बिलासपुर। Environment protection: नेशनल ग्रीन
ट्रिब्यूनल के कड़े निर्देश और सख्ती के बाद केंद्र सरकार ने देश भर के
राज्य सरकारों को निर्देश जारी कर पराली ना जलाने व इस से खाद बनाने
किसानों को प्रेरित करने का निर्देश जारी किया है। केंद्र के निर्देश का
छत्तीसगढ़ में फौरीतौर पर असर भी दिखाई दे रहा है। राज्य शासन ने पराली से
खाद बनाने की विधि बताने कृषि विभाग के अफसरों को किसानों के भी जाने का
निर्देश दिया है। जल्दी पकने वाली धान की फसल अब पक कर तैयार है। दशहरा के
बाद धान की कटाई शुरू हो जाएगी। कृषि विभाग के अधिकारी दशहरा के बाद
ग्रामीण क्षेत्रों की ओर कूच करेंगे और किसानों के बीच जाकर पराली को ना
जलाने की समझाइश देंगे।
पराली के जलने से निकलने वाली गैस व पर्यावरण
को पहुंचने वाली क्षति के संबंध में भी जानकारी देंगे। साथ ही पराली से
खाद बनाने की विधि भी बताएंगे। खेतों में फसल कटाई के पश्चात जो अवशेष बच
जाते है उसे जलाने से पर्यावरण को बहुत नुकसान होता है। जिसे रोकने के लिए
कड़े उपाय किए जाने की आवश्यकता को देखते हुए इस संबंध में दिशा निर्देश
जारी किए गये है। किसानों को बताएंगे कि अवशेष को जलाने से बेहतर है कि
अवशेष स्थानीय विधि से यूरिया का स्प्रे कर खाद बनाए। खुले में भी खाद
बनाया जा सकता है।
ऐसे बनेगी खाद
गड्ढे
में पैरा का वेस्ट डीकम्पोजर से तथा ट्राईकोडरमा का उपयोग कर भी खाद बनाया
जा सकता है। फसल अवशेष को मिट्टी में मिलाये। स्ट्रा चोपर हे-रेक, स्ट्रा
बेलर का प्रयोग करके अवशेष की गांठे और आमदनी बढ़ाई जा सकती है। जीरा ड्रील
रोटावेटर, रीपर बाईन्डर व अन्य स्थानीय उपयोगी व सस्ते कृषि यंत्रों को भी
फसल अवशेष प्रबंधन हेतु अपनाया जा सकता है।
पराली का ऐसा भी होता है उपयोग
- मशरूम उत्पादन, वर्मी टांका, बोर्ड रफ कागज बनाने में किया जाता है।
पराली के जलने से इन गैसों का होता है उत्सर्जन
पराली
जलाने से मिथेन, कार्बन मोनो आक्साइड, कार्बन डाई आक्साइड नाईट्रस आक्साइड
आदि हानिकारक गैसें उत्सर्जित होती है तथा पार्टिकुलेट मेटर का उत्सर्जन
होता है जिसकी वजह से परिवेशीय वायु गुणवत्ता प्रभावित होती है। जिसके कारण
पृथ्वी सतह के उपरी वायु मंडल में कोहरा सा छा जाता है।
कैंसर की भी बनी रहती है आशंका
पैरी जलाने के दुष्परिणाम से फेफड़ों की बीमारी, सांस लेेने में तकलीफ तथा कैंसर जैसे विभिन्न रोग होने की संभावना होती है।
मिट्टी की उर्वरा शक्ति होती है क्षीण
पैरा
जलाने से राख उत्पन्न होता है तथा उस स्थल की मिट्टी में पाई जाने वाली
सूक्ष्म जीवों का विनाश हो जाता है जिससे फसलों की पैदावार में कमी तथा
मृदा की गुणवत्ता में क्षति हो जाती है।
जानलेवा गैसों का उत्सर्जन
अनुमानत: 1 टन पैरा
जलाने से 3 किलो पार्टिकुलेटर 60 किलो कार्बन मोनो ऑक्साइड, 1460 किलो
कार्बन डाई आक्साइड, 2 किलो सल्फर डाई आक्साइड इत्यादि गैसों का उत्सर्जन
और 199 किलो राख उत्पन्न होता है तथा अनुमानत: 1 टन धान की पैरा जलाने से
मृदा में 5.5 नाइट्रोजन, 2.3 किलो ग्राम फास्फोरस, 25 किलो ग्राम पोटेशियम
तथा 1.2 सल्फर नष्ट हो जाता है।
