नई दिल्ली, हरियाणा कांग्रेस में भी संकट बरकरार है और अब खबर है कि मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की कवायद ने पार्टी को दबाव में ला दिया है। कहा जा रहा है कि हुड्डा प्रदेश कांग्रेस में नेतृत्व बदलाव की मांग कर रहे हैं और उन्होंने इस ओर कोशिशें भी तेज कर दी हैं। फिलहाल, हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कमान कुमारी शैलजा के हाथों में है। हाल ही में कांग्रेस ने दिल्ली में प्रदेश के नेताओं के साथ बैठक की थी।
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, पहले हुड्डा ने नई दिल्ली में हुई बैठक में समर्थक विधायकों के साथ पहुंचकर शक्ति प्रदर्शन किया। वहीं, गुरुवार को वे पार्टी के आंदोलन से भी गायब रहे। हुड्डा खेमा चाहता है कि हाईकमान शैलजा के स्थान पर दीपेंद्र हुड्डा को प्रदेश का अध्यक्ष बनाए। इसके बदले में पूर्व सीएम हुड्डा शायद कांग्रेस विधायक दल के नेता का पद छोड़ने और अपने पसंद के गैर-जाट नेता की इच्छा जाहिर कर सकते हैं। AICC के एक पदाधिकारी ने बताया, 'AICC हरियाणा कांग्रेस समेत मुद्दों पर चर्चाएं कर रही है और हमें उम्मीद है कि जल्दी समाधान मिलेगा।'
25 मार्च को राहुल गांधी की तरफ से बुलाई गई हरियाणा कांग्रेस नेताओं की बैठक असफल रही थी। इधर, सोमवार को दिल्ली में हुई सीएलपी की बैठक में हुड्डा अपने बेटे और कांग्रेस के 31 में से 23 विधायकों के साथ पहुंचे थे। खास बात है कि उसी दिन शैलजा ने भी हुड्डा समेत कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को चंडीगढ़ में बैठक के लिए बुलाया था, ताकि चंडीगढ़ के दर्जे को लेकर विधानसभा के विशेष सत्र पर चर्चा की जा सके।
दिल्ली में हुई सीएलपी की बैठक के बाद हुड्डा खेमा गुरुवार को हुए आंदोलन में भी शामिल नहीं हुआ। इसके बाद पार्टी को बगावत की आशंका हुई और नेताओं तक पहुंचना शुरू किया।
शैलजा भी जता चुकी हैं नाराजगी
राहुल गांधी की तरफ से बुलाई गई बैठक में 'वफादार' शैलजा ने कथित तौर पर शिकायत दर्ज कराई थी। उन्होंने कहा था कि हुड्डा खेमे के विरोध के चलते हाईकमान ने उन्हें पीसीसी और डीसीसी संगठनात्मक दल नहीं मिले और उन्हें 2019 में नियुक्ति के दौरान दलित और महिला पीसीसी चीफ के तौर पर दिखाने के बाद कमजोर बना दिया गया। कहा जा रहा है कि अगर शैलजा को पद छोड़ने के लिए कहा जाता है, तो उनकी प्रतिक्रिया पर खास गौर किया जाएगा।
शैलजा से पहले अशोक तंवर भी दलित थे और हुड्डा खेमे के साथ हुए तनाव के बाद उन्हें पद से हटा दिया गया था। बाद में तंवर कांग्रेस छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए थे। यह देखने वाली बात है कि कांग्रेस हुड्डा से कैसे निपटेगी, क्योंकि यह दिखा सकता है कि नेतृत्व बदलाव की मांग करने वालों और वफादारों के प्रति कैसा रवैया रखता है।
नई दिल्ली, हरियाणा कांग्रेस में भी संकट बरकरार है और अब खबर है कि मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की कवायद ने पार्टी को दबाव में ला दिया है। कहा जा रहा है कि हुड्डा प्रदेश कांग्रेस में नेतृत्व बदलाव की मांग कर रहे हैं और उन्होंने इस ओर कोशिशें भी तेज कर दी हैं। फिलहाल, हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कमान कुमारी शैलजा के हाथों में है। हाल ही में कांग्रेस ने दिल्ली में प्रदेश के नेताओं के साथ बैठक की थी।
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, पहले हुड्डा ने नई दिल्ली में हुई बैठक में समर्थक विधायकों के साथ पहुंचकर शक्ति प्रदर्शन किया। वहीं, गुरुवार को वे पार्टी के आंदोलन से भी गायब रहे। हुड्डा खेमा चाहता है कि हाईकमान शैलजा के स्थान पर दीपेंद्र हुड्डा को प्रदेश का अध्यक्ष बनाए। इसके बदले में पूर्व सीएम हुड्डा शायद कांग्रेस विधायक दल के नेता का पद छोड़ने और अपने पसंद के गैर-जाट नेता की इच्छा जाहिर कर सकते हैं। AICC के एक पदाधिकारी ने बताया, 'AICC हरियाणा कांग्रेस समेत मुद्दों पर चर्चाएं कर रही है और हमें उम्मीद है कि जल्दी समाधान मिलेगा।'
25 मार्च को राहुल गांधी की तरफ से बुलाई गई हरियाणा कांग्रेस नेताओं की बैठक असफल रही थी। इधर, सोमवार को दिल्ली में हुई सीएलपी की बैठक में हुड्डा अपने बेटे और कांग्रेस के 31 में से 23 विधायकों के साथ पहुंचे थे। खास बात है कि उसी दिन शैलजा ने भी हुड्डा समेत कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को चंडीगढ़ में बैठक के लिए बुलाया था, ताकि चंडीगढ़ के दर्जे को लेकर विधानसभा के विशेष सत्र पर चर्चा की जा सके।
दिल्ली में हुई सीएलपी की बैठक के बाद हुड्डा खेमा गुरुवार को हुए आंदोलन में भी शामिल नहीं हुआ। इसके बाद पार्टी को बगावत की आशंका हुई और नेताओं तक पहुंचना शुरू किया।
शैलजा भी जता चुकी हैं नाराजगी
राहुल गांधी की तरफ से बुलाई गई बैठक में 'वफादार' शैलजा ने कथित तौर पर शिकायत दर्ज कराई थी। उन्होंने कहा था कि हुड्डा खेमे के विरोध के चलते हाईकमान ने उन्हें पीसीसी और डीसीसी संगठनात्मक दल नहीं मिले और उन्हें 2019 में नियुक्ति के दौरान दलित और महिला पीसीसी चीफ के तौर पर दिखाने के बाद कमजोर बना दिया गया। कहा जा रहा है कि अगर शैलजा को पद छोड़ने के लिए कहा जाता है, तो उनकी प्रतिक्रिया पर खास गौर किया जाएगा।
शैलजा से पहले अशोक तंवर भी दलित थे और हुड्डा खेमे के साथ हुए तनाव के बाद उन्हें पद से हटा दिया गया था। बाद में तंवर कांग्रेस छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए थे। यह देखने वाली बात है कि कांग्रेस हुड्डा से कैसे निपटेगी, क्योंकि यह दिखा सकता है कि नेतृत्व बदलाव की मांग करने वालों और वफादारों के प्रति कैसा रवैया रखता है।