हरेली पर आलेख :: छत्तीसगढ़ी पर्व हरेली है जनहितैषी:

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भारत ही नहीं अपितु विश्व के मानचित्र पर सभ्यता और संस्कृति की दृष्टि से जगमगाते हुये अंचल का नाम है, छत्तीसगढ़। नवम्बर 2000 में जब इसे स्वतंत्र राज्य का दर्जा मिला तो यहाॅ के रहवासियों के मन में एक आश जगी कि सदियों से उपेक्षित इस पिछड़े अंचल की लुप्त होती लोककला-संस्कृति, पर्व-परंपराओं, खाई-खजाना,रीति-रिवाजों को पुनर्जीवित एवं प्रतिष्ठित होने का सुनहरा अवसर मिलेगा, किन्तु यह आश एक लम्बे अर्से तक मन में धरी की धरी रह गयी।

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया का नारा तो खूब उछला, पर इसके साथ ही छत्तीसगढ़िया छला गया की आम चर्चा भी होती रही। खासकर इन अर्थों में कि यहाॅ के तीज त्यौहार, वेशभूषा, व्यंजन, गहने, प्राचीन देवालय, स्मारक आज भी विशेष पहचान के लिये मोहताज हैं। छत्तीसगढ़ की पहचान, यहाॅ के धरोहर और लुप्त होती परंपरायें पत्थर की मूरत बनी अहिल्या की भांति किसी राम के आने और उसके स्पर्श से सजीव हो जानेे की चाह में घुटती रही। दिसम्बर 2018 में माननीय मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में नई सरकार बनी तब इन्होंने छत्तीसगढ़ महतारी और उनके रहवासियों की पीड़ा को हरने का बीड़ा उठाया। उन्होने इस बात को समझा कि - जिस गाॅव में बारिश न हो वहाॅ की फसलें खराब हो जाती है, जिस घर में धर्म-संस्कार न हो वहाॅ की नस्लें खराब हो जाती है। इस सच्चाई को समझने जानने के लिए ही अनादि काल से पूरखों ने तिथि विशेष पर पर्वों को मनाने चिंतन कर चिन्हित किया।

छत्तीसगढ़ी पर्वों पर अवकाश सार्थक निर्णय  :: नई सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ की परम्परागत धरोहर, काम-धन्धें, तीज त्यौहार को संजोने के लिये अनेक निर्णय लिये गये। जिनसे आमजनों के भीतर ‘‘गढ़बो नवा छत्तीसगढ़‘‘ की भावना विकसित हुई और प्रबल आत्मविश्वास की ज्योति सम्पूर्ण ऊर्जा के साथ जल उठी।छत्तीसगढ़ में पहली बार हरेली,तीजा, विश्वआदिवासी दिवस,भक्त माता कर्मा जयंती,छेरछेरा पर अवकाश रखने का निर्णय लिया गया।  इन लोकपर्वों पर अवकाश रखने के फैसले का स्वागत समूचे  छत्तीसगढ़ ने किया।      

यह एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला है,जो प्रदेश की नई पीढ़ी के लोगों को यह बताने में शतप्रतिशत कारगर हुआ कि जनमानस की जिंदगी पर लोक परंपराओं का कितना गहरा असर होता है। इन पर्वों पर अवकाश रखने की चर्चा के साथ ही साथ नरवा,गुरूवा, घुरूवा अउ बारी के संरक्षण और उन्नत बनाने की दिशा में छत्तीसगढ़ में हो रहे कार्यों की चर्चा भी राष्ट्रीय स्तर पर हो रही है।

स्कूलों में पहली बार गेंड़ी दौड़ :: प्रति वर्ष श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाने वाला पर्व ‘हरेली‘ इस बार इतिहास रचने जा रहा है। प्रदेश भर में इसे धूमधाम से मनाने की सराहनीय पहल हुई है। अवकाश के बावजूद स्कूलों में राष्ट्रीय पर्वों की भांति हरेली को धूमधाम से मनाने की पहल हुई है। छात्रों को इससे न केवल अपने रीतिरिवाज़ों को जानने जूड़ने का अवसर मिलेगा अपितु उनके भीतर नव उत्साह का भी संचार होगा।

