रायपुर। अब रायपुर, दुर्ग और भाटापारा रेलवे स्टेशनों
की सुरक्षा 'सुल्तान", 'मैक" और 'सिंबा" के हाथों में होगी। आप सोच रहे
होंगे कि भला ये 'सुल्तान", 'मैक" और 'सिंबा"आखिर कौन हैं? तो आपको बता दें
कि ये तीनों आरपीएफ के साथ मिलकर काम करने वाले स्निफर डाग हैं। अभी
इन्हें राजस्थान के अलवर में प्रशिक्षण के लिए भेजा गया है। आठ महीनों के
बाद जब ये लौटेंगे तब गांजा से लेकर बम-बारूद जैसे विस्फोटक और प्रतिबंधित
वस्तुओं की जब्ती करवाने में बड़ी भूमिका निभाएंगे। अधिकारियों का मानना है
कि इनके आने से यात्रियों की सुरक्षा में भी वृद्धि होगी। इनके लौटने पर
आरपीएफ के पास स्निफर डाग की संख्या बढ़कर छह हो जाएगी। अभी 'शेरू", 'जैकी"
और 'बांड" काम संभाल रहे हैं। बता दें कि रायपुर रेलवे
स्टेशन के एक दिन में 112 ट्रेनें गुजरती हैं। 50 हजार से अधिक लोग इनमें
यात्रा करते हैं। रायपुर रेलवे मंडल के अंतर्गत कुल 49 रेलवे स्टेशन की
सुरक्षा के लिए दो स्निफर और एक डाबर मैन को रायपुर में तैनात किया गया है।
रेलवे के सुरक्षा विभाग को आवश्यकता पड़ने पर इन्हें रायपुर से दुर्ग,
भाटापारा, दल्लीराजहरा तक लेकर जाना पड़ता है। घटना-दुर्घटना के समय इनको
लाने, ले जाने में बड़ा समय खर्च हो जाता है। इसलिए रेलवे के सुरक्षा विभाग ने रायपुर, दुर्ग और भाटापारा में भी स्निफर
डाग की स्थाई नियुक्ति करने का निर्णय लिया है। कुछ दिनों पहले ही तीन और
स्निफर डाग नागपुर से लाए गए हैं। प्रशिक्षण के बाद इनके लौटने पर आरपीएफ
के पास डाग्स की संख्या बढ़ जाएगी। उसके बाद इनसे ट्रेन में भी स्काडिंग
कराई जाएग। इससे ट्रेन से मादक पदार्थों की तस्करी पर लगाम लगेगा।
डाग को विस्फोटक, व्यक्ति, बारूद, खून और लाश की गंध से घटनास्थल या किसी
वस्तु तक पहुंचने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इन तीनों को कुछ दिनों पहले
ही नागपुर से रायपुर लाया गया है। ऐसे में इनसे काम लेने के लिए इन्हें
आवश्यक प्रशिक्षण देना आवश्यक है। अलवर में सीमा सुरक्षा बल का प्रशिक्षण
अन्य संस्थानों से अलग और एडवांस है। वहां प्रशिक्षण से आने के बाद विभाग
को इनसे बहुत सहायता मिलेगी। इन नन्हें खोजी डाग्स का नाम सुल्तान, मैक और
सिंबा रखा गया है। नाम पुकारते ही ये दौड़कर जवानों के पास आ जाते हैं।
'जैकी" और 'बांड" की दिनचर्या भी तय है। सुबह 4.50 बजे घंटी बजते ही ये
स्वत: ही उठ जाते है। आधे घंटे यानी सुबह 5 बजे के बाद इन्हें बैरक से बाहर
निकाला जाता है। उसके बाद 7 बजे तक इन्हें अभ्यास कराया जाता है। फिर
उन्हें ब्रेकफास्ट में अंडा और दूध दिया जाता है। इसके बाद उनकी साफ-सफाई
की जाती है। उनकी रोज ग्रुमिंग परेड 11 बजे तक चलती है। फिर 11.30 बजे लंच
हो जाता है।
आरपीएफ के पास कुल छह डाग हो गए। ये तीनों नए हैं। इनके अतिरिक्त अभी
'शेरू", 'जैकी" और 'बांड" आरपीएफ के लिए काम कर रहे हैं। इनमें शेरू और
जैकी, स्टेशनों में मादक पदार्थो की तस्करी रोकने में सहायता दे रहे हैं
जबकि 'बांड", आरपीएफ के साथ टे्रकिंग का काम कर रहा है। आवश्यकता पड़ने पर
'बांड" को आरपीएफ के साथ गश्त में भी भेजा जाता है। आरपीएफ के अधिकारियों
ने बताया कि ये तीनों अलवर से प्रशिक्षित हैं। बहुत सारे प्रकरण इनकी
सहायता से सुलझाए गए हैं। रायपुर आरपीएफ थाना प्रभारी एमके मुखर्जी ने कहा, स्टेशन पर सुरक्षा
व्यवस्था के लिए तीन स्निफर डाग तैनात किए जाएंगे। तीनों को प्रशिक्षण के
लिए राजस्थान के अलवर भेजा गया है। आठ महीने के प्रशिक्षण के बाद जब ये
लौटेंगे तो इन्हें यात्रियों की सुरक्षा में तैनात किया जाएगा।
