एकादशी व्रत का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है. इस महीने की 4 तारीखे को यानी, चार मई को वरूथिनी एकादशी है. वरूथिनी एकादशी पर भगवान विष्णु के पांचवे अवतार वामन की पूजा की जाती है. वैदिक कैलेंडर माह में बढ़ते (शुक्ल पक्ष) और घटते (कृष्ण पक्ष) चंद्र चक्र का ग्यारहवां चंद्र दिवस (तिथि) पर एकादशी व्रत रखा जाता है. एकादशी व्रत का असली नियम संयम से जुड़ा है. यही वजहै कि एकादशी पर भोजन की कई चीजों पर संयम रखा जाता है. एकादशी पर चावल नहीं खाए जाते. चाहे आप व्रत रखें या न रखें लेकिन एकादशी पर हिंदू धर्म में चावल खाने की मनाही है. लेकिन उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी मंदिर में एकादशी के दिन चावल खाने की विशेष परंपरा है. सेलिब्रिटी एस्ट्रोलॉजर प्रदुमन सूरी बता रहे हैं कि आखिर जगन्नाथ पुरी में ऐसी प्रथा क्यों है.
एकादशी पर देवताओं के सम्मान में चावल खाने की मनाही
आपने सुना होगा कि सालभर में आने वाली किसी भी एकादशी पर चावल खाने की मनाही होती है. इसके पीछे धार्मिक कारण है. विष्णु पुराण में इस बात का जिक्र है कि एकादशी के दिन चावल खाने से पुण्य फल की प्राप्ति नहीं होती है. चावल को हविष्य अन्न (देवताओं का भोजन) कहा जाता है. देवी-देवताओं के सम्मान में हर एकादशी तिथि पर चावल का सेवन करना वर्जित माना जाता है.
एक अन्य मान्यता के अनुसार महर्षि मेधा माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए एकादशी के ही दिन अपने शरीर का त्याग कर दिया था. महर्षि का जन्म चावल और जौ के रूप में हुआ था इसलिए इस दिन लोग चावल नहीं खाते हैं. वैज्ञानिक दृष्टिकोण की बात करें तो चावल में जल तत्व की प्रधानता होती है. इस दिन पका हुआ चावल खाने से मन और भी चंचल हो जाता है जबकि मन की चंचलता को दूर करने के लिए एकादशी का व्रत रखा जाता है.
जगन्नाथपुरी में एकादशी पर चावल का प्रसाद क्यों मिलता
वैसे तो सभी मंदिरों और घरों में एकादशी के दिन चावल बनाना या खाना वर्जित माना जाता है. वहीं, जगन्नाथ पुरी की में एकादशी के दिन चावल खाने की विशेष परंपरा है. पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्म देव स्वयं जगन्नाथ पुरी भगवान जगन्नाथ का महा प्रसाद खाने की इच्छा से पहुंचे लेकिन तब तक महाप्रसाद समाप्त हो चुका था. एक पत्तल में चावल के थोड़े से दाने थे जिसे एक कुत्ता चाटकर खा रहा था. हर प्राणी में भगवान के भक्ति भाव में डूबे ब्रह्म देव ने कुत्ते के साथ बैठकर उन चावलों को खाना शुरू कर दिया. जिस दिन यह घटना घटित हुई उस दिन संयोग से एकादशी थी. ब्रह्म देव को कुत्ते के साथ उनके महाप्रसाद का चावल खाते देख भगवान जगन्नाथ प्रकट हुए और बोले कि आज से मेरे महाप्रसाद में एकादशी का कोई नियम लागू नहीं होगा.
इस धाम में स्वयं विष्णु भगवान, श्री बलराम जी व माता सुभद्रा की प्रतिमाओं के साथ विराजमान हैं. यहां दिनभर में चार बार भोग लगाने के साथ आरती की जाती है. भक्तों को जगन्नाथपुरी के दर्शन करने के साथ वहां का महाप्रसाद लेना भी आवश्यक है. कहा जाता है कि एकादशी माता ने महाप्रसाद का निरादर कर दिया था. जिसके दंड स्वरूप भगवान विष्णु जी ने उन्हे बंधक बनाकर उल्टा लटका रखा है. भगवान विष्णु ने कहा था कि मेरा प्रसाद मुझसे भी बड़ा है, जो भी व्यक्ति यहां आकर मेरे दर्शन करेगा उसे, महाप्रसाद ग्रहण करना आवश्यक है. धार्मिक मान्यता के अनुसार ही कलियुग में जगन्नाथपुरी धाम में मक्खन-मिश्री तथा छप्पन भोग भक्तों में बांटा जाता हैं. यही प्रसाद ही एकादशी पर खाया जाता है.
