डायबिटीज़ से ग्रस्त महिलाओं को ज्यादा होता है इनफर्टिलिटी का खतरा, जानिए इससे कैसे बचना है:

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डायबिटीज़ के मामले दिनों दिन बढ़ रहे है। इसका असर स्किन, हड्डियों, इंटरनल ऑर्गन्स के अलावा प्रजनन क्षमता (fertility) पर भी देखने को मिलता है। अनहेल्दी लाइफस्टाइल के चलते बढ़ने वाली ये समस्या न केवल पीसीओएस का कारण (Causes of PCOS) बनती है बल्कि एग को इम्प्लांट करने में मुश्किल का सामना करना पड़ता है। इसके चलते डायबिटीज़ से ग्रस्त महिलाओं में अबॉर्शन का जोखिम (Risks of abortion) बढ़ने लगता है। जानते हैं डायबिटीज़ और फर्टिलिटी (Diabetes and infertility) किस तरह एक दूसरे से संबधित हैं।

डायबिटीज़ और प्रजनन स्‍वास्‍थ्‍य किस तरह एक दूसरे से जुड़े हुए है

इस बारे में स्‍त्री रोग विशेषज्ञ एवं ऑनलाइन कंसल्‍टेंट डॉ वीना अग्रवाल बताती हैं कि इंडिया को वर्ल्ड का डायबिटीज़ कैपिटल माना गया है। आंकड़ों के अनुसार 62 मीलियन लोग डायबिटीज़ का शिकार है। इसका महिलाओं की प्रजनन शक्ति पर गहरा प्रभाव होता है। इसका कारण डायबिटीज़ (Diabetes) बताया गया है। डायबिटीज़ के चलते महिलाओं के शरीर में कई प्रकार के बदलाव आने लगते है। महिलाओं में हार्मोन असंतुलन पाया जाता है। इससे न केवल महिलाओं को कंसीव करने में मुश्किलात आती है बल्कि प्रेगनेंसी के दौरान इंप्लांट होने में भी मुश्किल का सामना करना पड़ता है। इससे अबॉर्शन का खतरा बढ़ जाता है।

अधिकतर महिलाओं में डायबिटीज़ और पीसीओएस के मामले साथ- साथ पाए जाते हैं। इसके चलते महिलाओं में मोटापा, अनियमित पीरियड (Irregular period) और फेशियल हेयर जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। साथ ही मेनोपॉज भी जल्दी आ जाता है, जिससे प्रजनन शक्ति पर असर दिखने लगता है। एनआईएच की 2016 की रिसर्च के अनुसार 8 फीसदी विवाहित महिलाओं में बढ़ने वाली इनफर्टिलिटी की समस्या में से 6 फीसदी महिलाओं को सेकेण्डरी इनफर्टिलिटी का सामना करना पड़ता है।

\डायबिटीज़ की शिकार महिलाओं में प्रेगनेंसी के दौरान जेसटेशनल डायबिटीज़ का खतरा बना रहता है। इसके चलते दौरे पड़ने का खतरा, सी सेक्शन डिलीवरी और ब्लड प्रेशर बढ़ने लगता है। ब्लड शुगर लेवल को सामान्य बनाए रखें और रेगुलर चेकअप करें। हेल्दी लाइफस्टाइल को अपनाएं। इसके अलावा फिजिकल एक्टीविटीज़ अपनाएं, ताकि वज़न और शुगर को नियंत्रित रखा जा सके। डायबिटीज़ में तनाव बढ़ने लगता है। ऐसे में तनाव को मैनेज करने के लिए एक्सरसाइज़ करें।

डायबिटीज़ का फर्टिलिटी पर क्या प्रभाव नज़र आता है

1. हार्मोनल असंतुलन

डायबिटीज़ की शिकार महिलाओं के शरीर में पैंक्रियाज पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बनाती है। इससे ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने में मुश्किल का सामना करना पड़ता है। शरीर में ग्लूकोज़ उचित प्रकार से मैनेज न होने के चलते हार्मोनल इंबैलेंस बढ़ने लगता है, जो पीसीओएस का कारण बनता है। इसके चलते मोटापा, अनियमित पीरियड, तनाव और अर्ली मेनोपॉज का सामना करना पड़ता है।

2. अबॉर्शन का खतरा बढ़ जाना

महिलाओं में बढ़ने वाली मधुमेह की समस्या का प्रभाव पीरियड साइकल पर दिखता है। इसके चलते महिलाओं को कंसीव करने और एग इंप्लांट में दिक्कत का सामना करना पउ़ता है। इसके चलते गर्भपात, स्टिलबर्थ, सीजेरियन सेक्शन और जन्म के बाद बच्चे को गहन देखभाल की आवश्यकता का जोखिम बना रहता है। इसके अलावा ऐसी महिलाओं में अबॉशन का खतरा बढ़ने लगता है।

