मुंबई। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मराठा आरक्षण एक बड़ा मुद्दा बना गया था, लेकिन जैसे ही प्रचार तेज हुआ चुनावी नारे और रणनीतियां सियासी समीकरणों को साधने पर जोर देने लगी। यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और पीएम नरेंद्र मोदी ने ‘एक हैं तो सेफ हैं’ जैसे नारे दिए, जिनका राजनीतिक असर अब महाराष्ट्र चुनाव में नजर आने लगा है।महायुति गठबंधन ने इन नारों के जरिए ओबीसी और मराठा समुदायों को एकजुट करने की कोशिश की है। इस रणनीति को वोटों के जटिल समीकरण साधने की एक पहल के तौर पर देखा जा रहा है। मराठा समुदाय का महाराष्ट्र की राजनीति में खास स्थान है, क्योंकि 2019 के विधानसभा चुनाव में करीब 160 विधायक मराठा समुदाय से जीते थे। लोकसभा चुनाव में भी मराठा समुदाय के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी। वोट बैंक की दृष्टि से ओबीसी महाराष्ट्र का सबसे बड़ा वर्ग है, जो राज्य की कुल जनसंख्या का 52 फीसदी है।
वहीं, मराठा समाज की आबादी करीब 28 फीसदी है। राज्य के कई इलाकों में मराठा और ओबीसी दोनों का प्रभाव गहरा है। मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र में मराठा समुदाय का वर्चस्व है, वहीं विदर्भ में ओबीसी का असर ज्यादा है। इन दोनों इलाकों को मिलाकर 116 विधानसभा सीटों पर कब्जा है, जो चुनावों के नतीजे पर असर डालते हैं। महाराष्ट्र में मराठा और ओबीसी के बीच सियासी मतभेद बढ़ गए हैं। मराठा आरक्षण को लेकर हुए आंदोलन ने दोनों समुदायों के बीच तनातनी बढ़ा दी है। ओबीसी कोटा में मराठा समाज को आरक्षण देने के मुद्दे पर विवाद बढ़ा है, जिसके चलते दोनों समुदायों में दूरी भी बढ़ गई हैं। हाल के लोकसभा चुनावों में भी मराठा और ओबीसी मतदाताओं ने एक-दूसरे के उम्मीदवारों को समर्थन देने से परहेज किया था।
महायुति और महाविकास अघाड़ी (एमवीए) दोनों ही गठबंधन मराठा और ओबीसी वोटों पर पकड़ बनाने के लिए सक्रिय दिख रहे हैं। एमवीए ने मराठा आरक्षण की मांग का समर्थन किया है, जबकि बीजेपी ओबीसी वोटों को साधने के लिए छोटे जातियों के बीच जनाधार बढ़ाने पर काम कर रही है। बीजेपी ने ओबीसी की सात जातियों को केंद्रीय सूची में शामिल करने का प्रस्ताव केंद्र को भेज दिया है और क्रीमी लेयर की सीमा भी बढ़ाने की सिफारिश की है। इन चुनावों में एक तरफ जहां महायुति सरकार को उम्मीद है कि मराठा और ओबीसी का समर्थन उसे मिलेगा, वहीं दूसरी तरफ एमवीए भी अपने उम्मीदवारों के जरिए ओबीसी और मराठा दोनों वर्गों को अपने साथ रखने की कोशिश कर रहा है। दोनों गठबंधनों का उद्देश्य वोट बैंक में सेंध लगाकर चुनावी जीत तय करना है।
मुंबई। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मराठा आरक्षण एक बड़ा मुद्दा बना गया था, लेकिन जैसे ही प्रचार तेज हुआ चुनावी नारे और रणनीतियां सियासी समीकरणों को साधने पर जोर देने लगी। यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और पीएम नरेंद्र मोदी ने ‘एक हैं तो सेफ हैं’ जैसे नारे दिए, जिनका राजनीतिक असर अब महाराष्ट्र चुनाव में नजर आने लगा है।महायुति गठबंधन ने इन नारों के जरिए ओबीसी और मराठा समुदायों को एकजुट करने की कोशिश की है। इस रणनीति को वोटों के जटिल समीकरण साधने की एक पहल के तौर पर देखा जा रहा है। मराठा समुदाय का महाराष्ट्र की राजनीति में खास स्थान है, क्योंकि 2019 के विधानसभा चुनाव में करीब 160 विधायक मराठा समुदाय से जीते थे। लोकसभा चुनाव में भी मराठा समुदाय के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी। वोट बैंक की दृष्टि से ओबीसी महाराष्ट्र का सबसे बड़ा वर्ग है, जो राज्य की कुल जनसंख्या का 52 फीसदी है।
वहीं, मराठा समाज की आबादी करीब 28 फीसदी है। राज्य के कई इलाकों में मराठा और ओबीसी दोनों का प्रभाव गहरा है। मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र में मराठा समुदाय का वर्चस्व है, वहीं विदर्भ में ओबीसी का असर ज्यादा है। इन दोनों इलाकों को मिलाकर 116 विधानसभा सीटों पर कब्जा है, जो चुनावों के नतीजे पर असर डालते हैं। महाराष्ट्र में मराठा और ओबीसी के बीच सियासी मतभेद बढ़ गए हैं। मराठा आरक्षण को लेकर हुए आंदोलन ने दोनों समुदायों के बीच तनातनी बढ़ा दी है। ओबीसी कोटा में मराठा समाज को आरक्षण देने के मुद्दे पर विवाद बढ़ा है, जिसके चलते दोनों समुदायों में दूरी भी बढ़ गई हैं। हाल के लोकसभा चुनावों में भी मराठा और ओबीसी मतदाताओं ने एक-दूसरे के उम्मीदवारों को समर्थन देने से परहेज किया था।
महायुति और महाविकास अघाड़ी (एमवीए) दोनों ही गठबंधन मराठा और ओबीसी वोटों पर पकड़ बनाने के लिए सक्रिय दिख रहे हैं। एमवीए ने मराठा आरक्षण की मांग का समर्थन किया है, जबकि बीजेपी ओबीसी वोटों को साधने के लिए छोटे जातियों के बीच जनाधार बढ़ाने पर काम कर रही है। बीजेपी ने ओबीसी की सात जातियों को केंद्रीय सूची में शामिल करने का प्रस्ताव केंद्र को भेज दिया है और क्रीमी लेयर की सीमा भी बढ़ाने की सिफारिश की है। इन चुनावों में एक तरफ जहां महायुति सरकार को उम्मीद है कि मराठा और ओबीसी का समर्थन उसे मिलेगा, वहीं दूसरी तरफ एमवीए भी अपने उम्मीदवारों के जरिए ओबीसी और मराठा दोनों वर्गों को अपने साथ रखने की कोशिश कर रहा है। दोनों गठबंधनों का उद्देश्य वोट बैंक में सेंध लगाकर चुनावी जीत तय करना है।