लोकसभा के बाद तय होगी पचौरी, विशाल और संजय की भाजपा में भूमिका:

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भोपाल । मप्र कांग्रेस के तीन कद्दावर नेताओं के टूूटने
के बाद पार्टी को एक बड़ा नुकसान तो हुआ है, लेकिन इन नेताओं को भाजपा क्या
जवाबदारी देगी, इस बारे में अभी तय नहीं हो पाया है। भाजपा के
पदाधिकारियों का कहना है कि लोकसभा चुनाव के बाद ही सुरेश पचौरी, विशाल
पटेल और संजय शुक्ला की भूमिका तय की जाएगी।

हालांकि अभी भी कांग्रेस से भाजपा में आए कई नेताओं को अपना मुकाम नहीं मिल
पाया है। कुछ खास नेताओं को ही पार्टी की नगर टीम में जगह मिली तो तुलसी
सिलावट मंत्री और योगेश गेंदर तथा मनोज मिश्रा जैसे नेताओं को पार्षद का
चुनाव लड़वाया गया। बाकी कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए नेताओं को अभी तक
भाजपा ने कोई बड़ी जवाबदारी नहीं दी है। कल विशाल पटेल और संजय शुक्ला के
पार्टी में आने के बाद तरह-तरह की चर्चाएं चलने लगीं। चूंकि दोनों ही नेता
कांग्रेस के बड़े और कद्दावर नेता रहे हैं, इसलिए उन्हें स्थानीय स्तर पर
तो कोई पद नहीं दिया जाएगा। अगर दोनों नेताओं के कद की बात की जाए तो
उन्हें प्रदेश कार्यसमिति में मनोनीत किया जा सकता है। वैसे भी दोनों
नेताओं को अब भाजपा की रीति-नीति सीखना होगी। भले ही संजय शुक्ला कह रहे
हैं कि मंै अपने परिवार में लौट आया हूं, लेकिन आज तक उन्होंने पार्टी का
काम नहीं किया है। यही स्थिति विशाल पटेल की भी है। वे भी देपालपुर में ही
बंधकर रह गए थे। उनके पिता जगदीश पटेल यहां से विधायक रहे हैं और उनकी मां
सुलोचना पटेल भी जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं। एक तरह से उनका अभी तक
का पूरा जीवन कांगे्रस में ही बीता है तो उन्हें भी भाजपा से बहुत कुछ
सीखना होगा। इसलिए माना जा रहा है कि दोनों नेताओं को लोकसभा चुनाव में
चुनाव प्रचार में शामिल किया जाएगा और उसके बाद ही कुछ जवाबदारी दी जा सकती
है।

