कई बार महिलाएं प्रेगनेंसी का समय काल यानी कि 9 महीने पूरे होने से
पहले ही बच्चे को जन्म दे देती हैं, जिसे हम प्रीटर्म डिलीवरी (preterm
delivery) कहते हैं। वहीं प्रीटर्म डिलीवरी प्रीमेच्योर बच्चे (premature
child) के जन्म का कारण बनती है। समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं में कई
गंभीर चिकित्सा समस्याएं देखने को मिलती हैं।
हालांकि,
प्रीमेच्योर डिलीवरी के कारणों की बात करें तो अभी भी इसके सभी कारणों का
पता नहीं लगाया जा सका है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन द्वारा प्रकाशित एक
डेटा के अनुसार विश्व में हर साल लगभग 15 मिलियन बच्चे प्रीमेच्योर डिलीवर
होते हैं। जिसकी वजह से 2015 में लगभग 1 मिलियन से अधिक बच्चों ने 5 साल से
कम उम्र में ही अपनी जान गवा दी। इसके साथ ही समय से पहले जन्मे लगभग सभी
बच्चों की सेहत सामान्य बच्चों की तुलना में ज्यादा नाजुक होती है।
इस
तरह की असुविधाओं से बचने के लिए प्रेगनेंसी प्लान करने से लगभग 6 महीने
से 8 महीने पहले प्रेगनेंसी से जुड़ी हर प्रकार की जानकारी प्राप्त कर लेनी
चाहिए। वहीं यह केवल महिलाओं की नहीं बल्कि पुरुषों की भी जिम्मेदारी है,
कि उन्हें प्रेगनेंसी से जुड़ी हर प्रकार की जानकारी होनी चाहिए। तो चलिए
जानते हैं प्रीटर्म बर्थ के बारे में कुछ जरूरी फैक्ट्स।
हेल्थ
शॉट्स ने इस विषय पर सीके बिरला अस्पताल, गुरुग्राम की डायरेक्टर,
ऑब्सटेट्रिशियन और गाइनेकोलॉजिस्ट डॉ अंजलि कुमार से बातचीत की। उन्होंने
प्रीमेच्योर डिलीवरी होने के कई कारण और उससे बच्चों पर पड़ने वाले प्रभाव
के बारे में बताया है। तो चलिए जानते हैं किन कारणों से होती है प्रीटर्म
डिलीवरी।
इन कारणों से बढ़ जाता है प्रीटर्म डिलीवरी का खतरा
1 हाई ब्लड प्रेशर
प्रीमेच्योर
डिलीवरी का कारण लंबे समय से चली आ रही है बीमारियां जैसे कि हाई ब्लड
प्रेशर और डायबिटीज हो सकती है। इसके साथ ही यूट्रस, सरविक्स और प्लासेंटा
से जुड़ी समस्याएं वहीं गर्भावस्था में भी शराब और धूम्रपान करना भी
प्रीमेच्योर डिलीवरी का कारण बनती है।
2 दूसरी प्रेगनेंसी में गैप कम होना
अंजलि
कुमार के अनुसार गर्भधारण करने के बीच कम समय का गैप रखना और इंटिमेट
एरिया के इन्फेक्शन से पूरी तरह रिकवर किये बगैर ही गर्भधारण कर लेना
प्रीमेच्योर डिलीवरी का कारण बनता है।
3 तनाव
कुछ
मामलों में, जरूरत से ज्यादा स्ट्रेस लेना और जीवन के किसी दुर्घटना में
आई शारीरिक चोट भी प्रीमेच्योर डिलीवरी का कारण बन सकती है।
4 पिछली प्रेगनेंसी
यदि
आपकी पिछली प्रेगनेंसी में प्रीमेच्योर डिलीवरी हुई थी, तो इस प्रेगनेंसी
में भी प्रीमेच्योर डिलीवरी होने की संभावना काफी ज्यादा होती है। अधिक बार
मिसकैरेज और अबॉर्शन होने के कारण भी महिलाओं में प्रीमेच्योर डिलीवरी
होने की संभावना बनी रहती है।
5 वजन कम या ज्यादा होना
प्रेगनेंसी के दौरान अंडरवेट और ओवरवेट होने से भी कई महिलाओं में प्रीमेच्योर डिलीवरी का खतरा बढ़ जाता है।
समय से पहले जन्मे बच्चों में हो सकती हैं ये परेशानियां
डॉ अंजलि बता रही हैं कि समय से पहले जन्मे बच्चों को किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
1. सांस लेने में तकलीफ होना
