भारत ने दुनिया को कई बेहतरीन क्रिकेटर दिए हैं, लेकिन शायद विराट कोहली जितना महत्वाकांक्षी कोई नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए, कोहली ने सचिन तेंदुलकर की तकनीकी मेहनत और फिटनेस के तरीकों इस्तेमाल किया, जिसके जरिए वे सिर्फ़ क्रिकेटरों में ही नहीं, बल्कि दुनिया के शीर्ष एथलीटों की श्रेणी में गिने जाने लगे थे। इसी का नतीजा था कि कोहली अपने समय के सबसे बेहतरीन खिलाड़ियों में गिने गए, जो लगातार ऑल-फ़ॉर्मेट का खिलाड़ी बनकर टीम को अपनी सेवाएं देते रहे। विराट कोहली के रन चेज का मास्टर कहा जाता था। कोहली ने एक नहीं कई मौकों पर ये कारनामा करके दिखाया और अपने दम पर सफल तरीके से लक्ष्य का पीछा किया।
ऐसा कहा जाता है कि खेल के प्रति जुनून के कारण ही उनकी यह महत्वाकांक्षा उनकी कप्तानी में भी सहज रूप से स्थानांतरित हो गई। उन्होंने अपने गेंदबाजों को न सिर्फ आक्रामक गेंदबाजी के लिए प्रेरित किया, बल्कि पहले से कहीं और ज़्यादा योगदान देने की मांग की। कोहली ने टीम इंडिया के तेज़ गेंदबाज़ों को जमकर प्रोत्साहित किया। कोहली ने कई मौकों पर जीत के लिए और अपनी गेंदबाज़ी में गहराई लाने के लिए बल्लेबाज़ों की बलि दी और भारत को टेस्ट रैंकिंग में नंबर 1 पर लंबे समय तक टिकाए रखा। इतना ही नहीं ऑस्ट्रेलिया में पहली बार सीरीज़ जीतने में टीम इंडिया की भरपूर मदद की। वह भारत के सबसे सफल टेस्ट कप्तान बनने की राह पर रहे।
विपक्षी टीम इसलिए खाती थी खौफ
अगर रिकॉर्ड की बात करें तो बांग्लादेश में एक को छोड़कर, कोहली ने हर उस देश में जाकर उसके खिलाफ टेस्ट शतक बनाए, जिसके लिए उनको टीम में रखा गया था।
आपको याद होगा कि अंडर-19 विश्व कप जीतने वाले कप्तान के बाद जब वे टीम इंडिया के लिए खेलने के लिए मैदान में आए, तो कोहली एक असाधारण प्रतिभा वाले खिलाड़ी दिख रहे थे, जिनके पास कवर ड्राइव को मारने की अद्भुत क्षमता थी। तेंदुलकर युग के समाप्त होने के साथ ही उन्हें भारत का अगला बड़ा बल्लेबाज बनना तय माना जा रहा था, लेकिन कोहली इससे कहीं अधिक बनना चाहते थे। वह चाहते थे कि वह एक ऐसा क्रिकेटर बनें, जिससे विपक्षी टीम खौफ खाए। एक ऐसा क्रिकेटर बनें, जिसकी मौजूदगी से टीम के मुकाबले जीतने की क्षमता बढ़े।
भारतीय क्रिकेट टीम में फिटनेस संस्कृति
कहा जाता है कि कोहली ने टेस्ट क्रिकेट में हर गेंद को जीया, हर पल का मुकाबला किया और सुनिश्चित किया कि उनके पास इस काम को बरकरार रखने के लिए जबरदस्त फिटनेस भी हो। अपने साथ-साथ उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम में फिटनेस संस्कृति को बदलने की कोशिश की। टीम की फिटनेस पर ध्यान दिलाने का श्रेय विराट कोहली को ही दिया जाता है। बाद में इसे टीम में चयन के लिए एक मानदंड के रूप में बना दिया गया।कोहली निश्चित रूप से भारत के दिग्गज बल्लेबाजों व शक्तिशाली कप्तानों में आगे थे। भारतीय क्रिकेट के हर अभियान के वे केंद्र बने रहे। विराट कोहली रिटायर होते ही उनके 14 साल के शानदार टेस्ट करियर का अंत हो गया। इस दौरान उन्होंने 123 टेस्ट में 46.85 की औसत से 30 शतकों के साथ 9,230 रन बनाए हैं। वह भारत के अब तक के सबसे सफल टेस्ट कप्तान भी हैं, जिन्होंने आर्मबैंड के साथ 68 में से 40 टेस्टों में जीत दिलायी है।
