भोजन का अधिकार अधिनियम
झारखंड ने प्रदेश की हेमंत सोरेन सरकार से मांग की है कि वह वर्ष 2023-24
के बजट में अंडा, मातृत्व हक, पेंशन और राशन को प्राथमिका दे. बुधवार को
राजधानी रांची में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस संस्था ने कहा कि झारखंड में कुपोषण की खतरनाक स्थिति को दूर करने के लिए यह जरूरी है.
भोजन का अभियान झारखंड
ने कहा है कि राज्य से कुपोषण को खत्म करने के लिए सरकार को मध्याह्न भोजन
और आंगनबाड़ी केंद्रों में हर दिन बच्चों को अंडा देना चाहिए. संस्था की
ओर से कहा गया है कि सरकारी स्कूलों में सप्ताह में पांच अंडे और आंगनबाड़ी
केंद्रों में सप्ताह में 6 अंडे देने का वादा झारखंड की हेमंत सोरेन की सरकार ने बार-बार किया है. लेकिन, आज तक उन वादों को पूरा नहीं किया.
प्रेस
कॉन्फ्रेंस के बाद भोजन का अधिकार अधिनियम झारखंड ने एक प्रेस विज्ञप्ति
जारी की, जिसमें कहा कि अभी स्कूलों में एक सप्ताह में बच्चों को दो अंडे
मिलते हैं. छह साल से कम उम्र के बच्चों को एक भी अंडा अभी नहीं मिल रहा
है. इसमें कहा गया है कि झारखंड में कुपोषण से निबटने में अंडा अहम भूमिका
निभा सकता है. पिछले सप्ताह सैकड़ों लोगों ने झारखंड के मुख्यमंत्री को
चिट्ठी लिखकर मध्याह्न भोजन और आंगनबाड़ी केंद्रों में हर दिन अंडा देने की
मांग की थी. इसमें यह भी बताया गया है कि देश के कई राज्य पहले से ही ऐसा
कर रहे हैं.
संस्था
ने मातृत्व अधिकारों के सार्वभौमीकरण की भी मांग की है. उसका कहना है कि
प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के तहत महिलाओं को पहले बच्चे के लिए 5,000
रुपये का मातृत्व लाभ दिया जाता है (अगर दूसरा बच्चा लड़की है, तो उसके लिए
विस्तारित). यह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन
करता है, जो बिना किसी शर्त के 6,000 रुपये मातृत्व लाभ देने के लिए कहता
है.
मातृत्व
लाभ से माताओं को अपने पोषण में सुधार करने और अपने नवजात बच्चे की बेहतर
देखभाल करने में मदद मिल सकती है. झारखंड में यह पात्रता विशेष रूप से
महत्वपूर्ण है, जहां शिशु मृत्यु दर 38 फीसदी है. यहां 57 फीसदी गर्भवती
महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं. सरका को एनएफएसए मानदंडों के अनुरूप हर
बच्चे पर मातृत्व अधिकार सुनिश्चित करना चाहिए और लाभ की राशि का समय पर
वितरण करना चाहिए.
संस्था
ने कहा है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने वर्ष 2019 के विधानसभा
चुनाव में जो घोषणा पत्र जारी किया था, उसमें बुजुर्गों, विधवा और
नि:शक्तों के लिए सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि को 1,000 रुपये से बढ़ाकर
2,500 रुपये प्रति माह करने का वादा किया था. बावजूद इसके अब भी लोगों को
1,000 रुपये ही पेंशन मिल रही है. सरकार को तुरंत इस मासिक पेंशन को बढ़ाकर
कम से कम 3,000 रुपये कर देना चाहिए.
का अधिकार अधिनियम झारखंड ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि ग्रीन कार्ड
धारकों को नियमित रूप से चावल की आपूर्ति सुनिश्चित करनी चाहिए. ग्रीन राशन
कार्ड जारी करने के इस सरकार के फैसले को संस्था ने सराहनीय कदम बताया है.
