जांजगीर-चांपा । दिगंबर जैन समाज नैला के द्वारा मंगल भवन जांजगीर में
समयदास अविनाशी द्वारा रचित ग्रंथ जैन दर्शन महाकाव्य का विमोचन मुख्य
अतिथि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश गौतम चौरडिया ने किया। काव्य ग्रंथ जैन
दर्शन भगवान महावीर के व्यक्तित्व और उपदेशों पर आधारित है। कार्यक्रम का
शुभारंभ मुख्य अतिथि चौरड़िया एवं अतिथियों ने मां सरस्वती एवं भगवान महावीर
के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्वलित कर किया। धृति जैन ने मां सरस्वती
की वंदना की। कार्यक्रम की अध्यक्षता कार्यवाहक जिला न्यायाधीश खिलावन राम
रिगरी ने की। विशिष्ट अतिथि प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट सुरेश जून व
संतोष महोबिया थे।न्यायाध्ाीश चौरड़िया ने
कहा कि भगवान महावीर छठी शताब्दी ईसा पूर्व के महानायक थे। उन्होंने कहा कि
वे जैन जरूर हैं लेकिन मानवता को ध्यान में रखते हुए उनका प्रमुख उद्देश्य
यही है कि सभी को समान अधिकार मिले। सभी के धर्म की मान्यता एक ही है
मानने का तरीका अलग - अलग रहता है। उन्होंने जीवन के लिए सत्य अहिंसा
अस्तेय अपरिग्रह को मान्यता में रखा। अहिंसा सत्य है और सत्य में अहिंसा का
होना जरूरी है, उसके बिना जीवन अपनी मंजिल नहीं पा सकता। कठिन से कठिन
परिस्थितियों में भी जैन विचलित नहीं होते हैं। अविनाशी कृत जैन दर्शन
इन्हीं सब बातों पर आधारित है । कार्यक्रम अध्यक्ष न्यायाधीश खिलावन राम
रिगरी ने कहा कि भगवान महावीर का जन्म हुआ तब पूरी सृष्टि प्रकाश मय हो गई,
अज्ञानता मिट गई क्योंकि भगवान महावीर ने सत्य अहिंसा परमो धर्म का मंत्र
दिया।
जांजगीर-चांपा । दिगंबर जैन समाज नैला के द्वारा मंगल भवन जांजगीर में
समयदास अविनाशी द्वारा रचित ग्रंथ जैन दर्शन महाकाव्य का विमोचन मुख्य
अतिथि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश गौतम चौरडिया ने किया। काव्य ग्रंथ जैन
दर्शन भगवान महावीर के व्यक्तित्व और उपदेशों पर आधारित है। कार्यक्रम का
शुभारंभ मुख्य अतिथि चौरड़िया एवं अतिथियों ने मां सरस्वती एवं भगवान महावीर
के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्वलित कर किया। धृति जैन ने मां सरस्वती
की वंदना की। कार्यक्रम की अध्यक्षता कार्यवाहक जिला न्यायाधीश खिलावन राम
रिगरी ने की। विशिष्ट अतिथि प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट सुरेश जून व
संतोष महोबिया थे।न्यायाध्ाीश चौरड़िया ने
कहा कि भगवान महावीर छठी शताब्दी ईसा पूर्व के महानायक थे। उन्होंने कहा कि
वे जैन जरूर हैं लेकिन मानवता को ध्यान में रखते हुए उनका प्रमुख उद्देश्य
यही है कि सभी को समान अधिकार मिले। सभी के धर्म की मान्यता एक ही है
मानने का तरीका अलग - अलग रहता है। उन्होंने जीवन के लिए सत्य अहिंसा
अस्तेय अपरिग्रह को मान्यता में रखा। अहिंसा सत्य है और सत्य में अहिंसा का
होना जरूरी है, उसके बिना जीवन अपनी मंजिल नहीं पा सकता। कठिन से कठिन
परिस्थितियों में भी जैन विचलित नहीं होते हैं। अविनाशी कृत जैन दर्शन
इन्हीं सब बातों पर आधारित है । कार्यक्रम अध्यक्ष न्यायाधीश खिलावन राम
रिगरी ने कहा कि भगवान महावीर का जन्म हुआ तब पूरी सृष्टि प्रकाश मय हो गई,
अज्ञानता मिट गई क्योंकि भगवान महावीर ने सत्य अहिंसा परमो धर्म का मंत्र
दिया।