बिलासपुर। Environment protection: नेशनल ग्रीन
ट्रिब्यूनल के कड़े निर्देश और सख्ती के बाद केंद्र सरकार ने देश भर के
राज्य सरकारों को निर्देश जारी कर पराली ना जलाने व इस से खाद बनाने
किसानों को प्रेरित करने का निर्देश जारी किया है। केंद्र के निर्देश का
छत्तीसगढ़ में फौरीतौर पर असर भी दिखाई दे रहा है। राज्य शासन ने पराली से
खाद बनाने की विधि बताने कृषि विभाग के अफसरों को किसानों के भी जाने का
निर्देश दिया है। जल्दी पकने वाली धान की फसल अब पक कर तैयार है। दशहरा के
बाद धान की कटाई शुरू हो जाएगी। कृषि विभाग के अधिकारी दशहरा के बाद
ग्रामीण क्षेत्रों की ओर कूच करेंगे और किसानों के बीच जाकर पराली को ना
जलाने की समझाइश देंगे।
पराली के जलने से निकलने वाली गैस व पर्यावरण
को पहुंचने वाली क्षति के संबंध में भी जानकारी देंगे। साथ ही पराली से
खाद बनाने की विधि भी बताएंगे। खेतों में फसल कटाई के पश्चात जो अवशेष बच
जाते है उसे जलाने से पर्यावरण को बहुत नुकसान होता है। जिसे रोकने के लिए
कड़े उपाय किए जाने की आवश्यकता को देखते हुए इस संबंध में दिशा निर्देश
जारी किए गये है। किसानों को बताएंगे कि अवशेष को जलाने से बेहतर है कि
अवशेष स्थानीय विधि से यूरिया का स्प्रे कर खाद बनाए। खुले में भी खाद
बनाया जा सकता है।
ऐसे बनेगी खाद
गड्ढे
में पैरा का वेस्ट डीकम्पोजर से तथा ट्राईकोडरमा का उपयोग कर भी खाद बनाया
जा सकता है। फसल अवशेष को मिट्टी में मिलाये। स्ट्रा चोपर हे-रेक, स्ट्रा
बेलर का प्रयोग करके अवशेष की गांठे और आमदनी बढ़ाई जा सकती है। जीरा ड्रील
रोटावेटर, रीपर बाईन्डर व अन्य स्थानीय उपयोगी व सस्ते कृषि यंत्रों को भी
फसल अवशेष प्रबंधन हेतु अपनाया जा सकता है।
पराली का ऐसा भी होता है उपयोग
- मशरूम उत्पादन, वर्मी टांका, बोर्ड रफ कागज बनाने में किया जाता है।
पराली के जलने से इन गैसों का होता है उत्सर्जन
पराली
जलाने से मिथेन, कार्बन मोनो आक्साइड, कार्बन डाई आक्साइड नाईट्रस आक्साइड
आदि हानिकारक गैसें उत्सर्जित होती है तथा पार्टिकुलेट मेटर का उत्सर्जन
होता है जिसकी वजह से परिवेशीय वायु गुणवत्ता प्रभावित होती है। जिसके कारण
पृथ्वी सतह के उपरी वायु मंडल में कोहरा सा छा जाता है।
कैंसर की भी बनी रहती है आशंका
पैरी जलाने के दुष्परिणाम से फेफड़ों की बीमारी, सांस लेेने में तकलीफ तथा कैंसर जैसे विभिन्न रोग होने की संभावना होती है।
मिट्टी की उर्वरा शक्ति होती है क्षीण
पैरा
जलाने से राख उत्पन्न होता है तथा उस स्थल की मिट्टी में पाई जाने वाली
सूक्ष्म जीवों का विनाश हो जाता है जिससे फसलों की पैदावार में कमी तथा
मृदा की गुणवत्ता में क्षति हो जाती है।
जानलेवा गैसों का उत्सर्जन
अनुमानत: 1 टन पैरा
जलाने से 3 किलो पार्टिकुलेटर 60 किलो कार्बन मोनो ऑक्साइड, 1460 किलो
कार्बन डाई आक्साइड, 2 किलो सल्फर डाई आक्साइड इत्यादि गैसों का उत्सर्जन
और 199 किलो राख उत्पन्न होता है तथा अनुमानत: 1 टन धान की पैरा जलाने से
मृदा में 5.5 नाइट्रोजन, 2.3 किलो ग्राम फास्फोरस, 25 किलो ग्राम पोटेशियम
तथा 1.2 सल्फर नष्ट हो जाता है।