भाजपाई खुश हो या न हो, लेकिन कांग्रेसी तो खुश हैं

भले ही कांग्रेस के दोनों पूर्व विधायकों के भाजपा में आने के बाद कुछ
भाजपाइयों को अपने राजनीतिक भविष्य की चिंता सताने लगी हो और वे खुश नहीं
हुए हो, लेकिन 1 नंबर और देपालपुर विधानसभा के कुछ कांग्रेसियों के चेहरे
पर राजनीतिक चमक देखने को मिल रही है। 1 नंबर विधानसभा में संजय शुक्ला तीन
महीने पहले विधायक थे। वैसे इस विधानसभा में कांग्रसे का यादव गुट हावी
रहा है और यहां से यादव परिवार के स्व. रामलाल यादव उर्फ भल्लू भैया एक बार
विधायक रहे हैं। हालांकि उसके पहले ललित जैन के हाथ में यह सीट थी, जिसके
बीच एक बार लालचंद मित्तल विधायक रहे थे। बाद में उषा ठाकुर को यहां से
लड़ाया गया था। उषा का टिकट कटने के बाद दो बार यहां से सुदर्शन गुप्ता
विधायक रहे हैं। वैसे यह सीट भाजपा की ही रही, लेकिन सुदर्शन गुप्ता को
हराकर संजय शुक्ला ने इस पर कब्जा कर लिया था, लेकिन पिछले साल चुनाव में
कैलाश विजयवर्गीय ने यह सीट फिर से भाजपा की झोली में डाल दी। शुक्ला के
भाजपा में जाने के बाद अब यहां से एक बार फिर यादव खेमा सक्रिय होगा। खैर
उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। यहां से दीपू यादव जैसे नेता
अब खुलकर सामने आ सकते हैं और कांग्रेस उन्हें आने वाले विधानसभा चुनाव में
कोई जवाबदारी दे सकती है। यही स्थिति देपालपुर विधानसभा की भी है। विशाल
पटेल का परिवार लंबे समय से यहां सक्रिय है। हालांकि बीच में इस सीट से
सत्यनारायण पटेल भी विधायक रहे हैं और उनके भाई राधेश्याम पटेल अभी भी यहां
सक्रिय हैं। हो सकता है एक बार फिर पटेल परिवार यहां अपनी पुरानी जड़ें
बाहर निकालने में कामयाब रहे। हालांकि पिछले चुनाव में कांग्रेस विरोधी काम
करने का आरोप लगाकर यहां से कांग्रेस मोतीसिंह पटेल जैसे नेता को 3 महीने
के लिए बाहर कर चुकी थी, लेकिन कल ही उनका निलंबन वापस ले लिया गया। यहां
से मोतीसिंह भी विधायक का चुनाव लडऩा चाहते थे, लेकिन विशाल पटेल के आगे
उनकी नहीं चली। पटेल परिवार के सक्रिय हो जाने के बाद अब यहां से भाजपा के
विधायक मनोज पटेल के लिए आगामी चुनाव में संकट खड़ा हो सकता है, क्योंकि तब
तक विशाल अपनी ताकत बढ़ाने की पूरी कोशिश करेंगे। वैसे कल ऊपरी तौर पर
दोनों विधानसभा क्षेत्रों में भाजपाई खुश तो दिखे, लेकिन पटेल और शुक्ला
जैसे कद्दावर नेताओं के भाजपा में आने के बाद कइयों के माथे पर अपने
राजनीतिक भविष्य के लिए चिंता की लकीरें नजर आने लगी हैं।


भोपाल । मप्र कांग्रेस के तीन कद्दावर नेताओं के टूूटने
के बाद पार्टी को एक बड़ा नुकसान तो हुआ है, लेकिन इन नेताओं को भाजपा क्या
जवाबदारी देगी, इस बारे में अभी तय नहीं हो पाया है। भाजपा के
पदाधिकारियों का कहना है कि लोकसभा चुनाव के बाद ही सुरेश पचौरी, विशाल
पटेल और संजय शुक्ला की भूमिका तय की जाएगी।

हालांकि अभी भी कांग्रेस से भाजपा में आए कई नेताओं को अपना मुकाम नहीं मिल
पाया है। कुछ खास नेताओं को ही पार्टी की नगर टीम में जगह मिली तो तुलसी
सिलावट मंत्री और योगेश गेंदर तथा मनोज मिश्रा जैसे नेताओं को पार्षद का
चुनाव लड़वाया गया। बाकी कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए नेताओं को अभी तक
भाजपा ने कोई बड़ी जवाबदारी नहीं दी है। कल विशाल पटेल और संजय शुक्ला के
पार्टी में आने के बाद तरह-तरह की चर्चाएं चलने लगीं। चूंकि दोनों ही नेता
कांग्रेस के बड़े और कद्दावर नेता रहे हैं, इसलिए उन्हें स्थानीय स्तर पर
तो कोई पद नहीं दिया जाएगा। अगर दोनों नेताओं के कद की बात की जाए तो
उन्हें प्रदेश कार्यसमिति में मनोनीत किया जा सकता है। वैसे भी दोनों
नेताओं को अब भाजपा की रीति-नीति सीखना होगी। भले ही संजय शुक्ला कह रहे
हैं कि मंै अपने परिवार में लौट आया हूं, लेकिन आज तक उन्होंने पार्टी का
काम नहीं किया है। यही स्थिति विशाल पटेल की भी है। वे भी देपालपुर में ही
बंधकर रह गए थे। उनके पिता जगदीश पटेल यहां से विधायक रहे हैं और उनकी मां
सुलोचना पटेल भी जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं। एक तरह से उनका अभी तक
का पूरा जीवन कांगे्रस में ही बीता है तो उन्हें भी भाजपा से बहुत कुछ
सीखना होगा। इसलिए माना जा रहा है कि दोनों नेताओं को लोकसभा चुनाव में
चुनाव प्रचार में शामिल किया जाएगा और उसके बाद ही कुछ जवाबदारी दी जा सकती
है।

