कांग्रेस सरकार खुद अब यह मानती है कि प्रदेश की कानून-व्यवस्था उसके नियंत्रण से बाहर चली गई है : अरूण साव:

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रायपुर। भाजपा कार्यालय एकात्म परिसर में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव, पूर्व सीएम डॉ रमन सिंह और पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने प्रेस कांफ्रेंस ली। जिसमें उन्होंने ने राज्य सरकार पर जमकर निशाना साधा है।

अरुण साव और रमन सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने एक बार फिर से आपातकाल लगाने की साजिश रची है। अपने साम्प्रदायिक तुष्टीकरण की राजनीति के तहत उसने प्रदेश में धर्मांतरण को बढ़ावा देने के लिए ‘रासुका’ लगा दिया है। अत्यधिक असामान्य परिस्थितियों में उठाये जाने वाले इस कदम ने कांग्रेस की विभाजनकारी राजनीति की पोल खोल दी है। आप सभी जानते हैं कि भाजपा द्वारा पूर्व में कानून-व्यवस्था की खराब स्थिति के बारे में लगातार मामला उठाया जाता रहा है, तब कांग्रेस यह डींगें हांकती थी कि प्रदेश में सब कुछ समान्य है और कानून-व्यवस्था बेहतर है। अब आखिर क्या ऐसी परिस्थितियां पैदा हो गयी यह गंभीर कदम उठाना पड़ा। क्या कांग्रेस सरकार खुद भी अब यह मानती है कि प्रदेश की कानून-व्यस्था उसके नियंत्रण से बाहर चला गया है और लॉ एंड आर्डर मेंटेन रखने के अपने मूल दायित्व को निभाने में सरकार विफल हुई है ?

कांग्रेस स्पष्ट तौर पर छत्तीसगढ़ में तुष्टीकरण और धर्मांतरण के एजेंडे पर काम कर रही है। किसी सरकार का काम धर्म और संस्कृति को कुचलना तथा धर्मान्तरण को बढ़ावा देना नहीं होता, लेकिन छत्तीसगढ़ में कांग्रेस धर्मांतरण के पक्ष में अपने अधिकार का सीधे दुरुपयोग कर रही है। वह मिशनरियों के हाथ में खेल रही है।

छत्तीसगढ़ में अघोषित आपातकाल :: छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल ने अघोषित आपातकाल लागू करने की शुरुआत लोकतांत्रिक आंदोलनों को कुचलने के लिए कानून बना कर काफी पहले कर दी थी लेकिन इससे जनता के सभी वर्गों का आक्रोश दोगुना हो गया। इससे घबराकर उन्होंने रासुका के बहाने आपातकाल जैसी अलोकतांत्रिक स्थिति का निर्माण कर दिया है। जब राज्य सरकार मान रही है कि उससे राज्य की कानून व्यवस्थाए नहीं संभल रही है तो उसे अपनी विफलता स्वीकार करते हुए कुर्सी छोड़ देना चाहिए।

मिशनरी के सामने समर्पण :: छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने वास्तव में मिशनरी के सामने समर्पण कर दिया है। प्रत्यक्ष प्रमाण है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल दिल्ली जाकर ईसाई धर्म के नेताओं के सामने सफाई दे आये हैं कि वे उनके साथ खड़े हैं। मुख्यमंत्री का यह कृत्य साबित कर रहा है कि वे उनके के प्रभाव में हैं। क्या कारण है? कारण स्पष्ट है कि सोनिया गांधी के दबाव में या फिर सोनिया गांधी को प्रसन्न करने के लिए यह पक्षपात किया जा रहा है। मुख्यमंत्री अपना सिंहासन बचाने के लिए ईसाई मिशनरी की शरण में हैं।

