समय का अभाव, सम्बन्धों में खटास:

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दिनों दिन विज्ञान प्रगीति पर प्रगीति कर रहा है और नित्य नए टेक्नोलॉजी सामने आ रहे हैं जिससे कार्यों को प्रभावी ढंग से संपादन किया जा रहा है। आज समाज मे स्थिति ऐसी है की किसी के पास किसी के लिए समय नहीं हैं। इसका प्रभाव भी परिवार में पढ़ने लग गया है। घर मे भी माता, पिता, बच्चे सब अपने अपने कार्यों में व्यस्त हैं और इनसे फुर्सत मिल जाये तो बचा हुआ समय परिवार के साथ बिताने, बात करने, दोस्तों से मिलने जाने, बात करने, रिश्तेदारों से बात करने व आदि की बजाय लोग व्हाट्सएप्प, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, रील्स, गेम आदि में बिता रहे हैं। ये कभी नहीं सोचते कि ज्यादा देर तक स्क्रीन टाइमिंग होने पर आंखों के नसों, रेटिना आदि पर इसके दुष्प्रभाव पड़ते हैं साथ ही उंगलियों पर भी असर पड़ते हैं। कई लोग कान में ईरफ़ोन लगाकर बात भी करते हैं और गाना भी सुनते हैं इससे भी कानों में दुष्प्रभाव पड़ने की आशंका बनी हुई रहती है।


इन सबके कारण कोई भी पर्व, त्योहार, जन्मदिन आदि में लोग एक दूसरे को वर्चुअली बधाई या शुभकामना संदेश दे देते हैं। जिनमें कुछ का जवाब भी वर्चुअली आता है और कुछ तो जवाब देने की जरूरत ही नहीं समझते हैं। प्रत्येक सेल्फ सेंट्रिक होते जा रहे हैं या यूं भी कह सकते हैं कि हो गए हैं। एक समय ऐसा आएगा जब व्यक्ति एकदम अकेला हो जाएगा , केवल स्मार्ट फ़ोन ही हाथ मे रह जायेगा। सभी रिश्ते नाते, दोस्ती,  सम्बन्ध इतने पीछे छूट जाएंगे कि व्यक्ति चाहकर भी उन्हें पास में नहीं पा सकते। ये इसलिए होगा क्यों कि हम ने समय रहते रिश्तों, सम्बन्धों की कद्र नहीं कि और न ही उनसे सम्बन्धों को प्रगाढ़ करने हेतु दोस्त, रिश्तेदारों के घर गए।


आज देखा जाए तो अधिकतर परिवार नुक्लेअर परिवार में तब्दील हो चुका है और उसमें भी आपस में दूरियां भी बढ़ती जा रही है जिसके कारण एक लगाव, इमोशन, सेंटीमेंट्स, सम्मान समाप्त हो रहे हैं। आज घर मे किसी का देहांत हो जाता है तो कुछ क्षण के लिए दुःख होता है और जैसे ही क्रीमेशन कर घर लौटते हैं उसके बाद ज़िन्दगी फिर पुरानी पटरी पर दौड़ने हेतु तैयार हो जाती है। बच्चों को स्कूल भेजना ही है, उन्हें तो 13 दिन तक घर पर नहीं रख सकते, ट्यूशन भेजना होता है, शाम को खेलने भी जाते हैं और रिश्तेदारों की आवाजाही बनी रहती है जिसमे व्यक्ति को कम और बाकी को ज्यादा याद किया जाता है, हंसी ठिठोली भी होती है, क्या खाना बनाना है इसकी भी चर्चा होती है। पंडित आता है और एक कोने में बैठकर अपना कार्य कर चल देता है। सोचना होगा कि ऐसे में हमारी आने वाली पीढ़ी सीख क्या रही है ? हम उन्हें क्या शिक्षा दे रहे हैं ? जब वे बड़े होंगे वे भी नौकरी या व्यापार करेंगे और अपनी गृहस्ती में रम जाएंगे। उसने जो देखा होगा वही न उसके दिमाग मे होगा, इसलिए दोष उनका नहीं हमारी है जो हम खुद समय रहे खुद को नहीं सुधरे।