नीम की पत्तियों का तोरन :: मूलतः हरेली किसानों का पर्व है। यह पर्व जहाॅ छत्तीसगढ़ के कृषि जगत को उन्नत बनाने का संदेशा देता है वहीं पेड़ पौधे और पर्यावरण को संरक्षित करने की महत्ता को भी उजागर करता है। हरेली पर्व पर नीम पेड़ की पत्तियों को घर घर के द्वार पर लगाने का प्रचलन है। इसके पीछे यह राज है कि बारीश के दिनों में तरह-तरह के संक्रमण से बीमारियाॅ जन्म लेती है। इन बीमारियों को फैलाने वाले रोगाणुओं-कीटाणुओं को मारने की शक्ती नीम के पत्तों में होती है।साथ ही मनुष्य के भीतर संक्रमण को रोकने की प्रतिरोध शक्ती भी नीम में निहित होती है।  

प्रकृति से जूड़ने का पर्व :: हरेली पर्व प्रकृति से जुड़ने की महत्ता के साथ ही  पशुओं के प्रति दया भाव को बनाये रखने का संदेश देता है। इस पर्व पर किसान परिवार द्वारा हल, बैल और खेती के अन्य कामों में उपयोग आने वाले औजारों की साफ-सफाई कर उनकी पूजा की जाती हैं। गाय-बैल-भेैंसों को निरोगी रखने के लिए नमक के साथ औषधियुक्त पत्तियों का सेवन करवाया जाता हैं। इस तरह हरेली त्यौहार पशु धन की हिफाजत का भी संदेश देता हैं, अतः इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस लोकहितैषी पर्व पर घोषित अवकाश आमजनों को प्रकृति, संस्कृति से जुड़ने हेतु बेहतरीन माहौल बनाने में सार्थक सिद्ध होगा। हरेली पर्व छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा लोकहितैषी पर्व है,इसे राजकीय त्यौहार का दर्जा देने पर विचार किया जाना समय की मांग हैं।

‘जीवन की किताबों पर बेशक नया कव्हर चढ़ाइये, पर बिखरे पन्नों को पहले प्यार से चिपकाइये’ को अमल में लाते हुये हरेली पर्व पर अवकाश देकर नई सरकार की नई सोच ने नई पीढ़ी को गाॅवों से जोड़ने,गेड़ी चढ़ने, बैल गाड़ी दौड़ को देखने, नारियल फेंक स्पर्धा में भागीदारी देने, बांटी-भौरा को जानने, ठेठरी-खुरमी का स्वाद चखने का उम्दा अवसर प्रदान किया है। जिसकी सराहना छत्तीसगढ़ का हर सियान कर रहा है।  


भारत ही नहीं अपितु विश्व के मानचित्र पर सभ्यता और संस्कृति की दृष्टि से जगमगाते हुये अंचल का नाम है, छत्तीसगढ़। नवम्बर 2000 में जब इसे स्वतंत्र राज्य का दर्जा मिला तो यहाॅ के रहवासियों के मन में एक आश जगी कि सदियों से उपेक्षित इस पिछड़े अंचल की लुप्त होती लोककला-संस्कृति, पर्व-परंपराओं, खाई-खजाना,रीति-रिवाजों को पुनर्जीवित एवं प्रतिष्ठित होने का सुनहरा अवसर मिलेगा, किन्तु यह आश एक लम्बे अर्से तक मन में धरी की धरी रह गयी।

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया का नारा तो खूब उछला, पर इसके साथ ही छत्तीसगढ़िया छला गया की आम चर्चा भी होती रही। खासकर इन अर्थों में कि यहाॅ के तीज त्यौहार, वेशभूषा, व्यंजन, गहने, प्राचीन देवालय, स्मारक आज भी विशेष पहचान के लिये मोहताज हैं। छत्तीसगढ़ की पहचान, यहाॅ के धरोहर और लुप्त होती परंपरायें पत्थर की मूरत बनी अहिल्या की भांति किसी राम के आने और उसके स्पर्श से सजीव हो जानेे की चाह में घुटती रही। दिसम्बर 2018 में माननीय मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में नई सरकार बनी तब इन्होंने छत्तीसगढ़ महतारी और उनके रहवासियों की पीड़ा को हरने का बीड़ा उठाया। उन्होने इस बात को समझा कि - जिस गाॅव में बारिश न हो वहाॅ की फसलें खराब हो जाती है, जिस घर में धर्म-संस्कार न हो वहाॅ की नस्लें खराब हो जाती है। इस सच्चाई को समझने जानने के लिए ही अनादि काल से पूरखों ने तिथि विशेष पर पर्वों को मनाने चिंतन कर चिन्हित किया।

