नई दिल्ली. सु्प्रीम कोर्ट ने कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य विवेक तन्खा की ओर से दायर मानहानि मामले में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा और पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह को राहत देते हुए उनके खिलाफ जमानती वारंट पर रोक लगा दी है। हालांकि कोर्ट ने उन्हें ट्रायल कोर्ट में पेश होने को कहा है।
जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने मानहानि मामले को रद्द करने से इनकार करने के मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के 25 अक्टूबर के आदेश को चुनौती देने वाली तीनों भाजपा नेताओं की याचिका पर तन्खा को चार हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
पीठ ने कहा, 'मानहानि मामले में अदालत के समक्ष जारी कार्यवाही में याचिकाकर्ताओं की प्रभावी भागीदारी की सूरत में उनके खिलाफ जमानती वारंट की तामील नहीं की जाएगी।' कोर्ट ने कहा कि तीनों नेताओं के खिलाफ जमानती वॉरंट की जरूरत नहीं है, लेकिन ये तीनों नेता अपने वकीलों के साथ ट्रायल कोर्ट में पेश होंगे।' शिवराज और अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने कहा कि तन्खा की शिकायत में जिन कथित बयानों का जिक्र किया गया है, वे सदन में दिए गए थे और संविधान के अनुच्छेद 194 (2) के दायरे में आते हैं।
अनुच्छेद 194 (2) में कहा गया है, 'किसी राज्य के विधानमंडल का कोई भी सदस्य विधानमंडल या उसकी किसी समिति में कही गई किसी भी बात या डाले गए वोट के संबंध में किसी भी अदालत में किसी भी कार्यवाही का सामना करने के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।' इसमें यह भी कहा गया है, 'कोई भी व्यक्ति ऐसे विधानमंडल के सदन द्वारा या उसके अधिकार क्षेत्र के तहत किसी भी रिपोर्ट, दस्तावेज, मतदान या कार्यवाही के प्रकाशन के संबंध में अदालत में किसी भी कार्यवाही का सामना करने के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।' जेठमलानी ने दलील दी कि ऐसा कभी नहीं सुना गया कि समन से जुड़े ऐसे मामले में अदालत ने जमानती वारंट जारी किया हो, जिसमें पक्षकार अपने वकील के माध्यम से पेश हो सकते थे। उन्होंने जमानती वारंट की तामील पर रोक लगाने का अनुरोध किया।
जेठमलानी ने कहा कि शिकायतकर्ता द्वारा मानहानिकारक बताए जाने वाले दो बयान 2021 में राज्य में पंचायत चुनावों पर रोक लगाने वाले शीर्ष अदालत के आदेश से जुड़े एक मामले में क्रमशः 22 और 25 दिसंबर को दिए गए थे।
उन्होंने कहा, 'इस अदालत ने (17 दिसंबर, 2021 को) पंचायत चुनाव पर इस आधार पर रोक लगा दी थी कि कोई ‘रोटेशन’ नहीं हुआ था और कोई परिसीमन नहीं किया गया था।' उन्होंने कहा, ओबीसी आरक्षण के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया, जैसा कि तन्खा ने आरोप लगाया है।
नई दिल्ली. सु्प्रीम कोर्ट ने कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य विवेक तन्खा की ओर से दायर मानहानि मामले में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा और पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह को राहत देते हुए उनके खिलाफ जमानती वारंट पर रोक लगा दी है। हालांकि कोर्ट ने उन्हें ट्रायल कोर्ट में पेश होने को कहा है।
जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने मानहानि मामले को रद्द करने से इनकार करने के मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के 25 अक्टूबर के आदेश को चुनौती देने वाली तीनों भाजपा नेताओं की याचिका पर तन्खा को चार हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
पीठ ने कहा, 'मानहानि मामले में अदालत के समक्ष जारी कार्यवाही में याचिकाकर्ताओं की प्रभावी भागीदारी की सूरत में उनके खिलाफ जमानती वारंट की तामील नहीं की जाएगी।' कोर्ट ने कहा कि तीनों नेताओं के खिलाफ जमानती वॉरंट की जरूरत नहीं है, लेकिन ये तीनों नेता अपने वकीलों के साथ ट्रायल कोर्ट में पेश होंगे।' शिवराज और अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने कहा कि तन्खा की शिकायत में जिन कथित बयानों का जिक्र किया गया है, वे सदन में दिए गए थे और संविधान के अनुच्छेद 194 (2) के दायरे में आते हैं।
अनुच्छेद 194 (2) में कहा गया है, 'किसी राज्य के विधानमंडल का कोई भी सदस्य विधानमंडल या उसकी किसी समिति में कही गई किसी भी बात या डाले गए वोट के संबंध में किसी भी अदालत में किसी भी कार्यवाही का सामना करने के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।' इसमें यह भी कहा गया है, 'कोई भी व्यक्ति ऐसे विधानमंडल के सदन द्वारा या उसके अधिकार क्षेत्र के तहत किसी भी रिपोर्ट, दस्तावेज, मतदान या कार्यवाही के प्रकाशन के संबंध में अदालत में किसी भी कार्यवाही का सामना करने के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।' जेठमलानी ने दलील दी कि ऐसा कभी नहीं सुना गया कि समन से जुड़े ऐसे मामले में अदालत ने जमानती वारंट जारी किया हो, जिसमें पक्षकार अपने वकील के माध्यम से पेश हो सकते थे। उन्होंने जमानती वारंट की तामील पर रोक लगाने का अनुरोध किया।
जेठमलानी ने कहा कि शिकायतकर्ता द्वारा मानहानिकारक बताए जाने वाले दो बयान 2021 में राज्य में पंचायत चुनावों पर रोक लगाने वाले शीर्ष अदालत के आदेश से जुड़े एक मामले में क्रमशः 22 और 25 दिसंबर को दिए गए थे।
उन्होंने कहा, 'इस अदालत ने (17 दिसंबर, 2021 को) पंचायत चुनाव पर इस आधार पर रोक लगा दी थी कि कोई ‘रोटेशन’ नहीं हुआ था और कोई परिसीमन नहीं किया गया था।' उन्होंने कहा, ओबीसी आरक्षण के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया, जैसा कि तन्खा ने आरोप लगाया है।