भाजपाई खुश हो या न हो, लेकिन कांग्रेसी तो खुश हैं

भले ही कांग्रेस के दोनों पूर्व विधायकों के भाजपा में आने के बाद कुछ
भाजपाइयों को अपने राजनीतिक भविष्य की चिंता सताने लगी हो और वे खुश नहीं
हुए हो, लेकिन 1 नंबर और देपालपुर विधानसभा के कुछ कांग्रेसियों के चेहरे
पर राजनीतिक चमक देखने को मिल रही है। 1 नंबर विधानसभा में संजय शुक्ला तीन
महीने पहले विधायक थे। वैसे इस विधानसभा में कांग्रसे का यादव गुट हावी
रहा है और यहां से यादव परिवार के स्व. रामलाल यादव उर्फ भल्लू भैया एक बार
विधायक रहे हैं। हालांकि उसके पहले ललित जैन के हाथ में यह सीट थी, जिसके
बीच एक बार लालचंद मित्तल विधायक रहे थे। बाद में उषा ठाकुर को यहां से
लड़ाया गया था। उषा का टिकट कटने के बाद दो बार यहां से सुदर्शन गुप्ता
विधायक रहे हैं। वैसे यह सीट भाजपा की ही रही, लेकिन सुदर्शन गुप्ता को
हराकर संजय शुक्ला ने इस पर कब्जा कर लिया था, लेकिन पिछले साल चुनाव में
कैलाश विजयवर्गीय ने यह सीट फिर से भाजपा की झोली में डाल दी। शुक्ला के
भाजपा में जाने के बाद अब यहां से एक बार फिर यादव खेमा सक्रिय होगा। खैर
उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। यहां से दीपू यादव जैसे नेता
अब खुलकर सामने आ सकते हैं और कांग्रेस उन्हें आने वाले विधानसभा चुनाव में
कोई जवाबदारी दे सकती है। यही स्थिति देपालपुर विधानसभा की भी है। विशाल
पटेल का परिवार लंबे समय से यहां सक्रिय है। हालांकि बीच में इस सीट से
सत्यनारायण पटेल भी विधायक रहे हैं और उनके भाई राधेश्याम पटेल अभी भी यहां
सक्रिय हैं। हो सकता है एक बार फिर पटेल परिवार यहां अपनी पुरानी जड़ें
बाहर निकालने में कामयाब रहे। हालांकि पिछले चुनाव में कांग्रेस विरोधी काम
करने का आरोप लगाकर यहां से कांग्रेस मोतीसिंह पटेल जैसे नेता को 3 महीने
के लिए बाहर कर चुकी थी, लेकिन कल ही उनका निलंबन वापस ले लिया गया। यहां
से मोतीसिंह भी विधायक का चुनाव लडऩा चाहते थे, लेकिन विशाल पटेल के आगे
उनकी नहीं चली। पटेल परिवार के सक्रिय हो जाने के बाद अब यहां से भाजपा के
विधायक मनोज पटेल के लिए आगामी चुनाव में संकट खड़ा हो सकता है, क्योंकि तब
तक विशाल अपनी ताकत बढ़ाने की पूरी कोशिश करेंगे। वैसे कल ऊपरी तौर पर
दोनों विधानसभा क्षेत्रों में भाजपाई खुश तो दिखे, लेकिन पटेल और शुक्ला
जैसे कद्दावर नेताओं के भाजपा में आने के बाद कइयों के माथे पर अपने
राजनीतिक भविष्य के लिए चिंता की लकीरें नजर आने लगी हैं।


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