छत्तीसगढ़ी पर्वों पर अवकाश सार्थक निर्णय  :: नई सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ की परम्परागत धरोहर, काम-धन्धें, तीज त्यौहार को संजोने के लिये अनेक निर्णय लिये गये। जिनसे आमजनों के भीतर ‘‘गढ़बो नवा छत्तीसगढ़‘‘ की भावना विकसित हुई और प्रबल आत्मविश्वास की ज्योति सम्पूर्ण ऊर्जा के साथ जल उठी।छत्तीसगढ़ में पहली बार हरेली,तीजा, विश्वआदिवासी दिवस,भक्त माता कर्मा जयंती,छेरछेरा पर अवकाश रखने का निर्णय लिया गया।  इन लोकपर्वों पर अवकाश रखने के फैसले का स्वागत समूचे  छत्तीसगढ़ ने किया।      

यह एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला है,जो प्रदेश की नई पीढ़ी के लोगों को यह बताने में शतप्रतिशत कारगर हुआ कि जनमानस की जिंदगी पर लोक परंपराओं का कितना गहरा असर होता है। इन पर्वों पर अवकाश रखने की चर्चा के साथ ही साथ नरवा,गुरूवा, घुरूवा अउ बारी के संरक्षण और उन्नत बनाने की दिशा में छत्तीसगढ़ में हो रहे कार्यों की चर्चा भी राष्ट्रीय स्तर पर हो रही है।

स्कूलों में पहली बार गेंड़ी दौड़ :: प्रति वर्ष श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाने वाला पर्व ‘हरेली‘ इस बार इतिहास रचने जा रहा है। प्रदेश भर में इसे धूमधाम से मनाने की सराहनीय पहल हुई है। अवकाश के बावजूद स्कूलों में राष्ट्रीय पर्वों की भांति हरेली को धूमधाम से मनाने की पहल हुई है। छात्रों को इससे न केवल अपने रीतिरिवाज़ों को जानने जूड़ने का अवसर मिलेगा अपितु उनके भीतर नव उत्साह का भी संचार होगा।

नीम की पत्तियों का तोरन :: मूलतः हरेली किसानों का पर्व है। यह पर्व जहाॅ छत्तीसगढ़ के कृषि जगत को उन्नत बनाने का संदेशा देता है वहीं पेड़ पौधे और पर्यावरण को संरक्षित करने की महत्ता को भी उजागर करता है। हरेली पर्व पर नीम पेड़ की पत्तियों को घर घर के द्वार पर लगाने का प्रचलन है। इसके पीछे यह राज है कि बारीश के दिनों में तरह-तरह के संक्रमण से बीमारियाॅ जन्म लेती है। इन बीमारियों को फैलाने वाले रोगाणुओं-कीटाणुओं को मारने की शक्ती नीम के पत्तों में होती है।साथ ही मनुष्य के भीतर संक्रमण को रोकने की प्रतिरोध शक्ती भी नीम में निहित होती है।  

प्रकृति से जूड़ने का पर्व :: हरेली पर्व प्रकृति से जुड़ने की महत्ता के साथ ही  पशुओं के प्रति दया भाव को बनाये रखने का संदेश देता है। इस पर्व पर किसान परिवार द्वारा हल, बैल और खेती के अन्य कामों में उपयोग आने वाले औजारों की साफ-सफाई कर उनकी पूजा की जाती हैं। गाय-बैल-भेैंसों को निरोगी रखने के लिए नमक के साथ औषधियुक्त पत्तियों का सेवन करवाया जाता हैं। इस तरह हरेली त्यौहार पशु धन की हिफाजत का भी संदेश देता हैं, अतः इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस लोकहितैषी पर्व पर घोषित अवकाश आमजनों को प्रकृति, संस्कृति से जुड़ने हेतु बेहतरीन माहौल बनाने में सार्थक सिद्ध होगा। हरेली पर्व छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा लोकहितैषी पर्व है,इसे राजकीय त्यौहार का दर्जा देने पर विचार किया जाना समय की मांग हैं।

‘जीवन की किताबों पर बेशक नया कव्हर चढ़ाइये, पर बिखरे पन्नों को पहले प्यार से चिपकाइये’ को अमल में लाते हुये हरेली पर्व पर अवकाश देकर नई सरकार की नई सोच ने नई पीढ़ी को गाॅवों से जोड़ने,गेड़ी चढ़ने, बैल गाड़ी दौड़ को देखने, नारियल फेंक स्पर्धा में भागीदारी देने, बांटी-भौरा को जानने, ठेठरी-खुरमी का स्वाद चखने का उम्दा अवसर प्रदान किया है। जिसकी सराहना छत्तीसगढ़ का हर सियान कर रहा है।  


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