विशेष टिप्पणी :: रक्त रंजित होते छत्तीसगढ़ की सड़कें, बिछड़ रहे हैं अपने:

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विगत दो-चार माह से यह देखने को मिल रहा है कि छत्तीसगढ़ जैसे शांत राज्य में रोड एक्सीडेंट अशांत का बहुत बड़ा कारण बन कर उभर रहा है। आये दिन सड़क दुर्घटना में बच्चे, बड़े और वयस्क अपनी जान गंवा रहे हैं। कभी स्कूल बस , कभी बच्चों से भरी ऑटो, दो पहिया, चार पहिया आये दिन दुर्घटना का शिकार हो रहे हैं। असमय इनकी जान चले जा रही है।

हाईवे पर दौड़ती अधिक स्पीड में गाड़ियां :: अधिकतर यह देखा गया और जा रहा है कि शहर के आउटर से लगे हाईवे पर गाड़ियों की स्पीड नॉर्मल से काफी ज्यादा होती है और उनके बाजू से निकलने पर आवाज ऐसा महसूस होता है जैसे कि अब मार दे टक्कर। रायपुर के तेलीबांधा थाने के बाद, पं रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के बाद, खमतराई वाले रास्ते, मोवा थाने के बाद व आदि सड़कों पर लोग इस तरह गाड़ियों को दौड़ाते हैं जैसे हवाई जहाज दौड़ा रहे हो। कोई नकेल नहीं.... न कोई स्पीड नापने वाली मशीन व आदि। ऐसे में कभी भी गाड़ी डगमगा सकता है और दुर्घटना हो सकती है।

शहर के अंदर दौड़ते ऑटो / दोपहिया :: शहर के अंदर ऑटों के कारण गाड़ी चलाना मुश्किल होते जा रहा है। उनका कोई निर्धारित स्टॉपेज नहीं है जहां सलीके से वे वहां सवारी उतरे और सवारी उठाये। जब जहां देखा टेड़ा कर ऑटो खड़ा कर देते हैं और पीछे चलने वाली गाड़ी को तुरंत ब्रेक मरना होता है और कभी कभी तो व्यक्ति गिर जाता है और चोट भी लगती है। इन ऑटो वालों और जोर से हॉर्न बजाने वालों पर कौन नकेल कसेगा ? अधिकतर शहर के अंदर चौराहों से ट्रैफिक पुलिस नदारद रहती हुई दिखाई देती है।

बच्चे और कॉलेज स्टूडेंट :: यह देखा गया है कि माता पिता कम उम्र में ही बच्चों को स्कूटर या मोटर साईकल दे देते हैं जिससे वे उससे स्कूल, ट्यूशन, कॉलेज जाए। इन बच्चों के द्वारा न तो हेलमेट का इस्तेमाल किया जाता है और न ही लिमिटेड स्पीड में गाड़ी चलाते हैं। कोई यदि धीरे भी चलाये तो हाई स्पीड वाला कभी भी बैलेंस खोकर या कट मारते वक्त दुर्घटना को न्योता दे सकता है। प्रत्येक का जीवन कीमती है खासकर बच्चों का जिन्हें अभी बहुत दूर तक जाना है। आज कल के बच्चों में जिद्दी पना भी बहुत देखने को मिलता है जिनके जिद के सामने माता पिता बेबस हो जाते हैं। चाहिए मतलब दो पहिया चाहिए।

यह भी देखा गया है कि अधिकतर बच्चे 10वीं के बाद 11वीं से ही स्कूटर या बाइक पर स्कूल जाते हैं जबकि स्कूल बस, ऑटो, स्कूल वैन उपलब्ध है, उसके बावजूद बच्चों को स्कूटर या बाइक से ही स्कूल जाना है। इस उम्र में इन्हें स्पीड लिमिट शायद ही पता हो। ये भी देखा गया है आपस में रेसिंग भी लगाते हैं। अब दुर्घटना या कोई घटना न हो जाये कोई कह सकता है क्या ? बच्चों का कॉउंसलिंग बहुत जरूरी है साथ ही स्कूल प्रबंधन को इस पर एक्शन लेना चाहिए। स्कूल प्रबंधन को भी स्ट्रिक्ट होना होगा तभी इस पर सफलता पाई जा सकती है।