प्रीमेच्योर
जन्मे बच्चे का रेस्पिरेट्री सिस्टम पूरी तरह से नहीं बढ़ता है। जिसकी वजह
से उन्हें सांस लेने में तकलीफ होती है। वहीं ऐसे बच्चों का लंग्स सामान्य
बच्चों की तरह पूरी तरह से एक्सपैंड और कॉन्ट्रैक्ट भी नहीं हो पाता है।
2. दिल से जुड़ी समस्याएं
समय
से पहले जन्मे बच्चों में दिल से जुड़ी बीमारियों का खतरा ज्यादा होता है।
खास कर उन्हें पीडीए यानी कि पेटेंट डक्टस आर्टिरियसस और लो ब्लड प्रेशर
का खतरा बना रहता है। वहीं समय के साथ हार्ट फेलियर की संभावना बढ़ती जाती
है।
3. मानसिक समस्या
प्रीमेच्योर जन्मे
बच्चों में ब्रेन ब्लीडिंग की संभावना काफी ज्यादा होती है, जिसे हम
इंटरवेंट्रिकुलर हेमरेज के नाम से जानते हैं। कई बच्चों में यह काफी हल्का
होता है और समय के साथ ठीक हो जाता है। वहीं कई बच्चों में परमानेंट ब्रेन
इंजरी होने की संभावना बनी रहती है।
4. गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल प्रॉब्लम
समय
से पहले जन्मे बच्चों का गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम इमैच्योर होता है
जिसकी वजह से विभिन्न प्रकार की समस्याएं देखने को मिलती हैं। जैसे कि NEC
यानी कि नैक्रोटाइजिंग एंटरोकोलाइटिस। परंतु जो बच्चे शुरुआत से ही मां का
दूध पीते हैं उनमें इस समस्या के होने की संभावना काफी हद तक कम होती है।
5. खून से जुड़ी समस्या
समय
से पहले जन्में लगभग सभी बच्चों में एनीमिया यानी कि खून की कमी होती है।
इस स्थिति में बच्चों के शरीर में पर्याप्त मात्रा में रेड ब्लड सेल्स नहीं
बन पाते हैं। जिसकी वजह से शरीर में कई अन्य प्रकार की परेशानियों का खतरा
बढ़ जाता है।
इसके अलावा भी कई अन्य परेशानियां होती है, जैसे कि
मेटाबॉलिज्म की समस्या इम्यून सिस्टम का कमजोर रहना इंफेक्शन का खतरा बढ़
जाना इत्यादि।
वहीं प्रीमेच्योर बच्चों में कई अन्य प्रकार की गंभीर
समस्याएं भी देखने को मिलती हैं, जैसे कि कमजोर विजन, इंपेयर्ड लर्निंग,
किसी भी चीज को सुनने में दिक्कत होना, दांतो से जुड़ी समस्या, बिहेवियर और
साइकोलॉजिकल दिक्कतें।
प्रीमेच्योर डिलीवरी से बचना है तो इन बातों का ध्यान रखना जरूरी है
तंबाकू, स्मोकिंग, इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट और सेकंड हैंड स्मोक से पूरी तरह से परहेज रखें।
प्रेगनेंसी प्लैनिंग शुरू कर दी है तो गर्भधारण करने के कुछ महीने पहले से ही शराब के सेवन से दूरी बनाए रखें।
आयरन और फोलिक एसिड से युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करें।
प्रेगनेंसी के दौरान कम से कम दिन का 30 मिनट एक्सरसाइज या वॉक करने में गुजारे।
यदि डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित हैं, तो प्रेगनेंसी के दौरान इन स्थितियों को नियंत्रित रखने की कोशिश करें।
यदि
आप अंडरवेट हैं, तो प्रेगनेंसी के पहले अपने वजन को संतुलित रखने की कोशिश
करें। इसके साथ ही मोटापे से ग्रसित महिलाओं को वेट लॉस पर ध्यान देने की
आवश्यकता है।
प्रेगनेंसी के दौरान कम से कम तनावग्रस्त स्थितियों में
पढ़ने की कोशिश करें। साथ ही जितना हो सके उतना कम स्ट्रेस लें। योगा,
मेडिटेशन और अपनी मनपसंदीदा गतिविधियों में भाग लेकर आप इसे अवॉइड कर सकती
हैं।