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3. अर्ली मेनोपॉज का कारण

टाइप 2 डायबिटीज़ की शिकार महिलाओं में अर्ली मेनोपॉज का खतरा बना रहता है। पीरियड की समय सीमा कम होने लगती है, जिसका असर एग की क्वालिटी पर दिखता है और कंसीव करने में मुश्किल बढ़ जाती है। साथ ही ऐसी महिलाओं में कम उम्र में मेनोपॉज का जोखिम बढ़ जाता है। इसके अलावा यूटीआई और वेजाइनल इंफे्क्शन का खतरा बना रहता है।

4. एंडोमेट्रियल हेल्थ

गर्भाशय की परत यानि एंडोमेट्रियम एग को इपांल्ट करने में मदद करता है। मधुमेह से ग्रस्त महिलाओं में रक्त शर्करा नियंत्रित न होने से एंडोमेट्रियल वातावरण एग को इंपाल्ट करने में सफल नहीं होता है। इससे डायबिटीज़ की शिकार महिलाओं को कंसीव करने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है।

डायबिटीज़ में प्रजनन स्‍वास्‍थ्‍य को बनाए रखने के लिए किन टिप्स को फॉलो करें

1. ब्लड शुगर करें नियंत्रित

आहार, व्यायाम और दवा के माध्यम से रक्त शर्करा के स्तर को बनाए रखने और फर्टिलिटी को बढ़ाने में मदद मिलती है। प्रोसेस्ड फूड से दूरी बनाकर रखें। इससे हार्मोन इंबैलेंस का खतरा बढ़ जाता है, जो मोटापे का कारण साबित होता है।

2. हेल्दी वेट मैनेजमेंट

स्वस्थ वजन बनाए रखने से इंसुलिन संवेदनशीलता में सुधार हो सकता है। इससे औमहिलाओं में नियमित मासिक धर्म चक्र बना रहता है। साथ ही अर्ली मेनोपॉज के खतरे से भी बचा जा सकता है। इसके लिए व्यायाम की मदद लें और कैलोरी काउंट को मेंटेन रखें।

3. हार्मोन के स्तर को मॉनिटर करें

प्रजनन हार्मोन की नियमित मॉनिटरिंग किसी भी असंतुलन का जल्दी पता लगाने में मदद कर सकती है। इससे शरीर में दिनों दिन आने वाले बदलावों की रोकथाम की जा सकती है। शरीर को स्वस्थ रखने और हार्मोन असंतुलन से बचने के लिए हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाएं।

4. गर्भावस्था से पहले करें अपनी देखभाल

प्रेगनेंसी प्लानिंग से पहले ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित रखें। दिन में दो बार ब्लड शुगर का स्तर अवश्य चेक करे। इससे गर्भावस्था से जुड़े जोखिमों को कम करने और प्रजनन परिणामों में सुधार करने में मदद मिलती है।


डायबिटीज़ के मामले दिनों दिन बढ़ रहे है। इसका असर स्किन, हड्डियों, इंटरनल ऑर्गन्स के अलावा प्रजनन क्षमता (fertility) पर भी देखने को मिलता है। अनहेल्दी लाइफस्टाइल के चलते बढ़ने वाली ये समस्या न केवल पीसीओएस का कारण (Causes of PCOS) बनती है बल्कि एग को इम्प्लांट करने में मुश्किल का सामना करना पड़ता है। इसके चलते डायबिटीज़ से ग्रस्त महिलाओं में अबॉर्शन का जोखिम (Risks of abortion) बढ़ने लगता है। जानते हैं डायबिटीज़ और फर्टिलिटी (Diabetes and infertility) किस तरह एक दूसरे से संबधित हैं।

डायबिटीज़ और प्रजनन स्‍वास्‍थ्‍य किस तरह एक दूसरे से जुड़े हुए है

इस बारे में स्‍त्री रोग विशेषज्ञ एवं ऑनलाइन कंसल्‍टेंट डॉ वीना अग्रवाल बताती हैं कि इंडिया को वर्ल्ड का डायबिटीज़ कैपिटल माना गया है। आंकड़ों के अनुसार 62 मीलियन लोग डायबिटीज़ का शिकार है। इसका महिलाओं की प्रजनन शक्ति पर गहरा प्रभाव होता है। इसका कारण डायबिटीज़ (Diabetes) बताया गया है। डायबिटीज़ के चलते महिलाओं के शरीर में कई प्रकार के बदलाव आने लगते है। महिलाओं में हार्मोन असंतुलन पाया जाता है। इससे न केवल महिलाओं को कंसीव करने में मुश्किलात आती है बल्कि प्रेगनेंसी के दौरान इंप्लांट होने में भी मुश्किल का सामना करना पड़ता है। इससे अबॉर्शन का खतरा बढ़ जाता है।

अधिकतर महिलाओं में डायबिटीज़ और पीसीओएस के मामले साथ- साथ पाए जाते हैं। इसके चलते महिलाओं में मोटापा, अनियमित पीरियड (Irregular period) और फेशियल हेयर जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। साथ ही मेनोपॉज भी जल्दी आ जाता है, जिससे प्रजनन शक्ति पर असर दिखने लगता है। एनआईएच की 2016 की रिसर्च के अनुसार 8 फीसदी विवाहित महिलाओं में बढ़ने वाली इनफर्टिलिटी की समस्या में से 6 फीसदी महिलाओं को सेकेण्डरी इनफर्टिलिटी का सामना करना पड़ता है।

