जब इंसान कुछ अलग करने की ठान लेता है तब वो बिना किसी डर के हर मुश्किल को पार कर लेता है. इस बात को जॉन डॉड नाम के एक अंग्रेज इंजीनियर ने साबित कर दिया. आज हम आपको उन्हीं के द्वारा बनाई गई एक कार की कहानी सुनाने जा रहे हैं जिसके बाद आप भी मोटिवेट हो जाएंगे और आपको लगेगा कि इस कहानी पर तो फिल्म बननी चाहिए.
पॉल जेमसन ने ‘द बीस्ट’ नाम की एक कार का निर्माण किया जो इतनी मजबूत कार बनी कि आगे चलकर उसका नाम गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड भी दर्ज हो गया. पर इस कार को बनाना इतना भी आसान नहीं था. उन्होंने एक मामूली एक्सपेरिमेंट किया जिसका नतीजा गजब का निकला. पॉल देखना चाहते थे कि अगर कार में टैंक का इंजन लगा दिया जाए तो उससे क्या होगा. ये देखने के लिए उन्होंने कार के लिए कस्टम चेसिस बनाया जिसे कार का ढांचा कहते हैं. उसके ऊपर रॉल्स रॉयस मेटियोर टैंक इंजन लगा दिया. उसके बाद वो ट्रांसमिशन एक्सपर्ट जॉन डॉड के पास गए जिनसे उन्होंने अपनी कार के लिए ऑटोमेटेड ट्रांसमिशन को कमिशन करने के लिए कहा.
शुरुआत में कार के अंदर लगाया टैंक का इंजन :: जॉन को आइडिया इतना पसंद आया कि जब पॉल ने कुछ वक्त के लिए इस एक्सपेरिमेंट को रोक दिया तो उन्होंने इस प्रोजेक्ट को उनसे खरीद लिया और खुद ही कार को पूरा कर दिया. उन्होंने कार के लिए हुड के साथ कस्टम फाइबर ग्लास बॉडी बनवाई जिसमें उन्होंने इंजन को फिट करवा दिया. साल 1972 में जॉन डॉड ने द बीस्ट को कंप्लीट कर दिया. कार का लुक और इसके फीचर लोगों को इतने पसंद आए कि धीरे-धीरे गाड़ी प्रदर्शनियों में भी जाने लगी. एक बार वो यूरोप के टूर पर थी. साल 1974 में स्वीडन से लौट रही थी जब अचानक गाड़ी में आग लग गई. गाड़ी एक ट्रांसपोर्ट ट्रक के जरिए लाई जा रही थी. नुकसान इतना ज्यादा हुआ कि जॉन पूरी तरह टूट गए और उन्होंने फैसला किया कि वो कार को फिर से बनाएंगे.
कार में लगा दिया फाइटर प्लेन का इंजन :: पर इस बार उन्होंने अलग ही चमत्कार कर दिया. शुरू से बनाई गई इस कार में उन्होंने तय किया कि वो प्लेन का इंजन लगाएंगे. उन्होंने इसके लिए रॉल्स रॉयस मर्लिन वी12 इंजन को चुना जो स्पिट फायर और हरीकेन फाइटर प्लेन में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इस्तेमाल किया गया था. उन्होंने फाइबर ग्लास रिपेयर्स नाम की कंपनी से बड़ी फाइबर ग्लास बॉडी को कमिशन किया जिन्होंने पहली वाली गाड़ी के लिए भी इसे बनाया था. दूसरी कार इतनी शक्तिशाली बनी कि इसे 1977 में सबसे ज्यादा शक्तिशाली होने का गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड से खिताब भी मिला. ये अफवाहें भी उड़ीं कि कार की टॉप स्पीड 418 किमी. प्रति घंटे है. हालांकि, इसकी असल परफॉर्मेंस के बारे में अभी तक लोगों को नहीं पता है. डॉड ने अपनी इस कार को कभी नहीं बेचा पर जब पिछले साल उनकी मौत हो गई तो उनके परिवार ने इसे बेचने का प्लान बनाया. कार सिर्फ 16 हजार किलोमीटर ही चली थी. हाल ही में बीस्ट की नीलामी हुई और इसे 72 लाख रुपयों में बेचा गया.