कई बार महिलाएं प्रेगनेंसी का समय काल यानी कि 9 महीने पूरे होने से
पहले ही बच्चे को जन्म दे देती हैं, जिसे हम प्रीटर्म डिलीवरी (preterm
delivery) कहते हैं। वहीं प्रीटर्म डिलीवरी प्रीमेच्योर बच्चे (premature
child) के जन्म का कारण बनती है। समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं में कई
गंभीर चिकित्सा समस्याएं देखने को मिलती हैं।
हालांकि,
प्रीमेच्योर डिलीवरी के कारणों की बात करें तो अभी भी इसके सभी कारणों का
पता नहीं लगाया जा सका है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन द्वारा प्रकाशित एक
डेटा के अनुसार विश्व में हर साल लगभग 15 मिलियन बच्चे प्रीमेच्योर डिलीवर
होते हैं। जिसकी वजह से 2015 में लगभग 1 मिलियन से अधिक बच्चों ने 5 साल से
कम उम्र में ही अपनी जान गवा दी। इसके साथ ही समय से पहले जन्मे लगभग सभी
बच्चों की सेहत सामान्य बच्चों की तुलना में ज्यादा नाजुक होती है।
इस
तरह की असुविधाओं से बचने के लिए प्रेगनेंसी प्लान करने से लगभग 6 महीने
से 8 महीने पहले प्रेगनेंसी से जुड़ी हर प्रकार की जानकारी प्राप्त कर लेनी
चाहिए। वहीं यह केवल महिलाओं की नहीं बल्कि पुरुषों की भी जिम्मेदारी है,
कि उन्हें प्रेगनेंसी से जुड़ी हर प्रकार की जानकारी होनी चाहिए। तो चलिए
जानते हैं प्रीटर्म बर्थ के बारे में कुछ जरूरी फैक्ट्स।
हेल्थ
शॉट्स ने इस विषय पर सीके बिरला अस्पताल, गुरुग्राम की डायरेक्टर,
ऑब्सटेट्रिशियन और गाइनेकोलॉजिस्ट डॉ अंजलि कुमार से बातचीत की। उन्होंने
प्रीमेच्योर डिलीवरी होने के कई कारण और उससे बच्चों पर पड़ने वाले प्रभाव
के बारे में बताया है। तो चलिए जानते हैं किन कारणों से होती है प्रीटर्म
डिलीवरी।
इन कारणों से बढ़ जाता है प्रीटर्म डिलीवरी का खतरा
1 हाई ब्लड प्रेशर
प्रीमेच्योर
डिलीवरी का कारण लंबे समय से चली आ रही है बीमारियां जैसे कि हाई ब्लड
प्रेशर और डायबिटीज हो सकती है। इसके साथ ही यूट्रस, सरविक्स और प्लासेंटा
से जुड़ी समस्याएं वहीं गर्भावस्था में भी शराब और धूम्रपान करना भी
प्रीमेच्योर डिलीवरी का कारण बनती है।
2 दूसरी प्रेगनेंसी में गैप कम होना
अंजलि
कुमार के अनुसार गर्भधारण करने के बीच कम समय का गैप रखना और इंटिमेट
एरिया के इन्फेक्शन से पूरी तरह रिकवर किये बगैर ही गर्भधारण कर लेना
प्रीमेच्योर डिलीवरी का कारण बनता है।
3 तनाव
कुछ
मामलों में, जरूरत से ज्यादा स्ट्रेस लेना और जीवन के किसी दुर्घटना में
आई शारीरिक चोट भी प्रीमेच्योर डिलीवरी का कारण बन सकती है।
4 पिछली प्रेगनेंसी
यदि
आपकी पिछली प्रेगनेंसी में प्रीमेच्योर डिलीवरी हुई थी, तो इस प्रेगनेंसी
में भी प्रीमेच्योर डिलीवरी होने की संभावना काफी ज्यादा होती है। अधिक बार
मिसकैरेज और अबॉर्शन होने के कारण भी महिलाओं में प्रीमेच्योर डिलीवरी
होने की संभावना बनी रहती है।
5 वजन कम या ज्यादा होना
प्रेगनेंसी के दौरान अंडरवेट और ओवरवेट होने से भी कई महिलाओं में प्रीमेच्योर डिलीवरी का खतरा बढ़ जाता है।
समय से पहले जन्मे बच्चों में हो सकती हैं ये परेशानियां
डॉ अंजलि बता रही हैं कि समय से पहले जन्मे बच्चों को किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
1. सांस लेने में तकलीफ होना