जबरदस्ती हॉर्न बजाना :: बिना किसी कारण के रेड लाइट में भी खड़े वाहनों द्वारा जबरदस्ती का हॉर्न बजाते हुए दिख जाते हैं जैसे कि सिग्नल ग्रीन होते ही वह जेट स्पीड पकड़ लेगा और आगे निकल जायेगा। दूसरा कॉलेज के अधिकतर विद्यार्थियों स्कूटर या बाइक में सवार होकर हॉर्न बजाते हुए कट मारते या आगे जाने की होड़ के कारण जबरदस्ती हॉर्न बजाते हैं जिससे सामने वाला व्यक्ति विचलित या डर जाता है । इस कारण से भी दुर्घटना घटती है। इनके साथ छोटा हाथी, ऑटो आदि तो हैं ही।

रास्ते को जाम कर खरीदी करना :: यह अमूमन छग के प्रत्येक शहरों में होता होगा लेकिन रायपुर में कुछ ज्यादा ही होता है। शाम के समय शहर के अंदर में मार्केट एरिया, बिज़नेस एरिया के पास इस तरह गाड़ी खड़ी कर खरीदारी करते हैं लोग जो अनायास ही दिख जाएंगे। इन लोगों के कारण रास्ते और सकरी हो जाते हैं। दूसरा ठीक मेन रास्ते के किनारे शराब दुकान का होना भी रास्ते को सकरी कर देता है तथा पीकर लड़खड़ाते हुए रोड क्रॉस करते हैं। इन सब पर नकेल कसने वाला कोई दिखता ही नहीं। 

लोग जब तक इस तरह की हरकतें बन्द नहीं करेंगे तब तक न तो जाम से छुटकारा मिल सकता है और न ही हॉर्न के आवाज से। एक फैशन रायपुर में दिख रहा है कि उल्टी दिशा से आना यानी शार्ट कट मारना। ये जैसे शहर के अंदर दिखता है वैसा ही नेशनल हाईवे और नवा रायपुर में दिखता है। अब इन्हें कौन समझाए..... 



विगत दो-चार माह से यह देखने को मिल रहा है कि छत्तीसगढ़ जैसे शांत राज्य में रोड एक्सीडेंट अशांत का बहुत बड़ा कारण बन कर उभर रहा है। आये दिन सड़क दुर्घटना में बच्चे, बड़े और वयस्क अपनी जान गंवा रहे हैं। कभी स्कूल बस , कभी बच्चों से भरी ऑटो, दो पहिया, चार पहिया आये दिन दुर्घटना का शिकार हो रहे हैं। असमय इनकी जान चले जा रही है।

हाईवे पर दौड़ती अधिक स्पीड में गाड़ियां :: अधिकतर यह देखा गया और जा रहा है कि शहर के आउटर से लगे हाईवे पर गाड़ियों की स्पीड नॉर्मल से काफी ज्यादा होती है और उनके बाजू से निकलने पर आवाज ऐसा महसूस होता है जैसे कि अब मार दे टक्कर। रायपुर के तेलीबांधा थाने के बाद, पं रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के बाद, खमतराई वाले रास्ते, मोवा थाने के बाद व आदि सड़कों पर लोग इस तरह गाड़ियों को दौड़ाते हैं जैसे हवाई जहाज दौड़ा रहे हो। कोई नकेल नहीं.... न कोई स्पीड नापने वाली मशीन व आदि। ऐसे में कभी भी गाड़ी डगमगा सकता है और दुर्घटना हो सकती है।

शहर के अंदर दौड़ते ऑटो / दोपहिया :: शहर के अंदर ऑटों के कारण गाड़ी चलाना मुश्किल होते जा रहा है। उनका कोई निर्धारित स्टॉपेज नहीं है जहां सलीके से वे वहां सवारी उतरे और सवारी उठाये। जब जहां देखा टेड़ा कर ऑटो खड़ा कर देते हैं और पीछे चलने वाली गाड़ी को तुरंत ब्रेक मरना होता है और कभी कभी तो व्यक्ति गिर जाता है और चोट भी लगती है। इन ऑटो वालों और जोर से हॉर्न बजाने वालों पर कौन नकेल कसेगा ? अधिकतर शहर के अंदर चौराहों से ट्रैफिक पुलिस नदारद रहती हुई दिखाई देती है।

