ब्रेन चिप को लेकर चर्चा में आई एलन मस्क की कंपनी न्यूरालिंक अब गंभीर
आरोपों के घेरे में है. कंपनी के लोगों ने ही कहा कि मस्क के दबाव के कारण
एनिमल टेस्टिंग की गति बढ़ानी पड़ी, जिसके कारण बहुत से जानवर मारे गए और
अब भी उनपर हिंसा हो रही है. अब यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ
एग्रीकल्चर ने इसपर जांच बैठा दी है.
इस बीच ये सवाल उठ रहा है कि ह्यूमन ट्रायल में तो लोगों की परमिशन भी
ली जाती है और कई मानक भी तय होते हैं, लेकिन एनिमल टेस्टिंग के समय
पशु-पक्षियों को कैसे चुना जाता है. क्या बच्चे-बूढ़े या बीमार जानवरों को
राहत मिलती है, या वे भी ट्रायल में फंस जाते हैं! और सबसे जरूरी बात, क्या
एनिमल टेस्टिंग का कोई ऑप्शन खोजा जा रहा है?
किन जानवरों पर हो रहा प्रयोग
आमतौर पर ह्यूमन ट्रायल से पहले हर प्रोडक्ट को पशु-पक्षियों पर टेस्ट किया
जाता है. इनमें बंदर, खरगोश, चूहे, मेंढक, मछली, सुअर, घोड़े, भेड़,
मछलियां और कई तरह के पक्षी शामिल हैं. पहले चिंपाजियों पर भी कई तरह की
जांच होती थी, लेकिन अब ज्यादातर देशों में इसपर बैन लग चुका. ये अलग बात
है कि इसके बाद भी बहुत से लैब चोरी-छिपे टेस्ट करते हैं
कहां से मिलते हैं टेस्टिंग के लिए पशु
टेस्टिंग के लिए लिए जाने वाले ज्यादातर एनिमल इसी उद्देश्य से तैयार किए
जाते हैं, यानी उन्हें प्रयोगों के लिए ही इस दुनिया में लाया जाता है. ऐसे
पशुओं के डीलर अलग होते हैं, जिनके पास इस काम के लिए लाइसेंस होता है.
इनके अलावा दूसरे डीलर भी होते हैं, जो गोपनीय तरीके से ये काम करते हैं,
हालांकि सरकारी लैब ऐसे लोगों की मदद नहीं लेती है. कई जानवर सीधे जंगलों
से भी उठाए जाते हैं, जिनमें चिड़िया और बंदर शामिल हैं.
कैसी होती है लैब में जिंदगी
टेस्टिंग के दौरान तो पशुओं को काफी तकलीफें मिलती ही हैं, उससे पहले यानी
प्री-टेस्टिंग भी वे अकेलापन और भूख झेलते हैं. आमतौर पर इन्हें स्टील के
पिंजरों में रखा जाता है, जहां कंफर्ट के नाम पर कुछ नहीं होता. यहां तक कि
दूसरे पशुओं पर टेस्टिंग के दौरान बाकी पशु उन्हें रोता-चीखता हुआ सुनते
हैं. वैसे टेस्टिंग के दौरान जख्मी होने या मौत पर जुर्माना है, लेकिन
ज्यादातर मामलों में इसका पता ही नहीं लग पाता.
प्रयोग खत्म होने के बाद जानवर का क्या होता है
टेस्टिंग से गुजर चुके पशु को मार दिया जाता है ताकि उसके ऊतक और अंगों की
आगे जांच हो सके, लेकिन कई बार एक ही जानवर पर लगातार कई सारे टेस्ट होते
हैं. इस लंबी प्रक्रिया के दौरान वे अपने-आप दम तोड़ देते हैं. वहीं
ज्यादातर केस में प्रयोग के साइड इफेक्ट के कारण वे मारे जाते हैं.
क्या कहता है कानून
हर देश में एनिमल टेस्टिंग पर अलग नियम-कायदे हैं. भारत की बात करें तो
आईपीसी के सेक्शन 428 और सेक्शन 429 के मुताबिक किसी भी पशु-पक्षी को मारने
पर सजा का प्रावधान है, चाहे वो पालतू हों, या जंगली. एक राहत की बात ये
है कि हमारे यहां कॉस्मेटिक्स के लिए एनिमल टेस्टिंग बैन है. ड्रग एंड
कॉस्मेटिक्स रूल इसकी इजाजत नहीं देता है कि क्रीम-पावडर या लिपस्टिक-शैंपू
के लिए किसी भी पशु-पक्षी को नुकसान पहुंचाया जाए.
क्या टेस्टिंग के लिए जानवरों का कोई विकल्प भी हो सकता है
ये सवाल काफी पहले से उठता रहा. हो सकता है कि आने वाले प्रयोग सीधे इंसानी
शरीर से ऊतक या ऑर्गन लेकर किए जाएं. इन्हें नॉन-एनिमल मैथड कहा जा रहा
है, जो कि ज्यादा सटीक बता सकेंगे कि कौन सी दवा शरीर पर कैसे रिएक्ट
करेगी, या किस सर्जरी में क्या ध्यान रखा जाए. ये ज्यादा महंगे भी नहीं, और
सबसे अच्छी बात कि ज्यादा मानवीय हैं.
एक तरीका है ऑर्गन-ऑन-चिप. ये छोटी-छोटी 3D चिप होती हैं, जो इंसानी
कोशिकाओं से बनती हैं और उसी तरह रिएक्ट करती हैं. ये बताती है कि कौन सा
केमिकल या ड्रग शरीर पर कितना अच्छा या खराब असर कर सकता है.