आदिवासी संस्कृति कुचलने की साजिश :: मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रासुका के जरिये आदिवासी संस्कृति को कुचलने का घृणित षड्यंत्र रचा है। वे चाहते हैं कि आदिवासी संस्कृति समाप्त हो जाये। आदिवासी समाज ईसाई समुदाय में कन्वर्ट हो जाये और चर्च के प्रभाव में आ जाए। ऐसा लगता है कि सुनियोजित षड्यंत्र के तहत ही आदिवासी समाज में धर्मांतरण के जरिये विखंडन और वर्ग संघर्ष का खाका तैयार किया गया है। आदिवासी संस्कृति के विरुद्ध भूपेश बघेल के बेहद खतरनाक इरादों को यह रासुका व्यक्त कर रहा है। अपनी संस्कृति को बचाने में लगे आदिवासियों के संघर्ष को कुचलने के लिए उन्हें बेवजह जेल में डालने का इंतजाम किया गया है। ताकि आदिवासी समाज को धर्मांतरण का विरोध करने से रोका जा सके।

विभिन्न आंदोलनों का दमन :: भूपेश बघेल सरकार द्वारा रासुका के दुरूपयोग के पीछे जो कारण हैं, उनमें एक अहम वजह यह है कि हर मोर्चे पर पूरी तरह विफल सरकार के खिलाफ जबरदस्त विरोध और असंतोष फैला हुआ है। सभी वर्ग इस सरकार की वादाखिलाफी के विरुद्ध आंदोलित हैं। कर्मचारियों से लेकर, शिक्षित बेरोजगार युवा सड़क पर उतर रहे हैं। धरना दे रहे हैं। प्रदर्शन कर रहे हैं। सरकार भयभीत है। विरोध के सभी स्वर कुचलने तैयार है। इसीलिए पूरे प्रदेश में रासुका लागू किया है कि कहीं भी किसी भी प्रदर्शन में सरकार का लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करने वालों को जेल में ठूंस दिया जाए। भूपेश बघेल रासुका के दम पर चुनाव जीतना चाहते हैं। आज अनियमित कर्मचारी, संविदा कर्मचारी, स्वास्थ्य कर्मचारी, पंचायत कर्मचारी से लेकर भर्ती के लिए युवा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। ऐसा कोई वर्ग नहीं है जो इस सरकार से जरा सा भी संतुष्ट हो। इसलिए भूपेश बघेल ने तानाशाही फरमान जारी किया है।


रायपुर। भाजपा कार्यालय एकात्म परिसर में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव, पूर्व सीएम डॉ रमन सिंह और पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने प्रेस कांफ्रेंस ली। जिसमें उन्होंने ने राज्य सरकार पर जमकर निशाना साधा है।

अरुण साव और रमन सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने एक बार फिर से आपातकाल लगाने की साजिश रची है। अपने साम्प्रदायिक तुष्टीकरण की राजनीति के तहत उसने प्रदेश में धर्मांतरण को बढ़ावा देने के लिए ‘रासुका’ लगा दिया है। अत्यधिक असामान्य परिस्थितियों में उठाये जाने वाले इस कदम ने कांग्रेस की विभाजनकारी राजनीति की पोल खोल दी है। आप सभी जानते हैं कि भाजपा द्वारा पूर्व में कानून-व्यवस्था की खराब स्थिति के बारे में लगातार मामला उठाया जाता रहा है, तब कांग्रेस यह डींगें हांकती थी कि प्रदेश में सब कुछ समान्य है और कानून-व्यवस्था बेहतर है। अब आखिर क्या ऐसी परिस्थितियां पैदा हो गयी यह गंभीर कदम उठाना पड़ा। क्या कांग्रेस सरकार खुद भी अब यह मानती है कि प्रदेश की कानून-व्यस्था उसके नियंत्रण से बाहर चला गया है और लॉ एंड आर्डर मेंटेन रखने के अपने मूल दायित्व को निभाने में सरकार विफल हुई है ?