दिनों दिन विज्ञान प्रगीति पर प्रगीति कर रहा है और नित्य नए टेक्नोलॉजी सामने आ रहे हैं जिससे कार्यों को प्रभावी ढंग से संपादन किया जा रहा है। आज समाज मे स्थिति ऐसी है की किसी के पास किसी के लिए समय नहीं हैं। इसका प्रभाव भी परिवार में पढ़ने लग गया है। घर मे भी माता, पिता, बच्चे सब अपने अपने कार्यों में व्यस्त हैं और इनसे फुर्सत मिल जाये तो बचा हुआ समय परिवार के साथ बिताने, बात करने, दोस्तों से मिलने जाने, बात करने, रिश्तेदारों से बात करने व आदि की बजाय लोग व्हाट्सएप्प, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, रील्स, गेम आदि में बिता रहे हैं। ये कभी नहीं सोचते कि ज्यादा देर तक स्क्रीन टाइमिंग होने पर आंखों के नसों, रेटिना आदि पर इसके दुष्प्रभाव पड़ते हैं साथ ही उंगलियों पर भी असर पड़ते हैं। कई लोग कान में ईरफ़ोन लगाकर बात भी करते हैं और गाना भी सुनते हैं इससे भी कानों में दुष्प्रभाव पड़ने की आशंका बनी हुई रहती है।


इन सबके कारण कोई भी पर्व, त्योहार, जन्मदिन आदि में लोग एक दूसरे को वर्चुअली बधाई या शुभकामना संदेश दे देते हैं। जिनमें कुछ का जवाब भी वर्चुअली आता है और कुछ तो जवाब देने की जरूरत ही नहीं समझते हैं। प्रत्येक सेल्फ सेंट्रिक होते जा रहे हैं या यूं भी कह सकते हैं कि हो गए हैं। एक समय ऐसा आएगा जब व्यक्ति एकदम अकेला हो जाएगा , केवल स्मार्ट फ़ोन ही हाथ मे रह जायेगा। सभी रिश्ते नाते, दोस्ती,  सम्बन्ध इतने पीछे छूट जाएंगे कि व्यक्ति चाहकर भी उन्हें पास में नहीं पा सकते। ये इसलिए होगा क्यों कि हम ने समय रहते रिश्तों, सम्बन्धों की कद्र नहीं कि और न ही उनसे सम्बन्धों को प्रगाढ़ करने हेतु दोस्त, रिश्तेदारों के घर गए।


आज देखा जाए तो अधिकतर परिवार नुक्लेअर परिवार में तब्दील हो चुका है और उसमें भी आपस में दूरियां भी बढ़ती जा रही है जिसके कारण एक लगाव, इमोशन, सेंटीमेंट्स, सम्मान समाप्त हो रहे हैं। आज घर मे किसी का देहांत हो जाता है तो कुछ क्षण के लिए दुःख होता है और जैसे ही क्रीमेशन कर घर लौटते हैं उसके बाद ज़िन्दगी फिर पुरानी पटरी पर दौड़ने हेतु तैयार हो जाती है। बच्चों को स्कूल भेजना ही है, उन्हें तो 13 दिन तक घर पर नहीं रख सकते, ट्यूशन भेजना होता है, शाम को खेलने भी जाते हैं और रिश्तेदारों की आवाजाही बनी रहती है जिसमे व्यक्ति को कम और बाकी को ज्यादा याद किया जाता है, हंसी ठिठोली भी होती है, क्या खाना बनाना है इसकी भी चर्चा होती है। पंडित आता है और एक कोने में बैठकर अपना कार्य कर चल देता है। सोचना होगा कि ऐसे में हमारी आने वाली पीढ़ी सीख क्या रही है ? हम उन्हें क्या शिक्षा दे रहे हैं ? जब वे बड़े होंगे वे भी नौकरी या व्यापार करेंगे और अपनी गृहस्ती में रम जाएंगे। उसने जो देखा होगा वही न उसके दिमाग मे होगा, इसलिए दोष उनका नहीं हमारी है जो हम खुद समय रहे खुद को नहीं सुधरे।



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