एकादशी व्रत का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है. इस महीने की 4 तारीखे को यानी, चार मई को वरूथिनी एकादशी है. वरूथिनी एकादशी पर भगवान विष्णु के पांचवे अवतार वामन की पूजा की जाती है. वैदिक कैलेंडर माह में बढ़ते (शुक्ल पक्ष) और घटते (कृष्ण पक्ष) चंद्र चक्र का ग्यारहवां चंद्र दिवस (तिथि) पर एकादशी व्रत रखा जाता है. एकादशी व्रत का असली नियम संयम से जुड़ा है. यही वजहै कि एकादशी पर भोजन की कई चीजों पर संयम रखा जाता है. एकादशी पर चावल नहीं खाए जाते. चाहे आप व्रत रखें या न रखें लेकिन एकादशी पर हिंदू धर्म में चावल खाने की मनाही है. लेकिन उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी मंदिर में एकादशी के दिन चावल खाने की विशेष परंपरा है. सेलिब्रिटी एस्ट्रोलॉजर प्रदुमन सूरी बता रहे हैं कि आखिर जगन्नाथ पुरी में ऐसी प्रथा क्यों है.
एकादशी पर देवताओं के सम्मान में चावल खाने की मनाही
आपने सुना होगा कि सालभर में आने वाली किसी भी एकादशी पर चावल खाने की मनाही होती है. इसके पीछे धार्मिक कारण है. विष्णु पुराण में इस बात का जिक्र है कि एकादशी के दिन चावल खाने से पुण्य फल की प्राप्ति नहीं होती है. चावल को हविष्य अन्न (देवताओं का भोजन) कहा जाता है. देवी-देवताओं के सम्मान में हर एकादशी तिथि पर चावल का सेवन करना वर्जित माना जाता है.
एक अन्य मान्यता के अनुसार महर्षि मेधा माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए एकादशी के ही दिन अपने शरीर का त्याग कर दिया था. महर्षि का जन्म चावल और जौ के रूप में हुआ था इसलिए इस दिन लोग चावल नहीं खाते हैं. वैज्ञानिक दृष्टिकोण की बात करें तो चावल में जल तत्व की प्रधानता होती है. इस दिन पका हुआ चावल खाने से मन और भी चंचल हो जाता है जबकि मन की चंचलता को दूर करने के लिए एकादशी का व्रत रखा जाता है.
जगन्नाथपुरी में एकादशी पर चावल का प्रसाद क्यों मिलता
वैसे तो सभी मंदिरों और घरों में एकादशी के दिन चावल बनाना या खाना वर्जित माना जाता है. वहीं, जगन्नाथ पुरी की में एकादशी के दिन चावल खाने की विशेष परंपरा है. पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्म देव स्वयं जगन्नाथ पुरी भगवान जगन्नाथ का महा प्रसाद खाने की इच्छा से पहुंचे लेकिन तब तक महाप्रसाद समाप्त हो चुका था. एक पत्तल में चावल के थोड़े से दाने थे जिसे एक कुत्ता चाटकर खा रहा था. हर प्राणी में भगवान के भक्ति भाव में डूबे ब्रह्म देव ने कुत्ते के साथ बैठकर उन चावलों को खाना शुरू कर दिया. जिस दिन यह घटना घटित हुई उस दिन संयोग से एकादशी थी. ब्रह्म देव को कुत्ते के साथ उनके महाप्रसाद का चावल खाते देख भगवान जगन्नाथ प्रकट हुए और बोले कि आज से मेरे महाप्रसाद में एकादशी का कोई नियम लागू नहीं होगा.
इस धाम में स्वयं विष्णु भगवान, श्री बलराम जी व माता सुभद्रा की प्रतिमाओं के साथ विराजमान हैं. यहां दिनभर में चार बार भोग लगाने के साथ आरती की जाती है. भक्तों को जगन्नाथपुरी के दर्शन करने के साथ वहां का महाप्रसाद लेना भी आवश्यक है. कहा जाता है कि एकादशी माता ने महाप्रसाद का निरादर कर दिया था. जिसके दंड स्वरूप भगवान विष्णु जी ने उन्हे बंधक बनाकर उल्टा लटका रखा है. भगवान विष्णु ने कहा था कि मेरा प्रसाद मुझसे भी बड़ा है, जो भी व्यक्ति यहां आकर मेरे दर्शन करेगा उसे, महाप्रसाद ग्रहण करना आवश्यक है. धार्मिक मान्यता के अनुसार ही कलियुग में जगन्नाथपुरी धाम में मक्खन-मिश्री तथा छप्पन भोग भक्तों में बांटा जाता हैं. यही प्रसाद ही एकादशी पर खाया जाता है.