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News Patna:: बोचहां उपचुनाव से बढ़ा बिहार बीजेपी का संकट, शाह के दौरे से पहले सुशील मोदी ने भी उठा दिए सवाल:

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पटना, कुछ ही दिन पहले जहां बिहार में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) विधानसभा में संख्याबल बढ़ाकर सबसे बड़ी पार्टी बनी तो अटकलें लगने लगीं कि सूबे की कमान जल्द ही भगवा दल अपने हाथ में ले सकती है। लेकिन अब बोचहां उपचुनाव में हार ने पार्टी को परेशान कर दिया है। अपने मजबूत गढ़ में बीजेपी ने इस तरह हार की उम्मीद नहीं की थी। करीब 36 हजार वोट का फासला भाजपा को लंबे समय तक दर्द देता रहेगा। 

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल ने कहा है कि पार्टी ने बोचहां उपचुनाव नतीजों की समीक्षा की है और कमियों को दूर करने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएंगे। उन्होंने कहा, ''सभी पहलुओं पर चर्चा हुई है। लेकिन मैं इस मंच पर मीडिया के साथ इसे साझा नहीं कर सकता। पार्टी सभी पहलुओं को देख रही है।'' जायसवाल भले ही इस पर खुलकर बोलने से बचते रहे, लेकिन पूर्व उपमुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि एनडीए को ना सिर्फ बोचहां उपचुनाव बल्कि 24 सीटों पर हुए एमएलसी चुनाव नतीजों की समीक्षा करने की जरूरत है, जिसमें भाजपा-जेडीयू को 10 सीटें गंवानी पड़ी। 


सुशील मोदी ने कहा, ''एनडीए निश्चित तौर पर हार की समीक्षा करेगा और समय से आवश्यक कदम उठाएगा। आखिर बोचहां विधानसभा क्षेत्र की  एक-एक पंचायत में एनडीए विधायकों-मंत्रियों ने जनता से संपर्क किया था। पूरी ताकत लगाई गई थी। सरकार ने भी सभी वर्गों के विकास के लिए काम किये और सबका विश्वास जीतने की कोशिश की। इसके बाद भी एनडीए के मजबूत जनाधार अतिपिछड़ा वर्ग और सवर्ण समाज के एक वर्ग का वोट खिसक जाना अप्रत्याशित था। इसके पीछे क्या नाराजगी थी, इस पर एनडीए अवश्य मंथन करेगा। 2019 के लोकसभा चुनावों में एनडीए ने 40 में से 39 सीटों पर जीत हासिल की थी। क्या गलत हुआ और क्यों, एनडीए निश्चित रूप से इस पर गौर करेगा।'' 

नीतीश कुमार के बेहद करीबी समझे जाने वाले मोदी यहीं नहीं रुके और इशारा किया कि मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर दुविधा की वजह से तालमेल की कमी वोटरों के दूर जाने की एक वजह हो सकती है। उन्होंने कहा, ''इस बात की भी समीक्षा की जाएगी कि क्यों एमएलसी चुनाव और उपचुनाव में एनडीए के घटक दलों में 2019 जैसा समन्वय नही रहा, अगले लोकसभा चुनाव से पहले जरूरी सुधार के लिए अभी समय है।'' 
 
एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने नाम सार्वजनिक नहीं करने की इच्छा जाहिर करते हुए कहा कि मोदी के बयान और अमित शाह के दौरे से ठीक पहले की टाइमिंग को गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है, क्योंकि बीजेपी के बेस वोट में एक बिखराव साफ दिखा और आरजेडी को इसका फायदा मिला। 


उन्होंने कहा, ''ये पार्टी के लिए चेतावनी के सिग्नल हैं। केवल बिखराव की बात नहीं है, यह भी चिंता की बात है कि नए वोट नहीं जुड़ रहे हैं। मुकेश साहनी वाले प्रकरण के बाद निषाद खुश नहीं हैं और पशुपति कुमार पारस की पासवान काडर में चिराग पासवान जैसी स्वीकार्यता नहीं है। भूमिहार भी निराश हैं। ऐसे अलगाव के लिए महंगाई और अन्य मुद्दों को जिम्मेदार नहीं बताया जा सकता, क्योंकि इसके बावजूद चार राज्यों में बीजेपी ने हाल ही में जीत हासिल की है। बीजेपी और जेडीयू काटर में तालमेल की कमी से दोनों को नुकसान हुआ है और इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, ठीक करने की जरूरत है। यदि कुछ नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा पार्टी के रास्ते में आ रही है तो इसे प्रभावी ढंग से निपटने की जरूरत है। हिंदी बेल्ट में बिहार बीजेपी के लिए कमजोरी बना हुआ है। बीजेपी थिंक टैंक को इस पर काम करना चाहिए ताकि दुविधा लंबे समय तक बरकरार ना रहे।''