\डायबिटीज़ की शिकार महिलाओं में प्रेगनेंसी के दौरान जेसटेशनल डायबिटीज़ का खतरा बना रहता है। इसके चलते दौरे पड़ने का खतरा, सी सेक्शन डिलीवरी और ब्लड प्रेशर बढ़ने लगता है। ब्लड शुगर लेवल को सामान्य बनाए रखें और रेगुलर चेकअप करें। हेल्दी लाइफस्टाइल को अपनाएं। इसके अलावा फिजिकल एक्टीविटीज़ अपनाएं, ताकि वज़न और शुगर को नियंत्रित रखा जा सके। डायबिटीज़ में तनाव बढ़ने लगता है। ऐसे में तनाव को मैनेज करने के लिए एक्सरसाइज़ करें।

डायबिटीज़ का फर्टिलिटी पर क्या प्रभाव नज़र आता है

1. हार्मोनल असंतुलन

डायबिटीज़ की शिकार महिलाओं के शरीर में पैंक्रियाज पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बनाती है। इससे ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने में मुश्किल का सामना करना पड़ता है। शरीर में ग्लूकोज़ उचित प्रकार से मैनेज न होने के चलते हार्मोनल इंबैलेंस बढ़ने लगता है, जो पीसीओएस का कारण बनता है। इसके चलते मोटापा, अनियमित पीरियड, तनाव और अर्ली मेनोपॉज का सामना करना पड़ता है।

2. अबॉर्शन का खतरा बढ़ जाना

महिलाओं में बढ़ने वाली मधुमेह की समस्या का प्रभाव पीरियड साइकल पर दिखता है। इसके चलते महिलाओं को कंसीव करने और एग इंप्लांट में दिक्कत का सामना करना पउ़ता है। इसके चलते गर्भपात, स्टिलबर्थ, सीजेरियन सेक्शन और जन्म के बाद बच्चे को गहन देखभाल की आवश्यकता का जोखिम बना रहता है। इसके अलावा ऐसी महिलाओं में अबॉशन का खतरा बढ़ने लगता है।

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अभी इसकी जरूरत नहीं

हां, ये जरूरी है

3. अर्ली मेनोपॉज का कारण

टाइप 2 डायबिटीज़ की शिकार महिलाओं में अर्ली मेनोपॉज का खतरा बना रहता है। पीरियड की समय सीमा कम होने लगती है, जिसका असर एग की क्वालिटी पर दिखता है और कंसीव करने में मुश्किल बढ़ जाती है। साथ ही ऐसी महिलाओं में कम उम्र में मेनोपॉज का जोखिम बढ़ जाता है। इसके अलावा यूटीआई और वेजाइनल इंफे्क्शन का खतरा बना रहता है।

4. एंडोमेट्रियल हेल्थ

गर्भाशय की परत यानि एंडोमेट्रियम एग को इपांल्ट करने में मदद करता है। मधुमेह से ग्रस्त महिलाओं में रक्त शर्करा नियंत्रित न होने से एंडोमेट्रियल वातावरण एग को इंपाल्ट करने में सफल नहीं होता है। इससे डायबिटीज़ की शिकार महिलाओं को कंसीव करने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है।

डायबिटीज़ में प्रजनन स्‍वास्‍थ्‍य को बनाए रखने के लिए किन टिप्स को फॉलो करें

1. ब्लड शुगर करें नियंत्रित

आहार, व्यायाम और दवा के माध्यम से रक्त शर्करा के स्तर को बनाए रखने और फर्टिलिटी को बढ़ाने में मदद मिलती है। प्रोसेस्ड फूड से दूरी बनाकर रखें। इससे हार्मोन इंबैलेंस का खतरा बढ़ जाता है, जो मोटापे का कारण साबित होता है।

2. हेल्दी वेट मैनेजमेंट

स्वस्थ वजन बनाए रखने से इंसुलिन संवेदनशीलता में सुधार हो सकता है। इससे औमहिलाओं में नियमित मासिक धर्म चक्र बना रहता है। साथ ही अर्ली मेनोपॉज के खतरे से भी बचा जा सकता है। इसके लिए व्यायाम की मदद लें और कैलोरी काउंट को मेंटेन रखें।

3. हार्मोन के स्तर को मॉनिटर करें

प्रजनन हार्मोन की नियमित मॉनिटरिंग किसी भी असंतुलन का जल्दी पता लगाने में मदद कर सकती है। इससे शरीर में दिनों दिन आने वाले बदलावों की रोकथाम की जा सकती है। शरीर को स्वस्थ रखने और हार्मोन असंतुलन से बचने के लिए हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाएं।

4. गर्भावस्था से पहले करें अपनी देखभाल

प्रेगनेंसी प्लानिंग से पहले ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित रखें। दिन में दो बार ब्लड शुगर का स्तर अवश्य चेक करे। इससे गर्भावस्था से जुड़े जोखिमों को कम करने और प्रजनन परिणामों में सुधार करने में मदद मिलती है।


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