रियाद वॉशिंगटन, क्या यूक्रेन और रूस के बीच चल रही जंग के बीच एशिया में कमजोर पड़ा अमेरिका अब सऊदी अरब का समर्थन भी खो सकता है? यह सवाल एक मीडिया रिपोर्ट के बाद से उठ रहा है, जिसमें कहा गया है कि सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान रूस और चीन के करीब जाने वाली विदेश नीति अपनाने पर विचार कर रहे हैं। वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक सऊदी अरब को मानवाधिकारों के मुद्दे पर अमेरिका की ओर से नसीहत मिलना अखर रहा है। इसके अलावा सत्ता में आने के बाद से जो बाइडेन ने सऊदी लीडरशिप से मुलाकात नहीं की है। इसे सऊदी अरब खुद को नजरअंदाज करने के तौर पर देख रहा है।
बीते साल फरवरी में अमेरिका ने एक दर्जन से ज्यादा सऊदी नागरिकों पर प्रतिबंध लगाए थे, जिन पर पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या में शामिल होने का आरोप था। रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका की ओर से उठाए गए कदमों के जवाब में क्या किया जाए, इस पर चर्चा के लिए सऊदी क्राउन प्रिंस की अपने पिता किंग सलमान से मुलाकात हुई थी। इस दौरान सरकार के कई सीनियर अधिकारी मौजूद थे। इस चर्चा में यह कहा गया कि कुछ राजनीतिक कैदियों को रिहा कर देना चाहिए ताकि बाइडेन प्रशासन खुश हो सके। लेकिन एमबीएस यानी मोहम्मद बिन सलमान की राय अलग ही थी। उनका कहना था कि अमेरिका पर रूस और चीन के नजदीक जानकर दबाव बनाना चाहिए।
फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि मोहम्मद बिन सलमान की ओर से अमेरिका को रिश्तों को लेकर चेतावनी दी गई है या नहीं, लेकिन यह साफ है कि सऊदी अरब ने बीते एक साल में चीन से अपने रिश्तों को मजबूत किया है। सैन्य, संस्कृति और आर्थिक रिश्तों के मामले में सऊदी अरब और चीन काफी करीब आए हैं। इस बीच सऊदी अरब के अमेरिका स्थित दूतावास ने कहा है कि दोनों देशों के रिश्तों के बीच कोई तनाव नहीं है। सऊदी की एम्बेसी ने कहा, 'अधिकारियों और संस्थानों के लेवल पर हमारे बीच संपर्क है और मुद्दों पर हमारी करीबी बनी हुई है।' हालांकि सऊदी अरब की सरकार यह चाहती है कि ईरान समर्थित हूथी विद्रोहियों के मिसाइल हमलों के मामले में अमेरिका का उसका आगे बढ़कर समर्थन करे और ऐक्शन ले।
रियाद वॉशिंगटन, क्या यूक्रेन और रूस के बीच चल रही जंग के बीच एशिया में कमजोर पड़ा अमेरिका अब सऊदी अरब का समर्थन भी खो सकता है? यह सवाल एक मीडिया रिपोर्ट के बाद से उठ रहा है, जिसमें कहा गया है कि सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान रूस और चीन के करीब जाने वाली विदेश नीति अपनाने पर विचार कर रहे हैं। वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक सऊदी अरब को मानवाधिकारों के मुद्दे पर अमेरिका की ओर से नसीहत मिलना अखर रहा है। इसके अलावा सत्ता में आने के बाद से जो बाइडेन ने सऊदी लीडरशिप से मुलाकात नहीं की है। इसे सऊदी अरब खुद को नजरअंदाज करने के तौर पर देख रहा है।
बीते साल फरवरी में अमेरिका ने एक दर्जन से ज्यादा सऊदी नागरिकों पर प्रतिबंध लगाए थे, जिन पर पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या में शामिल होने का आरोप था। रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका की ओर से उठाए गए कदमों के जवाब में क्या किया जाए, इस पर चर्चा के लिए सऊदी क्राउन प्रिंस की अपने पिता किंग सलमान से मुलाकात हुई थी। इस दौरान सरकार के कई सीनियर अधिकारी मौजूद थे। इस चर्चा में यह कहा गया कि कुछ राजनीतिक कैदियों को रिहा कर देना चाहिए ताकि बाइडेन प्रशासन खुश हो सके। लेकिन एमबीएस यानी मोहम्मद बिन सलमान की राय अलग ही थी। उनका कहना था कि अमेरिका पर रूस और चीन के नजदीक जानकर दबाव बनाना चाहिए।
फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि मोहम्मद बिन सलमान की ओर से अमेरिका को रिश्तों को लेकर चेतावनी दी गई है या नहीं, लेकिन यह साफ है कि सऊदी अरब ने बीते एक साल में चीन से अपने रिश्तों को मजबूत किया है। सैन्य, संस्कृति और आर्थिक रिश्तों के मामले में सऊदी अरब और चीन काफी करीब आए हैं। इस बीच सऊदी अरब के अमेरिका स्थित दूतावास ने कहा है कि दोनों देशों के रिश्तों के बीच कोई तनाव नहीं है। सऊदी की एम्बेसी ने कहा, 'अधिकारियों और संस्थानों के लेवल पर हमारे बीच संपर्क है और मुद्दों पर हमारी करीबी बनी हुई है।' हालांकि सऊदी अरब की सरकार यह चाहती है कि ईरान समर्थित हूथी विद्रोहियों के मिसाइल हमलों के मामले में अमेरिका का उसका आगे बढ़कर समर्थन करे और ऐक्शन ले।