दिल्ली विधानसभा चुनाव में कई राजनीतिक दल जनता को अपनी तरफ करने के लिए लोकलुभावन घोषणाएं कर रहे हैं, योजनाएं बना रहे हैं,लोगों को बता रहे हैं कि हमारी सरकार आएगी तो हम आपके लिए क्या क्या करने वाले हैं।केजरीवाल जनता को अपनी तरफ करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं कि जनता की नाराजगी के चलते जो नुकसान होने वाला है, उसकी भरपाई कैसे की जाए।इसके लिए वह अपना जनाधार बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं।उनका आत्मविश्वास भले ही पिछले चुनावों की तरह न हो लेकिन उनको उम्मीद है कि दिल्ली के लोगों के लिए जितना काम उन्होंने दस साल में किया है,उसके चलते जीत उनकी ही होनी है।
इंडी गठबंधन के कुछ दल भी उनके साथ आ गए हैं।इससे भी उनका हौसला बढ़ा हुआ है।वह इस बात से खुश हैं कि इंडी गठबंधन के कई दल उऩका समर्थन कर रहे हैं, कांग्रेस का नहीं कर रहे हैं। इससे जमीनी स्तर पर केजरीवाल की पार्टी को वोट प्रतिशत तो नहीं बढ़ने वाला है लेकिन इंडी गठबंधन के दलों के उनका समर्थन करने व चुनाव में उनकी पार्टी के लिए प्रचार करने से कुछ तो माहौल उनके पक्ष में बनेगा।इससे यह भी संदेश दिल्ली व देश की जनता में जाएगा कि इंडी गठबंधन में कांग्रेस का समर्थन कम हो रहा है और आप का समर्थन बढ़ रहा है। यह भी कह सकते हैं कि इंडी गठबंधन के कई दलों की कांग्रेस से दूरी बढ़ रही है और केजरीवाल से निकटता बढ़ रही है।
ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि इंडी गठबंधन के कुछ दल कांग्रेस की जगह केजरीवाल का समर्थन क्यों कर रहे हैं। इसकी एक वजह तो यही है कि वह बताना चाहते हैं कि राहुल गांधी का नेतृत्व उनको पसंद नहीं है, ऐसा वह पहले भी बता चुके हैं तथा ममता बैनर्जी को इंडी गठबंधन का नेतृत्व सौंपने की बात कही जा चुकी है। कई दलों सहित लालू प्रसाद ने कांग्रेस की जगह ममता का पक्ष लिया था।
दूसरी वजह यह हो सकती है कि दिल्ली में कांग्रेस आप की तुलना में कमजोर है, वह तीन चुनाव हार चुकी है तथा उसकाे मिले मतों का प्रतिशत बहुत कम है।ऐसे में इंडी गठबंधन के दल कांग्रेस का समर्थन क्यों करेंगे जब वह चौथी बार भी जीतने वाली नही है,उनको पता है कि चुनाव आप जीत सकती है, उसकी स्थिति दिल्ली में मजबूत है। इंडी गठबंधन के कई दल जीतने वाले दल का समर्थन कर रहे हैं ताकि वह जीते तो उनको भी कुछ श्रेय मिले कि इन लोगों ने केजरीवाल का समर्थन किया इसलिए केजरीवाल चौथी बार चुनाव जीत गए।
लोकसभा चुनाव के बाद हुए राज्यों के चुनाव में कांग्रेस ज्यादातर राज्यों चुनाव हारी है, जिन राज्यों में उसने अकेले चुनाव लड़ा है, उसमें उसकी हार हुई है।चाहे छत्तीसगढ़, मप्र, राजस्थान,महाराष्ट्र,हरियाणा का चुनाव इसका उदाहरण है, इंडी गठबंधन के दल तो चाहते थे कि उनको भी इन राज्यों मेें चुनाव लड़ने के लिए सीट दी जाए, कांग्रेस ने किसी को एक सीट नहीं दी। अकेले चुनाव लड़ी और हार गई।लोकसभा चुनाव के बाद दस राज्यों में चुनाव हो चुके हैं,कांग्रेस तेलंगाना को छोड़कर किसी राज्य में चुनाव नहीं जीत सकी है।जम्मू कश्मीर व झारखंड में इंडी गठबंधन के दल जीते हैं। इन दोनों राज्यों में भी कांग्रेस को जो सफलता मिली है, वह गठबंधन के दलों के कारण मिली है।
कांग्रेस के नेता भले राहुल गांधी के नेतृत्व को इतनी हार के बाद भी भले न नकारें लेकिन इंडी गठबंधन केे कई दल नकारने लगे हैं। वह नहीं चाहते हैं कि अब गठबंधन का नेता राहुल गांधी को नहीं रहना चाहिए।उनको खुद ही इससे अलग हो जाना चाहिए। क्योंकि वह गठबंधन को ठीक से चला नहीं पाए हैं, लोकसभा चुनाव के बाद गठबंधन की एक बैठक तक नहीं हुई है। राहुल गांधी का गठबंधन के नेताओं से कोई संवाद भी नहीं है। वह गठबंधन को एकजुट नहीं रख सके हैं। इसके चलते गठबंधन में दरारें पड़ गई हैं।उमर अब्दुल्ला जैसे नेता तो यहां तक कह रहे हैं, यह बेमेल संगठन है, इसे अब भंग कर देना चाहिए। इससे साफ हो जाता है कि लोकसभा चुनाव के बाद इंडी गठबंधन नाम को रह गया है।