कांग्रेस स्पष्ट तौर पर छत्तीसगढ़ में तुष्टीकरण और धर्मांतरण के एजेंडे पर काम कर रही है। किसी सरकार का काम धर्म और संस्कृति को कुचलना तथा धर्मान्तरण को बढ़ावा देना नहीं होता, लेकिन छत्तीसगढ़ में कांग्रेस धर्मांतरण के पक्ष में अपने अधिकार का सीधे दुरुपयोग कर रही है। वह मिशनरियों के हाथ में खेल रही है।

छत्तीसगढ़ में अघोषित आपातकाल :: छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल ने अघोषित आपातकाल लागू करने की शुरुआत लोकतांत्रिक आंदोलनों को कुचलने के लिए कानून बना कर काफी पहले कर दी थी लेकिन इससे जनता के सभी वर्गों का आक्रोश दोगुना हो गया। इससे घबराकर उन्होंने रासुका के बहाने आपातकाल जैसी अलोकतांत्रिक स्थिति का निर्माण कर दिया है। जब राज्य सरकार मान रही है कि उससे राज्य की कानून व्यवस्थाए नहीं संभल रही है तो उसे अपनी विफलता स्वीकार करते हुए कुर्सी छोड़ देना चाहिए।

मिशनरी के सामने समर्पण :: छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने वास्तव में मिशनरी के सामने समर्पण कर दिया है। प्रत्यक्ष प्रमाण है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल दिल्ली जाकर ईसाई धर्म के नेताओं के सामने सफाई दे आये हैं कि वे उनके साथ खड़े हैं। मुख्यमंत्री का यह कृत्य साबित कर रहा है कि वे उनके के प्रभाव में हैं। क्या कारण है? कारण स्पष्ट है कि सोनिया गांधी के दबाव में या फिर सोनिया गांधी को प्रसन्न करने के लिए यह पक्षपात किया जा रहा है। मुख्यमंत्री अपना सिंहासन बचाने के लिए ईसाई मिशनरी की शरण में हैं।

आदिवासी संस्कृति कुचलने की साजिश :: मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रासुका के जरिये आदिवासी संस्कृति को कुचलने का घृणित षड्यंत्र रचा है। वे चाहते हैं कि आदिवासी संस्कृति समाप्त हो जाये। आदिवासी समाज ईसाई समुदाय में कन्वर्ट हो जाये और चर्च के प्रभाव में आ जाए। ऐसा लगता है कि सुनियोजित षड्यंत्र के तहत ही आदिवासी समाज में धर्मांतरण के जरिये विखंडन और वर्ग संघर्ष का खाका तैयार किया गया है। आदिवासी संस्कृति के विरुद्ध भूपेश बघेल के बेहद खतरनाक इरादों को यह रासुका व्यक्त कर रहा है। अपनी संस्कृति को बचाने में लगे आदिवासियों के संघर्ष को कुचलने के लिए उन्हें बेवजह जेल में डालने का इंतजाम किया गया है। ताकि आदिवासी समाज को धर्मांतरण का विरोध करने से रोका जा सके।

विभिन्न आंदोलनों का दमन :: भूपेश बघेल सरकार द्वारा रासुका के दुरूपयोग के पीछे जो कारण हैं, उनमें एक अहम वजह यह है कि हर मोर्चे पर पूरी तरह विफल सरकार के खिलाफ जबरदस्त विरोध और असंतोष फैला हुआ है। सभी वर्ग इस सरकार की वादाखिलाफी के विरुद्ध आंदोलित हैं। कर्मचारियों से लेकर, शिक्षित बेरोजगार युवा सड़क पर उतर रहे हैं। धरना दे रहे हैं। प्रदर्शन कर रहे हैं। सरकार भयभीत है। विरोध के सभी स्वर कुचलने तैयार है। इसीलिए पूरे प्रदेश में रासुका लागू किया है कि कहीं भी किसी भी प्रदर्शन में सरकार का लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करने वालों को जेल में ठूंस दिया जाए। भूपेश बघेल रासुका के दम पर चुनाव जीतना चाहते हैं। आज अनियमित कर्मचारी, संविदा कर्मचारी, स्वास्थ्य कर्मचारी, पंचायत कर्मचारी से लेकर भर्ती के लिए युवा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। ऐसा कोई वर्ग नहीं है जो इस सरकार से जरा सा भी संतुष्ट हो। इसलिए भूपेश बघेल ने तानाशाही फरमान जारी किया है।


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