नयी दिल्ली. राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को सांसदों से जनता के विश्वास और अपेक्षाओं का सम्मान करने की अपील करते हुए कहा कि दुनिया हमारे लोकतंत्र को देखती है, फिर भी हम अपने आचरण से अपने नागरिकों को निराश करते हैं। ये संसदीय व्यवधान जनता के विश्वास और अपेक्षाओं का मज़ाक उड़ाते हैं।
श्री धनखड़ ने सुबह सदन की कार्यवाही शुरू होने के बाद विपक्ष विशेषकर कांग्रेस सदस्यों के हंगामे के कारण कार्यवाही दोपहर 12 बजे तक स्थगित करने से पहले सांसदों से जवाबदेही और आत्मनिरीक्षण का आह्वान भी किया। उन्होंने सदन में व्यवधान के बीच संसदीय कार्यवाही की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा,“माननीय सदस्यों, दुनिया हमारे लोकतंत्र को देखती है, फिर भी हम अपने आचरण से अपने नागरिकों को निराश करते हैं। ये संसदीय व्यवधान जनता के विश्वास और अपेक्षाओं का मज़ाक उड़ाते हैं। परिश्रम के साथ सेवा करने का हमारा मौलिक कर्तव्य उपेक्षित है। जहाँ तर्कसंगत संवाद होना चाहिए, वहाँ हम केवल अराजकता देखते हैं। मैं प्रत्येक सांसद से, चाहे वह किसी भी पार्टी का हो, अपने विवेक की जाँच करने का आग्रह करता हूँ।”
उन्होंने कहा, “ हमारे लोकतंत्र के नागरिक - मानवता का छठा हिस्सा - इस तमाशे से बेहतर के हकदार हैं। हम उन बहुमूल्य अवसरों को बर्बाद कर देते हैं, जो हमारे लोगों की भलाई के लिए काम आ सकते थे। मुझे उम्मीद है कि सदस्य गहराई से आत्मनिरीक्षण करेंगे, और नागरिक अपनी जवाबदेही का प्रयोग करेंगे। ये पवित्र सदन ऐसे आचरण के हकदार हैं जो हमारी शपथ का सम्मान करते हैं, न कि ऐसे नाटक जो इसे धोखा देते हैं।”
नयी दिल्ली. राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को सांसदों से जनता के विश्वास और अपेक्षाओं का सम्मान करने की अपील करते हुए कहा कि दुनिया हमारे लोकतंत्र को देखती है, फिर भी हम अपने आचरण से अपने नागरिकों को निराश करते हैं। ये संसदीय व्यवधान जनता के विश्वास और अपेक्षाओं का मज़ाक उड़ाते हैं।
श्री धनखड़ ने सुबह सदन की कार्यवाही शुरू होने के बाद विपक्ष विशेषकर कांग्रेस सदस्यों के हंगामे के कारण कार्यवाही दोपहर 12 बजे तक स्थगित करने से पहले सांसदों से जवाबदेही और आत्मनिरीक्षण का आह्वान भी किया। उन्होंने सदन में व्यवधान के बीच संसदीय कार्यवाही की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा,“माननीय सदस्यों, दुनिया हमारे लोकतंत्र को देखती है, फिर भी हम अपने आचरण से अपने नागरिकों को निराश करते हैं। ये संसदीय व्यवधान जनता के विश्वास और अपेक्षाओं का मज़ाक उड़ाते हैं। परिश्रम के साथ सेवा करने का हमारा मौलिक कर्तव्य उपेक्षित है। जहाँ तर्कसंगत संवाद होना चाहिए, वहाँ हम केवल अराजकता देखते हैं। मैं प्रत्येक सांसद से, चाहे वह किसी भी पार्टी का हो, अपने विवेक की जाँच करने का आग्रह करता हूँ।”
उन्होंने कहा, “ हमारे लोकतंत्र के नागरिक - मानवता का छठा हिस्सा - इस तमाशे से बेहतर के हकदार हैं। हम उन बहुमूल्य अवसरों को बर्बाद कर देते हैं, जो हमारे लोगों की भलाई के लिए काम आ सकते थे। मुझे उम्मीद है कि सदस्य गहराई से आत्मनिरीक्षण करेंगे, और नागरिक अपनी जवाबदेही का प्रयोग करेंगे। ये पवित्र सदन ऐसे आचरण के हकदार हैं जो हमारी शपथ का सम्मान करते हैं, न कि ऐसे नाटक जो इसे धोखा देते हैं।”