रायपुर। अब रायपुर, दुर्ग और भाटापारा रेलवे स्टेशनों
की सुरक्षा 'सुल्तान", 'मैक" और 'सिंबा" के हाथों में होगी। आप सोच रहे
होंगे कि भला ये 'सुल्तान", 'मैक" और 'सिंबा"आखिर कौन हैं? तो आपको बता दें
कि ये तीनों आरपीएफ के साथ मिलकर काम करने वाले स्निफर डाग हैं। अभी
इन्हें राजस्थान के अलवर में प्रशिक्षण के लिए भेजा गया है। आठ महीनों के
बाद जब ये लौटेंगे तब गांजा से लेकर बम-बारूद जैसे विस्फोटक और प्रतिबंधित
वस्तुओं की जब्ती करवाने में बड़ी भूमिका निभाएंगे। अधिकारियों का मानना है
कि इनके आने से यात्रियों की सुरक्षा में भी वृद्धि होगी। इनके लौटने पर
आरपीएफ के पास स्निफर डाग की संख्या बढ़कर छह हो जाएगी। अभी 'शेरू", 'जैकी"
और 'बांड" काम संभाल रहे हैं। बता दें कि रायपुर रेलवे
स्टेशन के एक दिन में 112 ट्रेनें गुजरती हैं। 50 हजार से अधिक लोग इनमें
यात्रा करते हैं। रायपुर रेलवे मंडल के अंतर्गत कुल 49 रेलवे स्टेशन की
सुरक्षा के लिए दो स्निफर और एक डाबर मैन को रायपुर में तैनात किया गया है।
रेलवे के सुरक्षा विभाग को आवश्यकता पड़ने पर इन्हें रायपुर से दुर्ग,
भाटापारा, दल्लीराजहरा तक लेकर जाना पड़ता है। घटना-दुर्घटना के समय इनको
लाने, ले जाने में बड़ा समय खर्च हो जाता है। इसलिए रेलवे के सुरक्षा विभाग ने रायपुर, दुर्ग और भाटापारा में भी स्निफर
डाग की स्थाई नियुक्ति करने का निर्णय लिया है। कुछ दिनों पहले ही तीन और
स्निफर डाग नागपुर से लाए गए हैं। प्रशिक्षण के बाद इनके लौटने पर आरपीएफ
के पास डाग्स की संख्या बढ़ जाएगी। उसके बाद इनसे ट्रेन में भी स्काडिंग
कराई जाएग। इससे ट्रेन से मादक पदार्थों की तस्करी पर लगाम लगेगा।
डाग को विस्फोटक, व्यक्ति, बारूद, खून और लाश की गंध से घटनास्थल या किसी
वस्तु तक पहुंचने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इन तीनों को कुछ दिनों पहले
ही नागपुर से रायपुर लाया गया है। ऐसे में इनसे काम लेने के लिए इन्हें
आवश्यक प्रशिक्षण देना आवश्यक है। अलवर में सीमा सुरक्षा बल का प्रशिक्षण
अन्य संस्थानों से अलग और एडवांस है। वहां प्रशिक्षण से आने के बाद विभाग
को इनसे बहुत सहायता मिलेगी। इन नन्हें खोजी डाग्स का नाम सुल्तान, मैक और
सिंबा रखा गया है। नाम पुकारते ही ये दौड़कर जवानों के पास आ जाते हैं।
'जैकी" और 'बांड" की दिनचर्या भी तय है। सुबह 4.50 बजे घंटी बजते ही ये
स्वत: ही उठ जाते है। आधे घंटे यानी सुबह 5 बजे के बाद इन्हें बैरक से बाहर
निकाला जाता है। उसके बाद 7 बजे तक इन्हें अभ्यास कराया जाता है। फिर
उन्हें ब्रेकफास्ट में अंडा और दूध दिया जाता है। इसके बाद उनकी साफ-सफाई
की जाती है। उनकी रोज ग्रुमिंग परेड 11 बजे तक चलती है। फिर 11.30 बजे लंच
हो जाता है।
आरपीएफ के पास कुल छह डाग हो गए। ये तीनों नए हैं। इनके अतिरिक्त अभी
'शेरू", 'जैकी" और 'बांड" आरपीएफ के लिए काम कर रहे हैं। इनमें शेरू और
जैकी, स्टेशनों में मादक पदार्थो की तस्करी रोकने में सहायता दे रहे हैं
जबकि 'बांड", आरपीएफ के साथ टे्रकिंग का काम कर रहा है। आवश्यकता पड़ने पर
'बांड" को आरपीएफ के साथ गश्त में भी भेजा जाता है। आरपीएफ के अधिकारियों
ने बताया कि ये तीनों अलवर से प्रशिक्षित हैं। बहुत सारे प्रकरण इनकी
सहायता से सुलझाए गए हैं। रायपुर आरपीएफ थाना प्रभारी एमके मुखर्जी ने कहा, स्टेशन पर सुरक्षा
व्यवस्था के लिए तीन स्निफर डाग तैनात किए जाएंगे। तीनों को प्रशिक्षण के
लिए राजस्थान के अलवर भेजा गया है। आठ महीने के प्रशिक्षण के बाद जब ये
लौटेंगे तो इन्हें यात्रियों की सुरक्षा में तैनात किया जाएगा।