नई दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि राज्य सरकार की ओर से किसी मामले में जांच की सहमति वापस लेने के बावजूद केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की ओर से जांच जारी रखने को चुनौती देने का पश्चिम बंगाल सरकार का मुकद्दमा सुनवाई करने लायक है।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने केंद्र सरकार की इस प्रारंभिक आपत्ति को खारिज कर दिया कि इस तरह का मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है और पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दायर एक मूल मुकदमे को सुनवाई योग्य घोषित किया।
पश्चिम बंगाल सरकार ने आरोप लगाया था कि सीबीआई ने राज्य की ओर से सहमति वापस लेने के बावजूद राज्य के मामलों की जांच जारी रखी। अपने मुकदमे में राज्य सरकार ने आरोप लगाया कि सीबीआई प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज कर और अपनी जांच आगे बढ़ा रही है, जबकि राज्य ( पश्चिम बंगाल) ने अपने क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में मामलों की जांच करने के लिए केन्द्रीय एजेंसी को दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली थी। पश्चिम बंगाल ने 16 नवंबर 2018 को राज्य में जांच और छापेमारी करने के लिए सीबीआई को दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली थी।
शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत दायर मुकदमे की सुनवाई करने की योग्यता पर केंद्र द्वारा की गई प्रारंभिक आपत्तियों पर सुनवाई पूरी करते हुए 08 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। संविधान का अनुच्छेद 131 केंद्र और एक या अधिक राज्यों के बीच विवाद में सर्वोच्च न्यायालय के मूल अधिकार क्षेत्र से संबंधित है।
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तब शीर्ष अदालत के समक्ष दलील दी थी कि राज्य सरकार किसी भी मामले में सीबीआई जांच के लिए सहमति वापस लेने के लिए सर्वव्यापी, व्यापक और सर्वव्यापी निर्देश जारी करने के अधिकार का दावा नहीं कर सकती।श्री मेहता ने कहा था, "राज्य सरकार केवल अलग-अलग संबंधित मामले के आधार पर सहमति देने/अस्वीकार करने की शक्ति का प्रयोग कर सकती है।" उन्होंने अदालत से पश्चिम बंगाल के मुकदमे को खारिज करने का अनुरोध किया था। मेहता ने यह भी कहा था, "सीबीआई केंद्र के अधीन नहीं है। यह एक स्वतंत्र निकाय है। इसलिए, इस मामले में केंद्र सरकार पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।" उन्होंने पश्चिम बंगाल सरकार पर शीर्ष अदालत के समक्ष दो अलग-अलग मामलों में एक ही मुद्दे पर मुकदमा चलाने का आरोप लगाया था।
पश्चिम बंगाल सरकार का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने शीर्ष अदालत के समक्ष दलील दी थी कि सीबीआई राज्य सरकार की आम सहमति के बिना पश्चिम बंगाल से संबंधित मामलों की जांच नहीं कर सकती। उन्होंने आगे दलील दी, "दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम इस देश के संघीय ढांचे को प्रभावित करता है। राज्य में प्रवेश करने से पहले आम सहमति आवश्यक है।"
श्री सिब्बल ने यह भी अदालत के समक्ष कहा था कि एक बार जब सीबीआई किसी राज्य में पैर जमा लेती है तो उसके तुरंत बाद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी उस कथित अपराध की जांच के लिए वहां पहुंच जाती है। उन्होंने कहा, "इसका (बिना सहमति जांच करने का )भारतीय राजनीति पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है।"
नई दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि राज्य सरकार की ओर से किसी मामले में जांच की सहमति वापस लेने के बावजूद केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की ओर से जांच जारी रखने को चुनौती देने का पश्चिम बंगाल सरकार का मुकद्दमा सुनवाई करने लायक है।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने केंद्र सरकार की इस प्रारंभिक आपत्ति को खारिज कर दिया कि इस तरह का मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है और पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दायर एक मूल मुकदमे को सुनवाई योग्य घोषित किया।
पश्चिम बंगाल सरकार ने आरोप लगाया था कि सीबीआई ने राज्य की ओर से सहमति वापस लेने के बावजूद राज्य के मामलों की जांच जारी रखी। अपने मुकदमे में राज्य सरकार ने आरोप लगाया कि सीबीआई प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज कर और अपनी जांच आगे बढ़ा रही है, जबकि राज्य ( पश्चिम बंगाल) ने अपने क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में मामलों की जांच करने के लिए केन्द्रीय एजेंसी को दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली थी। पश्चिम बंगाल ने 16 नवंबर 2018 को राज्य में जांच और छापेमारी करने के लिए सीबीआई को दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली थी।
शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत दायर मुकदमे की सुनवाई करने की योग्यता पर केंद्र द्वारा की गई प्रारंभिक आपत्तियों पर सुनवाई पूरी करते हुए 08 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। संविधान का अनुच्छेद 131 केंद्र और एक या अधिक राज्यों के बीच विवाद में सर्वोच्च न्यायालय के मूल अधिकार क्षेत्र से संबंधित है।
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तब शीर्ष अदालत के समक्ष दलील दी थी कि राज्य सरकार किसी भी मामले में सीबीआई जांच के लिए सहमति वापस लेने के लिए सर्वव्यापी, व्यापक और सर्वव्यापी निर्देश जारी करने के अधिकार का दावा नहीं कर सकती।श्री मेहता ने कहा था, "राज्य सरकार केवल अलग-अलग संबंधित मामले के आधार पर सहमति देने/अस्वीकार करने की शक्ति का प्रयोग कर सकती है।" उन्होंने अदालत से पश्चिम बंगाल के मुकदमे को खारिज करने का अनुरोध किया था। मेहता ने यह भी कहा था, "सीबीआई केंद्र के अधीन नहीं है। यह एक स्वतंत्र निकाय है। इसलिए, इस मामले में केंद्र सरकार पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।" उन्होंने पश्चिम बंगाल सरकार पर शीर्ष अदालत के समक्ष दो अलग-अलग मामलों में एक ही मुद्दे पर मुकदमा चलाने का आरोप लगाया था।
पश्चिम बंगाल सरकार का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने शीर्ष अदालत के समक्ष दलील दी थी कि सीबीआई राज्य सरकार की आम सहमति के बिना पश्चिम बंगाल से संबंधित मामलों की जांच नहीं कर सकती। उन्होंने आगे दलील दी, "दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम इस देश के संघीय ढांचे को प्रभावित करता है। राज्य में प्रवेश करने से पहले आम सहमति आवश्यक है।"
श्री सिब्बल ने यह भी अदालत के समक्ष कहा था कि एक बार जब सीबीआई किसी राज्य में पैर जमा लेती है तो उसके तुरंत बाद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी उस कथित अपराध की जांच के लिए वहां पहुंच जाती है। उन्होंने कहा, "इसका (बिना सहमति जांच करने का )भारतीय राजनीति पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है।"