एएन  सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज के पूर्व डायरेक्टर डीएम दिवाकर ने कहा कि एनडीए का खराब प्रदर्शन आंतरिक टकराव है। बीजेपी और जेडीयू की ओर से दिए गए विरोधाभासी संदेशों से नुकसान हुआ। उन्होंने कहा, ''बिहार पिछड़ा हो सकता है, लेकिन दूर-दराज के इलाकों में भी लोगों के बीच राजनीतिक परिपक्वता है और दूसरे राज्यों के मुकाबले व्यवहार अलग होता है। मोदी ने जो साहसिक रूप से कहा है वह ठीक है। नीतीश कुमार से उनकी नजदीकी को बिहार के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता था, लेकिन इसे बीजेपी के विकास में बाधक दिखाया गया। सच यह है कि मोदी व्यावहारिक हैं और बिहार की त्रिकोणीय राजनीति और नीतीश कुमार की अपरिहार्यता को समझते हैं, जो किसी एक पार्टी को मतदाताओं पर पूरी तरह से हावी नहीं होने देती है।'' 

दिवाकर ने कहा कि इस परिणाम से नीतीश कुमार को भी बीजेपी की बढ़ती आक्रमता से राहत मिल सकती है, जिसने उन्हें असहज कर दिया था। उन्होंने कहा, ''बीजेपी 2024 की बड़ी तस्वीर देख रही है। यह नीतीश के लाभदायक हो सकता है, क्योंकि न तो भाजपा और न ही जद (यू) के पास उनका कोई विकल्प है। दर्जनों दावेदार हो सकते हैं, लेकिन वे दोनों ही संगठनों के लिए और मुश्किलें बढ़ा सकते हैं। बोचहां ने दोनों को जगाने का काम किया है। आरजेडी ने महंगाई और रोजगार जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरना जारी रखा है, जोकि आम लोगों के लिए चिंता की वजह हैं और इन्हें बहुत लंबे समय तक पीछे नहीं रखा जा सकता है।''



पटना, कुछ ही दिन पहले जहां बिहार में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) विधानसभा में संख्याबल बढ़ाकर सबसे बड़ी पार्टी बनी तो अटकलें लगने लगीं कि सूबे की कमान जल्द ही भगवा दल अपने हाथ में ले सकती है। लेकिन अब बोचहां उपचुनाव में हार ने पार्टी को परेशान कर दिया है। अपने मजबूत गढ़ में बीजेपी ने इस तरह हार की उम्मीद नहीं की थी। करीब 36 हजार वोट का फासला भाजपा को लंबे समय तक दर्द देता रहेगा। 

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल ने कहा है कि पार्टी ने बोचहां उपचुनाव नतीजों की समीक्षा की है और कमियों को दूर करने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएंगे। उन्होंने कहा, ''सभी पहलुओं पर चर्चा हुई है। लेकिन मैं इस मंच पर मीडिया के साथ इसे साझा नहीं कर सकता। पार्टी सभी पहलुओं को देख रही है।'' जायसवाल भले ही इस पर खुलकर बोलने से बचते रहे, लेकिन पूर्व उपमुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि एनडीए को ना सिर्फ बोचहां उपचुनाव बल्कि 24 सीटों पर हुए एमएलसी चुनाव नतीजों की समीक्षा करने की जरूरत है, जिसमें भाजपा-जेडीयू को 10 सीटें गंवानी पड़ी। 


सुशील मोदी ने कहा, ''एनडीए निश्चित तौर पर हार की समीक्षा करेगा और समय से आवश्यक कदम उठाएगा। आखिर बोचहां विधानसभा क्षेत्र की  एक-एक पंचायत में एनडीए विधायकों-मंत्रियों ने जनता से संपर्क किया था। पूरी ताकत लगाई गई थी। सरकार ने भी सभी वर्गों के विकास के लिए काम किये और सबका विश्वास जीतने की कोशिश की। इसके बाद भी एनडीए के मजबूत जनाधार अतिपिछड़ा वर्ग और सवर्ण समाज के एक वर्ग का वोट खिसक जाना अप्रत्याशित था। इसके पीछे क्या नाराजगी थी, इस पर एनडीए अवश्य मंथन करेगा। 2019 के लोकसभा चुनावों में एनडीए ने 40 में से 39 सीटों पर जीत हासिल की थी। क्या गलत हुआ और क्यों, एनडीए निश्चित रूप से इस पर गौर करेगा।'' 

