महाकुंभ में संगम स्नान का तभी मिलेगा पुण्य, जब करेंगे यह काम:

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प्रयागराज में 45 दिन से चल रहा महाकुम्भ बुधवार को सम्पन्न हुआ. इस दौरान 66.31 करोड़ लोगों ने स्नान किया. अंतिम दिन डेढ़ करोड़ लोग पहुंचे. यह संख्या चीन-भारत को छोड़कर बाकी कई देशों की आबादी से अधिक है. कहा जाता है कि गंगा स्नान से धूल जाते हैं. लेकिन, क्या सच में सिर्फ गंगा में डुबकी लगाने से ही जीवन के सभी दोष मिट सकते हैं?

इस सवाल का जवाब जानने के लिए लोकल 18 ने पटना के मशहूर ज्योतिषविद डॉ. श्रीपति त्रिपाठी ने बातचीत की. उन्होंने बताया कि अगर केवल स्नान से ही मोक्ष मिल जाता, तो फिर शास्त्रों में अच्छे कर्मों और धर्म का इतना महत्व क्यों दिया गया है. उन्होंने इस सवाल का जवाब महाभारत और शास्त्रों में कही गई बातों के आधार पर समझाया है.

भीष्म पितामह का गंगा से है संबंध

मशहूर ज्योतिषविद डॉ. श्रीपति त्रिपाठी के अनुसार भीष्म पितामह स्वयं गंगा के पुत्र थे और महान योद्धा के साथ धर्मज्ञ थे. लेकिन, उन्होंने दुर्योधन का अन्न खाया और उसका साथ दिया, जिससे उनकी सोच प्रभावित हुई. नतीजन, वे बाणों की शैया पर तब तक पड़े रहे जब तक कि उत्तरायण का समय नहीं आया. महाभारत में भीष्म कहते हैं, “अन्नं हि सर्वभूतानां जीवनं, तदनुबन्धस्तु जीवितं। यदन्नं भजते नित्यं, स तद्भावेन युज्यते”. इसका मतलब यह हुआ कि “जो जैसा अन्न ग्रहण करता है, उसकी बुद्धि भी वैसी ही बनती है”. यानी अगर संगति गलत होगी, तो सोच भी प्रभावित होगी. इससे सीख मिलती है कि सिर्फ गंगा स्नान से पाप नहीं धुलते, बल्कि सही कर्म भी जरूरी हैं.

शास्त्रों में क्या कहा गया है?

पुराणों में कहा गया है कि गंगा स्नान से पाप नष्ट होते हैं. स्कंद पुराण में लिखा है, “गंगे तव दर्शनात् स्पर्शनात् स्नानात् पापं विनश्यति”. यानी गंगा का दर्शन, स्पर्श और स्नान मात्र से पाप समाप्त हो जाते हैं. लेकिन, इसका मतलब यह नहीं कि केवल स्नान कर लेने से ही मोक्ष मिल जाएगा. गरुड़ पुराण में स्पष्ट कहा गया है कि सच्ची मुक्ति के लिए अच्छे कर्म और पवित्र आचरण भी जरूरी हैं.

गंगा स्नान के साथ क्या करना चाहिए?

डॉ. श्रीपति त्रिपाठी के अनुसार पाप मुक्त होने और मोक्ष की प्राप्ति के लिए गंगा में डुबकी लगाने के साथ ही अपने विचारों और कर्मों को भी शुद्ध करना होगा. सत्य, अहिंसा, परोपकार और धर्म के मार्ग पर चलें, तभी पाप मुक्त हो सकते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि गलत संगति से व्यक्ति का नैतिक पतन होता है. इसलिए, अच्छे लोगों के साथ रहना जरूरी है. गंगा स्नान का असली लाभ तब मिलेगा, जब हम जरूरतमंदों की सेवा करेंगे और अच्छे कार्य करेंगे.


प्रयागराज में 45 दिन से चल रहा महाकुम्भ बुधवार को सम्पन्न हुआ. इस दौरान 66.31 करोड़ लोगों ने स्नान किया. अंतिम दिन डेढ़ करोड़ लोग पहुंचे. यह संख्या चीन-भारत को छोड़कर बाकी कई देशों की आबादी से अधिक है. कहा जाता है कि गंगा स्नान से धूल जाते हैं. लेकिन, क्या सच में सिर्फ गंगा में डुबकी लगाने से ही जीवन के सभी दोष मिट सकते हैं?

इस सवाल का जवाब जानने के लिए लोकल 18 ने पटना के मशहूर ज्योतिषविद डॉ. श्रीपति त्रिपाठी ने बातचीत की. उन्होंने बताया कि अगर केवल स्नान से ही मोक्ष मिल जाता, तो फिर शास्त्रों में अच्छे कर्मों और धर्म का इतना महत्व क्यों दिया गया है. उन्होंने इस सवाल का जवाब महाभारत और शास्त्रों में कही गई बातों के आधार पर समझाया है.

भीष्म पितामह का गंगा से है संबंध

मशहूर ज्योतिषविद डॉ. श्रीपति त्रिपाठी के अनुसार भीष्म पितामह स्वयं गंगा के पुत्र थे और महान योद्धा के साथ धर्मज्ञ थे. लेकिन, उन्होंने दुर्योधन का अन्न खाया और उसका साथ दिया, जिससे उनकी सोच प्रभावित हुई. नतीजन, वे बाणों की शैया पर तब तक पड़े रहे जब तक कि उत्तरायण का समय नहीं आया. महाभारत में भीष्म कहते हैं, “अन्नं हि सर्वभूतानां जीवनं, तदनुबन्धस्तु जीवितं। यदन्नं भजते नित्यं, स तद्भावेन युज्यते”. इसका मतलब यह हुआ कि “जो जैसा अन्न ग्रहण करता है, उसकी बुद्धि भी वैसी ही बनती है”. यानी अगर संगति गलत होगी, तो सोच भी प्रभावित होगी. इससे सीख मिलती है कि सिर्फ गंगा स्नान से पाप नहीं धुलते, बल्कि सही कर्म भी जरूरी हैं.

शास्त्रों में क्या कहा गया है?

पुराणों में कहा गया है कि गंगा स्नान से पाप नष्ट होते हैं. स्कंद पुराण में लिखा है, “गंगे तव दर्शनात् स्पर्शनात् स्नानात् पापं विनश्यति”. यानी गंगा का दर्शन, स्पर्श और स्नान मात्र से पाप समाप्त हो जाते हैं. लेकिन, इसका मतलब यह नहीं कि केवल स्नान कर लेने से ही मोक्ष मिल जाएगा. गरुड़ पुराण में स्पष्ट कहा गया है कि सच्ची मुक्ति के लिए अच्छे कर्म और पवित्र आचरण भी जरूरी हैं.

गंगा स्नान के साथ क्या करना चाहिए?

डॉ. श्रीपति त्रिपाठी के अनुसार पाप मुक्त होने और मोक्ष की प्राप्ति के लिए गंगा में डुबकी लगाने के साथ ही अपने विचारों और कर्मों को भी शुद्ध करना होगा. सत्य, अहिंसा, परोपकार और धर्म के मार्ग पर चलें, तभी पाप मुक्त हो सकते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि गलत संगति से व्यक्ति का नैतिक पतन होता है. इसलिए, अच्छे लोगों के साथ रहना जरूरी है. गंगा स्नान का असली लाभ तब मिलेगा, जब हम जरूरतमंदों की सेवा करेंगे और अच्छे कार्य करेंगे.


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