विशेषज्ञ कहते हैं कि
बचपन में सोशल और इमोशनल विकास बहुत तेजी से होता है। जो पैरेंट्स शुरूआत
से ही बच्चों के सामाजिक और भावनात्मक विकास पर ध्यान देते हैं, आगे चलकर
उनके बच्चे ज्यादा जागरूक, सफल, आत्मनिर्भर और अच्छे डिसीजन मेकर बनते हैं।
बच्चों के शारीरिक विकास के साथ उसके सोशल और भावनात्मक विकास पर भी ध्यान देने की जरूरत होती है। आपके बच्चे के संपूर्ण विकासके लिए ये दो चीजें महत्वपूर्ण हैं। सोशल और भावनात्मक विकास में बच्चे का
अनुभव, अभिव्यक्ति, इमोशंस को संभालना और दूसरों के साथ सकारात्मक संबंध
स्थापित करने की क्षमता शामिल है। बच्चों के सोशल और इमोशनल डेवलपमेंट में
माता-पिता अहम भूमिका निभाते हैं। मॉम्स बिलीव की क्लीनिकल हेड शुचिता दुआ
कहती हैं कि जो बच्चे भावनात्मक रूप से जागरूक होते हैं, वे कम शैतान होते
हैं, स्कूल में अच्छे दोस्त बनाते हैं और स्कूल में अच्छा परफॉर्म करते
हैं।
कई रिसर्च बताती हैं कि बच्चा जितना सामाजिक और भावनात्मक रूप
से बुद्धिमान होगा, उतना ही ज्यादा वह पढ़ाई में सफल होगा। शुचिता कहती
हैं कि इमोशनली और सोशल स्किल्स में मजबूत बच्चे, रिश्तों में आने वाली
समस्याओं को भी आसानी से हल कर लेते हैं। तो आइए जानते हैं कि एक पैरेंट
होने के नाते, आपको बच्चे के सोशल और इमोशनल डेवलपमेंट के लिए क्या करना
चाहिए और शुचिता जी इसे लेकर क्या टिप्स देती हैं।
एक शुचिता दुआ ने कुछ तरीके बताए हैं, जिनकी मदद से आप अपने बच्चे पर दबाव डाले बिना उसकी स्किल्स को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। शुचिता बड़ो अपने बच्चे को रोजमर्रा केसामाजिक और भावनात्मक विकास क्या है
बच्चे के सामाजिक विकास का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह अपने
आसपास के लोगों के साथ कैसे बातचीत करता है। वहीं भावनात्मक विकास को
समझने के लिए आपको जानना है कि बच्चा अपने रिश्तों को लेकर कैसे महसूस
करता है और अपनी भावनाओं को वो कैसे कंट्रोल करता है। यह प्रक्रिया शिशु के
जन्म के कुछ महीनों बाद से ही शुरू हो जाती है और वयस्क होने तक चलती है।बच्चों में ये स्किल्स कैसे बढ़ाएं
से खुलकर बात करें - अपनी भावनाओं के बारे में बच्चे से बात करने से ना
शर्माएं और अपने बच्चे को भी खुलकर बोलने के लिए प्रोत्साहित करें।कम्यूनिकेशन जरूरी है
जी कहती हैं कि बच्चे के लिए अन्य बच्चों के साथ बातचीत करने के अवसर पैदा
करें। आप अपने बच्चों को पार्क या लाइब्रेरी जैसे पब्लिक प्लेस ले जाएं।इमोशनल आउटब्रेक को रोकना सिखाएं
की तरह बच्चे भी अपनी भावनाओं को छुपा नहीं पाते लेकिन कभी-कभी ऐसा करना
जरूरी होता है। अपने बच्चे को सिखाएं कि सांस लेने या दस तक उल्टी गिनती
करके इमोशनल आउटब्रेक को रोका जा सकता है।
छोटे-मोटे फैसलों जैसे कि क्या पहनना, क्या खेलना है आदि के निर्णय लेने
की स्वतंत्रता दें। इससे बच्चों की डिसीजन मेकिंग बहुत अच्छी हो जाती है।
एक्टिविटीज में शामिल होना
शुचिता
जी कहती हैं कि बच्चों के साथ ऐसी एक्टिविटीज में शामिल हों, जहां उनके
ऑब्जर्वेशन स्किल्स डेवलप हो सकें। इसके अलावा बच्चे के इमोशन्स को दबाए
नहीं, बल्कि उसे समझें और उसकी मदद करें।
माता-पिता होने के नाते
आपको अपने बच्चे को सामाजिक और भावनात्मक कौशल सिखाने होंगे। उसे दूसरों
की बात सुनने और मुश्किलों को हल करना सिखाएं।
बच्चों को समस्या से
भागना नहीं, बल्कि इसका समाधान ढूंढने के लिए प्रोत्साहित करें। इससे
उन्हें समझ आता है कि जीवन में अगर कोई समस्या आए, तो चिंतित हुए बिना उसे
सुलझाया जा सकता है।