नीतीश कुमार के बेहद करीबी समझे जाने वाले मोदी यहीं नहीं रुके और इशारा किया कि मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर दुविधा की वजह से तालमेल की कमी वोटरों के दूर जाने की एक वजह हो सकती है। उन्होंने कहा, ''इस बात की भी समीक्षा की जाएगी कि क्यों एमएलसी चुनाव और उपचुनाव में एनडीए के घटक दलों में 2019 जैसा समन्वय नही रहा, अगले लोकसभा चुनाव से पहले जरूरी सुधार के लिए अभी समय है।'' 
 
एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने नाम सार्वजनिक नहीं करने की इच्छा जाहिर करते हुए कहा कि मोदी के बयान और अमित शाह के दौरे से ठीक पहले की टाइमिंग को गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है, क्योंकि बीजेपी के बेस वोट में एक बिखराव साफ दिखा और आरजेडी को इसका फायदा मिला। 


उन्होंने कहा, ''ये पार्टी के लिए चेतावनी के सिग्नल हैं। केवल बिखराव की बात नहीं है, यह भी चिंता की बात है कि नए वोट नहीं जुड़ रहे हैं। मुकेश साहनी वाले प्रकरण के बाद निषाद खुश नहीं हैं और पशुपति कुमार पारस की पासवान काडर में चिराग पासवान जैसी स्वीकार्यता नहीं है। भूमिहार भी निराश हैं। ऐसे अलगाव के लिए महंगाई और अन्य मुद्दों को जिम्मेदार नहीं बताया जा सकता, क्योंकि इसके बावजूद चार राज्यों में बीजेपी ने हाल ही में जीत हासिल की है। बीजेपी और जेडीयू काटर में तालमेल की कमी से दोनों को नुकसान हुआ है और इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, ठीक करने की जरूरत है। यदि कुछ नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा पार्टी के रास्ते में आ रही है तो इसे प्रभावी ढंग से निपटने की जरूरत है। हिंदी बेल्ट में बिहार बीजेपी के लिए कमजोरी बना हुआ है। बीजेपी थिंक टैंक को इस पर काम करना चाहिए ताकि दुविधा लंबे समय तक बरकरार ना रहे।''


एएन  सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज के पूर्व डायरेक्टर डीएम दिवाकर ने कहा कि एनडीए का खराब प्रदर्शन आंतरिक टकराव है। बीजेपी और जेडीयू की ओर से दिए गए विरोधाभासी संदेशों से नुकसान हुआ। उन्होंने कहा, ''बिहार पिछड़ा हो सकता है, लेकिन दूर-दराज के इलाकों में भी लोगों के बीच राजनीतिक परिपक्वता है और दूसरे राज्यों के मुकाबले व्यवहार अलग होता है। मोदी ने जो साहसिक रूप से कहा है वह ठीक है। नीतीश कुमार से उनकी नजदीकी को बिहार के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता था, लेकिन इसे बीजेपी के विकास में बाधक दिखाया गया। सच यह है कि मोदी व्यावहारिक हैं और बिहार की त्रिकोणीय राजनीति और नीतीश कुमार की अपरिहार्यता को समझते हैं, जो किसी एक पार्टी को मतदाताओं पर पूरी तरह से हावी नहीं होने देती है।'' 

दिवाकर ने कहा कि इस परिणाम से नीतीश कुमार को भी बीजेपी की बढ़ती आक्रमता से राहत मिल सकती है, जिसने उन्हें असहज कर दिया था। उन्होंने कहा, ''बीजेपी 2024 की बड़ी तस्वीर देख रही है। यह नीतीश के लाभदायक हो सकता है, क्योंकि न तो भाजपा और न ही जद (यू) के पास उनका कोई विकल्प है। दर्जनों दावेदार हो सकते हैं, लेकिन वे दोनों ही संगठनों के लिए और मुश्किलें बढ़ा सकते हैं। बोचहां ने दोनों को जगाने का काम किया है। आरजेडी ने महंगाई और रोजगार जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरना जारी रखा है, जोकि आम लोगों के लिए चिंता की वजह हैं और इन्हें बहुत लंबे समय तक पीछे नहीं रखा जा सकता है।''



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