ब्रेन चिप को लेकर चर्चा में आई एलन मस्क की कंपनी न्यूरालिंक अब गंभीर
आरोपों के घेरे में है. कंपनी के लोगों ने ही कहा कि मस्क के दबाव के कारण
एनिमल टेस्टिंग की गति बढ़ानी पड़ी, जिसके कारण बहुत से जानवर मारे गए और
अब भी उनपर हिंसा हो रही है. अब यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ
एग्रीकल्चर ने इसपर जांच बैठा दी है.
इस बीच ये सवाल उठ रहा है कि ह्यूमन ट्रायल में तो लोगों की परमिशन भी
ली जाती है और कई मानक भी तय होते हैं, लेकिन एनिमल टेस्टिंग के समय
पशु-पक्षियों को कैसे चुना जाता है. क्या बच्चे-बूढ़े या बीमार जानवरों को
राहत मिलती है, या वे भी ट्रायल में फंस जाते हैं! और सबसे जरूरी बात, क्या
एनिमल टेस्टिंग का कोई ऑप्शन खोजा जा रहा है?
किन जानवरों पर हो रहा प्रयोग
आमतौर पर ह्यूमन ट्रायल से पहले हर प्रोडक्ट को पशु-पक्षियों पर टेस्ट किया
जाता है. इनमें बंदर, खरगोश, चूहे, मेंढक, मछली, सुअर, घोड़े, भेड़,
मछलियां और कई तरह के पक्षी शामिल हैं. पहले चिंपाजियों पर भी कई तरह की
जांच होती थी, लेकिन अब ज्यादातर देशों में इसपर बैन लग चुका. ये अलग बात
है कि इसके बाद भी बहुत से लैब चोरी-छिपे टेस्ट करते हैं
कहां से मिलते हैं टेस्टिंग के लिए पशु
टेस्टिंग के लिए लिए जाने वाले ज्यादातर एनिमल इसी उद्देश्य से तैयार किए
जाते हैं, यानी उन्हें प्रयोगों के लिए ही इस दुनिया में लाया जाता है. ऐसे
पशुओं के डीलर अलग होते हैं, जिनके पास इस काम के लिए लाइसेंस होता है.
इनके अलावा दूसरे डीलर भी होते हैं, जो गोपनीय तरीके से ये काम करते हैं,
हालांकि सरकारी लैब ऐसे लोगों की मदद नहीं लेती है. कई जानवर सीधे जंगलों
से भी उठाए जाते हैं, जिनमें चिड़िया और बंदर शामिल हैं.
कैसी होती है लैब में जिंदगी
टेस्टिंग के दौरान तो पशुओं को काफी तकलीफें मिलती ही हैं, उससे पहले यानी
प्री-टेस्टिंग भी वे अकेलापन और भूख झेलते हैं. आमतौर पर इन्हें स्टील के
पिंजरों में रखा जाता है, जहां कंफर्ट के नाम पर कुछ नहीं होता. यहां तक कि
दूसरे पशुओं पर टेस्टिंग के दौरान बाकी पशु उन्हें रोता-चीखता हुआ सुनते
हैं. वैसे टेस्टिंग के दौरान जख्मी होने या मौत पर जुर्माना है, लेकिन
ज्यादातर मामलों में इसका पता ही नहीं लग पाता.
प्रयोग खत्म होने के बाद जानवर का क्या होता है
टेस्टिंग से गुजर चुके पशु को मार दिया जाता है ताकि उसके ऊतक और अंगों की
आगे जांच हो सके, लेकिन कई बार एक ही जानवर पर लगातार कई सारे टेस्ट होते
हैं. इस लंबी प्रक्रिया के दौरान वे अपने-आप दम तोड़ देते हैं. वहीं
ज्यादातर केस में प्रयोग के साइड इफेक्ट के कारण वे मारे जाते हैं.
क्या कहता है कानून
हर देश में एनिमल टेस्टिंग पर अलग नियम-कायदे हैं. भारत की बात करें तो
आईपीसी के सेक्शन 428 और सेक्शन 429 के मुताबिक किसी भी पशु-पक्षी को मारने
पर सजा का प्रावधान है, चाहे वो पालतू हों, या जंगली. एक राहत की बात ये
है कि हमारे यहां कॉस्मेटिक्स के लिए एनिमल टेस्टिंग बैन है. ड्रग एंड
कॉस्मेटिक्स रूल इसकी इजाजत नहीं देता है कि क्रीम-पावडर या लिपस्टिक-शैंपू
के लिए किसी भी पशु-पक्षी को नुकसान पहुंचाया जाए.
क्या टेस्टिंग के लिए जानवरों का कोई विकल्प भी हो सकता है
ये सवाल काफी पहले से उठता रहा. हो सकता है कि आने वाले प्रयोग सीधे इंसानी
शरीर से ऊतक या ऑर्गन लेकर किए जाएं. इन्हें नॉन-एनिमल मैथड कहा जा रहा
है, जो कि ज्यादा सटीक बता सकेंगे कि कौन सी दवा शरीर पर कैसे रिएक्ट
करेगी, या किस सर्जरी में क्या ध्यान रखा जाए. ये ज्यादा महंगे भी नहीं, और
सबसे अच्छी बात कि ज्यादा मानवीय हैं.
एक तरीका है ऑर्गन-ऑन-चिप. ये छोटी-छोटी 3D चिप होती हैं, जो इंसानी
कोशिकाओं से बनती हैं और उसी तरह रिएक्ट करती हैं. ये बताती है कि कौन सा
केमिकल या ड्रग शरीर पर कितना अच्छा या खराब असर कर सकता है.