भारत ने दुनिया को कई बेहतरीन क्रिकेटर दिए हैं, लेकिन शायद विराट कोहली जितना महत्वाकांक्षी कोई नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए, कोहली ने सचिन तेंदुलकर की तकनीकी मेहनत और फिटनेस के तरीकों इस्तेमाल किया, जिसके जरिए वे सिर्फ़ क्रिकेटरों में ही नहीं, बल्कि दुनिया के शीर्ष एथलीटों की श्रेणी में गिने जाने लगे थे। इसी का नतीजा था कि कोहली अपने समय के सबसे बेहतरीन खिलाड़ियों में गिने गए, जो लगातार ऑल-फ़ॉर्मेट का खिलाड़ी बनकर टीम को अपनी सेवाएं देते रहे। विराट कोहली के रन चेज का मास्टर कहा जाता था। कोहली ने एक नहीं कई मौकों पर ये कारनामा करके दिखाया और अपने दम पर सफल तरीके से लक्ष्य का पीछा किया।
ऐसा कहा जाता है कि खेल के प्रति जुनून के कारण ही उनकी यह महत्वाकांक्षा उनकी कप्तानी में भी सहज रूप से स्थानांतरित हो गई। उन्होंने अपने गेंदबाजों को न सिर्फ आक्रामक गेंदबाजी के लिए प्रेरित किया, बल्कि पहले से कहीं और ज़्यादा योगदान देने की मांग की। कोहली ने टीम इंडिया के तेज़ गेंदबाज़ों को जमकर प्रोत्साहित किया। कोहली ने कई मौकों पर जीत के लिए और अपनी गेंदबाज़ी में गहराई लाने के लिए बल्लेबाज़ों की बलि दी और भारत को टेस्ट रैंकिंग में नंबर 1 पर लंबे समय तक टिकाए रखा। इतना ही नहीं ऑस्ट्रेलिया में पहली बार सीरीज़ जीतने में टीम इंडिया की भरपूर मदद की। वह भारत के सबसे सफल टेस्ट कप्तान बनने की राह पर रहे।
विपक्षी टीम इसलिए खाती थी खौफ
अगर रिकॉर्ड की बात करें तो बांग्लादेश में एक को छोड़कर, कोहली ने हर उस देश में जाकर उसके खिलाफ टेस्ट शतक बनाए, जिसके लिए उनको टीम में रखा गया था।
आपको याद होगा कि अंडर-19 विश्व कप जीतने वाले कप्तान के बाद जब वे टीम इंडिया के लिए खेलने के लिए मैदान में आए, तो कोहली एक असाधारण प्रतिभा वाले खिलाड़ी दिख रहे थे, जिनके पास कवर ड्राइव को मारने की अद्भुत क्षमता थी। तेंदुलकर युग के समाप्त होने के साथ ही उन्हें भारत का अगला बड़ा बल्लेबाज बनना तय माना जा रहा था, लेकिन कोहली इससे कहीं अधिक बनना चाहते थे। वह चाहते थे कि वह एक ऐसा क्रिकेटर बनें, जिससे विपक्षी टीम खौफ खाए। एक ऐसा क्रिकेटर बनें, जिसकी मौजूदगी से टीम के मुकाबले जीतने की क्षमता बढ़े।
भारतीय क्रिकेट टीम में फिटनेस संस्कृति
कहा जाता है कि कोहली ने टेस्ट क्रिकेट में हर गेंद को जीया, हर पल का मुकाबला किया और सुनिश्चित किया कि उनके पास इस काम को बरकरार रखने के लिए जबरदस्त फिटनेस भी हो। अपने साथ-साथ उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम में फिटनेस संस्कृति को बदलने की कोशिश की। टीम की फिटनेस पर ध्यान दिलाने का श्रेय विराट कोहली को ही दिया जाता है। बाद में इसे टीम में चयन के लिए एक मानदंड के रूप में बना दिया गया।कोहली निश्चित रूप से भारत के दिग्गज बल्लेबाजों व शक्तिशाली कप्तानों में आगे थे। भारतीय क्रिकेट के हर अभियान के वे केंद्र बने रहे। विराट कोहली रिटायर होते ही उनके 14 साल के शानदार टेस्ट करियर का अंत हो गया। इस दौरान उन्होंने 123 टेस्ट में 46.85 की औसत से 30 शतकों के साथ 9,230 रन बनाए हैं। वह भारत के अब तक के सबसे सफल टेस्ट कप्तान भी हैं, जिन्होंने आर्मबैंड के साथ 68 में से 40 टेस्टों में जीत दिलायी है।