश्यप की बहन होलिका प्रह्लाद को लेकर
अग्नि में बैठ गई थी। क्योंकि होलिका को ये वरदान प्राप्त था कि वो आग में
जल नहीं सकती। इस कारण वो प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठ गई। लेकिन भगवान
विष्णु की कृपा से प्रहलाद तो अग्नि से बच गए बल्कि उनकी जगह पर खुद होलिका
जलकर राख हो गई।




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