उसका कोई उपयोग नहीं रह गया है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में कई राजनीतिक दल जनता को अपनी तरफ करने के लिए लोकलुभावन घोषणाएं कर रहे हैं, योजनाएं बना रहे हैं,लोगों को बता रहे हैं कि हमारी सरकार आएगी तो हम आपके लिए क्या क्या करने वाले हैं।केजरीवाल जनता को अपनी तरफ करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं कि जनता की नाराजगी के चलते जो नुकसान होने वाला है, उसकी भरपाई कैसे की जाए।इसके लिए वह अपना जनाधार बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं।उनका आत्मविश्वास भले ही पिछले चुनावों की तरह न हो लेकिन उनको उम्मीद है कि दिल्ली के लोगों के लिए जितना काम उन्होंने दस साल में किया है,उसके चलते जीत उनकी ही होनी है।
इंडी गठबंधन के कुछ दल भी उनके साथ आ गए हैं।इससे भी उनका हौसला बढ़ा हुआ है।वह इस बात से खुश हैं कि इंडी गठबंधन के कई दल उऩका समर्थन कर रहे हैं, कांग्रेस का नहीं कर रहे हैं। इससे जमीनी स्तर पर केजरीवाल की पार्टी को वोट प्रतिशत तो नहीं बढ़ने वाला है लेकिन इंडी गठबंधन के दलों के उनका समर्थन करने व चुनाव में उनकी पार्टी के लिए प्रचार करने से कुछ तो माहौल उनके पक्ष में बनेगा।इससे यह भी संदेश दिल्ली व देश की जनता में जाएगा कि इंडी गठबंधन में कांग्रेस का समर्थन कम हो रहा है और आप का समर्थन बढ़ रहा है। यह भी कह सकते हैं कि इंडी गठबंधन के कई दलों की कांग्रेस से दूरी बढ़ रही है और केजरीवाल से निकटता बढ़ रही है।
ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि इंडी गठबंधन के कुछ दल कांग्रेस की जगह केजरीवाल का समर्थन क्यों कर रहे हैं। इसकी एक वजह तो यही है कि वह बताना चाहते हैं कि राहुल गांधी का नेतृत्व उनको पसंद नहीं है, ऐसा वह पहले भी बता चुके हैं तथा ममता बैनर्जी को इंडी गठबंधन का नेतृत्व सौंपने की बात कही जा चुकी है। कई दलों सहित लालू प्रसाद ने कांग्रेस की जगह ममता का पक्ष लिया था।
दूसरी वजह यह हो सकती है कि दिल्ली में कांग्रेस आप की तुलना में कमजोर है, वह तीन चुनाव हार चुकी है तथा उसकाे मिले मतों का प्रतिशत बहुत कम है।ऐसे में इंडी गठबंधन के दल कांग्रेस का समर्थन क्यों करेंगे जब वह चौथी बार भी जीतने वाली नही है,उनको पता है कि चुनाव आप जीत सकती है, उसकी स्थिति दिल्ली में मजबूत है। इंडी गठबंधन के कई दल जीतने वाले दल का समर्थन कर रहे हैं ताकि वह जीते तो उनको भी कुछ श्रेय मिले कि इन लोगों ने केजरीवाल का समर्थन किया इसलिए केजरीवाल चौथी बार चुनाव जीत गए।
लोकसभा चुनाव के बाद हुए राज्यों के चुनाव में कांग्रेस ज्यादातर राज्यों चुनाव हारी है, जिन राज्यों में उसने अकेले चुनाव लड़ा है, उसमें उसकी हार हुई है।चाहे छत्तीसगढ़, मप्र, राजस्थान,महाराष्ट्र,हरियाणा का चुनाव इसका उदाहरण है, इंडी गठबंधन के दल तो चाहते थे कि उनको भी इन राज्यों मेें चुनाव लड़ने के लिए सीट दी जाए, कांग्रेस ने किसी को एक सीट नहीं दी। अकेले चुनाव लड़ी और हार गई।लोकसभा चुनाव के बाद दस राज्यों में चुनाव हो चुके हैं,कांग्रेस तेलंगाना को छोड़कर किसी राज्य में चुनाव नहीं जीत सकी है।जम्मू कश्मीर व झारखंड में इंडी गठबंधन के दल जीते हैं। इन दोनों राज्यों में भी कांग्रेस को जो सफलता मिली है, वह गठबंधन के दलों के कारण मिली है।
कांग्रेस के नेता भले राहुल गांधी के नेतृत्व को इतनी हार के बाद भी भले न नकारें लेकिन इंडी गठबंधन केे कई दल नकारने लगे हैं। वह नहीं चाहते हैं कि अब गठबंधन का नेता राहुल गांधी को नहीं रहना चाहिए।उनको खुद ही इससे अलग हो जाना चाहिए। क्योंकि वह गठबंधन को ठीक से चला नहीं पाए हैं, लोकसभा चुनाव के बाद गठबंधन की एक बैठक तक नहीं हुई है। राहुल गांधी का गठबंधन के नेताओं से कोई संवाद भी नहीं है। वह गठबंधन को एकजुट नहीं रख सके हैं। इसके चलते गठबंधन में दरारें पड़ गई हैं।उमर अब्दुल्ला जैसे नेता तो यहां तक कह रहे हैं, यह बेमेल संगठन है, इसे अब भंग कर देना चाहिए। इससे साफ हो जाता है कि लोकसभा चुनाव के बाद इंडी गठबंधन नाम को रह गया है।उसका कोई उपयोग नहीं रह गया है।