महाकुंभ मेले में ‘शाही स्नान’ बन गया ‘अमृत स्नान’, आखिर नागा साधु ही क्यों करते हैं?:

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कुंभ मेला सनातन धर्म के सबसे बड़े और सबसे पवित्र धार्मिक आयोजनों में से एक है। यह 12 सालों में एक बार आता है। यह सिर्फ धार्मिक आयोजन ना होकर खगोलीय.घटनाओं से जुड़ी एक चिर पुरातन परंपरा है। जिसमें ग्रहों की स्थिति का विशेष महत्व होता है। इसी आधार पर महाकुंभ मेले का आयोजन होता है। प्रयागराज महाकुंभ मेला लग चुका है। साधु-संत और श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। यह माहकुंभ 144 साल बाद आया है। इस महाकुंभ में शाही स्नान आकर्षण का केंद्र रहता है। इस बार शाही स्नान को अमृत स्नान कहा गया है। आखिर ऐसा क्यों आइये जानते हैं।

महाकुंभ में अखाड़ों के जिस स्नान को अमृत स्नान कहा जाता है। उसे पहले शाही स्नान कहा जाता था। आज भी इसे शाही स्नान के नाम से जानते हैं। इसका संबंध मराठा पेशवा से हैं। उन्होंने ही शाही स्नान और पेशवाई करने की व्यवस्था दी थी। प्राचीन काल में राजा-महाराज भी साधु-संतों के साथ भव्य जुलूस लेकर स्नान के लिए निकलते थे। इसी परंपरा ने शाही स्नान की शुरुआत की। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि महाकुंभ का आयोजन सूर्य और गुरु जैसे ग्रहों की विशिष्ट स्थिति को ध्यान में रखकर किया जाता है, इसलिए इसे "राजसी स्नान" भी कहा जाता है।

शाही स्नान का नियम

महाकुंभ में शाही स्नान के कुछ खास नियमों का पालन किया जाता है। महाकुंभ में सबसे पहले नागा साधु स्नान करते हैं। नागा साधुओं को स्नान करने की प्राथमिकता सदियों से चली आ रही है। इसके पीछे एक धार्मिक मान्यता है। इसके अलावा गृहस्थ जीवन जीने वाले लोगों के लिए महाकुंभ में स्नान के नियम कुछ अलग हैं। गृहस्थ लोगों नागा साधुओं बाद ही संगम में स्नान करना चाहिए। स्नान करते समय 5 डुबकी जरूर लगाएं, तभी स्नान पूरा माना जाता है। स्नान के समय साबुन या शैंपू का इस्तेमाल न करें। इसे पवित्र जल को अशुद्ध करने वाला माना जाता है।

क्यों करते हैं पहले नागा स्नान?

नागा साधु भोले बाबा के अनुयायी माने जाते हैं और वह भोले शंकर की तपस्या और साधना की वजह से इस स्नान को नागा साधु सबसे पहले करने के अधिकारी माने गए। तभी से यह परंपरा चली आ रही कि अमृत स्नान पर सबसे पहला हक नागा साधुओं का ही रहता है। नागा का स्नान धर्म और आध्यत्मिक ऊर्जा की केंद्र माना जाता है।

एक अलग मान्यता के मुताबिक, ऐसा कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने जब धर्म की रक्षा के लिए नागा साधुओं की टोली बनाई, तो अन्य संतों ने आगे आकर धर्म की रक्षा करने वाले नागा साधुओं को पहले स्नान करने को आमंत्रित किया। चूंकि नागा भोले शंकर के उपासक है, इस कारण भी इन्हें पहले हक दिया गया। तब से यह परंपरा निरंतर चली आ रही है।


कुंभ मेला सनातन धर्म के सबसे बड़े और सबसे पवित्र धार्मिक आयोजनों में से एक है। यह 12 सालों में एक बार आता है। यह सिर्फ धार्मिक आयोजन ना होकर खगोलीय.घटनाओं से जुड़ी एक चिर पुरातन परंपरा है। जिसमें ग्रहों की स्थिति का विशेष महत्व होता है। इसी आधार पर महाकुंभ मेले का आयोजन होता है। प्रयागराज महाकुंभ मेला लग चुका है। साधु-संत और श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। यह माहकुंभ 144 साल बाद आया है। इस महाकुंभ में शाही स्नान आकर्षण का केंद्र रहता है। इस बार शाही स्नान को अमृत स्नान कहा गया है। आखिर ऐसा क्यों आइये जानते हैं।

महाकुंभ में अखाड़ों के जिस स्नान को अमृत स्नान कहा जाता है। उसे पहले शाही स्नान कहा जाता था। आज भी इसे शाही स्नान के नाम से जानते हैं। इसका संबंध मराठा पेशवा से हैं। उन्होंने ही शाही स्नान और पेशवाई करने की व्यवस्था दी थी। प्राचीन काल में राजा-महाराज भी साधु-संतों के साथ भव्य जुलूस लेकर स्नान के लिए निकलते थे। इसी परंपरा ने शाही स्नान की शुरुआत की। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि महाकुंभ का आयोजन सूर्य और गुरु जैसे ग्रहों की विशिष्ट स्थिति को ध्यान में रखकर किया जाता है, इसलिए इसे "राजसी स्नान" भी कहा जाता है।

शाही स्नान का नियम

महाकुंभ में शाही स्नान के कुछ खास नियमों का पालन किया जाता है। महाकुंभ में सबसे पहले नागा साधु स्नान करते हैं। नागा साधुओं को स्नान करने की प्राथमिकता सदियों से चली आ रही है। इसके पीछे एक धार्मिक मान्यता है। इसके अलावा गृहस्थ जीवन जीने वाले लोगों के लिए महाकुंभ में स्नान के नियम कुछ अलग हैं। गृहस्थ लोगों नागा साधुओं बाद ही संगम में स्नान करना चाहिए। स्नान करते समय 5 डुबकी जरूर लगाएं, तभी स्नान पूरा माना जाता है। स्नान के समय साबुन या शैंपू का इस्तेमाल न करें। इसे पवित्र जल को अशुद्ध करने वाला माना जाता है।

क्यों करते हैं पहले नागा स्नान?

नागा साधु भोले बाबा के अनुयायी माने जाते हैं और वह भोले शंकर की तपस्या और साधना की वजह से इस स्नान को नागा साधु सबसे पहले करने के अधिकारी माने गए। तभी से यह परंपरा चली आ रही कि अमृत स्नान पर सबसे पहला हक नागा साधुओं का ही रहता है। नागा का स्नान धर्म और आध्यत्मिक ऊर्जा की केंद्र माना जाता है।

एक अलग मान्यता के मुताबिक, ऐसा कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने जब धर्म की रक्षा के लिए नागा साधुओं की टोली बनाई, तो अन्य संतों ने आगे आकर धर्म की रक्षा करने वाले नागा साधुओं को पहले स्नान करने को आमंत्रित किया। चूंकि नागा भोले शंकर के उपासक है, इस कारण भी इन्हें पहले हक दिया गया। तब से यह परंपरा निरंतर चली आ रही है।


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