साथ ही कहका है कि पिछले कई महीनों से इस श्रेणी के राशन कार्ड धारकों को
चावल की आपूर्ति नियमित रूप से नहीं हो रही है. सरकार को इसका समाधान तुरंत
करना चाहिए
भोजन का अधिकार अधिनियम
झारखंड ने प्रदेश की हेमंत सोरेन सरकार से मांग की है कि वह वर्ष 2023-24
के बजट में अंडा, मातृत्व हक, पेंशन और राशन को प्राथमिका दे. बुधवार को
राजधानी रांची में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस संस्था ने कहा कि झारखंड में कुपोषण की खतरनाक स्थिति को दूर करने के लिए यह जरूरी है.
भोजन का अभियान झारखंड
ने कहा है कि राज्य से कुपोषण को खत्म करने के लिए सरकार को मध्याह्न भोजन
और आंगनबाड़ी केंद्रों में हर दिन बच्चों को अंडा देना चाहिए. संस्था की
ओर से कहा गया है कि सरकारी स्कूलों में सप्ताह में पांच अंडे और आंगनबाड़ी
केंद्रों में सप्ताह में 6 अंडे देने का वादा झारखंड की हेमंत सोरेन की सरकार ने बार-बार किया है. लेकिन, आज तक उन वादों को पूरा नहीं किया.
प्रेस
कॉन्फ्रेंस के बाद भोजन का अधिकार अधिनियम झारखंड ने एक प्रेस विज्ञप्ति
जारी की, जिसमें कहा कि अभी स्कूलों में एक सप्ताह में बच्चों को दो अंडे
मिलते हैं. छह साल से कम उम्र के बच्चों को एक भी अंडा अभी नहीं मिल रहा
है. इसमें कहा गया है कि झारखंड में कुपोषण से निबटने में अंडा अहम भूमिका
निभा सकता है. पिछले सप्ताह सैकड़ों लोगों ने झारखंड के मुख्यमंत्री को
चिट्ठी लिखकर मध्याह्न भोजन और आंगनबाड़ी केंद्रों में हर दिन अंडा देने की
मांग की थी. इसमें यह भी बताया गया है कि देश के कई राज्य पहले से ही ऐसा
कर रहे हैं.
संस्था
ने मातृत्व अधिकारों के सार्वभौमीकरण की भी मांग की है. उसका कहना है कि
प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के तहत महिलाओं को पहले बच्चे के लिए 5,000
रुपये का मातृत्व लाभ दिया जाता है (अगर दूसरा बच्चा लड़की है, तो उसके लिए
विस्तारित). यह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन
करता है, जो बिना किसी शर्त के 6,000 रुपये मातृत्व लाभ देने के लिए कहता
है.
मातृत्व
लाभ से माताओं को अपने पोषण में सुधार करने और अपने नवजात बच्चे की बेहतर
देखभाल करने में मदद मिल सकती है. झारखंड में यह पात्रता विशेष रूप से
महत्वपूर्ण है, जहां शिशु मृत्यु दर 38 फीसदी है. यहां 57 फीसदी गर्भवती
महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं. सरका को एनएफएसए मानदंडों के अनुरूप हर
बच्चे पर मातृत्व अधिकार सुनिश्चित करना चाहिए और लाभ की राशि का समय पर
वितरण करना चाहिए.
संस्था
ने कहा है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने वर्ष 2019 के विधानसभा
चुनाव में जो घोषणा पत्र जारी किया था, उसमें बुजुर्गों, विधवा और
नि:शक्तों के लिए सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि को 1,000 रुपये से बढ़ाकर
2,500 रुपये प्रति माह करने का वादा किया था. बावजूद इसके अब भी लोगों को
1,000 रुपये ही पेंशन मिल रही है. सरकार को तुरंत इस मासिक पेंशन को बढ़ाकर
कम से कम 3,000 रुपये कर देना चाहिए.
का अधिकार अधिनियम झारखंड ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि ग्रीन कार्ड
धारकों को नियमित रूप से चावल की आपूर्ति सुनिश्चित करनी चाहिए. ग्रीन राशन
कार्ड जारी करने के इस सरकार के फैसले को संस्था ने सराहनीय कदम बताया है.
साथ ही कहका है कि पिछले कई महीनों से इस श्रेणी के राशन कार्ड धारकों को
चावल की आपूर्ति नियमित रूप से नहीं हो रही है. सरकार को इसका समाधान तुरंत
करना चाहिए