अगर आप झारखंड की राजधानी रांची में रहते हैं. आप चुटिया के राधा वल्लभ मंदिर के बारे में तो जरूर ही जानते होंगे. यह रांची के इतिहास का एक महत्वपूर्ण धरोहर है. इस मंदिर की खूबसूरती देखते बनती है. इससे जुड़ी एक दिलचस्प कहानी है जो शायद ही लोग जानते होंगे. जन्माष्टमी के अवसर पर आपको बताते हैं कि यह मंदिर कैसे बनकर तैयार हुआ था.
मंदिर के पुजारी गोकुल महंत दास ने लोकल 18 से कहा कि यह मन्दिर करीब 700 साल पुराना है. यह मंदिर के बनने के पीछे भी एक रोचक घटना है. यह मंदिर उस समय के राजा रघुनाथ साहदेव ने बनाया था. यह जो एरिया है चुटिया उस समय राजा की राजधानी हुआ करती थी.
चैतन्य महाप्रभु से जुड़ा है किस्सा
महंत गोकुल दास ने बताया कि चैतन्य महाप्रभु श्री कृष्ण भगवान के परम भक्त थे. भक्त तो उन्हें स्वयं श्री कृष्ण का अवतार मानते थे. ऐसे में वह एक बार अपनी पूरी टोली के साथ पुरी में श्री जगन्नाथ भगवान का दर्शन करने निकले थे. उन्हें रास्ते में विश्राम के रूप में इसी जगह का चयन किया. वह रात भर आराम कर सुबह चले गए. सुबह जाते समय उनका एक अंग वस्त्र यही गिर गया. वही सुबह राजा यहां शिकार के लिए निकले. उन्हें यह अंग वस्त्र दिखा, यह उठाते ही उन्हें ऐसा महसूस हुआ. यह कोई दिव्य आत्मा का है. यह कोई साधारण वस्त्र नहीं है. यहां पर स्वयं चैतन्य महाप्रभु आए थे. उन्होंने निश्चय किया. यहीं पर राधा कृष्ण मंदिर का निर्माण किया जाएगा.
होती है हर मनोकामना पूरी
महंत गोकुल दास बताते हैं कि इस मंदिर में हर मनोकामना में पूरी होती है. यहां लोग दूर-दूर से मुराद लेकर आते हैं. कोई संतान तो कोई शादी को लेकर. यहां जन्माष्टमी बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है. रात भर उत्सव मनता है. वह भोग प्रसाद घी माखन से लेकर खिचड़ी तक की लगाई जाती है.
अगर आप झारखंड की राजधानी रांची में रहते हैं. आप चुटिया के राधा वल्लभ मंदिर के बारे में तो जरूर ही जानते होंगे. यह रांची के इतिहास का एक महत्वपूर्ण धरोहर है. इस मंदिर की खूबसूरती देखते बनती है. इससे जुड़ी एक दिलचस्प कहानी है जो शायद ही लोग जानते होंगे. जन्माष्टमी के अवसर पर आपको बताते हैं कि यह मंदिर कैसे बनकर तैयार हुआ था.
मंदिर के पुजारी गोकुल महंत दास ने लोकल 18 से कहा कि यह मन्दिर करीब 700 साल पुराना है. यह मंदिर के बनने के पीछे भी एक रोचक घटना है. यह मंदिर उस समय के राजा रघुनाथ साहदेव ने बनाया था. यह जो एरिया है चुटिया उस समय राजा की राजधानी हुआ करती थी.
चैतन्य महाप्रभु से जुड़ा है किस्सा
महंत गोकुल दास ने बताया कि चैतन्य महाप्रभु श्री कृष्ण भगवान के परम भक्त थे. भक्त तो उन्हें स्वयं श्री कृष्ण का अवतार मानते थे. ऐसे में वह एक बार अपनी पूरी टोली के साथ पुरी में श्री जगन्नाथ भगवान का दर्शन करने निकले थे. उन्हें रास्ते में विश्राम के रूप में इसी जगह का चयन किया. वह रात भर आराम कर सुबह चले गए. सुबह जाते समय उनका एक अंग वस्त्र यही गिर गया. वही सुबह राजा यहां शिकार के लिए निकले. उन्हें यह अंग वस्त्र दिखा, यह उठाते ही उन्हें ऐसा महसूस हुआ. यह कोई दिव्य आत्मा का है. यह कोई साधारण वस्त्र नहीं है. यहां पर स्वयं चैतन्य महाप्रभु आए थे. उन्होंने निश्चय किया. यहीं पर राधा कृष्ण मंदिर का निर्माण किया जाएगा.
होती है हर मनोकामना पूरी
महंत गोकुल दास बताते हैं कि इस मंदिर में हर मनोकामना में पूरी होती है. यहां लोग दूर-दूर से मुराद लेकर आते हैं. कोई संतान तो कोई शादी को लेकर. यहां जन्माष्टमी बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है. रात भर उत्सव मनता है. वह भोग प्रसाद घी माखन से लेकर खिचड़ी तक की लगाई जाती है.