विशेषज्ञ कहते हैं कि
बचपन में सोशल और इमोशनल विकास बहुत तेजी से होता है। जो पैरेंट्स शुरूआत
से ही बच्चों के सामाजिक और भावनात्मक विकास पर ध्यान देते हैं, आगे चलकर
उनके बच्चे ज्यादा जागरूक, सफल, आत्मनिर्भर और अच्छे डिसीजन मेकर बनते हैं।
बच्चों के शारीरिक विकास के साथ उसके सोशल और भावनात्मक विकास पर भी ध्यान देने की जरूरत होती है। आपके बच्चे के संपूर्ण विकासके लिए ये दो चीजें महत्वपूर्ण हैं। सोशल और भावनात्मक विकास में बच्चे का
अनुभव, अभिव्यक्ति, इमोशंस को संभालना और दूसरों के साथ सकारात्मक संबंध
स्थापित करने की क्षमता शामिल है। बच्चों के सोशल और इमोशनल डेवलपमेंट में
माता-पिता अहम भूमिका निभाते हैं। मॉम्स बिलीव की क्लीनिकल हेड शुचिता दुआ
कहती हैं कि जो बच्चे भावनात्मक रूप से जागरूक होते हैं, वे कम शैतान होते
हैं, स्कूल में अच्छे दोस्त बनाते हैं और स्कूल में अच्छा परफॉर्म करते
हैं।
कई रिसर्च बताती हैं कि बच्चा जितना सामाजिक और भावनात्मक रूप
से बुद्धिमान होगा, उतना ही ज्यादा वह पढ़ाई में सफल होगा। शुचिता कहती
हैं कि इमोशनली और सोशल स्किल्स में मजबूत बच्चे, रिश्तों में आने वाली
समस्याओं को भी आसानी से हल कर लेते हैं। तो आइए जानते हैं कि एक पैरेंट
होने के नाते, आपको बच्चे के सोशल और इमोशनल डेवलपमेंट के लिए क्या करना
चाहिए और शुचिता जी इसे लेकर क्या टिप्स देती हैं।
एक शुचिता दुआ ने कुछ तरीके बताए हैं, जिनकी मदद से आप अपने बच्चे पर दबाव डाले बिना उसकी स्किल्स को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। शुचिता बड़ो अपने बच्चे को रोजमर्रा केसामाजिक और भावनात्मक विकास क्या है
बच्चे के सामाजिक विकास का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह अपने
आसपास के लोगों के साथ कैसे बातचीत करता है। वहीं भावनात्मक विकास को
समझने के लिए आपको जानना है कि बच्चा अपने रिश्तों को लेकर कैसे महसूस
करता है और अपनी भावनाओं को वो कैसे कंट्रोल करता है। यह प्रक्रिया शिशु के
जन्म के कुछ महीनों बाद से ही शुरू हो जाती है और वयस्क होने तक चलती है।बच्चों में ये स्किल्स कैसे बढ़ाएं
से खुलकर बात करें - अपनी भावनाओं के बारे में बच्चे से बात करने से ना
शर्माएं और अपने बच्चे को भी खुलकर बोलने के लिए प्रोत्साहित करें।कम्यूनिकेशन जरूरी है
जी कहती हैं कि बच्चे के लिए अन्य बच्चों के साथ बातचीत करने के अवसर पैदा
करें। आप अपने बच्चों को पार्क या लाइब्रेरी जैसे पब्लिक प्लेस ले जाएं।इमोशनल आउटब्रेक को रोकना सिखाएं
की तरह बच्चे भी अपनी भावनाओं को छुपा नहीं पाते लेकिन कभी-कभी ऐसा करना
जरूरी होता है। अपने बच्चे को सिखाएं कि सांस लेने या दस तक उल्टी गिनती
करके इमोशनल आउटब्रेक को रोका जा सकता है।
छोटे-मोटे फैसलों जैसे कि क्या पहनना, क्या खेलना है आदि के निर्णय लेने
की स्वतंत्रता दें। इससे बच्चों की डिसीजन मेकिंग बहुत अच्छी हो जाती है।
एक्टिविटीज में शामिल होना
शुचिता
जी कहती हैं कि बच्चों के साथ ऐसी एक्टिविटीज में शामिल हों, जहां उनके
ऑब्जर्वेशन स्किल्स डेवलप हो सकें। इसके अलावा बच्चे के इमोशन्स को दबाए
नहीं, बल्कि उसे समझें और उसकी मदद करें।
माता-पिता होने के नाते
आपको अपने बच्चे को सामाजिक और भावनात्मक कौशल सिखाने होंगे। उसे दूसरों
की बात सुनने और मुश्किलों को हल करना सिखाएं।
बच्चों को समस्या से
भागना नहीं, बल्कि इसका समाधान ढूंढने के लिए प्रोत्साहित करें। इससे
उन्हें समझ आता है कि जीवन में अगर कोई समस्या आए, तो चिंतित हुए बिना उसे
सुलझाया जा सकता है।