जिनेवा। अफ्रीका में एमपॉक्स वायरस के तेज फैलाव को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे अंतरराष्ट्रीय चिंता वाली सार्वजनिक स्वास्थ्य आपदा घोषित किया है। मगर एमपॉक्स क्या है, यह मूल रूप से कहां से फैली और दुनिया इस खतरे का मु$काबला किस तरह कर सकती है? इसे लेकर एडवाइजरी जारी की गई है। एमपॉक्स के फैलाव ने कोविड-19 और एचआईवी संक्रमण के शुरुआती दिनों जैसा डर भी उत्पन्न कर दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के यूरोप में क्षेत्रीय निदेशक डॉक्टर हैंस क्लूगे ने मंगलवार को इन चिन्ताओं को खारिज कर दिया। उन्होंने इसके बारे में अहम जानकारी दी।
एमपॉक्स 1958 में सामने आया। जब प्रयोगशाला के कई बंदरों में इस वायरस के होने की पुष्टि हुई। यह एक जूनोटिक वायरल रोग है। यह जानवरों से मनुष्यों में फैल सकता है और इंसान से इंसान में भी इसका प्रसार हो सकता है। मानव एमपॉक्स की पहचान पहली बार 1970 में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में एक नौ महीने के लडक़े में हुई थी। एमपॉक्स कुछ साल पहले मध्य और पश्चिम अफ्रीका में एक स्थानीय बीमारी थी, मगर वर्ष 2022 में इसने एक वैश्विक संक्रमण फैलाव किया। इसके बाद डब्ल्यूएचओ को एमपॉक्स को जुलाई में सार्वजनिक स्वास्थ्य आपदा घोषित करना पड़ा। एमपॉक्स के रोगियों में पहले देखे गए लक्षण चेचक के समान होते हैं। लेकिन यह चिकित्सकीय रूप से कम गंभीर है। 2003 में अफ्रीका के बाहर एमपॉक्स का पहला मामला अमेरिका में दर्ज किया गया था और इसे संक्रमित पालतू प्रैरी कुत्तों संपर्क से जोड़ा गया था। इसका नाम एमपॉक्स है, लेकिन कृंतक जैसे गैम्बियन विशाल चूहे या पेड़ों की गिलहरी जैसे अधिकांश जानवर इससे संक्रमित हो सकते हैं और फिर आगे लोगों को संक्रमित कर सकते हैं।
एमपॉक्स सबसे अधिक मध्य और पश्चिमी अफ्रीका के वर्षा वनों में पाया जाता है और वह जानवर जिनमें ये वायरस हो सकता है, वे वहां के मूल निवासी हैं। इन देशों में यह बीमारी तेजी से शहरी क्षेत्रों में देखी जा रही है। कभी-कभी यह उन लोगों में भी पाया जा सकता है, जो इन देशों का दौरा करने के बाद संक्रमित हुए हों। इसके लक्षणों में आमतौर पर बुखार, तेज सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, पीठ दर्द, शरीर में ऊर्जा की कमी, सूजी हुई गांठें और त्वचा पर चकत्ते या घाव शामिल हैं। त्वचा पर ये दाने और चकत्ते, आमतौर पर बुखार की शुरुआत के पहले या तीसरे दिन होते हैं। ये घाव चपटे या थोड़े उभरे हुए हो सकते हैं, जिनमें साफ या पीले रंग का तरल पदार्थ भरा होता है, फिर सूखकर इनकी पपड़ी बनकर गिर जाती है।
जिनेवा। अफ्रीका में एमपॉक्स वायरस के तेज फैलाव को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे अंतरराष्ट्रीय चिंता वाली सार्वजनिक स्वास्थ्य आपदा घोषित किया है। मगर एमपॉक्स क्या है, यह मूल रूप से कहां से फैली और दुनिया इस खतरे का मु$काबला किस तरह कर सकती है? इसे लेकर एडवाइजरी जारी की गई है। एमपॉक्स के फैलाव ने कोविड-19 और एचआईवी संक्रमण के शुरुआती दिनों जैसा डर भी उत्पन्न कर दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के यूरोप में क्षेत्रीय निदेशक डॉक्टर हैंस क्लूगे ने मंगलवार को इन चिन्ताओं को खारिज कर दिया। उन्होंने इसके बारे में अहम जानकारी दी।
एमपॉक्स 1958 में सामने आया। जब प्रयोगशाला के कई बंदरों में इस वायरस के होने की पुष्टि हुई। यह एक जूनोटिक वायरल रोग है। यह जानवरों से मनुष्यों में फैल सकता है और इंसान से इंसान में भी इसका प्रसार हो सकता है। मानव एमपॉक्स की पहचान पहली बार 1970 में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में एक नौ महीने के लडक़े में हुई थी। एमपॉक्स कुछ साल पहले मध्य और पश्चिम अफ्रीका में एक स्थानीय बीमारी थी, मगर वर्ष 2022 में इसने एक वैश्विक संक्रमण फैलाव किया। इसके बाद डब्ल्यूएचओ को एमपॉक्स को जुलाई में सार्वजनिक स्वास्थ्य आपदा घोषित करना पड़ा। एमपॉक्स के रोगियों में पहले देखे गए लक्षण चेचक के समान होते हैं। लेकिन यह चिकित्सकीय रूप से कम गंभीर है। 2003 में अफ्रीका के बाहर एमपॉक्स का पहला मामला अमेरिका में दर्ज किया गया था और इसे संक्रमित पालतू प्रैरी कुत्तों संपर्क से जोड़ा गया था। इसका नाम एमपॉक्स है, लेकिन कृंतक जैसे गैम्बियन विशाल चूहे या पेड़ों की गिलहरी जैसे अधिकांश जानवर इससे संक्रमित हो सकते हैं और फिर आगे लोगों को संक्रमित कर सकते हैं।
एमपॉक्स सबसे अधिक मध्य और पश्चिमी अफ्रीका के वर्षा वनों में पाया जाता है और वह जानवर जिनमें ये वायरस हो सकता है, वे वहां के मूल निवासी हैं। इन देशों में यह बीमारी तेजी से शहरी क्षेत्रों में देखी जा रही है। कभी-कभी यह उन लोगों में भी पाया जा सकता है, जो इन देशों का दौरा करने के बाद संक्रमित हुए हों। इसके लक्षणों में आमतौर पर बुखार, तेज सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, पीठ दर्द, शरीर में ऊर्जा की कमी, सूजी हुई गांठें और त्वचा पर चकत्ते या घाव शामिल हैं। त्वचा पर ये दाने और चकत्ते, आमतौर पर बुखार की शुरुआत के पहले या तीसरे दिन होते हैं। ये घाव चपटे या थोड़े उभरे हुए हो सकते हैं, जिनमें साफ या पीले रंग का तरल पदार्थ भरा होता है, फिर सूखकर इनकी पपड़ी बनकर गिर जाती है।