नई दिल्ली। बीमारी खत्म करने के लिए दवा का होना बेहद जरुरी होता है, ऐसे में जबकि भारत को 2025 तक टीबी मुक्त करने की योजना है, इसे फलिभूत करने दवाओं का होना भी जरुरी है। दरअसल टीबी के मरीजों को दवा देने के मामले में कुछ राज्य गंभीर नजर नहीं आ रहे हैं। अनेक राज्य दवा खरीदी मामले में लेट-लतीफी करते नजर आए हैं, जिस कारण दवा का अभाव देखने में आया है। सूत्रों की मानें तो केंद्र के संबंधित विभागों के पास पर्याप्त दवा का स्टॉक नहीं होना भी एक कारण है।
यहां बतला दें कि टीबी की दवा बनाने वाली देश में प्रमुख 3 से 4 कंपनियां ही हैं। ये कंपनियां ही केंद्र के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग को टेंडर के जरिए दवा उपलब्ध कराती हैं। ऐसे में जब कुछ राज्यों ने कंपनियों से दवा के लिए संपर्क किया तो उन्होंने पंजीयन स्टॉक नहीं होने का रोना रोया, जिससे दवा आपूर्ति नहीं हो सकी। ऐसे में यहां हम मध्य प्रदेश की ही बात कर लें जहां टीबी की दवा मरीजों को नहीं मिल पा रही है। यह जानकारी राजधानी भोपाल के अस्पतालों में दवा के लिए चक्कर काटते मरीजों ने दी है। ऐसे में सवाल किया जा रहा है कि जब ये हालात प्रदेश की राजधानी के हैं तब सूबे के दूरदराज इलाकों में क्या हो रहा होगा, आसानी से समझा जा सकता है। एक तरफ दवा के लिए मरीज परेशान हैं तो वहीं दूसरी तरफ चिकित्सकों ने इसका हल निकालते हुए बच्चों को दी जाने वाली दवा की खुराक बढ़ा कर बड़े मरीजों को देना शुरु कर दिया है। यहां बतलाते चलें कि इन टीबी मरीजों में ज्यादातर संख्या भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों वाली है। इन्हें यदि समय पर दवा उपलब्ध नहीं होती तो इनमें टीबी जैसी घातक बीमारी दोबारा आक्रमण कर सकती है। इससे टीबी मरीजों की संख्या कम होने की जगह बढ़ने का अंदेशा भी जतलाया जा रहा है।
विशेषज्ञों की राय है कि टीबी के मरीज समय पर दवा लें नहीं तो छह महीने पहले जो उन्हें शिकायत थी वह पुन: उभर सकती है। यहां भोपाल टीबी अस्पताल में इलाज कराने वाले और दवा लेने आने वाले अनेक मरीजों का कहना है कि पिछले 12-15 दिनों से दवाएं उन्हें नहीं मिल रहीं हैं।
यहां बतलाते चलें कि साल 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीबी मुक्त भारत अभियान की शुरुआत की थी। खास बात यह है कि तब पीएम मोदी ने कहा था कि दुनिया ने टीबी को खत्म करने के लिए 2030 तक का समय तय किया है, लेकिन भारत ने अपने लिए यह लक्ष्य 2025 तय किया है। सूत्र कहते हैं केंद्र ने तो दवाओं का पर्याप्त स्टाक बना रखा है, लेकिन राज्य ही लेट-लतीफी करें तो क्या होगा। अब आसानी से समझा जा सकता है कि केंद्र सरकार ने देश को 2025 तक टीबी मुक्त करने का जो लक्ष्य रखा है, उसे कैसे पूरा किया जा सकता है, जबकि मर्ज सही करने दवा का आभाव बराबर बना हुआ है।
नई दिल्ली। बीमारी खत्म करने के लिए दवा का होना बेहद जरुरी होता है, ऐसे में जबकि भारत को 2025 तक टीबी मुक्त करने की योजना है, इसे फलिभूत करने दवाओं का होना भी जरुरी है। दरअसल टीबी के मरीजों को दवा देने के मामले में कुछ राज्य गंभीर नजर नहीं आ रहे हैं। अनेक राज्य दवा खरीदी मामले में लेट-लतीफी करते नजर आए हैं, जिस कारण दवा का अभाव देखने में आया है। सूत्रों की मानें तो केंद्र के संबंधित विभागों के पास पर्याप्त दवा का स्टॉक नहीं होना भी एक कारण है।
यहां बतला दें कि टीबी की दवा बनाने वाली देश में प्रमुख 3 से 4 कंपनियां ही हैं। ये कंपनियां ही केंद्र के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग को टेंडर के जरिए दवा उपलब्ध कराती हैं। ऐसे में जब कुछ राज्यों ने कंपनियों से दवा के लिए संपर्क किया तो उन्होंने पंजीयन स्टॉक नहीं होने का रोना रोया, जिससे दवा आपूर्ति नहीं हो सकी। ऐसे में यहां हम मध्य प्रदेश की ही बात कर लें जहां टीबी की दवा मरीजों को नहीं मिल पा रही है। यह जानकारी राजधानी भोपाल के अस्पतालों में दवा के लिए चक्कर काटते मरीजों ने दी है। ऐसे में सवाल किया जा रहा है कि जब ये हालात प्रदेश की राजधानी के हैं तब सूबे के दूरदराज इलाकों में क्या हो रहा होगा, आसानी से समझा जा सकता है। एक तरफ दवा के लिए मरीज परेशान हैं तो वहीं दूसरी तरफ चिकित्सकों ने इसका हल निकालते हुए बच्चों को दी जाने वाली दवा की खुराक बढ़ा कर बड़े मरीजों को देना शुरु कर दिया है। यहां बतलाते चलें कि इन टीबी मरीजों में ज्यादातर संख्या भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों वाली है। इन्हें यदि समय पर दवा उपलब्ध नहीं होती तो इनमें टीबी जैसी घातक बीमारी दोबारा आक्रमण कर सकती है। इससे टीबी मरीजों की संख्या कम होने की जगह बढ़ने का अंदेशा भी जतलाया जा रहा है।
विशेषज्ञों की राय है कि टीबी के मरीज समय पर दवा लें नहीं तो छह महीने पहले जो उन्हें शिकायत थी वह पुन: उभर सकती है। यहां भोपाल टीबी अस्पताल में इलाज कराने वाले और दवा लेने आने वाले अनेक मरीजों का कहना है कि पिछले 12-15 दिनों से दवाएं उन्हें नहीं मिल रहीं हैं।
यहां बतलाते चलें कि साल 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीबी मुक्त भारत अभियान की शुरुआत की थी। खास बात यह है कि तब पीएम मोदी ने कहा था कि दुनिया ने टीबी को खत्म करने के लिए 2030 तक का समय तय किया है, लेकिन भारत ने अपने लिए यह लक्ष्य 2025 तय किया है। सूत्र कहते हैं केंद्र ने तो दवाओं का पर्याप्त स्टाक बना रखा है, लेकिन राज्य ही लेट-लतीफी करें तो क्या होगा। अब आसानी से समझा जा सकता है कि केंद्र सरकार ने देश को 2025 तक टीबी मुक्त करने का जो लक्ष्य रखा है, उसे कैसे पूरा किया जा सकता है, जबकि मर्ज सही करने दवा का आभाव बराबर बना हुआ है।