दिल्ली में AAP की हार से भगवंत मान को सताने लगा ये डर, जानिए पंजाब में:

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अरविंद केजरीवाल ने 2014 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी से नरेंद्र मोदी
के खिलाफ चुनाव लड़ा था और उन्हें तीन लाख से ज्यादा मतों से हार का सामना
करना पड़ा था। तब आम आदमी पार्टी की उम्र भी दो साल से कम थी। अब जब आम
आदमी पार्टी 12 साल की हो चुकी है, केजरीवाल को दिल्ली विधानसभा चुनाव में
बीजेपी के नेता प्रवेश वर्मा से चार हजार से ज्यादा मतों से हार का सामना
करना पड़ा।



यह केजरीवाल की दूसरी हार थी। पहली हार उन्हें मोदी से मिली थी और दूसरी
हार राज्य स्तर के नेता से। आम आदमी पार्टी की शुरुआत दिल्ली से हुई थी और
उसने 2013 से लगातार दिल्ली विधानसभा चुनाव जीते थे, लेकिन 2025 में
पार्टी की हार ने इस विजय रथ को रोक दिया।



केजरीवाल की यह हार उस समय हुई है, जब वे भ्रष्टाचार के मामले में जमानत
पर जेल से बाहर हैं। केजरीवाल ने जमानत मिलने के बाद मुख्यमंत्री पद से
इस्तीफा दे दिया था और कहा था कि जनता तय करेगी कि वे ईमानदार हैं या नहीं।
अगर वे चुनाव जीत जाते, तो इससे आत्मविश्वास बढ़ता और वे बीजेपी पर आरोप
लगा सकते थे कि उन्हें जानबूझकर फंसाया गया था, लेकिन अब ऐसा कहना मुश्किल
होगा।

इस हार का असर दिल्ली की राजनीति पर पड़ेगा, और अब आम आदमी पार्टी की
सरकार केवल पंजाब में बची है। ऐसे में पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का मानना है कि
इस हार से पंजाब में आम आदमी पार्टी की यूनिट को स्वतंत्रता मिलेगी, और
केजरीवाल का दखल कम होगा। हालांकि, पंजाब में आप की सरकार मजबूत है और
भगवंत मान केजरीवाल के वफादार माने जाते हैं, फिर भी अब वे अपनी स्थिति को
लेकर आत्मनिर्भर हो सकते हैं।



राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस को इस हार से लाभ हो सकता
है, क्योंकि पंजाब में कांग्रेस पहले से मजबूत है। आप की इस हार के बाद
पंजाब में आम आदमी पार्टी की वापसी आसान नहीं होगी। यदि आम आदमी पार्टी और
कांग्रेस के बीच गठबंधन होता तो दिल्ली में बीजेपी के खिलाफ स्थिति कुछ और
हो सकती थी।


अरविंद केजरीवाल ने 2014 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी से नरेंद्र मोदी
के खिलाफ चुनाव लड़ा था और उन्हें तीन लाख से ज्यादा मतों से हार का सामना
करना पड़ा था। तब आम आदमी पार्टी की उम्र भी दो साल से कम थी। अब जब आम
आदमी पार्टी 12 साल की हो चुकी है, केजरीवाल को दिल्ली विधानसभा चुनाव में
बीजेपी के नेता प्रवेश वर्मा से चार हजार से ज्यादा मतों से हार का सामना
करना पड़ा।



यह केजरीवाल की दूसरी हार थी। पहली हार उन्हें मोदी से मिली थी और दूसरी
हार राज्य स्तर के नेता से। आम आदमी पार्टी की शुरुआत दिल्ली से हुई थी और
उसने 2013 से लगातार दिल्ली विधानसभा चुनाव जीते थे, लेकिन 2025 में
पार्टी की हार ने इस विजय रथ को रोक दिया।



केजरीवाल की यह हार उस समय हुई है, जब वे भ्रष्टाचार के मामले में जमानत
पर जेल से बाहर हैं। केजरीवाल ने जमानत मिलने के बाद मुख्यमंत्री पद से
इस्तीफा दे दिया था और कहा था कि जनता तय करेगी कि वे ईमानदार हैं या नहीं।
अगर वे चुनाव जीत जाते, तो इससे आत्मविश्वास बढ़ता और वे बीजेपी पर आरोप
लगा सकते थे कि उन्हें जानबूझकर फंसाया गया था, लेकिन अब ऐसा कहना मुश्किल
होगा।

इस हार का असर दिल्ली की राजनीति पर पड़ेगा, और अब आम आदमी पार्टी की
सरकार केवल पंजाब में बची है। ऐसे में पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का मानना है कि
इस हार से पंजाब में आम आदमी पार्टी की यूनिट को स्वतंत्रता मिलेगी, और
केजरीवाल का दखल कम होगा। हालांकि, पंजाब में आप की सरकार मजबूत है और
भगवंत मान केजरीवाल के वफादार माने जाते हैं, फिर भी अब वे अपनी स्थिति को
लेकर आत्मनिर्भर हो सकते हैं।



राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस को इस हार से लाभ हो सकता
है, क्योंकि पंजाब में कांग्रेस पहले से मजबूत है। आप की इस हार के बाद
पंजाब में आम आदमी पार्टी की वापसी आसान नहीं होगी। यदि आम आदमी पार्टी और
कांग्रेस के बीच गठबंधन होता तो दिल्ली में बीजेपी के खिलाफ स्थिति कुछ और
हो सकती थी।


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