जब इंसान कुछ अलग करने की ठान लेता है तब वो बिना किसी डर के हर मुश्किल को पार कर लेता है. इस बात को जॉन डॉड नाम के एक अंग्रेज इंजीनियर ने साबित कर दिया. आज हम आपको उन्हीं के द्वारा बनाई गई एक कार की कहानी सुनाने जा रहे हैं जिसके बाद आप भी मोटिवेट हो जाएंगे और आपको लगेगा कि इस कहानी पर तो फिल्म बननी चाहिए.
पॉल जेमसन ने ‘द बीस्ट’ नाम की एक कार का निर्माण किया जो इतनी मजबूत कार बनी कि आगे चलकर उसका नाम गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड भी दर्ज हो गया. पर इस कार को बनाना इतना भी आसान नहीं था. उन्होंने एक मामूली एक्सपेरिमेंट किया जिसका नतीजा गजब का निकला. पॉल देखना चाहते थे कि अगर कार में टैंक का इंजन लगा दिया जाए तो उससे क्या होगा. ये देखने के लिए उन्होंने कार के लिए कस्टम चेसिस बनाया जिसे कार का ढांचा कहते हैं. उसके ऊपर रॉल्स रॉयस मेटियोर टैंक इंजन लगा दिया. उसके बाद वो ट्रांसमिशन एक्सपर्ट जॉन डॉड के पास गए जिनसे उन्होंने अपनी कार के लिए ऑटोमेटेड ट्रांसमिशन को कमिशन करने के लिए कहा.
शुरुआत में कार के अंदर लगाया टैंक का इंजन :: जॉन को आइडिया इतना पसंद आया कि जब पॉल ने कुछ वक्त के लिए इस एक्सपेरिमेंट को रोक दिया तो उन्होंने इस प्रोजेक्ट को उनसे खरीद लिया और खुद ही कार को पूरा कर दिया. उन्होंने कार के लिए हुड के साथ कस्टम फाइबर ग्लास बॉडी बनवाई जिसमें उन्होंने इंजन को फिट करवा दिया. साल 1972 में जॉन डॉड ने द बीस्ट को कंप्लीट कर दिया. कार का लुक और इसके फीचर लोगों को इतने पसंद आए कि धीरे-धीरे गाड़ी प्रदर्शनियों में भी जाने लगी. एक बार वो यूरोप के टूर पर थी. साल 1974 में स्वीडन से लौट रही थी जब अचानक गाड़ी में आग लग गई. गाड़ी एक ट्रांसपोर्ट ट्रक के जरिए लाई जा रही थी. नुकसान इतना ज्यादा हुआ कि जॉन पूरी तरह टूट गए और उन्होंने फैसला किया कि वो कार को फिर से बनाएंगे.
कार में लगा दिया फाइटर प्लेन का इंजन :: पर इस बार उन्होंने अलग ही चमत्कार कर दिया. शुरू से बनाई गई इस कार में उन्होंने तय किया कि वो प्लेन का इंजन लगाएंगे. उन्होंने इसके लिए रॉल्स रॉयस मर्लिन वी12 इंजन को चुना जो स्पिट फायर और हरीकेन फाइटर प्लेन में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इस्तेमाल किया गया था. उन्होंने फाइबर ग्लास रिपेयर्स नाम की कंपनी से बड़ी फाइबर ग्लास बॉडी को कमिशन किया जिन्होंने पहली वाली गाड़ी के लिए भी इसे बनाया था. दूसरी कार इतनी शक्तिशाली बनी कि इसे 1977 में सबसे ज्यादा शक्तिशाली होने का गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड से खिताब भी मिला. ये अफवाहें भी उड़ीं कि कार की टॉप स्पीड 418 किमी. प्रति घंटे है. हालांकि, इसकी असल परफॉर्मेंस के बारे में अभी तक लोगों को नहीं पता है. डॉड ने अपनी इस कार को कभी नहीं बेचा पर जब पिछले साल उनकी मौत हो गई तो उनके परिवार ने इसे बेचने का प्लान बनाया. कार सिर्फ 16 हजार किलोमीटर ही चली थी. हाल ही में बीस्ट की नीलामी हुई और इसे 72 लाख रुपयों में बेचा गया.