बच्चे और कॉलेज स्टूडेंट :: यह देखा गया है कि माता पिता कम उम्र में ही बच्चों को स्कूटर या मोटर साईकल दे देते हैं जिससे वे उससे स्कूल, ट्यूशन, कॉलेज जाए। इन बच्चों के द्वारा न तो हेलमेट का इस्तेमाल किया जाता है और न ही लिमिटेड स्पीड में गाड़ी चलाते हैं। कोई यदि धीरे भी चलाये तो हाई स्पीड वाला कभी भी बैलेंस खोकर या कट मारते वक्त दुर्घटना को न्योता दे सकता है। प्रत्येक का जीवन कीमती है खासकर बच्चों का जिन्हें अभी बहुत दूर तक जाना है। आज कल के बच्चों में जिद्दी पना भी बहुत देखने को मिलता है जिनके जिद के सामने माता पिता बेबस हो जाते हैं। चाहिए मतलब दो पहिया चाहिए।

यह भी देखा गया है कि अधिकतर बच्चे 10वीं के बाद 11वीं से ही स्कूटर या बाइक पर स्कूल जाते हैं जबकि स्कूल बस, ऑटो, स्कूल वैन उपलब्ध है, उसके बावजूद बच्चों को स्कूटर या बाइक से ही स्कूल जाना है। इस उम्र में इन्हें स्पीड लिमिट शायद ही पता हो। ये भी देखा गया है आपस में रेसिंग भी लगाते हैं। अब दुर्घटना या कोई घटना न हो जाये कोई कह सकता है क्या ? बच्चों का कॉउंसलिंग बहुत जरूरी है साथ ही स्कूल प्रबंधन को इस पर एक्शन लेना चाहिए। स्कूल प्रबंधन को भी स्ट्रिक्ट होना होगा तभी इस पर सफलता पाई जा सकती है।

जबरदस्ती हॉर्न बजाना :: बिना किसी कारण के रेड लाइट में भी खड़े वाहनों द्वारा जबरदस्ती का हॉर्न बजाते हुए दिख जाते हैं जैसे कि सिग्नल ग्रीन होते ही वह जेट स्पीड पकड़ लेगा और आगे निकल जायेगा। दूसरा कॉलेज के अधिकतर विद्यार्थियों स्कूटर या बाइक में सवार होकर हॉर्न बजाते हुए कट मारते या आगे जाने की होड़ के कारण जबरदस्ती हॉर्न बजाते हैं जिससे सामने वाला व्यक्ति विचलित या डर जाता है । इस कारण से भी दुर्घटना घटती है। इनके साथ छोटा हाथी, ऑटो आदि तो हैं ही।

रास्ते को जाम कर खरीदी करना :: यह अमूमन छग के प्रत्येक शहरों में होता होगा लेकिन रायपुर में कुछ ज्यादा ही होता है। शाम के समय शहर के अंदर में मार्केट एरिया, बिज़नेस एरिया के पास इस तरह गाड़ी खड़ी कर खरीदारी करते हैं लोग जो अनायास ही दिख जाएंगे। इन लोगों के कारण रास्ते और सकरी हो जाते हैं। दूसरा ठीक मेन रास्ते के किनारे शराब दुकान का होना भी रास्ते को सकरी कर देता है तथा पीकर लड़खड़ाते हुए रोड क्रॉस करते हैं। इन सब पर नकेल कसने वाला कोई दिखता ही नहीं। 

लोग जब तक इस तरह की हरकतें बन्द नहीं करेंगे तब तक न तो जाम से छुटकारा मिल सकता है और न ही हॉर्न के आवाज से। एक फैशन रायपुर में दिख रहा है कि उल्टी दिशा से आना यानी शार्ट कट मारना। ये जैसे शहर के अंदर दिखता है वैसा ही नेशनल हाईवे और नवा रायपुर में दिखता है। अब इन्हें कौन समझाए..... 



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