फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रंगभरी एकादशी के नाम से जाना
जाता है। इस साल रंगभरी एकादशी 3 मार्च, दिन शुक्रवार को पड़ रही है।
रंगभरी एकादशी की विशेषता यह है कि ये इकलौती ऐसी एकादशी है जिसमें
भगवान विष्णु के अलावा, भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का अत्यधिक
महत्व है। ज्योतिष एक्सपर्ट डॉ राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं कि आखिर क्यों रंगभरी एकादशी पर शिव-पार्वती पूजन माना जाता है खास।
- पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती पहली बार जब भगवान शिव के साथ
काशी नगरी आईं थीं तब फाल्गुन माह की एकादशी तिथि। यह तिथि सामान्य नहीं
बल्कि बहुत खास थी क्योंकि इस दिन भगवान शिव माता पार्वती को गौना कराकर
काशी लेकर आए थे।
- अपने प्रभु के साथ माता पार्वती के आने की प्रसन्नता में भगवान शिव (भगवान शिव के आगे क्यों नहीं लगता श्री)
के सभी देव-गणों ने उनका स्वागत न सिर्फ दीप-आरती से किया था बल्कि जमकर
गुलाल और अबीर भी उड़ाया था। इसी अकारण से इस एकादशी का नाम रंगभरी एकादशी
पड़ गया।
- आज भी फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रंगभरी एकादशी के नाम से मनाया जाता है और चूंकि भगवान शिव पहली बार माता पार्वती (विवाह की बाधा दूर करने के लिए माता पार्वती मंत्र) के साथ काशी आए थे इसी कारण से इस एकादशी पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विशेष विधान है।
- रंगभरी एकादशी के दिन काशी में रंग और गुलाल जमकर उड़ाया जाता है और
भव्य शिव-पार्वती पूजन किया जाता है। काशी की हर एक गली में बस कुछ नजर आता
है तो मात्र गुलाल। मान्यता है कि इस दिन शिव-पार्वती पूजन से वैवाहिक
जीवन मधुर बनता है।
- रंगभरी एकादशी के दिन भगवन शिव और माता पार्वती की पूजा करने से मन
चाहे जीवनसाथी की कामना पूर्ण होती है और उसके जीवन के कष्टों का निवारण भी
हो जाता है। काशी में इस दिन पूरे नगर में शिव बारात निकाली जाती है जिसकी
छटा अद्भुत होती है।
- मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन स्वयं भगवान शिव और माता पार्वती
काशी में आते हैं और माता को नगर भ्रमण कराते हैं। इस दिन जो भी व्यक्ति
भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह कराता है उसे अखंड सौभाग्य का वरदान
मिलता है।
फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रंगभरी एकादशी के नाम से जाना
जाता है। इस साल रंगभरी एकादशी 3 मार्च, दिन शुक्रवार को पड़ रही है।
रंगभरी एकादशी की विशेषता यह है कि ये इकलौती ऐसी एकादशी है जिसमें
भगवान विष्णु के अलावा, भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का अत्यधिक
महत्व है। ज्योतिष एक्सपर्ट डॉ राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं कि आखिर क्यों रंगभरी एकादशी पर शिव-पार्वती पूजन माना जाता है खास।
- पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती पहली बार जब भगवान शिव के साथ
काशी नगरी आईं थीं तब फाल्गुन माह की एकादशी तिथि। यह तिथि सामान्य नहीं
बल्कि बहुत खास थी क्योंकि इस दिन भगवान शिव माता पार्वती को गौना कराकर
काशी लेकर आए थे।
- अपने प्रभु के साथ माता पार्वती के आने की प्रसन्नता में भगवान शिव (भगवान शिव के आगे क्यों नहीं लगता श्री)
के सभी देव-गणों ने उनका स्वागत न सिर्फ दीप-आरती से किया था बल्कि जमकर
गुलाल और अबीर भी उड़ाया था। इसी अकारण से इस एकादशी का नाम रंगभरी एकादशी
पड़ गया।
- आज भी फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रंगभरी एकादशी के नाम से मनाया जाता है और चूंकि भगवान शिव पहली बार माता पार्वती (विवाह की बाधा दूर करने के लिए माता पार्वती मंत्र) के साथ काशी आए थे इसी कारण से इस एकादशी पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विशेष विधान है।
- रंगभरी एकादशी के दिन काशी में रंग और गुलाल जमकर उड़ाया जाता है और
भव्य शिव-पार्वती पूजन किया जाता है। काशी की हर एक गली में बस कुछ नजर आता
है तो मात्र गुलाल। मान्यता है कि इस दिन शिव-पार्वती पूजन से वैवाहिक
जीवन मधुर बनता है।
- रंगभरी एकादशी के दिन भगवन शिव और माता पार्वती की पूजा करने से मन
चाहे जीवनसाथी की कामना पूर्ण होती है और उसके जीवन के कष्टों का निवारण भी
हो जाता है। काशी में इस दिन पूरे नगर में शिव बारात निकाली जाती है जिसकी
छटा अद्भुत होती है।
- मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन स्वयं भगवान शिव और माता पार्वती
काशी में आते हैं और माता को नगर भ्रमण कराते हैं। इस दिन जो भी व्यक्ति
भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह कराता है उसे अखंड सौभाग्य का वरदान
मिलता है।