प्रीमेच्योर
जन्मे बच्चे का रेस्पिरेट्री सिस्टम पूरी तरह से नहीं बढ़ता है। जिसकी वजह
से उन्हें सांस लेने में तकलीफ होती है। वहीं ऐसे बच्चों का लंग्स सामान्य
बच्चों की तरह पूरी तरह से एक्सपैंड और कॉन्ट्रैक्ट भी नहीं हो पाता है।
2. दिल से जुड़ी समस्याएं
समय
से पहले जन्मे बच्चों में दिल से जुड़ी बीमारियों का खतरा ज्यादा होता है।
खास कर उन्हें पीडीए यानी कि पेटेंट डक्टस आर्टिरियसस और लो ब्लड प्रेशर
का खतरा बना रहता है। वहीं समय के साथ हार्ट फेलियर की संभावना बढ़ती जाती
है।
3. मानसिक समस्या
प्रीमेच्योर जन्मे
बच्चों में ब्रेन ब्लीडिंग की संभावना काफी ज्यादा होती है, जिसे हम
इंटरवेंट्रिकुलर हेमरेज के नाम से जानते हैं। कई बच्चों में यह काफी हल्का
होता है और समय के साथ ठीक हो जाता है। वहीं कई बच्चों में परमानेंट ब्रेन
इंजरी होने की संभावना बनी रहती है।
4. गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल प्रॉब्लम
समय
से पहले जन्मे बच्चों का गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम इमैच्योर होता है
जिसकी वजह से विभिन्न प्रकार की समस्याएं देखने को मिलती हैं। जैसे कि NEC
यानी कि नैक्रोटाइजिंग एंटरोकोलाइटिस। परंतु जो बच्चे शुरुआत से ही मां का
दूध पीते हैं उनमें इस समस्या के होने की संभावना काफी हद तक कम होती है।
5. खून से जुड़ी समस्या
समय
से पहले जन्में लगभग सभी बच्चों में एनीमिया यानी कि खून की कमी होती है।
इस स्थिति में बच्चों के शरीर में पर्याप्त मात्रा में रेड ब्लड सेल्स नहीं
बन पाते हैं। जिसकी वजह से शरीर में कई अन्य प्रकार की परेशानियों का खतरा
बढ़ जाता है।
इसके अलावा भी कई अन्य परेशानियां होती है, जैसे कि
मेटाबॉलिज्म की समस्या इम्यून सिस्टम का कमजोर रहना इंफेक्शन का खतरा बढ़
जाना इत्यादि।
वहीं प्रीमेच्योर बच्चों में कई अन्य प्रकार की गंभीर
समस्याएं भी देखने को मिलती हैं, जैसे कि कमजोर विजन, इंपेयर्ड लर्निंग,
किसी भी चीज को सुनने में दिक्कत होना, दांतो से जुड़ी समस्या, बिहेवियर और
साइकोलॉजिकल दिक्कतें।
प्रीमेच्योर डिलीवरी से बचना है तो इन बातों का ध्यान रखना जरूरी है
तंबाकू, स्मोकिंग, इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट और सेकंड हैंड स्मोक से पूरी तरह से परहेज रखें।
प्रेगनेंसी प्लैनिंग शुरू कर दी है तो गर्भधारण करने के कुछ महीने पहले से ही शराब के सेवन से दूरी बनाए रखें।
आयरन और फोलिक एसिड से युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करें।
प्रेगनेंसी के दौरान कम से कम दिन का 30 मिनट एक्सरसाइज या वॉक करने में गुजारे।
यदि डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित हैं, तो प्रेगनेंसी के दौरान इन स्थितियों को नियंत्रित रखने की कोशिश करें।
यदि
आप अंडरवेट हैं, तो प्रेगनेंसी के पहले अपने वजन को संतुलित रखने की कोशिश
करें। इसके साथ ही मोटापे से ग्रसित महिलाओं को वेट लॉस पर ध्यान देने की
आवश्यकता है।
प्रेगनेंसी के दौरान कम से कम तनावग्रस्त स्थितियों में
पढ़ने की कोशिश करें। साथ ही जितना हो सके उतना कम स्ट्रेस लें। योगा,
मेडिटेशन और अपनी मनपसंदीदा गतिविधियों में भाग लेकर आप इसे अवॉइड कर सकती
हैं।